भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के केंद्रीय भेड़ और ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर ने भेड़ प्रजनन के क्षेत्र में एक अभूतपूर्व नवाचार शुरू किया है. भेड़ों के लिए चल कृत्रिम गर्भाधान प्रयोगशाला, जिसे अवि मेल नाम दिया गया है. पहली बार डिज़ाइन की गई इस अत्याधुनिक सुविधा का उद्देश्य मद समाकलन और कृत्रिम गर्भाधान सेवाओं को सीधे किसानों के दरवाजे पर पहुंचा कर भेड़ प्रजनन के क्षेत्र में क्रांति लाना है.
कई चुनौतियों के चलते भेड़ों में कृत्रिम गर्भाधान लोकप्रिय नहीं रहा है और इस का कम उपयोग किया गया है. भेड़ की सर्विक्स (बच्चेदानी का मुंह) की जटिल शारीरिक रचना के कारण कृत्रिम गर्भाधान के लिए भेड़ यानी मेढ़े के क्रायोप्रिजर्व्ड सीमेन को, जिसे कई सालों तक महफूज रखा जा सकता है, उस का सफलतापूर्वक उपयोग नहीं किया जा सकता.
तरल शीतित सीमेन के साथ कृत्रिम गर्भाधान काफी सफल होता है और 50 से 60 फीसदी गर्भधारण दर प्राप्त होती है. हालांकि, उसे बहुत कम समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है और इसे संग्रह के बाद 8 से 10 घंटे में उपयोग करने पर ही वांछित सफलता मिलती है.
इस वजह से कृत्रिम गर्भाधान तकनीक सीमेन स्टेशन के 25 से 30 किलोमीटर के दायरे में किसानों के लिए पहुंच पाती है और देश में भेड़ों के लिए स्थापित सीमेन लैबोरेट्रीज की संख्या न के बराबर है.
इन चुनौतियों को पहचानते हुए भेड़ों में नस्ल सुधार कार्यक्रमों के लिए कृत्रिम गर्भाधान के सफल कार्यान्वयन को सक्षम बनाने के लिए इस प्रौद्योगिकी और किसानों के बीच की खाई को पाटने के लिए ‘अवि मेल’ की अवधारणा लाई गई थी.
भारत सरकार के पशुपालन एवं डेयरी विभाग के राष्ट्रीय पशुधन मिशन द्वारा वित्तीय रूप से समर्थित अवि मेल, पहियों पर पूरी तरह से सुसज्जित मोबाइल सीमेन प्रयोगशाला है, जिसे दूरदराज के क्षेत्रों में भी फील्ड स्थितियों में संचालित करने के लिए डिजाइन किया गया है.
यह एक रोगाणुहीन वातावरण में उच्चतम मेंड़ों से स्वच्छ सीमेन संग्रह, मूल्यांकन और प्रसंस्करण की सुविधाएं प्रदान करता है, जिसे भेड़ों के अलावा बकरियों, सूअरों और घोड़ों सहित अन्य पशुओं की प्रजातियों में भी उपयोग किया जा सकता है.
अवि मेल को कृषि एवं पशुपालन क्षेत्रों के प्रमुख व्यक्तियों और विशेषज्ञों से काफी तारीफ मिली है. विभिन्न दौरों के दौरान इस नवाचार की कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ लल्लन सिंह, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के राज्य मंत्री प्रो. एसपीएस बघेल, डेयर सचिव और आईसीएआर के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक, कृषि वैज्ञानिक भरती बोर्ड के अध्यक्ष डा. संजय कुमार, एग्रीनोवेट के सीईओ डा. प्रवीण मलिक, डीएएचडी के पूर्व संयुक्त सचिव (एनएलएम) डा. ओपी चौधरी के साथसाथ अन्य मंत्री, वरिष्ठ अधिकारी और विभिन्न राज्यों के अनुसंधान संस्थानों, विश्वविद्यालयों और पशुपालन विभागों के विशेषज्ञों ने प्रशंसा की और इसे बड़े स्तर पर प्रयोग करने की अनुशंसा की.
एक प्रायोगिक परीक्षण में राजस्थान के टोंक और जयपुर जिलों के 5 गांवों के 10 किसानों की 450 भेड़ों में कृत्रिम गर्भाधान के लिए अवि मेल का इस्तेमाल किया गया, जिस से 58 फीसदी भेड़ों में एक समय पर उन्नत नस्ल के मेमने प्राप्त हुए.
