करौंदे का पौधा कांटेदार और झाड़ीनुमा होता है. यह पौधा 3 से 4.5 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ता है. इस का इस्तेमाल हेज के रूप में हम अपने बगीचे को घेर कर करते हैं. इस के अलावा खेत के चारों ओर जंगली व पालतू पशुओं से हिफाजत के लिए भी इस पौधे को लगाया जाता है. बाड़ लगाने के साथसाथ पौधों से मिले फलों से भी अतिरिक्त आमदनी मिलती है.

करौंदे का इस्तेमाल रसोईघर में खाने की चीजों के रूप में हम बहुत ज्यादा करते हैं इसलिए अब इस की खेती भी बड़े पैमाने पर होती है.

एक तरफ करौंदे के कच्चे फलों का इस्तेमाल सब्जी, चटनी, अचार वगैरह के लिए किया जाता है वहीं पके फलों से जैली, मुरब्बा व स्क्वैस जैसी चीजें बनाई जाती हैं. इस का पेड़ पहाड़ी इलाकों में मिट्टी व जल संरक्षण यानी पानी बचाने में मददगार होता है. यह विटामिन सी और लोह तत्त्व का अच्छा स्रोत है. इस का इस्तेमाल मिठाई व पैस्ट्री को सजाने के लिए रंगीन चेरी की जगह भी किया जाता है. करौंदे का इस्तेमाल हम आयुर्वेद में भी करते हैं. इस से हम बहुत सी दवाएं भी बना सकते हैं.

जलवायु और मिट्टी : करौंदा सभी तरह की मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है. उष्ण व उपोष्ण यानी गरम इलाकों के अलावा कुछ महीने ज्यादा गरम या कुछ महीने कम गरम वाले इलाकों में भी इस की खेती की जा सकती है.

करौंदे की फसल भारत में मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश वगैरह राज्यों में की जा रही है और अच्छी उपज भी मिल रही है क्योंकि यही जीरो बजट फसल है.

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