बिहार के पूसा प्रखंड की तमाम महिलाएं घरेलू कामकाज के अलावा आमदनी बढ़ाने वाले दूसरे काम करती हैं, जिस में खेती और पशुपालन प्रमुख हैं. लेकिन कई बार इन महिलाओं को खेती और पशुपालन की सही जानकारी न होने से उन्हें नुकसान का सामना करना पड़ता है. ऐसे में पूसा प्रखंड के तमाम गांवों में आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत द्वारा एक्सिस बैंक के सहयोग से पशुपालन और खेती करने वाली तमाम महिलाओं को तकनीकी जानकारियों के साथसाथ जरूरी संसाधनों को मुहैया कराया जाता है, जिस से ये महिलाएं वैज्ञानिक तरीकों को अपना कर नुकसान से बच सकें और ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा पाएं.
पूसा प्रखंड के हरपुर गांव की रहने वाली जमीला खातून भी कई वर्षों से पारंपरिक रूप से बकरीपालन का काम करती आ रही थीं. लेकिन बकरीपालन और टीकाकरण से जुड़ी सही जानकारी न होने के चलते उन्हें अकसर नुकसान का सामना करना पड़ रहा था.
इस वजह से उन्होंने बकरीपालन का काम छोड़ केवल घरेलू कामकाज तक ही सीमित रहने का फैसला कर लिया था. इसी बीच उन की मुलाकात आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत के कार्यकर्ताओं से हुई और उन्होंने अपनी समस्या उन को बताई.
इस मसले की जानकारी होने पर एकेआरएसपीआई के कार्यकर्ताओं ने जमीला खातून को बकरीपालन की सही जानकारी देने का आश्वासन दिया और वैज्ञानिक तरीके से बकरीपालन के लिए उन्हें जरूरी संसाधन भी मुहैया कराने की बात कही.
घाटे से उबरने में पाई कामयाबी
जमीला खातून ने नए तरीके से व्यावसायिक रूप में बकरीपालन के लिए सब से पहले एकेआरएसपीआई और एक्सिस बैंक के सहयोग से एक स्वयंसहायता समूह बनाया, जिस में अपने जैसी बकरीपालन से जुड़ी दूसरी महिलाओं को जोड़ कर छोटीछोटी बचत की शुरुआत की.
इस बीच एकेआरएसपीआई द्वारा एक्सिस बैंक के सहयोग से बकरीपालन से जुड़ी तमाम महिलाओं को ट्रेनिंग भी दी गई.
ट्रेनिंग के दौरान महिलाओं ने बताया कि बकरियों को कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं, जिस से कई बार उन की मौत तक हो जाती है. इस समस्या से निबटने के लिए ट्रेनरों द्वारा कई जरूरी जानकारियां दी गईं. साथ ही, बकरियों को गंदगी से होने वाली बीमारियों से बचाव के लिए बेहद ही आसान और सस्ते तरीके से बकरीघर बनाने की विधि बताई गई, जो न केवल बकरियों को बीमारियों से बचाने में कारगर रहता है, बल्कि हवादार होने से बकरियों की बढ़ोतरी भी तेजी से होती है.
जमीला खातून को ट्रेनरों द्वारा बताई गई बात जंच गई और उन्होंने बकरीपालन छोड़ने का इरादा बदलते हुए बताए गए वैज्ञानिक तरीके से बकरीपालन को नए सिरे से शुरू करने का निर्णय लिया.
चूंकि जमीला खातून पहले बकरीपालन में नुकसान उठा चुकी थीं, ऐसे में उन के सामने नए तरीके से बकरीपालन की शुरुआत करना एक समस्या के रूप में खड़ा था.
जमीला खातून की इस समस्या को उबारने में एकेआरएसपीआई और एक्सिस बैंक आगे आए और संस्था द्वारा बकरीघर के बनाए जाने के लिए सहायता राशि मुहैया कराई गई.
अब जमीला खातून दोगुने हौसले के साथ बकरीपालन में जुट गईं और बताए गए वैज्ञानिक तरीकों को अपनाते हुए बकरियों की देखभाल करने लगीं, जिस से उन्हें पहली बार में ही बकरियों से तिगुना ज्यादा मुनाफा हुआ. इस के बाद तो जमीला खातून के हौसले को पंख लग गए और दोगुने जोश के साथ वे बकरियों के पालन में लग गईं.
