पपीते की खेती में यदि नर पौधों की संख्या ज्यादा निकल जाए तो किसानों को फायदे के बजाय नुकसान उठाना पड़ता है, क्योंकि खेत में पौधों को बड़ा होने तक उस में खादपानी, निराईगुड़ाई पर अच्छाखासा समय और पैसा खर्च हो जाता है.

यदि इस बात का किसानों को पौधे के पनपने की ही अवस्था में पता लग जाएगा कि पौधा नर है या मादा, तो किसान अधिक से अधिक संख्या में मादा पौधे लगा सकेंगे.

टिश्यू कल्चर विभाग के प्रोफैसर डाक्टर आरएस सैंगर ने बताया कि शोध तकरीबन अंतिम चरण में है. कृषि विज्ञान की दुनिया में यह बेहद खास रिसर्च होगी. इस का सीधा फायदा किसानों को मिलेगा.

पपीता एक लोकप्रिय व उपयोगी फल है. इस की खेती उष्ण और उपोष्ण दोनों प्रकार की जलवायु में की जाती है. इस को अधिकतर लोग अपने घर के बगीचे में भी उगा लेते हैं. पपीते की खेती फलों के अलावा पपेन के लिए भी की जाती है. यह कच्चे पपीते से सुखाए हुए दूध के रूप में उपलब्ध हो जाता है. पपीते से प्राप्त पपेन का औषधीय और व्यावसायिक उपयोग बहुत बड़े पैमाने पर होता है, इसलिए इस की खेती करना बहुत लाभदायक है.

कहां उगेगा पपीता : पपीते की सब से बेहतर खेती जीवांशयुक्त और सही जल निकास वाली बलुई और दोमट मिट्टी में की जाती है. इस की अच्छी पैदावार के लिए गरम और नम जलवायु का होना बेहद जरूरी है.

पपीते की सफल खेती के लिए कम से कम 40 डिगरी फारेनाइट और अधिक से अधिक 110 डिगरी फारेनहाइट का तापमान जरूरी है. वैसे, इस की अच्छी उपज के लिए 90-100 डिगरी फारेनाइट सही माना जाता है. इस को अधिक पानी, पाला व लू तीनों ही प्रभावित करते?हैं.

सेहत के लिए फायदेमंद : पपीते के फल में विटामिन की प्रचुर मात्रा होती है. यह आंखों की रोशनी के लिए सही है. विटामिन सी भी इस में होता है, जो बच्चों की शारीरिक बढ़ोतरी और विकास के साथसाथ रोग की रोकथाम करता है और पेट के लिए भी यह उम्दा फल है.

पपीते की खेती से आमदनी

सालोंसाल आसानी से मिलने वाला पपीता बहुत ही फायदेमंद फल है और आज के किसान इस की खेती कर के प्रगतिशील किसानों की दौड़ में शामिल हो चुके हैं क्योंकि इस को उगाना आसान, बेचना आसान और मुनाफा अधिक है.

सघन बागबानी पपीता उगाने वालों के लिए नई विधि है. इसे अपना कर वे पपीते की पैदावार और अपनी आमदनी में इजाफा कर सकते हैं.

इस की कुछ बौनी किस्में भी होती हैं. इन्हें लगा कर पपीते की सघन बागबानी कर के पैदावार बढ़ाई जा सकती है.

पपीते में हम ड्रिप इरिगेशन तकनीक का इस्तेमाल कर के तकरीबन 85 फीसदी पानी की भी बचत कर सकते हैं.

एक हेक्टेयर में मिलती है भरपूर पैदावार : पपीता कई औषधीय गुणों से भरपूर होने के साथ ही सेहत के लिए भी बहुत लाभकारी है. पपीते की सब से बड़ी खूबी यह है कि यह बहुत कम समय में फल देता है और किसानों को इस के उत्पादन के लिए मेहनत भी कम करनी पड़ती है. औषधीय गुणों के कारण पपीते की मांग सालभर रहती है. एक हेक्टेयर में पपीते का उत्पादन 30 से 40 टन होता है.

क्या है टिश्यू कल्चर : टिश्यू कल्चर विभाग के प्रोफैसर आरएस सैंगर ने बताया कि टिश्यू कल्चर विधि से अच्छी प्रजाति के रोगरहित पौधों का विकास किया जाता है. इस में पौधे के टिश्यू (ऊतक) या एपिकल बड या मेरिस्टेम व पत्ती की सहायता से बोतल या टैस्ट ट्यूब (नली) के अंदर पौधों को विकसित किया जाता है और पौधों की बढ़वार होने पर खेतों में लगाया जाता है.

पपीते की उन्नत किस्में : पंत पपीता 1, पूसा ड्वार्फ, पूसा ज्वाइंट, पूसा डेलिशियस, पूसा मैजेस्ट्री, पूसा नन्हा, कोयंबटूर 1, कोयंबटूर 2, वाशिंगटन, रांची ड्वार्फ, रैड लेडी 786, सूर्या, कोयंबटूर 41 वगैरह हैं.

खास बातें : पपीते पर चल रही शोध और इस के टिश्यू कल्चर से विकसित पौधों का किसानों को सीधा लाभ मिलेगा. किसानों की कम मेहनत, कम समय और पैसों की बचत होगी. पपीता एक सदाबहार फल है. किसानों को चक्रीय प्रणाली अपनानी चाहिए.

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