यह सफलता भेड़ उत्पादकता में सुधार लाने और छोटे किसानों के माली उत्थान में योगदान देने के लिए अवि मेल की क्षमता को उजागर करती है.
केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर के निदेशक डा. अरुण तोमर ने ‘अवि मेल’ की परिवर्तनकारी क्षमता पर जोर देते हुए कहा, “यह नवाचार उन्नत प्रजनन तकनीकों को किसानों के लिए सुलभ बनाने में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, खासकर दूरदराज के क्षेत्रों में और प्रवासी भ्रमणकारी भेड़पालकों के लिए. अवि मेल में कुशल नस्ल सुधार कार्यक्रमों को सक्षम बनाने की क्षमता है, जिस से पशुधन क्षेत्र में भेड़ उत्पादकता और आर्थिक विकास में वृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है.”
अवि मेल को संस्थान के निदेशक डा. अरुण तोमर के मार्गदर्शन में एनएलएम द्वारा वित्तपोषित परियोजना के प्रधान अन्वेषक डा. अजीत सिंह महला और उन की टीम द्वारा बनाया गया है.
डा. अरुण महला ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत में दुनिया की दूसरी सब से बड़ी भेड़ आबादी होने और पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान के 7 दशकों के सफल प्रयोग के बावजूद देश अभी तक भेड़ों में एक वांछनीय कृत्रिम गर्भाधान कवरेज हासिल नहीं कर पाया है. यहां तक कि देशभर में कुल गर्भाधानों की संख्या 4 अंकों तक पहुंचाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है.
उन्होंने बताया कि नीति बनाने वाले इस तकनीक का बड़े स्तर पर प्रयोग सुनिश्चित करने के लिए देशभर में भेड़, बकरी और सूअर जैसी प्रजातियों के लिए वीर्य स्टेशनों या कृत्रिम गर्भाधान प्रयोगशालाओं के लिए बुनियादी ढांचे को बढ़ाने की सिफारिश करते हैं.
संस्थान द्वारा विकसित की गई यह चल कृत्रिम गर्भाधान प्रयोगशाला कम लागत में बुनियादी ढांचे को मजबूत कर प्रजनन तकनीकों को भेड़पालकों तक पहुंचा कर भेड़ प्रजनन के क्षेत्र में क्रांति लाने की संभावनाएं रखती है.
अवि मेल को राज्य पशुपालन विभागों, शोध संस्थानों, नस्ल सुधार कार्यक्रमों में लगे गैरसरकारी संगठनों और उद्यमियों द्वारा अपनाया जा सकता है. हाल ही में एनएलएम सब्सिडी योजना की शुरूआत ने देशभर में व्यावसायिक भेड़पालन में उल्लेखनीय वृद्धि की है, जिस से इस क्षेत्र का असंगठित से संगठित सैक्टर में परिवर्तन हो रहा है.
इस बदलाव के साथ भेड़ों में कृत्रिम गर्भाधान की खासकर प्रगतिशील किसानों और उद्यमियों के बीच बढ़ती मांग देखी गई है. इस के अलावा अविकानगर जैसी शोध संस्थाओं द्वारा विकसित उच्च मांग वाली भेड़ की नस्लों, जिन की मांग और उपलब्धता में उल्लेखनीय अंतर है , जैसे अविशान जो 2 से 4 मेमने देने के लिए जानी जाती है और अविदुम्बा जो असाधारण वजन और वृद्धि के लिए जानी जाती है, के बेहतर जर्म प्लाज्म के प्रसार के लिए कृत्रिम गर्भाधान का उपयोग कर भारतीय भेड़ों की उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है.
अविकानगर संस्थान ‘अवि मेल’ जैसी तकनीकों के सफल विकास के साथ नवीन तकनीकों के माध्यम से पशुधन उत्पादकता को आगे बढ़ाने में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है और आधुनिक प्रजनन पद्धतियों को पशुपालकों के दरवाजे तक ला कर संस्थान भारत के भेड़ उद्योग के लिए अधिक टिकाऊ और समृद्ध भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर रहा है.