पशुओं के नवजात बच्चों के जन्म से ले कर युवा अवस्था तक अच्छी प्रबंधन व्यवस्था, पशुओं और किसानों दोनों के लिए एक सफल और लाभदायक है. नवजात पशु के अच्छे  स्वास्थ्य के लिए खीस प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण है.

ब्यांने के बाद गाय जो पहला पीला और गाढ़ा दूध देती है, उसे ‘कोलोस्ट्रम’ यानी ‘खीस’ कहा जाता है. नवजात बच्चे के लिए यह दूध बहुत ही गुणकारी है, क्योंकि यह उन्हें संक्रामक रोगों से बचाता है. पोषक तत्वों और एंटीबौडी से यह भरपूर होता है. खीस में मौजूद एंटीबौडीज नवजात बच्चे को उन की शुरुआती सुरक्षा प्रदान करते हैं.

लगभग सौ साल पहले एक शोध से यह पता चला था कि जिन नवजात बछड़ों को दूध पिलाया गया था, उन में से कई की मृत्यु दस्त लगने के कारण हो गई थी, जबकि जिन बछड़ों को जन्म के बाद ही खीस खिलाया गया, वे स्वस्थ रहे. इसलिए यह माना गया कि खीस में कुछ महत्वपूर्ण तत्व होते हैं, जो नवजात पशु को प्रतिरक्षा (बीमारियों से बचाव) प्रदान करते हैं और ब्यांत के बाद मृत्यु दर को काफी कम करते हैं.

जन्म के तुरंत बाद नवजात बछड़े में बीमारी से सुरक्षा का अभाव होता है, क्योंकि एंटीबौडी गाय की नाल से हो कर भ्रूण के संचार तंत्र तक नहीं पहुंच पाती है, इसलिए उन्हें संक्रामक रोग होने का खतरा हमेशा बना रहता है. हालांकि नवजात बछड़े में एंटीबौडी पैदा करने की क्षमता होती है, लेकिन यह क्षमता बहुत कम होती है.

नवजात बछड़े  दस्त और पेट की समस्याओं से पीड़ित रहते हैं. मनुष्यों में यह गर्भावस्था के दौरान मां से नवजात शिशु में मिल जाता है, इसलिए उन में जन्म से पहले ही बीमारियों से लडने की क्षमता होती है, वहीं पशुओं में यह प्रणाली जन्म के समय विकसित नहीं होती है. इसलिए, नवजात पशुओं को संक्रामक रोगों से बचाना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है.

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