तरबूज गरमियों के मौसम का एक ऐसा फल है जिसे हर कोई खाना पसंद करता है. तरबूज की खेती के लिए किसी खास जमीन की जरूरत नहीं होती, लेकिन नदियों के कछार में इस की खेती करने से काफी फायदा होता है.

आमतौर पर यह देखा गया है कि भारतीय किसान साल में 2 ही फसल उगाते हैं. बहुत कम किसान ही ऐसे होते हैं जो जायद की फसल करते हैं. अगर किसान अपनी आमदनी में इजाफा करना चाहते हैं तो उन के लिए जायद मौसम में तरबूज की खेती अच्छे मुनाफे का जरीया बन सकती है.

तरबूज की खेती कई तरह की मिट्टी में की जाती है, लेकिन बलुई दोमट मिट्टी इस की खेती के लिए सही रहती है. खेत तैयार करने के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें और बाद की जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करें. खेत को समतल कर लें तो पूरे खेत में पानी की खपत एकसमान रहेगी.

अगर खेत नदी के किनारे है तो नालियों और थालों को पानी की मौजूदगी के हिसाब से बनवाएं. इन नालियों और थालों में सड़ी गोबर की खाद और मिट्टी के मिश्रण से भर देते हैं. गरम और औसत नमी वाले इलाके इस की खेती के लिए सब से अच्छे रहते हैं. बीजों के जमाव व पौधे की बढ़वार के लिए 25-32 सैंटीग्रेड तापमान अच्छा होता है.

भूमि और जलवायु

तरबूज की खेती कई तरह की मिट्टी में की जाती है, लेकिन बलुई दोमट मिट्टी बेहतर रहती है. खेत तैयार करने के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें और बाद की जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करते हैं.

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