इनसानों में जैसे कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं, ठीक उसी तरह जानवरों में भी बीमारियां होती हैं. पशुपालक अगर समय रहते इलाज नहीं कराते तो उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ता है. अब जानवर तो आखिर जानवर ही होते हैं, वे आप की तरह अपनी बीमारी बता नहीं सकते, लेकिन जरा सी सावधानी से आप पशुओं की बीमारी को पकड़ सकते हैं.
अकसर आप ने गायभैंस, बैलबकरी आदि पशुओं को पेड़ या दीवारों से अपना शरीर खुजलाते हुए देखा होगा. दरअसल, यह एक रोग है, खुजली नहीं. लेकिन ज्यादातर पशुपालक इस पर ध्यान नहीं देते. आम बोलचाल की भाषा में इसे चर्म रोग कहते हैं, जो इनसानों के जैसे पशुओं में भी होता है.
चर्म रोग में पशुओं के बाल धीरेधीरे झड़ने लगते हैं और खुजली की जगह चमड़ी पूरी तरह सख्त हो जाती है. खुजली होने पर ज्यादातर पशु तनाव में चले जाते हैं.
यह बात आप को भले ही समझ में न आए, लेकिन खुजली और पशुओं के शरीर पर भिनभिनाने वाली मक्खियां, कीड़ेमकोड़े वगैरह पशुओं को इतनी परेशानी में डाल देते हैं कि वे जिस्मानी रूप से कमजोर हो जाते हैं. इस का सीधा असर उन की उत्पादन कूवत पर पड़ता है.
बीमारी तभी ज्यादा फैलती है जब मौसम बदलता है. पशु डाक्टर बताते हैं कि बदलते मौसम में पशुओं का खास खयाल रखना होता है क्योंकि उसी समय उन में त्वचा रोग होने की संभावना ज्यादा रहती है. जीवाणु समेत कई
तरह के कृमि पशुओं में त्वचा रोगों के लिए जिम्मेदार होते हैं, खासकर जीवाणु से होने वाले त्वचा रोगों में पशुओं के शरीर में मवाद पड़ जाता है.
पशुपालकों के सामने समस्या यह होती है कि आमतौर पर त्वचा रोग के लक्षण दिखने में लंबा समय लग जाता है, जिस का नतीजा होता है कि पशु तब तक गंभीर रूप से बीमार हो जाते हैं, इसलिए पशुओं पर ध्यान देना बहुत जरूरी है.
त्वचा रोग दिखने में बहुत साधारण होते हैं, लेकिन कई बार यह गंभीर बीमारी बन जाती है. दुधारू पशुओं में कई तरह के त्वचा रोग होते हैं. इन रोगों से पशुओं की त्वचा पूरी तरह से खराब भी हो जाती है.
पशुओं को सेहतमंद रखना है तो गरमियों व बरसात में उन के शरीर पर सब से ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है. गायभैंसों में त्वचा रोग सब से ज्यादा होता है. पशुओं को कई तरह के चर्म रोग (पैरासाइट्स, बैक्टीरिया, वायरस, एलर्जी, फंगस) होते हैं.
चर्म रोग में पशुओं का दूध तो नहीं घटता, लेकिन वे तनाव में जरूर आ जाते हैं. इस से उन के दूध देने की कूवत पर असर पड़ता है.
ध्यान दें कि आप के पशुबाड़े में ऐसी कोई चीज न रखें, जिस से उस के शरीर में कोई चोट लग जाए. इसलिए जहां पशु बांधे जाते हों, वहां साफसफाई बहुत जरूरी है. पशुओं के खानपान पर भी ध्यान देना बहुत जरूरी है क्योंकि विटामिन की कमी से चर्म रोग होता है.
अगर पशु को किसी भी तरह का चर्म रोग हो गया है तो पास के पशु अस्पताल में दिखा लें. इस रोग में चर्मिल प्लस ट्यूब का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
चर्म रोग के लक्षण
जीवाणुजनित रोग : इस रोग से पशुओं की प्रभावित जगह गरम हो जाती है और त्वचा लाल हो जाती है. वहां पर जख्म भी हो जाता है और मवाद निकलने लगता है.
कृमिजनित रोग : इस रोग की पहचान आसानी से की जा सकती है, क्योंकि खुजली की जगह पर बाल का झड़ जाना, कान की खुजली में पशु सिर हिलाता है, कान फैल जाता है और उस में भूरे काले रंग का वैक्स जमा हो जाता है. इस के उपचार के लिए पशु के कान को हलके गरम पानी में धोने वाला सोड़ा मिला कर उस की सफाई करनी चाहिए.
बाह्य त्वचा रोग : इस रोग के लिए कृमि जिम्मेदार होता है. यह रोग पशुओं के अलावा इनसानों में भी फैलता है. इस में त्वचा मोटी होने के अलावा बहुत खुजली होती है.
फफूंदजनित त्वचा रोग : इस में पशु की त्वचा, बाल और नाखून प्रभावित होते हैं.
विषाणुजनित त्वचा रोग : पशुओं की नाक और खुर की त्वचा मोटी हो जाती है और पेट में फुंसी हो जाती है.
ऐसे करें देखभाल
* आप हमेशा पशुओं को स्वच्छ व साफ जगह रखें.
* गरमियों के मौसम में प्रतिदिन नहलाना चाहिए.
* आसपास की गंदगी (गोबर वगैरह) को नियमित रूप से साफ करें.
* बारिश में सब से ज्यादा बीमारियां फैलती हैं, इसलिए पशुओं के इर्दगिर्द पानी जमा न होने दें.
* मच्छर, मक्खी व कीड़ेमकोड़े दूर करने के लिए अच्छा इंतजाम करें.
* 3 महीने के अंतराल पर पशुओं को आंतरिक परजीवीनाशक दवा का सेवन कराना चाहिए.
* सभी तरह के त्वचा रोगों में पशु को अच्छा खानपान, विटामिन व खनिज लवण देने चाहिए. साथ ही, लिवर टौनिक व बालों के लिए कंडीशनर का प्रयोग करना चाहिए.