Mango Orchards : आम भारत के सब से खास फलों में से एक है. यह एक ऐसा अनमोल फल है, जो सभी को भाता है. आम में विटामिन ए व सी काफी मात्रा में होता है. इस फल से अमचूर, चटनी, अचार, स्क्वैश, जैम वगैरह बनाए जा सकते हैं. दूसरे देशों को आम भेजने के लिए इस की उत्पादकता और गुणवत्ता बढ़ाना बहुत जरूरी है.

आम की कम उत्पादकता का खास कारण बाग लगाने के 8-10 सालों तक कम उपज हासिल होना है, क्योंकि शुरुआती साल में बौर कम आते हैं और फसल कम होती है. इस तरह शुरू के कई सालों तक फायदेमंद उपज नहीं मिलती है और बाग में पेड़ों के बीच की जमीन पर दूसरी फसल उगा कर घाटा पूरा करना पड़ता है. अच्छी उपज हासिल करने के लिए वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल किए जाने की जरूरत है.

जलवायु : आम की खेती उष्ण व उपोष्ण दोनों प्रकार की जलवायु में समुद्रतल से 600 मीटर की ऊंचाई तक सफलतापूर्वक की जाती है. तीनों कृषि जलवायु क्षेत्रों में इस की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है. इस में फूल आने के समय बारिश होने पर फल कम बनते हैं और कीड़ों व बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है. अधिक तेज हवा व आंधी द्वारा आम की फसल को नुकसान पहुंचता है.

जमीन : बलुई, पथरीली और जलभराव वाली जमीन में इस का उत्पादन लाभकारी नहीं है. आम की सफल खेती के लिए सही जल निकास वाली गहरी दोमट जमीन ही मुनासिब होती है. आम की पैदावार के लिए मिट्टी का पीएच 5.5-7.5 सही माना जाता है.

उम्दा किस्में

उत्तर भारत : दशहरी, लंगड़ा, चौसा, रतौल, बांबे ग्रीन, लखनऊ, सफेदा.

दक्षिण भारत : मलगोवा, तोतापुरी, बैगनपल्ली, नीलम, अलफांसो, सुवर्णरेखा, पाइरी.

पूर्वी भारत : दशहरी, फजली, गुलाबखास, किशनभाग, लंगड़ा, जरदालू, हिमसागर, बांबे ग्रीन.

पश्चिम भारत : अलफांसो, केसर, पाइरी, वनराज, जमादार.

उन्नत संकर : आम्रपाली, मल्लिका, अंबिका, रत्ना, अरुनिका.

मूलवृंत : सामान्य रूप से 1 साल पुराने देशी आम के बीजू पौधों का मूलवृंत के लिए इस्तेमाल किया जाता है. बहुभ्रूणीय मूलवृंत पर ग्राफ्ट किए गए पौधे समान आकार व गुण वाले होते हैं. बहुभ्रणीय मूलवृंत जैसे टर्पेटाइन, सावरे, विलाई कोलंबन, 13-1 व कुरुक्कन, उसरीली मिट्टियों के लिए अच्छे माने गए हैं. ये दक्षिण भारत में लोकप्रिय हो रहे हैं. उत्तर भारत में बहुभ्रूणीय मूलवृंतों के अभाव के कारण देशी आम की गुठलियों से बीजू पौध तैयार कर के मूलवृंत के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.

पौधे तैयार करना : आम के बीजू पौध तैयार करने के लिए गुठलियों को जूनजुलाई में बो दिया जाता है. नर्सरी में 8-10 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सड़ी गोबर की खाद मिलानी चाहिए. आम के पौधे तैयार करने की विधियों में भेंट कलम, वीनियर ग्राफ्टिंग, सैफ्टवुड/क्लेफ्ट ग्राफ्टिंग और स्टोन या इपीकोटिल ग्राफ्टिंग खास हैं. प्रचलित भेंट कलम विधि में कई कमियां हैं, लिहाजा इसे प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए. वीनियर व सौफ्टवुड/क्लेफ्ट ग्राफ्टिंग द्वारा अच्छे किस्म के पौधे कम समय में तैयार होते हैं. दक्षिण भारत में 25×10 सेंटीमीटर की पौलीथिन की थैलियों में मूलवृंत तैयार कर के वीनियर/क्लेफ्ट ग्राफ्टिंग कर के व्यावसायिक स्तर पर आम के पौधे तैयार किए जा रहे हैं. इस तकनीक को प्रोत्साहित करने की जरूरत है.

