गुवाहाटी : मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के तहत मत्स्यपालन विभाग ने असम के गुवाहाटी में ‘पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों की बैठक 2025’ का आयोजन किया. इस की अध्यक्षता मत्स्यपालन, पशुपालन, डेयरी मंत्रालय और पंचायती राज मंत्रालय केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने की.
पशुपालन मंत्री राजीव रंजन सिंह ने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत लगभग 50 करोड़ रुपए की लागत वाली प्रमुख परियोजनाओं की शुरुआत की, जिस के तहत पूर्वोत्तर क्षेत्र में आत्मनिर्भर मत्स्यपालन क्षेत्र बनाने की मंशा जाहिर की. इन परियोजनाओं से मत्स्यपालन क्षेत्र में लगभग 4,530 प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा होने का अनुमान है.
केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने मत्स्यपालन लाभार्थियों को राष्ट्रीय मातिस्यकी विकास बोर्ड (एनएफडीबी) पंजीकरण प्रमाणपत्र, केसीसी कार्ड, सर्वश्रेष्ठ एफएफपीओ और मत्स्यपालन स्टार्टअप के लिए पुरस्कार सहित प्रमाणपत्र भी दिए. साथ ही, क्षेत्रीय विकास की गति को जारी रखने और टिकाऊ बनाने के उद्देश्य से मत्स्य विभाग ने सिक्किम राज्य में जैविक मत्स्यपालन और जलीय कृषि के विकास के लिए सिक्किम के सोरेंग जिले में जैविक मत्स्यपालन क्लस्टर को अधिसूचित किया.
केंद्रीय मत्स्य एवं पशुपालन मंत्री राजीव रंजन सिंह ने मत्स्यपालन क्षेत्र की अपार संभावनाओं के बारे में बताते हुए कहा कि प्रजातियों के विविधीकरण, मछली उत्पादन में 20-25 फीसदी की वृद्धि के लक्ष्य को प्राप्त करने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने व रोजगार सृजन के लिए उत्पादन खपत के अंतर को कम करने की जरूरत है.
उन्होंने राज्यों को क्षेत्र विशेष की कमियों को दूर करने के लिए राज्य केंद्रित योजनाएं बनाने के लिए भी प्रोत्साहित किया. केंद्र सरकार की प्रमुख पहलों में मत्स्यपालन और अवसंरचना विकास कोष का लाभ उठाना, एनएफडीबी क्षेत्रीय केंद्रों के जरीए नवाचार को बढ़ावा देना, असंगठित क्षेत्र को औपचारिक बनाना, ब्रूड बैंक विकसित करना और केंद्रीय मीठाजल जीवपालन अनुसंधान संस्थान और केंद्रीय अंतर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान में प्रगतिशील किसानों को प्रशिक्षण देना शामिल है.
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण और पंचायती राज, उपराज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल ने जोर दे कर कहा कि किसानों की आय को दोगुना करना केवल कृषि को संबंधित क्षेत्रों, विशेष रूप से मत्स्यपालन के साथ एकीकृत कर के ही संभव है.
उन्होंने आगे कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना हमारी प्रमुख प्राथमिकताओं में से एक है, जिस में भूमि और संसाधन सीमाओं को दूर करने के लिए बायोफ्लोक और रीसर्कुलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम जैसी नई जलीय कृषि पद्धतियों को अपनाने पर हमें जोर देना है.
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण और अल्पसंख्यक कार्य, उपराज्य मंत्री जौर्ज कुरियन ने पूर्वोत्तर क्षेत्र और केरल में एकीकृत मछलीपालन की पारंपरिक प्रथाओं का जिक्र किया, जिस में टैपिओकासहमछलीपालन और सूअरसहमछलीपालन शामिल है, जिन्हें बेहतर दक्षता के लिए आधुनिक तकनीकों के साथ पुनर्जीवित किया गया है.
राज्य मंत्री जौर्ज कुरियन ने मछली उत्पादन को बढ़ाने और क्षेत्र के मत्स्यपालन के क्षेत्र को और अधिक बढ़ावा देने के लिए नई तकनीकों को अपनाने पर भी जोर दिया.
