नई दिल्ली :  विश्व जूनोसिस दिवस के उपलक्ष में पशुपालन और डेयरी विभाग द्वारा विश्व जूनोसिस दिवस पर पशुपालन और डेयरी सचिव (एएचडी) की अध्यक्षता में एक बातचीत सत्र का आयोजन किया गया.

जूनोसिस संक्रामक रोग है. इस का संक्रमण जानवरों से मनुष्यों में हो सकता है, जैसे रेबीज, एंथ्रेक्स, इन्फ्लुएंजा (एच1, एन1 और एच5, एन1), निपाह, कोविड-19, ब्रुसेलोसिस और तपेदिक. ये रोग बैक्टीरिया, वायरस, परजीवी और कवक फफूंद सहित विभिन्न रोगजनकों के कारण होते हैं.
यद्यपि, सभी पशु रोग जूनोटिक नहीं होते हैं. कई बीमारियां पशुधन को प्रभावित करती हैं, किंतु मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा नहीं हैं. ये गैरजूनोटिक रोग प्रजाति विशिष्ट हैं और मनुष्यों को संक्रमित नहीं कर सकते.

उदाहरण के लिए, खुरपका और मुंहपका रोग, पीपीआर, लंपी स्किन डिजीज, क्लासिकल स्वाइन फीवर और रानीखेत रोग इस में शामिल हैं. प्रभावी सार्वजनिक स्वास्थ्य रणनीतियों और पशुओं के प्रति अनावश्यक भय और दोषारोपण को दूर करने लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि कौन सी बीमारियां जूनोटिक हैं.

भारत पशुधन की सब से बड़ी आबादी से संपन्न है, जिस में 536 मिलियन पशुधन और 851 मिलियन मुरगी हैं, जो क्रमशः वैश्विक पशुधन और मुरगी आबादी का तकरीबन 11 फीसदी और 18 फीसदी है. इस के अतिरिक्त, भारत दूध का सब से बड़ा उत्पादक और वैश्विक स्तर पर अंडों का दूसरा सब से बड़ा उत्पादक है.

अभी कुछ समय पहले, केरल के त्रिशूर जिले के मदक्कथरन पंचायत में अफ्रीकी स्वाइन फीवर (एएसएफ) की पुष्टि हुई थी. एएसएफ की पुष्टि सर्वप्रथम भारत में मई, 2020 में असम और अरुणाचल प्रदेश में की गई थी. तब से, यह बीमारी देश के लगभग 24 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में फैल चुकी है.

विभाग ने साल 2020 में एएसएफ के नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना तैयार की. वर्तमान स्थिति के लिए, राज्य पशुपालन विभाग द्वारा त्वरित प्रतिक्रिया दलों का गठन किया गया है, और 5 जुलाई, 2024 को उपरिकेंद्र के 1 किलोमीटर के दायरे में सूअरों को न्यूनीकरण के लिए मारने का काम किया गया. कुल 310 सूअरों को मार कर उन्हें गहरे खोद कर दफना दिया गया. कार्य योजना के अनुसार आगे की निगरानी उपरिकेंद्र के 10 किलोमीटर के दायरे में की जानी है.

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि एएसएफ जूनोटिक नहीं है और मनुष्यों में इस का संक्रमण नहीं हो सकता है. वर्तमान में, एएसएफ के लिए कोई टीका नहीं है.

जूनोटिक रोगों की रोकथाम और नियंत्रण टीकाकरण, उत्तम स्वच्छता, पशुपालन पद्धति और रोगवाहक नियंत्रण पर निर्भर करता है.

वन हेल्थ विजन के माध्यम से सहयोगात्मक प्रयास, जो मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य के परस्पर महत्वपूर्ण संबंध को दर्शाता है. पशु चिकित्सकों, चिकित्सा पेशेवरों और पर्यावरण वैज्ञानिकों के बीच सहयोग जूनोटिक रोगों को व्यापक रूप से संबोधित करने के लिए आवश्यक है.

जूनोटिक रोगों के जोखिम को कम करने के लिए, पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) ने एनएडीसीपी के तहत गोजातीय बछड़ों के ब्रुसेला टीकाकरण के लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया है और एएससीएडी के तहत रेबीज टीकाकरण किया गया है.

विभाग आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण पशु रोगों के लिए एक व्यापक राष्ट्रव्यापी निगरानी योजना भी कार्यान्वित कर रहा है. इस के अतिरिक्त, वन हेल्थ विजन के तहत, राष्ट्रीय संयुक्त प्रकोप प्रतिक्रिया दल (एनजेओआरटी) की स्थापना की गई है, जिस में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, आईसीएमआर, पशुपालन और डेयरी विभाग, आईसीएआर और पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के विशेषज्ञ शामिल हैं. यह स्वास्थ्य दल अत्यधिक रोगजनक एवियन इन्फ्लुएंजा (एचपीएआई) के सहयोगी प्रकोप जांच में सक्रिय रूप से जुड़ा रहा है.

जागरूकता रोग की शुरुआती पहचान, रोकथाम और नियंत्रण में सहायक है, जिस से अंततः सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षित रहता है. जूनोटिक और गैरजूनोटिक रोगों के बीच के अंतर के बारे में जनता को शिक्षित करने से अनावश्यक भय को दूर करने में सहयोग मिलता है और पशु स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए अधिक सूचित दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलता है.

यद्यपि जूनोटिक रोग महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम की स्थिति को दर्शाते हैं, इस की पहचान करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि कई पशुधन रोग गैरजूनोटिक हैं और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित नहीं करते हैं. इस अंतर को समझ कर और उचित रोग प्रबंधन पद्धितयों पर ध्यान केंद्रित कर के, हम पशु और मनुष्य दोनों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित कर सकते हैं, जिस से सभी के लिए एक सुरक्षित और अधिक सुरक्षित पर्यावरण में योगदान मिल सके.

विश्व जूनोसिस दिवस लुई पाश्चर के सम्मान में हर साल मनाया जाता है, जिन्होंने 6 जुलाई, 1885 को एक जूनोटिक बीमारी, रेबीज का पहला सफल टीका लगाया था. यह दिन जूनोसिस के बारे में जागरूक करने, साथ ही ऐसी बीमारियां, जो जानवरों से मनुष्यों में फैल सकती हैं और इन के निवारक और नियंत्रण के उपायों को बढ़ावा मिलता है.

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