गरीब और मध्यम तबके के किसानों व खेतिहर मजदूरों के लिए भेड़बकरी पालना फायदे का सौदा साबित होता है. घरेलू तौर पर भी इन्हें बहुत से किसान मजदूर पालते हैं. छोटे किस्म के पशुओं के लिए न तो बहुत जगह की जरूरत होती है और न ही इन के लिए चारे का बहुत ज्यादा बंदोबस्त करना पड़ता है. घरेलू साग, फल, सब्जी के अलावा खेत की घास या पेड़ों की पत्तियां वगैरह ऐसे अनेक घरेलू खाद्य पदार्थ होते हैं जो ये सब खाते हैं.

भेड़बकरियां आमतौर पर साल में 2 बार बच्चे देती हैं, जिस से इन की तादाद में इजाफा होता है जिस से पशुपालकों की आमदनी भी बढ़ती है.

कभीकभी ये पशु बीमार भी हो जाते हैं जिन का ध्यान रखना भी जरूरी है. पशुओं में संक्रामक बीमारियां होना आम होता है. इन संक्रामक बीमारियों को अनेक नामों से जाना जाता है.

कई दफा भेड़बकरियों में तेज बुखार होता है, मुंह और जीभ में छाले हो जाते हैं. दस्त और निमोनिया के लक्षण दिखने लगते हैं.

ज्यादा दस्त होने से जानवरों के शरीर में पानी की कमी हो जाती है, उन की चमड़ी चिपकीचिपकी सी हो जाती है, पशु सूखने लगता है और बीमार पशु चारापानी खाना बंद कर देता है या कम खाता है.

कई बार पशुओं की आंख, नाक और मुंह से पानी आने लगता है. बाद में उन की हालत खराब हो जाती है और ज्यादा बीमार होने पर कई दफा वह पशु मर भी जाता है.

अगर भेड़बकरियों में इस तरह के लक्षण दिखाई दें तो पशुपालक को सचेत हो जाना चाहिए. यह पशुओं में महामारी के लक्षण भी हो सकते हैं. किसी एक पशु में भी अगर यह लक्षण हो तो उस के साथ में रहने वाले दूसरे पशु भी इस की चपेट में आ सकते हैं.

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