मध्य प्रदेश के गांव करसरा के किसान रामसुजान कुशवाहा की कहानी संघर्ष, मेहनत और उम्मीदों की अनोखी मिसाल है. छोटे से गांव से बड़े सपने देखने वाले रामसुजान का जीवन संघर्षों और कठिनाइयों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. खेती, परिवार और विपरीत हालात के बीच उन की जद्दोजेहद प्रेरणा देती है.
रामसुजान का गांव सतना जिला मुख्यालय से तकरीबन 28 किलोमीटर दूर सतना पन्ना स्टेट हाईवे पर बसा हुआ है. उन्होंने अपनी ससुराल से लिया गया कर्ज चुकाने के लिए उन्हीं की जमीन पर खेती कर के यह मुकाम पाया है.
शुरुआत का संघर्ष
रामसुजान कुशवाह का जीवन साधारण किसान परिवार में शुरू हुआ. उन के पिता लल्लू कुशवाहा खुद संघर्षशील किसान थे. रामसुजान के पास अपनी जमीन नहीं थी, इसलिए उन्होंने 2 एकड़ जमीन ठेके पर ले कर खेती शुरू की. सालाना 12,000 रुपए ठेका भर कर उन्होंने आलू, प्याज और टमाटर की खेती की.
रामसुजान बताते हैं, ‘‘हमारे पास जमीन नहीं थी, लेकिन मेहनत करने का हौसला था. मैं ने सोचा कि खेती ही हमारा सहारा है, इसलिए आलू, टमाटर और प्याज की खेती शुरू की.’’ रामसुजान कुशवाहा ने साल 2018 में पहली बार प्याज की खेती में हाथ आजमाया.
2 एकड़ में 15,000 रुपए लगा कर उन्होंने 100 क्विंटल प्याज का उत्पादन किया. यह उन का पहला बड़ा मुनाफा था, जिस में उन्होंने 50,000 रुपए कमाए. लेकिन अगले साल हालात बदल गए.
साल 2019 में प्याज की खेती में लागत बढ़ गई. बीज, कटाई, निदाई और खुदाई पर 30,000 रुपए खर्च हुए, लेकिन पैदावार घट गई. उन्हें 50 क्विंटल प्याज के उत्पादन से 20,000 रुपए का घाटा हुआ. यह पहली बार था, जब उन्होंने खेती में इतना बड़ा नुकसान देखा था.
दुर्घटना और माली परेशानी
साल 2020 रामसुजान कुशवाहा की जिंदगी का सब से कठिन वर्ष साबित हुआ. एक दिन जब वह प्याज ले कर सतना बाजार जा रहे थे, तो उन की गाड़ी करसरा के पास ट्रक से टकरा गई. इस दुर्घटना में उन की पसलियां टूट गईं और इलाज में एक लाख रुपए से ज्यादा का खर्च आया.
माली तंगी के इस दौर में उन के ससुर ने उन की मदद की, लेकिन जो पैसे दिए थे, वे कर्ज के रूप में दिए थे. इसे चुकाने के लिए ससुर की जमीन में ही रामसुजान ने खेती शुरू कर दी. ससुर भगवती प्रसाद का खेत सतना शहर से सटे महदेवा गांव में है. अब यह गांव सतना नगरनिगम का वार्ड नंबर 41 है.
रामसुजान बताते हैं, ‘‘एक पल को लगा कि सब खत्म हो गया. पैसे नहीं थे, लेकिन ससुरजी ने मदद (कर्ज) की और परिवार ने भी सहायता की. ससुर ने जो पैसे दिए, उन्हें आज नहीं तो कल चुकाना ही था, सो काम कर के चुका रहे हैं. अब यह कर्ज हम चुका चुके हैं, पर और कोई काम नहीं है तो उन्हीं का खेत ठेके पर ले कर काम कर रहे हैं.’’
ससुर भगवती प्रसाद रेलवे में नौकरी करते थे. वे अब रिटायर हो चुके हैं. वे बताते हैं, ‘‘दामाद की बीमारी में कर्ज ले कर ही पैसा दिया था. रेलवे की जो नौकरी थी, उस से बहुत पहले ही रिटायर हो गया था, इसलिए अपनी गारंटी पर पैसा ले कर दिया था, उसे तो चुकाना ही था. तो खेत में काम कर के दामाद ने वे पैसे चुका दिए हैं. अब तो जो कमाई आ रही है, उसी की है. हम बस खेत का किराया, जो कि 12,000 रुपए प्रति सीजन है, ले लेते हैं.’’
फूलों की खेती से उम्मीद की किरण
साल 2022 में रामसुजान कुशवाहा ने फूलों की खेती में कदम रखा. उन्होंने आधा एकड़ में गेंदे, गुलाब और सेवंती के पौधे लगाए. फूलों ने उन की जिंदगी में नई रोशनी बिखेरी.
रामसुजान ने बताया, ‘‘गेंदे के फूल से हमें उम्मीद की नई किरण मिली. हर सीजन में 50,000 रुपए तक की कमाई होने लगी. गुलाब और सेवंती भी अच्छी आमदनी देने लगे.’’