इस सत्र में एनएफडीबी के मुख्य कार्यकारी डा. बिजय कुमार बेहरा द्वारा ‘पूर्वोत्तर राज्यों में मत्स्यपालन विकास के लिए पर्यावरणीय और पारिस्थितिक चुनौतियों’ और केंद्रीय अंतर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान, गुवाहाटी के प्रधान वैज्ञानिक डा. बीके भट्टाचार्य द्वारा ‘पूर्वोत्तर राज्यों में खुले जल मत्स्यपालन संसाधनों का विकास’ पर व्यावहारिक चर्चाएं भी शामिल थीं, जिस ने क्षेत्र में इस सैक्टर के भविष्य पर महत्वपूर्ण दृष्टिकोण साझा किए.
इस सम्मलेन के अवसर पर असम सरकार के मत्स्यपालन मंत्री कृष्णेंदु पौल ने भारतीय मत्स्यपालन क्षेत्र में असम के महत्वपूर्ण योगदान पर चर्चा करते हुए बताया कि असम ने 4.75 लाख मीट्रिक टन का उल्लेखनीय मछली उत्पादन और लगभग 20,000 मीट्रिक टन का निर्यात किया, जिस से मछली किसानों और मछुआरों को काफी फायदा हुआ है.
उन्होंने आगे कहा कि राज्य की 90 फीसदी से अधिक आबादी मछली का सेवन करती है, इसलिए मत्स्यपालन असम की अर्थव्यवस्था में प्रमुख स्थान रखता है. पहाड़ियों में उत्पादन, उत्पादकता और जल भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए पीएमएमएसवाई के तहत परियोजनाओं की पहचान की गई है, जिस का उद्देश्य संसाधनों का कायाकल्प और क्षेत्रीय विकास है.
इस के अलावा जापान के जेआईसीए द्वारा समर्थित असम मत्स्य विकास और ग्रामीण आजीविका परियोजना, समग्र जलीय कृषि विकास पर ध्यान केंद्रित करती है और यह क्षेत्र के लिए स्थायी आजीविका पैदा कर रही है और जमीनी स्तर पर अच्छी तरह से प्रगति कर रही है.
अरुणाचल प्रदेश सरकार के मत्स्यपालन, कृषि, बागबानी, एएचवीडीडी मंत्री गेब्रियल डेनवांग वांगसू ने मत्स्यपालन विकास में राज्य की अपार संभावनाओं को रेखांकित किया और पीएमएमएसवाई के तहत छोटे और शिल्पकार किसानों को समर्थन देने पर जोर दिया.
मंत्री गेब्रियल डेनवांग वांगसू ने अरुणाचल प्रदेश में एक समर्पित शीत जल मत्स्यपालन संस्थान की स्थापना का प्रस्ताव रखा और बीज उत्पादन के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के लिए एकमुश्त अनुदान की वकालत की. खुले पानी में मत्स्यपालन और टिकाऊ तौरतरीकों को अपनाने के अवसरों का जिक्र करते हुए उन्होंने हिमालयी राज्यों की अनूठी ताकतों को संबोधित करने के लिए विशेष रूप से तैयार की गई योजना का भी आह्वान किया.
मिजोरम सरकार के मत्स्यपालन मंत्री पु. ललथनसांगा ने राज्य में मत्स्यपालन विकास में तेजी लाने के लिए प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत मंजूरी और राशि जारी करने में तेजी लाने की आवश्यकता पर जोर दिया. पीएमएमएसवाई के तहत तालाबों के जीर्णोद्धार और कायाकल्प को शामिल करने के महत्व पर प्रकाश डाला गया, क्योंकि ये गतिविधियां मिजोरम के मत्स्यपालन क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं.
इस के अलावा कम उत्पादकता का समाधान निकालने, गुणवत्ता वाले बीज एवं चारे की उपलब्धता में सुधार करना और मछली किसानों के लिए क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण को प्राथमिकता देने आदि की पहचान उन प्रमुख क्षेत्रों के रूप में की गई, जिन पर ध्यान देने की जरूरत है.
मणिपुर सरकार के मत्स्यपालन, समाज कल्याण, कौशल, श्रम, रोजगार और उद्यमिता मंत्री एच. डिंगो सिंह ने राज्य में मत्स्यपालन और जलीय कृषि क्षेत्र पर पीएमएमएसवाई की सफलता को स्वीकार किया. हैचरी, बायोफ्लोक सिस्टम, तालाब, केग कल्चर की स्थापना, सजावटी मछलीपालन, मछली कियोस्क, मूल्यवर्धित उद्यम, रोग निदान सुविधाएं और कोल्ड स्टोरेज इकाइयों की स्थापना से मणिपुर में सामूहिक रूप से बुनियादी ढांचे और अवसरों में बढ़ोतरी हुई है.
