तिलापिया मछली दुनिया में दूसरी सब से ज्यादा पाली जाने वाली मछली है, परंतु भारत में इस का व्यावसायिक पालन सीमित है. तिलापिया मछली को पालने के लिए एशियाई देशों का मौसम और पर्यावरण स्थितियां अनुकूल होती हैं. किन्हीं कारणों से 1959 में भारतीय मात्स्यिकी अनुसंधान समिति द्वारा इस मछली के पालन पर रोक लगा दी गई थी.
दरअसल, तिलापिया मछली शीघ्र परिपक्व होने वाली व साल में कई बार प्रजनन करने की क्षमता के कारण किसी भी अनुकूल जलाशय में तेजी से पनपती है, जिस से यह अन्य स्थानीय प्रजातियों से प्रतिस्पर्धा कर उन्हें विस्थापित कर सकती है. लेकिन वर्तमान में कुछ राज्यों की स्थितियों के कारण इस के नियंत्रित वातावरण में पालन से रोक हटा दी गई है.
इस की तेजी से वृद्धि करने की विशेषता के कारण मछलीपालकों और ग्राहकों में इस की काफी मांग है. यह प्रकृति में सर्वआहारी है. स्थानीय किसानों और यहां तक कि इंटरनैशनल मार्केट में इस की रोगरोधक गुणवत्ता के कारण इस की मांग बढ़ती जा रही है.
यह प्रतिकूल परिस्थितियों में जिंदा रह सकती है और इस में प्राकृतिक भोजन खाने की अतुलनीय क्षमता होती है. इस की अच्छी तरह से देखरेख की जाए, तो बेचने के समय इस का भार 500-600 ग्राम होता है. मुख्यत: 20,000-25,000 मछलियां प्रति एकड़ क्षेत्र में पाली जा सकती हैं.
दुनियाभर में तकरीबन 85 देशों में इस का पालन किया जा रहा है और इन देशों में उत्पादित तकरीबन 98 फीसदी तिलापिया उस के मूल निवास के बाहर पाली जा रही है. साल 2020 में तिलापिया मछली जलीय कृषि का वैश्विक उत्पादन 6.0 मीटर टन था.
जलीय कृषि के लिए उपयुक्त प्रजातियां
तिलापिया मछली झील या तालाब के तल में निर्मित घोंसले में अंडों का संरक्षण कर उन्हें सेती है. तिलापिया की तकरीबन 70 प्रजातियां हैं, जिस में से 9 प्रजातियां दुनियाभर में जलीय कृषि में पाली जाती हैं.
तिलापिया मछली एक उष्णकटिबंधीय मत्स्य प्रजाति है, जो उथले पानी में रहना पसंद करती है. यह एक सर्वभक्षी मछली है, जो पादप प्लवक, पेरीफाईटौन, जलीय पौधों, छोटे व सूक्ष्म जीवों को खाती है. तालाबों में ये 5-6 महीने के समय में लैंगिक परिपक्वता तक पहुंच जाती हैं. जब जल का तापमान 24 डिगरी सैल्सियस पहुंच जाता है, तो ये अंडे देना शुरू कर देती हैं.
आश्चर्यजनक रूप से मादा मछली अंडों को अपने मुंह में सेती है और उस के बाद जब तक की जर्दी की थैली सूख नहीं जाती, तब तक बच्चों को सेती है. मादा की प्रजनन क्षमता उस के शरीर भार के अनुपात में होती है. एक 100 ग्राम की मादा हर ब्यांत में तकरीबन 100 अंडे देती है, जबकि 100-600 ग्राम भार की मादाएं 1000 से 1500 तक अंडे उत्पादित करती हैं. तिलापिया 10 सालों से ज्यादा जिंदा रह सकती है और 5 किलोग्राम से अधिक भार तक पहुंच सकती है.
तिलापिया की आजादी में मादाओं की तुलना में नर तेजी से और आकार में ज्यादा बढ़ते हैं. मादा मछली की पहचान उस के जननांगों (मूत्र जननांग) पैपिला की जांच कर की जाती है.
जल आधारित पालन प्रणालियां
पिंजरा (केज) पालन: तिलापिया मछली का पालन पिंजरों में ज्यादा प्रजनन की समस्या से बचाता है, क्योंकि अंडे पिंजरे की जाली से गिर जाते हैं. दूसरा खास फायदा यह है कि पालकों के लिए जहां पिंजरे रखे जाने होते हैं, वह जल निकाय खुद का होना होता नहीं है.
पिंजरों को जाल या बांस से या फिर स्थानीय स्तर पर उपलब्ध अन्य सामग्री से बनाया जा सकता है. मछली अपना अधिकांश पोषण चारों ओर के जल से लेती हैं, तथापि उन्हें परिपूरक आहार भी खिलाया जाता है. खासतौर पर पालन की मत्स्य बीज संग्रहण दर अधिकतम 10 किलोग्राम प्रति घनमीटर रखी जाती है.
आजकल सघन पिंजरा पालन तकनीक में तकरीबन 25 किलोग्राम प्रति घनमीटर की संग्रहण दर भी लोकप्रिय हो रही है. औसत उत्पादन स्तर विभिन्न प्रणालियों और देशों में परिवर्तनशील होता है. सघन पिंजरा पालन में 100 से 305 किलोग्राम प्रति घनमीटर तिलापिया मछली का उत्पादन स्तर दर्ज किया गया है.
भूमि आधारित प्रणालियां
तालाब : तालाबों का फायदा यह होता है कि निशेचन के जरीए बहुत ही सस्ते में मछली को बड़ा किया जा सकता है. तिलापिया
मछली को पालने के लिए विभिन्न प्रकार के तालाबों का उपयोग किया जाता है. खास बात यह है कि इन्हें बड़े पैमाने पर निम्न लागत वाले तालाबों में पाला जाता है. इस प्रकार से कम उत्पादन के साथसाथ अनियंत्रित प्रजनन और अनियमित हार्वेस्टिंग की समस्याओं का काफी सामना करना पड़ता है.
इन का उत्पादन 500-2000 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हर साल होता है और मछली असामान्य आकार की होती है. यदि मोनोसैक्स (एकल लिंग) मछली का स्टौक किया जाता है और नियमित खाद व परिपूरक आहार दिया जाता है, तो उत्पादन 8000 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हर साल तक और एकसमान आकार की मछली प्राप्त की जा सकती है.
कई प्रदेशों में मीठे जल के तालाबों में, कृषि व पशुपालन के साथ एकीकृत रूप से तिलापिया का दूसरी देशी मछलियों के साथ पालन भी किया जा रहा है.
टैंक में तिलापिया मछली : टैंक में तिलापिया अत्यधिक प्रजनन की समस्याओं से बचाता है, क्योंकि नर के पास अपना अलग क्षेत्र बसाने के लिए जगह नहीं होती है.
इस प्रकार के टैंक में गुरुत्वीय प्रवाह या पंप के माध्यम से निरंतर जल की आपूर्ति की जाती है. प्राय: टैंक में अधिकतम स्टौकिंग दर (जहां जल प्रत्येक 1-2 घंटे में बदला जाता है), तकरीबन 25-50 किलोग्राम/मीटर के आसपास रखी जाती है.