आम के पौधे कलम बंधन की तमाम विधियों द्वारा तैयार किए जा सकते हैं. इस में मूलवृंत के लिए 6 महीने से 1 साल के पौधे ठीक होते हैं. आम की गुठलियों से मातृ मूलवृंत या बीजू पौध तैयार किया जाता है. बहुभ्रूणीय गुठलियों से समान गुणों वाले पौधे तैयार किए जा सकते हैं, मानक मूलवृंत न होने पर मूलवृंत के लिए स्वस्थ व वजनदार गुठलियों का चयन करना चाहिए. अधिकतम अंकुरण के लिए गुठली को फलों से निकालने के तुरंत बाद 1 मीटर चौड़ी व 20 सेंटीमीटर ऊंची क्यारियों में बोना सही पाया गया है. अंकुरण के 20-25 दिनों बाद बीजू पौधों को पहले से तैयार खेत में लगा देते हैं. क्यारियों में पहले से बोई गई गुठलियां जब अंकुरित हो जाएं तब उन्हें पहले से भरे हुए पौलीबैग में गुठली सहित उखाड़ कर लगाते हैं. काले रंग के पालीबैग में 3 हिस्सा मिट्टी व 2 हिस्सा सड़ी गोबर की खाद के मिश्रण में पौधों को स्थानांतरण करते हैं.

इन कोमल बीजू पौधों की कीड़ों व बीमारियों से मानसून के समय हिफाजत करना जरूरी है. करीब 1 साल में बीजू पौधे कलम के लिए तैयार हो जाते हैं.

आम के उम्दा पौधे तैयार करने के लिए निम्न विधियां प्रचलित हैं:

विनियर कलम बंधन

* 1 साल आयु और 0.50 से 0.75 सेंटीमीटर व्यास वाले स्वस्थ बीजू पौधे मूलवृंत के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं.

* सांकुर के लिए 3-4 महीने पुरानी मनचाही किस्म की स्वस्थ शाखाएं इस्तेमाल की जाती हैं.

* सांकुर शाख को 7-10 दिनों पहले ही मातृ पेड़ में पर्ण रहित करें फिर अग्रकली विकसित होने पर काट लें.

* सांकुर शाख में एक तरफ लंबा व दूसरी तरफ छोटा तिरछा चीरा लगाएं. मूलवृंत में 15-20 सेंटीमीटर की ऊंचाई पर बगल में 3-4 सेंटीमीटर तिरछा चीरा लगाएं.

* सांकुर शाख को मूंलवृंत में लगा कर 200 गेज पालीथीन स्ट्रिप से अच्छी तरह बांध दें.

* उत्तर भारत में जून से सितंबर तक खुली क्यारियों व पालीहाउस की सुविधा होने पर किसी भी समय इस विधि द्वारा आम के पौधे तैयार किए जा सकते हैं. इस विधि द्वारा अगले साल की रोपाई के लिए पौधे तैयार हो जाते हैं.

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कोमल शाख कलम बंधन

* 6 महीने से 1 साल के मूलवृंत लें.

* विनियर की तरह ही सांकुर शाख तैयार करें. सांकुर शाख व मूलवृंत की मोटाई एक जैसी होनी चाहिए.

* मूलवृंत के शीर्ष कटे भाग से 4-6 सेंटीमीटर का लंबवत चीरा बीचोंबीच लगाएं.

* पहले से तैयार सांकुर शाख के आधार पर 4-6 सेंटीमीटर तिरछी कटाई 2 तरफ से करें.

* सांकुर शाख का प्रत्यारोपण मूलवृंत पर कर के उस जगह को 200 गेज मोटी पालीथीन स्ट्रिप से अच्छी तरह बांध दें.

* सांकुर शाख व मूलवृंत को प्रत्यारोपण से पहले 0.05 फीसदी कार्बेंडाजिम से उपचातिर कर लें.

