Flower Cultivation| भारत में सदाबहार तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और असम में तकरीबन 3000 हेक्टेयर क्षेत्र में उगाया जाता है. सदाबहार बहुवर्षीय पौधा है, जो 2 से 3 फुट ऊंचाई वाला होता है. इस के फूल गुलाबी, सफेद होते हैं. तने हलके बैगनी व हरा दोनों रंगों में होते हैं. सदाबहार के बीज छोटेछोटे काले रंग के होते हैं, जो 1 ग्राम में तकरीबन 800 दाने होते हैं.
सदाबहार एक औषधीय पौधा है. इस का अनेक बीमारियों जैसे मधुमेह, मलेरिया, चर्म रोग, कैंसर वगैरह में इस्तेमाल होता है. इस के अलावा यह बागबगीचे की शोभा बढ़ाने वाला पौधा भी है. इस की फसल विभिन्न प्रकार की जलवायु और जमीन में सफलतापूर्वक की जा सकती है. अच्छी बढ़वार के लिए गरम व शुष्क मौसम फायदेमंद है. हालांकि यह अनेक प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, फिर भी हलकी दोमट मिट्टी में इस की अच्छी फसल ली जा सकती है. इस की फसल को क्षारीय, लवणीय और बाढ़ग्रस्त जमीन पर नहीं लगाना चाहिए.
खास किस्म
प्रभात (सलेक्शन 1) : यह किस्म चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार से है. सिमेप लखनऊ की धवल व निर्मल 2 किस्में हैं.
बोने का तरीका
खेत तैयार करने के बाद सदाबहार के बीज को भी सीधा खेत में बोया जा सकता है. 30 सेंटीमीटर की दूरी पर इस की बोआई करनी चाहिए. इस के लिए तकरीबन 1 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ की जरूरत होती है. पौध से रोपाई करने के लिए केवल 200 ग्राम बीज लगता है. 200 वर्ग मीटर क्षेत्रफल की नर्सरी में बीज की बीजाई करनी चाहिए. जब इस की पौध 5-6 इंच की हो जाए तो पौध को खेत में रोप देना चाहिए. इस के लिए आप पौध रोपाई यंत्र का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. पौध की रोपाई करने के बाद खेत में हलका पानी भी दें, ताकि पौधे मिट्टी पकड़ लें. नर्सरी तैयार करने का समय मईजून है, जिसे जुलाईअगस्त में रोपा जा सकता है.
खादपानी व तैयारी
खेत तैयार करते समय अच्छी तरह सड़ीगली गोबर की खाद जरूर डालनी चाहिए और आखिरी जुताई के समय 8 किलोग्राम नाइट्रोजन व 12 किलोग्राम फास्फोरस प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में डालें. जिस जमीन में पोटाश की कमी हो, वहां 12 किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ खेत में डालें. उस के बाद 2 और 5 महीने बाद जरूरत के मुताबिक नाइट्रोजन की मात्रा भी खेत में डालें. समयसमय पर निराईगुड़ाई का भी ध्यान रखें और खरपतवारों को खेत से निकालते रहें. साथ ही जरूरत के मुताबिक खेत में सिंचाई करें. इस फसल की खासीयत है कि इस में किसी भी तरह के कीट और बीमारी नहीं लगती है.
फसल चुनना
पूरे सीजन के दौरान 3 बार पत्तों की चुनाई की जा सकती है. पहली बार 4 महीने पर, दूसरी बार 8 महीने पर और तीसरी कटाई के समय. फसल को जमीन से 15 सेंटीमीटर की ऊंचाई से काटना चाहिए, जिस से फसल में दोबारा फुटाव हो सके.
प्राप्त किए हुए पत्तों और तनों को सुखा लिया जाता है. सुखाने के बाद पत्तियां अलग कर ली जाती हैं. इस की विदेशों में अच्छीखासी मांग है. तकरीबन 8 से 10 क्विंटल प्रति एकड़ की पैदावार पत्तियों के रूप में मिलती है.
जड़ों का इस्तेमाल
सीजन की पूरी फसल लेने के बाद आखिर में पौधों को जड़ों सहित उखाड़ लिया जाता है और जड़ों को पानी में अच्छी तरह धोने के बाद अच्छी तरह सुखाया जाता है. सूखी जड़ों की औसत पैदावार 4 से 5 क्विंटल प्रति एकड़ है.