इन नस्लों का किया चुनाव
जमीला खातून ने बकरीपालन के व्यवसाय को मुनाफे में बदलने के लिए सब से पहले उन्नत नस्ल की बकरियों का चुनाव किया. ब्लैक बंगाल जैसी प्रजाति का चुनाव किया गया, क्योंकि बकरियों की यह नस्ल बिहार की जलवायु के लिए ज्यादा माकूल होती है.
बकरियों की सेहत के लिए माकूल बकरीघर
जमीला खातून ने ट्रेनिंग में बताए गए बकरीघर के निर्माण को ध्यान में रख कर बांस की फट्टियों से बकरीघर बनाया, क्योंकि बांस के बनाए इस बकरीघर में बकरियों को रात में भी रहने के लिए सुरक्षा के साथसाथ प्रतिकूल जलवायु, ठंड, धूप आदि से बचाया जा सकता है. उन्होंने बांस से बनने वाले बकरीघर के लिए एक सूखे और ऊंचाई वाली जगह को चुना. साथ ही, यह भी ध्यान रखा कि बकरियों को रहने के लिए अंदर पर्याप्त जगह भी मिले.
बांस के बकरीघर का मिलता है यह फायदा
आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत में पूसा प्रखंड में प्रोग्राम स्पैशलिस्ट एग्रीकल्चर के पद पर कार्यरत श्रेया चतुर्वेदी ने बताया कि जमीला खातून और उन के जैसी जो भी महिलाएं बांस से बने बकरीघर का उपयोग बकरीपालन के लिए करती हैं, उन को बांस से बने फर्श को हमेशा सूखा रखने में काफी मदद मिलती है, जिस से बकरियों को कई तरह की संक्रामक बीमारियों से बचाने में मदद मिलती है.
श्रेया चतुर्वेदी ने बताया कि बांस के बकरीघर में नियमित रूप से अच्छी तरह से सफाई की सुविधा होती है और यह बरसात और सर्दियों के मौसम में अतिरिक्त देखभाल के लिए काफी मुफीद भी होता है. इस से बकरियों को निमोनिया से बचाने में काफी मदद मिलती है.
उन्होंने बताया कि इस प्रकार के घर में बकरियों को बाढ़ जैसी स्थिति में भी बाढ़ के पानी और उस दौरान होने वाली बीमारियों से बचाने में मदद मिलती है.
श्रेया चतुर्वेदी ने यह भी बताया कि इस व्यवस्था में डंडे और फर्श आमतौर पर बांस या लकड़ी के बने होते हैं. इस से इसे साफ करना बहुत ही आसान होता है. साथ ही, आसानी से मलमूत्र को साफ किया जा सकता है, जिस से बीमारियां भी कम होती हैं.
बकरियों के लिए पर्याप्त जगह की रहती है व्यवस्था
प्रोग्राम स्पैशलिस्ट श्रीमी कुमारी ने बताया कि जमीला खातून और उन के जैसी दूसरी महिलाओं द्वारा बांस से बनाए गए बकरीघर में बकरियों की बढ़ोतरी के लिए पर्याप्त जगह की व्यवस्था की गई है, जिस में बकरी के बच्चे के लिए 0.3, वयस्क बकरी के लिए 1.5, गर्भवती बकरी के लिए 1.9 व बकरे के लिए 2.8 स्क्वायर मीटर के हिसाब से उन की संख्या को ध्यान में रख कर बांस के बकरीघर का निर्माण किया जाता है.
बकरीघर की साफसफाई का है खास खयाल
पूसा में एरिया मैनेजर के तौर पर काम कर रहे शांतनु सिद्धार्थ दूबे ने बताया कि आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत द्वारा एक्सिस बैंक के सहयोग से जिन महिलाओं को बकरीघर बनाने में मदद दी गई है, उस के लिए यह विशेष खयाल रखा गया है कि उस में साफ हवा और सूरज की रोशनी पहुंचने की पूरीपूरी गुंजाइश रहे. साथ ही, यह भी खयाल रखा गया है कि औसतन 2 बकरियों के लिए 4 फुट चौड़ी और साढ़े 3 फुट लंबी जगह हो. इसी हिसाब से अधिक बकरियों के लिए घर की लंबाईचौड़ाई का निर्धारण किया गया है.
उन्होंने बताया कि बकरियों के लिए टीकाकरण बहुत जरूरी होता है, खासतौर पर पीपीआर का टीका. इसे 3 साल में एक बार लगा कर पशुओं को मरने से बचा सकते हैं. पहला टीका 4 महीने में लग जाना चाहिए. बकरीपालक जो भी महिलाएं बकरी और बकरों का नियमित टीकाकरण कराती हैं, उस से उन में बीमारियों के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है.