गेंदे के 100 पौधे हर रोज लगभग 150-200 रुपए की कमाई देने लगे. एक सीजन में 50,000 रुपए की आमदनी हुई. नवंबर और अप्रैल में बोआई करने के बाद गेंदे के फूल 4 महीनों में तैयार हो जाते हैं. गुलाब और सेवंती ने भी अच्छी आमदनी दी है. गुलाब के पौधों से प्रति किलोग्राम 100 रुपए और सेवंती से प्रति किलोग्राम 30 रुपए की कमाई होने लगी.
उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग के उद्यानिकी अधिकारी नरेंद्र सिंह ने सतना जिले का डाटा शेयर करते हुए बताया कि साल 2022-23 का फाइनल डाटा आया है, उस के आधार पर 1744 हेक्टेयर में फूलों की खेती होती है. इस में 14192.5 मीट्रिक टन फूलों का उत्पादन हुआ है. इस में 684 हेक्टेयर में अकेले गेंदा फूल की खेती दर्ज की गई है.
इस रकबे में 8130 मीट्रिक टन गेंदा फूल का उत्पादन हुआ है. इस के अलावा ग्लैडियोलस 23 हेक्टेयर में 281.5 मीट्रिक टन, गुलाब 238 हेक्टेयर में 2048 मीट्रिक टन, ट्यूब रोज 11 हेक्टेयर में 100 मीट्रिक टन और अन्य फूल 788 हेक्टेयर में 3633 मीट्रिक टन का उत्पादन हुआ है.
फूलों की खेती में पनपे सपने और उम्मीदें
आज रामसुजान और उन की पत्नी मुन्नी कुशवाहा अपनी मेहनत और दृढ़ता से आगे बढ़ रहे हैं. उन के परिवार की माली हालत धीरेधीरे सुधर रही है. गांव के 2 एकड़ खेतों और उन की मेहनत ने उन्हें अपने सपनों की ओर बढ़ने का साहस दिया है.
रामसुजान अपनी कमाई के बारे में कहते हैं, ‘‘अब फूलों की खेती से एक लाख रुपए तक आ जाते हैं. आलू और प्याज से 30 से 40 हजार रुपए और अन्य फसलों से भी 20-30 हजार रुपए मिल जाते हैं. कुलमिला कर हमारी सालाना आय 1.5 से 2 लाख रुपए तक पहुंच जाती है.’’
रामसुजान का मानना है कि जिंदगी में कितनी भी मुश्किलें आएं, उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए. उन की कहानी संघर्षशील किसानों के लिए प्रेरणा है, जो कम संसाधनों में बड़े सपने देखते हैं और उन्हें पूरा करने के लिए बड़ी शिद्दत से मेहनत करते हैं.
भावनात्मक पहलू
रामसुजान कुशवाहा की जिंदगी हमें यह सिखाती है कि असफलताएं जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन सच्चा योद्धा वही है, जो हर गिरावट के बाद फिर खड़ा हो जाए. उन की दुर्घटना, माली तंगी, और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच उन की मेहनत और हौसला काबिलेतारीफ है.
रामसुजान के खेत आज सिर्फ फसल ही नहीं, बल्कि उम्मीद और सपनों की फसल उगा रहे हैं. उन के फूलों की खुशबू उन की मेहनत और जज्बे की कहानी सुनाती है.
रामसुजान कहते हैं, ‘‘खेती में घाटा भी होता है और मुनाफा भी. सब से जरूरी है मेहनत और उम्मीद. मैं ने मुश्किल समय में भी अपने खेतों को नहीं छोड़ा और आज मेरे खेत हमारी उम्मीदों का सहारा बने हैं.’’
प्रदेश चौथे नंबर पर
रामसुजान की कहानी भारत में फूलों की खेती के बढ़ते महत्त्व को दर्शाती है. राष्ट्रीय बागबानी बोर्ड द्वारा प्रकाशित राष्ट्रीय बागबानी डाटाबेस के अनुसार, साल 2023-24 के दौरान भारत में पुष्पकृषि का क्षेत्र 285 हजार हेक्टेयर था, जिस में 2,284 हजार टन शिथिल फूलों और 947 हजार टन कटे फूलों का उत्पादन हुआ.
मध्य प्रदेश में उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग के आंकड़ों के अनुसार, साल 2021-22 में 35,720 हेक्टेयर भूमि पर फूलों की खेती हुई, जिस से 4,12,730 मीट्रिक टन उत्पादन हुआ, वहीं साल 2023-24 में यह आंकड़ा 41,049 हेक्टेयर और 4,71,584 मीट्रिक टन तक पहुंच गया, जिस से 4 सालों में 58,854 मीट्रिक टन उत्पादन की वृद्धि दर्ज की गई.
मध्य प्रदेश अब फूलों के उत्पादन में तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के बाद देश में चौथे स्थान पर है.