बबीता रावत से जब मैं फोन पर बात कर रहा था, तब उन का आत्मविश्वास देखने लायक था. आज एक तरफ जब पहाड़ों की मुश्किल जिंदगी से तंग आ कर वहां की ज्यादातर नौजवान पीढ़ी मैदानी शहरों में छोटीमोटी नौकरी कर के जैसेतैसे गुजारा कर रही है, वहीं दूसरी तरफ उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जनपद के गांव सौड़ उमरेला की रहने वाली इस लड़की ने अपनी मेहनत और लगन से बंजर धरती को भी उपजाऊ बना दिया है और यह साबित कर दिया है कि सीमित साधनों का अगर दिमाग लगा कर इस्तेमाल किया जाए, तो कमाई तो कहीं भी की जा सकती है.

बबीता रावत के इस कारनामे को उत्तराखंड सरकार ने भी सराहा है. दरअसल, राज्य सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में बेहतरीन काम करने वाली महिलाओं का चयन प्रतिष्ठित ‘तीलू रौतेली पुरस्कार’ के लिए किया था.

Farmingइस सिलसिले में महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास राज्यमंत्री रेखा आर्या ने वर्ष 2019-20 के लिए दिए जाने वाले इन पुरस्कारों के नामों की पहले घोषणा की थी और उस के बाद 8 अगस्त, 2020 को इन महिलाओं को वर्चुअल माध्यम से पुरस्कृत किया गया था.

‘तीलू रौतेली पुरस्कार’ के लिए चयनित महिलाओं को 21,000 की धनराशि और प्रशस्तिपत्र दिया जाता है, जबकि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को 10,000 की धनराशि और प्रशस्तिपत्र दिया जाता है.

बबीता रावत का चयन बंजर भूमि को उपजाऊ बना कर उस में सब्जी उत्पादन, पशुपालन, मशरूम उत्पादन के जरीए आत्मनिर्भर मौडल को हकीकत में बदलने के लिए किया गया था.

बबीता रावत ने बताया, ‘मुझे इस पुरस्कार में हिस्सा लेने की प्रेरणा बाल विकास कार्यालय से मिली. एक दिन वहां से फोन आया कि अपने कागज जमा कर लीजिए, अखबारों की कटिंग भी इकट्ठा कर लीजिए. छोटे लैवल पर जितने भी पुरस्कार मिले हैं, उन का ब्योरा एकत्र कर लीजिए. ऐसे मैं ने अपना नाम इस पुरस्कार के लिए दर्ज कराया.’

बबीता रावत की कहानी पहाड़ के लोगों के लिए प्रेरणादायी है. उन्होंने थोड़ी सी जमीन पर खेतीबारी शुरू की और धीरेधीरे अपने परिवार की आर्थिक तंगी को खत्म किया. उन की मेहनत का नतीजा है कि आज उन की रुद्रप्रयाग के कोर्ट इलाके में एक छोटी सी कैंटीन भी है, जिस में लोगों के लिए चायनाश्ता और खाना मिलता है. उस कैंटीन को बबीता रावत की उन से बड़ी बहन और पिता संभाल रहे हैं.

आज से कुछ साल पहले तक बबीता रावत के पिताजी सुरेंद्र सिंह रावत पर अपने परिवार के कुल 9 सदस्यों के भरणपोषण की जिम्मेदारी थी. 6 बेटियों और एक बेटे के पिता सुरेंद्र रावत की साल 2009 में अचानक तबीयत खराब होने से परिवार के सामने आर्थिक तंगी आ खड़ी हुई थी. तब परिवार की गुजरबसर पारंपरिक खेतीबारी से किसी तरह हो रही थी. उस समय बबीता महज 13 साल की थीं, पर ऐसे विकट हालात में भी उन्होंने हार नहीं मानी और खेतों में हल भी चलाया.

बबीता रावत की मेहनत देख कर बहुत से लोगों ने उन का हौसला बढ़ाया, तो कइयों ने ताने भी मारे कि देखो एक लड़की हो कर खेतों  में बैल बन रही है. लेकिन बबीता ने इस बात की परवाह नहीं की.

दिन गुजरते गए और बबीता का ज्यादातर समय खेतों में ही बीतने लगा. एक समय ऐसा भी आया, जब वे हर रोज सुबहसवेरे अपने खेतों में हल चलाने के बाद 5 किलोमीटर दूर पैदल इंटर कालेज, रुद्रप्रयाग में पढ़ाई करने के लिए जाती थीं और साथ में दूध भी बेचने के लिए ले जाती थीं, जिस से परिवार का खर्च चलने लगा था.

धीरेधीरे बबीता रावत ने सोचा कि पारंपरिक खेती में मेहनत ज्यादा है और मुनाफा कम, इसलिए उन्होंने सब्जियों का उत्पादन भी शुरू किया और पिछले कुछ सालों से वे सीमित संसाधनों में मशरूम उत्पादन का भी काम कर रही हैं.

बबीता रावत ने बताया, ‘मैं किराए की 15-20 नाली जमीन (एक नाली बराबर 240 गज) पर ओएस्टर मशरूम का उत्पादन करती हूं और साथ ही दूसरी फसलें भी लेती हूं, जिस से मुझे अच्छी आमदनी हो जाती है.

‘बस, एक समस्या है कि हमें मशरूम के बीज के लिए देहरादून या दिल्ली या फिर दूर की किसी जगह का मुंह ताकना पड़ता है. इस से हमारा समय बरबाद होता है और बीज मंगवाना भी महंगा पड़ता है. लोकल में यह सुविधा बिलकुल नहीं है.’

आप के मशरूम की खपत कहां होती है? इस सवाल के जवाब में बबीता रावत ने बताया, ‘हमारे ज्यादातर मशरूम रुद्रप्रयाग में ही रह रहे सरकारी मुलाजिम खरीद लेते हैं. इस के अलावा होटल और रैस्टौरैंट वाले भी इन्हें मंगवा लेते हैं.’

बबीता रावत ने एक और अहम जानकारी दी, ‘मैं ने भारतीय स्टेट बैंक ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान, रुद्रप्रयाग से मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण लिया है. लौकडाउन के दौरान मैं ने 15 से 20 लोगों को मशरूम उत्पादन और सब्जी उत्पादन का प्रशिक्षण दे कर उन का स्वरोजगार शुरू कराया है.’

इस तरह हिंदी में एमए की डिगरीधारी बबीता रावत ने खेतीकिसानी कर के अपने परिवार को आर्थिक तंगी से बाहर निकालने का जो हिम्मती काम किया है, वह वाकई काबिलेतारीफ है.

बबीता रावत ने दिनरात मेहनत कर के अपने पिता की दवा समेत खुद की पढ़ाई का खर्च भी उठाया और अपनी 3 बहनों की शादियां भी कराईं.

आज कोरोना महामारी के बुरे दौर में लौकडाउन के दौरान जहां न जाने कितने लोगों का रोजगार छिन गया है, वहीं बबीता रावत ने अपने खेतों में मटर, भिंडी, शिमला मिर्च, बैगन, गोभी समेत मशरूम जैसी नाजुक सब्जी का उत्पादन कर के दूसरों के सामने एक नई मिसाल पेश की है.

इतना ही नहीं, बबीता रावत ने बताया कि अब उन्हें देख कर दूसरे लोग भी खेती को रोजगार बनाना चाहते हैं. लौकडाउन में बहुत से लोग गांव वापस आ गए हैं. वे बबीता रावत से मिल कर खेतीबारी से जुड़े टिप्स ले रहे हैं.

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