त्रिपुरा सरकार के मत्स्यपालन मंत्री सुधांशु दास ने बताया कि राज्य में मछली उत्पादन की क्षमता 2 लाख है, जिस में 38,594 हेक्टेयर क्षेत्र मछलीपालन के लिए है. वर्तमान में 85,000 मीट्रिक टन उत्पादन की तुलना में मांग 117,000 मीट्रिक टन है, जिस की कमी पश्चिम बंगाल, असम और आंध्र प्रदेश से आयात कर के पूरी की जाती है.
मंत्री सुधांशु दास ने बताया कि त्रिपुरा में 98 फीसदी आबादी मछली का सेवन करती है. उन्होंने बायोफ्लोक और मोतीपालन से जुड़ी चुनौतियों पर भी चर्चा की, जिस में इस क्षेत्र की मौसमी निर्भरता को एक प्रमुख कारण बताया.
सिक्किम सरकार के कृषि, बागबानी, पशुपालन व पशु चिकित्सा सेवाएं, मंत्री पूरन कुमार गुरुंग ने पीएमएमएसवाई से राज्य को होने वाले महत्वपूर्ण लाभों पर प्रकाश डाला, जिस में ट्राउट रेसवे हैचरी, जलीय कृषि प्रणाली और सजावटी मछलीपालन जैसी गतिविधियां शामिल हैं.
उन्होंने रेसवे और सजावटी मछली इकाइयों के निर्माण जैसे लंबित प्रस्तावों के लिए समर्थन का अनुरोध किया और मत्स्यपालन प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की मांग की. सिक्किम की जैविक स्थिति पर जोर देते हुए उन्होंने अतिरिक्त समर्थन का आह्वान किया और राज्य के मत्स्य विकास के लिए आईसीएआर संस्थानों के महत्व पर जोर दिया.
नागालैंड सरकार के मत्स्यपालन और जलीय संसाधन मंत्री ए. पंगजंग जमीर ने राज्य के मत्स्य संसाधनों, खासकर नए तालाबों और टैंकों के विकास की महत्वपूर्ण संभावनाओं पर जोर दिया. उन्होंने उत्पादकता बढ़ाने और मछली किसानों की आय को बढ़ाने के लिए एक प्रमुख रणनीति के रूप में एकीकृत मछलीपालन की शुरुआत पर जोर दिया. इस क्षेत्र की इकोटूरिज्म की आशाजनक संभावनाओं की भी पहचान की गई और पहाड़ी क्षेत्रों में मछली परिवहन में सुधार के अवसरों को भविष्य के विकास के क्षेत्र के रूप में देखा गया है.
मत्स्यपालन विभाग, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय में सचिव डा. अभिलक्ष लिखी ने अपने मुख्य भाषण में पीएमएमएसवाई के तहत 1,700 करोड़ सहित पूर्वोत्तर क्षेत्र को आवंटित की गई. साथ ही, 2,000 करोड़ रुपए किनकिन क्षेत्रों को दिए जाएंगे, इस पर भी प्रकाश डाला.
उन्होंने 3 प्रमुख क्षेत्रों पर ज्यादा जोर दिया, जिन में डिजिटलीकरण के माध्यम से मत्स्यपालन को औपचारिक बनाना, राज्य के अधिकारियों से इसे प्राथमिकता देना, ब्याज अनुदान और ऋण गारंटी जैसे वित्तीय साधनों के साथ मत्स्यपालन और जलीय कृषि अवसंरचना विकास निधि को बढ़ावा देना और एफएफपीओ और स्वयं सहायता समूह के माध्यम से एकीकृत खेती को आगे बढ़ाना शामिल है. उन्होंने युवा स्टार्टअप का समर्थन करने और मछली उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अंतराल को दूर करने का भी आह्वान किया, जिस का लक्ष्य 12 लाख टन है.
मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार में संयुक्त सचिव सागर मेहरा ने भारतीय मत्स्यपालन क्षेत्र की उपलब्धियों पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिस में उत्पादन, उत्पादकता, आय और निर्यात जैसे प्रमुख पहलुओं पर जोर दिया गया.
इस रिपोर्ट में पूर्वोत्तर क्षेत्र में प्रचुर संसाधनों पर भी ध्यान दिया गया. साथ ही, रिपोर्ट में पूर्वोत्तर क्षेत्र में मौजूदा चुनौतियों और कमियों का भी जिक्र किया गया. भविष्य में इस के विकास के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण और फोकस क्षेत्रों पर भी चर्चा की गई.