पशुपालन रोजगार का एक ऐसा जरीया है जिसे अगर सही तरीके से किया जाए तो मुनाफा निश्चित है. अनेक गांवशहरों के लोग किसान न होते हुए भी पशुपालन का काम बड़े ही बेहतर तरीके से कर के अपनी आमदनी में इजाफा कर रहे हैं.

पशुपालन हमेशा चलने वाला रोजगार है. पशुपालन से हमें केवल दूध ही नहीं, बल्कि इस के अलावा दही, छाछ, घी, मक्खन जैसे उत्पाद भी मिलते हैं. इस के अलावा पशुओं से मिलने वाले गोबर को भी उपले व खाद बनाने के काम में लिया जाता है.

पशुपालन का काम करने के लिए ज्यादा पढ़ालिखा होना भी जरूरी नहीं है. घरेलू महिलाओं का भी इस काम में बहुत सहयोग रहता है. पहले समय में और आज के समय में पशुपालन के काम में अनेक बदलाव भी हुए हैं जो हमारे काम को आसान करते हैं.

पशुपालन में कई तरह के पशुओं को पाला जाता है, जिस में बकरीपालन, भेड़पालन, भैंसपालन, गायपालन, मुरगीपालन, मछलीपालन, सुअरपालन वगैरह हैं. ये सभी काम आप के लिए रोजगार का बेहतर साधन बनते हैं. अलगअलग राज्यों की सरकारें भी अपने प्रदेश के नियमानुसार अनुदान देती हैं जो हमारी माली मदद होती है. लेकिन कोई भी काम शुरू करने से पहले उस के बारे में जमीनी जानकारी जरूर लें.

इस के लिए आप अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से भी जानकारी ले सकते हैं. सभी कृषि विज्ञान केंद्रों पर पशुपालन की जानकारी के लिए विशेषज्ञ होते हैं. अगर आप खुद यह काम नहीं कर सकते हैं तो जानकारी ले कर पशुपालन के लिए नौकर रख कर भी इस काम को कर सकते हैं.

पशुओं से आप सही आमदनी ले सकें, इस के लिए आप को कुछ बातों का ध्यान रखना भी जरूरी है. जैसे पशुओं को साफसुथरे माहौल में रखना चाहिए. कोई पशु बीमार है तो उसे दूसरे स्वस्थ पशुओं से अलग कर दें और बीमार पशु को किसी योग्य पशु चिकित्सक को दिखाएं.

इस के अलावा पशुओं में अनेक बीमारियों का खतरा भी होता है इसलिए बीमारियों से बचाने के लिए नियमित समय पर पशुओं को टीके लगवाने चाहिए.

पशुओं में गर्भाधान पर विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि अगर यह नस्ल बेहतर होगी तो आप को आने वाली नस्ल भी अच्छी मिलेगी. पशुओं का गर्भाधान 2 तरीके से होता है. एक तो सांड़, भैसें या बकरे वगैरह द्वारा जिसे प्राकृतिक गर्भाधान कहा जाता है.

दूसरा कृत्रिम गर्भाधान है. इस में मादा पशु का सीधे नर पशु से मेल नहीं कराते हैं बल्कि कृत्रिम तरीके से अच्छी नस्ल के नर पशु का बीज मादा पशु के गर्भ में डालते हैं जिस से उसे कृत्रिम गर्भाधान हो सके.

पशुओं की खास समस्याएं और विरबैक के समाधान

पशुपालन के दौरान इस में अनेक समस्याएं भी हो जाती हैं जिन में कुछ समस्याओं के समाधान के लिए विरबैक कंपनी ने ऐसे उत्पादों को बाजार में उतारा है जिन का फायदा आम पशुपालक उठा सकते हैं. इन उत्पादों से पशुपालक न केवल अपने पशुओं की सेहत अच्छी रख सकते हैं बल्कि उन से दूध उत्पादन भी बढ़ा सकते हैं.

बांझपन

पशुओं को अगर उन के चारे में जरूरी पौष्टिक तत्त्व न मिलें तो उन की बच्चा पैदा करने की ताकत पर असर पड़ता है और गर्भ नहीं ठहर पाता या समय पर गर्भ नहीं होता इसलिए पशुओं में होने वाली विटामिन और मिनरल की कमी को दूर करने के लिए पशुओं को एग्रीमिन फोर्ट देना चाहिए जिस के इस्तेमाल से पशुओं की इस समस्या का समाधान होता है और पशु समय पर हीट में आते हैं. इस में मिनरल जैसे कि फास्फोरस, कौपर, कोबाल्ट, मैग्नीज, आयरन, जिंक और आयोडीन की ज्यादा मात्रा होती है और जरूरी विटामिन जैसे की विटामिन ए, विटामिन डी3, विटामिन ई और निकोटिनामाइड भी प्रचूर मात्रा में मौजूद होते हैं.

