गुलाब की खेती से यहां के किसानों को अच्छी आमदनी हो रही है और उन की मेहनत बंजर जमीन से सोना उगल रही है. इस से उन्हें एक साल में लाखों की आमदनी हो रही है. गुलाब के फूलों की बात करें तो कुछ साल पहले यहां अच्छे काम के लिए दूसरे इलाकों से फूल मंगाए जाते थे, लेकिन अब मुरैना गुलाब के फूलों की मंडी बन रहा है.

यहां के किसान अब वैज्ञानिक तरीके से गुलाब की खेती कर रहे हैं. इस काम में कृषि विज्ञान केंद्र व कृषि विभाग की मदद ले कर तकरीबन 55 किसानों ने 50 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर अच्छी किस्म की गुलाब की खेती की है. किसानों की इस पहल से आमदनी के साथ कई लोगों को रोजगार भी मिला है.

बीहड़ ऐसा इलाका है जहां पानी की कमी रहती है जबकि गुलाब की खेती में पानी की जरूरत पड़ती है. यहां दूसरी फसलों को तो नीलगाय के साथ अन्य जानवर नुकसान पहुंचाते हैं, लेकिन गुलाब में कांटे होने की वजह से उसे वे बरबाद नहीं करते. इस के अलावा यहां का वातावरण भी गुलाब की खेती के लिए माकूल है. किसान सुशील राजौरिया बताते हैं कि एक बीघा में उगाए गए गुलाब के फूलों से तकरीबन 12 सौ लीटर गुलाबजल बनता है, जिस की कीमत 100 रुपए लीटर से कहीं ज्यादा है और यह आसानी से बिक जाता है.

गुलाब देखने में जितना खूबसूरत लगता है, उतनी ही उस की खुशबू भी लोगों को लुभाती है. गुलाब के फूल गुलाबजल के अलावा गुलाबरूह भी निकलता है. गुलाबजल जहां 1 बीघा में 12 सौ लीटर निकलता है, वहीं गुलाबरूह मुश्किल से 180 ग्राम निकलता है. गुलाबरूह की मांग लखनऊ के साथ ही इत्र के शहर कन्नौज में काफी है. जो 8 से 10 लाख रुपए प्रति किलोग्राम की कीमत से बिकता है. इसलिए वे अच्छे किस्म के पौधों की रोपाई करने लगे हैं. एक बार लगे पौधे 14 से 15 साल तक फूल देते हैं.

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