* कोमल शाख कलम बंधन एक आसान विधि है. इस के द्वारा बेहतर आम के बाग को तैयार किया जा सकता है. इस विधि को उत्तर भारत में प्रोत्साहित करने की बेहद जरूरत है.

प्रांकुर प्रवर्धन

* 10-15 दिनों के हलकी हरी पत्तियों वाले पौधों का इस्तेमाल मूलवृंत के लिए करें.

* पौधे को गुठली के साथ 0.05 फीसदी कार्बेंडाजिम में 5 मिनट तक उपचारित करें. फिर इस की शीर्ष शाखा को 6-8 सेंटीमीटर की ऊंचाई से काट कर शीर्ष भाग से बीचोंबीच 3-4 सेंटीमीटर का लंबवत चीरा लगाएं.

* 2-3 महीने पुरानी सांकुर शाख जिन्हें विनियर विधि की तरह तैयार किया गया हो को प्रत्यारोपण के लिए लें.

* सांकुर शाख के आधार पर दोनों तरफ से तिरछा काट कर मूलवृंत में बनाए खांचे में इन्हें एक स्थान पर बैठा कर प्रत्यारोपित करें.

* सांकुर शाख के ऊपर प्रत्यारोपण के बाद 10-15 दिनों के लिए ऊपर से पतली पालीथीन नलिका लगाएं.

* शीर्ष कलिका निकलने के बाद लगाई गई नलिका को हटा दें. बारिश के मौसम में इस विधि द्वारा अच्छी सफलता की उम्मीद होती है.

पेड़ लगाना : आम के पेड़ों को लगाने के लिए बारिश का मौसम सब से अच्छा माना गया है. जिन इलाकों में बारिश अधिक होती है, वहां बारिश के अंत में आम का बाग लगाना चाहिए. मई महीने में करीब 50 सेंटीमीटर व्यास के 1 मीटर गहरे गड्ढे खोद कर उन में करीब 30-40 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद मिट्टी में मिला कर और 100 ग्राम क्लोरपाइरीफास पाउडर प्रति गड्ढे की दर से भर देना चाहिए. गड्ढा खोदने व भरने का काम बारिश का मौसम आने से पहले जरूर कर लेना चाहिए. बारिश के मौसम में पौधों की रोपाई प्लांटिंग बोर्ड की सहायता से करनी चाहिए. पौधों की दूरी किस्म के मुताबिक 10-12 मीटर होनी चाहिए. आम्रपाली किस्म के लिए यह दूरी 2.5 मीटर होनी चाहिए. बागों में ऐसी किस्में (जैसे दशहरी के बाग में बांबे ग्रीन) जरूर लगानी चाहिए, जिन से परागण में मदद मिल सके.

अंत:फसलें : आम के बाग में पहले 10 सालों तक अंत:फसलों को उगा कर काफी लाभ हासिल किया जा सकता है. इस से जमीन का पूरा इस्तेमाल भी होता है. आम के बाग में लोबियाआलू, मिर्चटमाटर, मूंगचना, उड़दचना आदि फसलचक्र उपयोगी साबित हुए हैं. लोबियाआलू फसल चक्र से सब से ज्यादा आय हासिल की जा सकती है. इस के अलावा सब्जियां और तिलहनी फसलें जैसे मूंगफली, तिल, सरसों आदि भी उगाई जा सकती हैं. गेंदा व ग्लैडियोलस फूलों की अंत:फसलें भी फायदेमंद हैं, जिन्हें बागबान अपना रहे हैं. आम के थालों में फसल नहीं बोनी चाहिए. ज्वार, बाजरा, गन्ना व धान जैसी फसलों की पैदावार अंत:फसल के रूप में नहीं की जानी चाहिए.

खाद : आम के बागों को 10 सालों तक हर साल उम्र के गुणांक में नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश की क्रमश: 100 ग्राम, 50 ग्राम व 100 मात्रा प्रति पेड़ की दर से जुलाई में पेड़ के चारों तरफ बनाई गई नाली में देनी चाहिए. 10 साल या इस से पुराने बागों में 1000 ग्राम नाइट्रोजन, 500 ग्राम फास्फोरस व 1000 ग्राम पोटाश की मात्रा तने से करीब 1.5 मीटर दूरी पर बनाई गई 25 सेंटीमीटर चौड़ी नाली में डालनी चाहिए. इस के अलावा मिट्टी की भौतिक व रासायनिक दशा में सुधार के लिए 25-30 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद प्रति पेड़ देनी चाहिए.