एग्रीमिन फोर्ट एक अच्छी क्वालिटी का खाद्य पूरक है जो पशुओं को जरूरी तत्त्व देता है और उन की ताकत और रोग प्रतिरोधक कूवत बढ़ाने में मदद करता है. अपने पशुओं को तकरीबन 50 ग्राम रोजाना या 1 से 2 किलोग्राम प्रत्येक 100 किलोग्राम दाना चारे में मिला कर देना चाहिए.

दूध में कमी होना

आप के किसी पशु का दूध कम हो गया है या पशु अपनी कूवत के मुताबिक दूध नहीं दे रहा है तो उस पशु के शरीर में दूध बनाने वाले जरूरी पोषक तत्त्वों की कमी होती है. मिनरल, विटामिन, फैट, कार्बोहाइड्रेट, एनर्जी, पानी वगैरह दूध के खास घटक हैं. हर दुधारू पशु के दूध के द्वारा ये पोषक तत्त्व शरीर से बाहर निकलते रहते हैं.

पशु जितना ज्यादा दूध देगा उसे उतनी ही ज्यादा इन पोषक तत्त्वों की जरूरत होगी इसलिए अगर इन पोषक तत्त्वों की कमी को पूरा न किया जाए तो दूध कम हो जाता है.

इस के लिए उन्हें विरबैक का दूध बढ़ाने का फार्मूला ओस्टोवेट/ओस्टोवेट फोर्ट और वाइमेराल दीजिए. यह फार्मूला पोषक तत्त्वों की कमी को पूरा करने के लिए मदद करेगा जिस से दूध उत्पादन बढ़ जाएगा और पशु सेहतमंद भी रहेगा.

विरबैक के दूध बढ़ाने के फार्मूले को इस्तेमाल करने के लिए शुरुआत में अपने दुधारू पशु को पेट के कीड़े मारने की दवा दें. उस के बाद चौथे दिन से ओस्टोवेट फोर्ट प्लस वाइमेराल के मिश्रण का 100 मिलीलिटर हर दुधारू पशु को रोजाना दाने चारे के साथ मिला कर देना चाहिए.

पशुपालन

मिल्क फीवर

प्रसव के बाद पशु का ठंडा पड़ जाना और खड़ा न हो पाना, यह मिल्क फीवर के लक्षण होते हैं जो काफी गंभीर समस्या है. आंकड़े बताते हैं कि जिस पशु को मिल्क फीवर हो जाता है उस के दूध में न केवल 20 से 30 फीसदी की गिरावट आती है बल्कि आने वाले समय में दूध उत्पादन की कूवत 10 से 15 फीसदी घट जाती है, जिस से हमारे पशुपालकों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. इस के अलावा दूसरी समस्याएं होने की संभावना भी बढ़ जाती है. जैसे थनैला रोग की संभावना, कष्टदायक प्रसव, जेर न गिरना आदि.

इस के समाधान के लिए पशुपालक अपने पशुओं को विरबैक का मेटाबोलाइट मिक्स गर्भावस्था के आखिरी महीने में देना चाहिए. इस से जानवर को प्रसव में आसानी होगी. पशु के थन के विकास करने में मदद होगी और पशुओं की अन्य समस्याएं भी कम हो जाती हैं. यह पशु को मिल्क फीवर से बचाने में भी मददगार होता है.

पशुओं का चारा छोड़ना दूध कम होना : अगर प्रसव के बाद दुधारू के दूध में कमी हो गई है, पशु ने खाना भी कम कर दिया है साथ ही अपनी कूवत के मुताबिक दूध नहीं दे रहा है, उस के श्वास, मूत्र, दूध और शरीर से पके हुए फल या नेल पौलिश जैसी गंध आ रही हो तो आप अपने पशु को एनाबोलाइट मिक्स दें. इस से पशु को जल्द ही ऊर्जा मिलेगी और उस में एनर्जी आएगी.

यह पशुओं में तनाव को कम करने में मदद करता है. प्रसव के बाद पशु जल्दी अपने अधिकतम दूध उत्पादन पर आ जाते हैं और यह लंबे समय तक अधिकतम दूध पर रहने में मदद करता है. इसे तकरीबन 200 मिलीलिटर रोजाना देना चाहिए.

फैट में गिरावट

अगर आप के पशु के दूध में फैट की मात्रा कम हो गई है, उस की पाचन क्रिया में मदद करने वाले जीवाणुओं की संख्या में कमी हो गई है. चारे का पाचन ही तरीके से न होना, पेट में गैस बनना, जलन हो रही हो तो पशु को फैट प्लस खिलाएं. इसे 50 से 100 ग्राम रोजाना पशु को दें.

अपने पशुओं को ये उत्पाद देने से पहले पशु विशेषज्ञ से सलाह लें या उत्पाद बनाने वाली कंपनी विरबैक एनीमल हैल्थ इंडिया के फोन नंबर 022-40081342, 1333 पर बात करें.

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