इन बातों का भी रखा जाता है खास खयाल
जमीला खातून जैसी जो महिलाएं बकरीपालन के व्यवसाय से जुड़ी हैं, वे बकरीघर की प्रतिदिन सफाई का खास खयाल रखती हैं. इस के लिए समयसमय पर डेटोल, सेवलौन, फिनाइल या ऐसी ही दूसरी दवा से बकरीघर के अंदर के हर भाग को रोगाणुरहित करती रहती हैं. इस के अलावा बकरियों को फेनोल, कैल्शियम औक्साइड, त्वरित चूना, कास्टिक सोडा, बोरिक एसिड, ब्लीचिंग पाउडर आदि का उपयोग कीटाणुओं से बचाने के लिए करती रहती हैं.
पशुओं के आहार में शामिल की जाती हैं ये चीजें
जमीला खातून जैसी तमाम महिलाओं ने बताया कि वे बकरियों को अनाज, सब्जियां, बेकिंग सोडा, चुकंदर का गूदा, काले तिल, सूरजमुखी के बीज, खनिज पदार्थ, अतिरिक्त प्रोटीन, विटामिन, ल्यूसर्न, लोबिया, घास का चारा, चारा मक्का, नीम, चावल, गेहूं, मूंगफली का केक, गेहूं का चोकर और जई या मक्के का मिश्रण खिलाती हैं.
बकरियों के इलाज में पशु सखियां बनी हैं मददगार
बकरियों को किसी भी तरह की बीमारी से बचाने के लिए आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत द्वारा प्रशिक्षित पशु सखियां अपना विशेष योगदान देती हैं. आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत में बिहार के कृषि प्रबंधक डा. बसंत कुमार ने बताया कि जमीला खातून बकरियों का नियमित टीकाकरण कराना नहीं भूलती हैं, जिस में उन की मदद गांव लैवल पर पशु सखियां करती हैं. इस से वे न केवल दवाओं पर होने वाले खर्च को कम कर पा रही हैं, बल्कि हर साल बकरियों से ज्यादा मुनाफा कमाने में सफल रही हैं.
उन्होंने बताया कि जमीला खातून जैसी जो भी महिलाएं बकरीपालन से जुड़ी हुई हैं, वे बारिश शुरू होने के पहले ही सभी बकरे और बकरियों में खुरपकामुंहपका यानी एफएमडी का टीकाकरण करा लेती हैं.
उन्होंने यह भी बताया कि बकरीपालक महिलाओं को यह पता है कि उन्हें कब कौन सा टीका लगवाना है. इस के लिए आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत द्वारा पशु सखियों के जरीए बकरियों के टीकाकरण के लिए पूरे साल का चार्ट मुहैया कराया गया है कि किस महीने में कौन सा टीका बकरियों को लगाया जाना है.
कमाई को लगे पंख
बकरीपालन से जुड़ी जो महिलाएं बकरीपालन के सही तरीकों के न पता होने से परेशान रहती थीं, वही आज आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत द्वारा एक्सिस बैंक के सहयोग से बकरीपालन से जुड़ी जानकारियों में महारत होने के चलते भारी मुनाफा कमा रही हैं.
जमीला खातून ने बताया कि वे औसत रूप से एक बकरा 20 से 30 हजार रुपए में बेच लेती हैं. इस तरह सालभर में औसतन 15 से 20 बकरे तैयार हो जाते हैं, जिन्हें बेच कर न केवल परिवार का पूरा खर्च निकालने में सफल रहती हैं, बल्कि उस से अच्छीखासी बचत भी कर लेती हैं.
आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत के रीजनल मैनेजर सुनील कुमार पांडेय बकरीपालन से जुड़ी महिलाओं की माली और सामाजिक हालत में बदलाव आने से खासा उत्साहित नजर आते हैं. उन्होंने बताया कि कभी एकएक रुपए के लिए मोहताज रहने वाली पूसा
प्रखंड की तमाम महिलाएं अब बकरीपालन व्यवसाय से आत्मनिर्भरता की एक नई इबारत लिख रही हैं.
ये महिलाएं बकरीपालन कर के अपने परिवार की जिंदगी संवार रही हैं, जिस से उत्साहित दूसरी महिलाएं भी बकरीपालन की तरफ लगातार कदम बढ़ा रही हैं. इस से बकरीपालन से परिवार की माली हालत न केवल मजबूत हो रही है, बल्कि घर का माहौल भी बदल रहा है.