सिंचाई : बाग लगाने के पहले साल में 2-3 दिनों के अंतर पर, 2-5 साल होने पर 4-5 दिनों के अंतर पर और जब पौधे फलने लगें तो फल लगने के बाद 2-3 बार पानी देना चाहिए. बाग में पहली सिंचाई फल लगने के बाद, दूसरी सिंचाई फलों के कांच की गोली के बराबर होने पर और तीसरी सिंचाई मई के दूसरे हफ्ते में करने से फलों के आकार व गुणवत्ता में इजाफा होता है. सिंचाई हमेशा थालों में ही करनी चाहिए.

निराईगुड़ाई : बागों को साफसुथरा रखने के लिए समयसमय पर निराईगुड़ाई और साल में 2 बार जुताई कर देनी चाहिए. इस से खरपवतार और भूमिगत कीट नष्ट हो जाते हैं.

कुलतार (पैक्लोव्यूट्राजाल) का इस्तेमाल

आम के पेड़ में हर साल फल आने व पेड़ की बढ़वार को सही रखने के लिए कुलतार का इस्तेमाल किया जाता है. इस के लिए हर पेड़ की सालाना उम्र पर 1 मिलीलीटर कुलतार को 5 लीटर पानी में मिला कर पेड़ के मुख्य तने के चारों ओर मिट्टी में मिला कर हलकी सिंचाई कर देनी चाहिए. उत्तरी भारत में कुलतार के इस्तेमाल का सही समय 15 सितंबर से 15 नवंबर माना जाता है. इस के इस्तेमाल से जुलाईअगस्त में आई नई शाखाओं पर फरवरीमार्च में बाकायदा फूल व फल आने शुरू हो जाते हैं.

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पुराने बागों को ठीक करना : ऐसा देखा गया है कि 45-50 सालों बाद आम के पेड़ों का फैलाव काफी बढ़ जाता है और उन की शाखाएं बढ़ कर दूसरे पेड़ों को छूने लगती हैं. इस से सूरज की रोशनी पेड़ों तक सही मात्रा में नहीं पहुंच पाती है. इस कारण प्रकाश संश्लेषण नहीं हो पाता है, नतीजतन पेड़ों में फूल व फल सही तरीके से नहीं आ पाते. ऐसे बाग कीड़ों व बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं. ऐसे बागों को कटाईछंटाई तकनीक से उत्पादक बनाया जा सकता है.

ऐसे पेड़ों की सभी शाखाओं को जमीन से 4-5 मीटर ऊंचाई पर दिसंबर में काट देना चाहिए.  शाखाओं को पहले नीचे की तरफ से काटते हैं और बाद में ऊपर से काटते हैं. काटने के बाद कापर आक्सीक्लोराइड का लेप बना कर काटी गई जगहों पर लगाना कारगर होता है. कापर आक्सीक्लोराइड की जगह पर गोबर और मिट्टी का लेप भी लगाया जा सकता है.

मार्च अप्रैल में इन कटी हुई शाखाओं पर नए कल्ले आने लगते हैं और हर कटी शाखा पर भरपूर मात्रा में टहनियां व पत्तियां निकलती हैं. इन में से 8-10 अच्छी टहनियों को बढ़ने देना चाहिए. बाकी फालतू टहनियों को जूनजुलाई तक हटा देना चाहिए. इन कटे पेड़ों में 2.5 किलोग्राम यूरिया, 3.0 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 1.5 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश प्रति पेड़ की दर से डालना चाहिए. इन उर्वरकों में से यूरिया की आधी मात्रा और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा फरवरी में और यूरिया की बची आधी मात्रा जून में इस्तेमाल करते हैं. इस के अलावा 50-100 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद प्रति पेड़ देना फायदेमंद होता है.

इन कटे पेड़ों में अप्रैल से जून तक 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए. साथ ही कीड़ों व रोगों के लिए चौकन्ना रहना चाहिए.

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