भरतपुर जिले के बयाना पंचायत समिति क्षेत्र का ककलपुरा गांव, जहां के लोगों को अब समझ आ गया है कि परंपरागत खेती से उन का गुजारा होने वाला नहीं है. ऐसी स्थिति में गांव वालों ने मुर्रा नस्ल की भैंसों को पाल कर दूध बेचने का धंधा शुरू किया है. इस से गांव वाले की माली हालत में तेजी से बदलाव आया है. ज्यादा दूध देने के चलते ज्यादातर गांव वालों ने मुर्रा नस्ल की भैंसों को पालना शुरू किया है. इस की वजह से ककलपुरा की पहचान मुर्रा नस्ल की भैंसों के गांव के रूप में हुई है.

मुर्रा नस्ल की भैंसों (Murrah buffaloes)

ककलपुरा गांव में तकरीबन 140 परिवार रहते हैं जिन में से 19 गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करते हैं. ज्यादातर गांव वाले परंपरागत खेती कर के अपना जीवनयापन करते आ रहे हैं.

सामाजिक और माली तरक्की के क्षेत्र में भरतपुर जिले में काम कर रही लुपिन फाउंडेशन संस्था ने ककलपुरा गांव को गोद ले कर उन्हें खेती करने के साथसाथ पशुपालन का काम शुरू करने की सलाह दी, जिस के लिए उन्हें मुर्रा नस्ल की भैसों को पालने के बारे में बताया.

गांव वालों को समझाया गया कि मुर्रा नस्ल की भैंसें परंपरागत नस्लों के मुकाबले ज्यादा दूध देती हैं. साथ ही, इस नस्ल की भैंसों में रोग भी कम आते हैं. मुर्रा नस्ल की भैंसों को पालने के लिए लुपिन फाउंडेशन ने नाबार्ड की मदद से हरियाणा के जींद व महेंद्रगढ़ जिलों से मुर्रा नस्ल की 16 भैंसें खरीदवाईं, जिन के लिए संस्था ने 7 लाख, 82 हजार रुपए का कर्ज मुहैया कराया.

भैंसों की खरीद के लिए लुपिन संस्था पशुपालकों को अपने साथ ले कर गई और उन की पसंद के मुताबिक भैंसें खरीदवाईं. भैंस खरीद करने के बाद इन के रखरखाव और चारे वगैरह की जानकारी के लिए 2 दिन की ट्रेनिंग भी दी गई.

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