भारत में कद्दूवर्गीय सब्जीफलों में तरबूज और खरबूजे का खास स्थान है. ये दोनों ही संतुलित भोजन माने जाते हैं. पाचनशक्ति ठीक होने के साथ ही ये पोषक तत्त्वों से भी भरपूर होते हैं. इन का इस्तेमाल पके फल के रूप में ज्यादा किया जाता है. तरबूज खा कर गरमी से राहत मिलती है, वहीं यकृत और आंत के रोगों में आराम मिलता है. खरबूजा भी कब्ज के रोगियों के लिए बहुत फायदेमंद फल है.
तरबूज और खरबूजे का इस्तेमाल गरमी में बहुतायत किया जाता है. दूसरे फलों की तुलना में ये सस्ते होते हैं. इसे हर तबके के लोग आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं. इन को दूसरे कद्दूवर्गीय सब्जीफलों की अपेक्षा बाजार भाव ज्यादा मिलता है, इसलिए ज्यादा उपज लेने के लिए नई प्रजातियों और वैज्ञानिक विधि से खेती की जानकारी का होना बहुत जरूरी है. इस से कम लागत में ज्यादा उपज ली जा सके.
जमीन की तैयारी
दूसरी कद्दूवर्गीय फसलों के साथ इन की खेती समतल खेतों में भी अच्छी तरह से उगाई जा सकती है. बलुई दोमट मिट्टी बढि़या मानी जाती है. इस में जीवांश की मात्रा काफी हों, खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें और 2-3 जुताई कल्टीवेटर से करें. हर जुताई के बाद पाटा चला कर जमीन को इकसार और मिट्टी को बारीक कर लेते हैं.
उन्नतशील प्रजातियां
उत्पादन के लिहाज से तरबूज और खरबूजा की लोकल किस्मों के अलावा बहुत सी उन्नतशील प्रजातियां ईजाद की गई हैं. ये किस्में मिठास के साथसाथ दूर तक भेजने में भी खराब नहीं होती हैं.
तरबूज की सामान्य किस्में
सुगर बेबी : इस किस्म का फल मध्यम आकार का होता है और वजन औसतन 3 से 4 किलोग्राम का होता है. फल का रंग हरा, गूदा लाल और काफी मीठा होता है. इस की भंडारण कूवत दूसरी किस्मों की तुलना में ज्यादा होती है.
अर्का ज्योति : इस किस्म के फलों का वजन 6 से 8 किलोग्राम होता है. गूदा चमकीला और लाल रंग का होता है. खाने योग्य गूदा दूसरी किस्मों की तुलना में ज्यादा होता है औैर इस की भंडारण कूवत दूसरी किस्मों की तुलना में ज्यादा होती है.
तरबूज की संकर किस्में
राज रस : यह किस्म सनग्रो सीड्स कंपनी द्वारा ईजाद की गई है. इस के फलों में शर्करा की मात्रा ज्यादा होती है. यह फसल 80 से 85 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. फलों का आकार गोल, लाल रंग का गूदा और फलों के ऊपर हरे रंग की पट्टी होती है.
पीएस एस 742: इस किस्म के बीज शीतल सीड्स कंपनी द्वारा तैयार किए गए हैं. इस के फल गोल, जिन का रंग हलका हरा होता है. यह किस्म बोने के 85 से 90 दिन में पक कर तैयार हो जाती है.
खरबूजा की सामान्य किस्में
पूसा शरबती : यह अगेती किस्म की फसल है. इस के फल गोल और हरी धारी होती है. इस का गूदा मोटा संतरी रंग का और कम रसदार होता है. इस के फलों को कई दिनों तक रखा जा सकता है. इस में मिठास तकरीबन 8 से 10 फीसदी होती है.
पंजाब सुनहरी : इस किस्म के फलों का औसत वजन 700 से 800 ग्राम और फलों में मिठास 10 से 12 फीसदी होती है. इस का गूदा संतरी रंग का, मध्यम रसदार और खुशबूदार होता है.
हरा मधु : यह देर से तैयार होने वाली किस्म है. इस के फलों का आकार गोले और वजन 1 किलोग्राम होता है. इस में शर्करा की मात्रा 14 से 15 फीसदी होती है जो दूसरी किस्मों की तुलना में काफी ज्यादा है. मोटा गूदा हरा और रसीला होता है और इस के छिलके का रंग हलका पीला और हरी धारियां होती हैं.
खरबूजा की संकर किस्में
पताशा : बीजो शीतल सीड्स कंपनी ने इस किस्म को ईजाद किया है. फलों का वजन तकरीबन 1 से डेढ़ किलोग्राम होता है. इस के फलों में अच्छी खुशबू, गोल और शर्करा की मात्रा ज्यादा होती है.
खाद और उर्वरक
तरबूज और खरबूजा की फसल में अच्छी उपज हासिल करने के लिए जहां तक संभव हो, मिट्टी की जांच करा कर ही संतुलित मात्रा में खाद का इस्तेमाल करना चाहिए.
वैसे तो तरबूज और खरबूजा में 150 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर गोबर की सड़ी खाद की जरूरत होती है.
खेत की तैयारी के समय ही मिट्टी में गोबर की सही खाद मिला देनी चाहिए. फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बोआई के पहले मिट्टी में मिला देनी चाहिए और नाइट्रोजन की बाकी बची मात्रा बोआई के एक महीने के बाद फूल आने के पहले इस्तेमाल करनी चाहिए. तरबूज और खरबूजा की फसल में फलों की मिठास और खास पोषक तत्त्व पोटाश की संतुलित मात्रा पर निर्भर करता है.
बोआई की विधि
दोनों फसलों की बोआई एक ही तरह से की जाती है. इस के लिए 3 मीटर की दूरी पर 40-50 सैंटीमीटर की चौड़ी नाली बनाते हैं और नाली के दोनों किनारों पर 60 सैंटीमीटर चौड़े गड्ढे बनाते हैं.
नाली के दोनों किनारों पर 60 सैंटीमीटर की दूरी पर 2 से 3 बीजों की बोआई करते हैं. बीजों को 2-3 सैंटीमीटर की गहराई पर बोते हैं और जमाव हो जाने पर 1 या 2 स्वस्थ पौध ही रखते हैं.
अच्छे जमाव के लिए बीजों को बोआई के पहले पानी में कुछ समय तक भिगो कर रखना चाहिए.
सिंचाई का तरीका
बोआई के समय यदि खेत में मुनासिब नमी की कमी हो तो बोआई के बाद पहली सिंचाई तुरंत कर देनी चाहिए. दूसरी और तीसरी सिंचाई 4-5 दिन के फासले पर करनी चाहिए ताकि खेत में मुनासिब नमी बनी रहे.
सिंचाई करते समय पानी नाली के ऊपर न जाए. उतना ही पानी नाली में रखना चाहिए जितना बोआई की जगह तक नमी पहुंच जाए. दूसरी सिंचाई समयसमय पर करते रहना चाहिए.
पकने की अवस्था पर सिंचाई कम कर देनी चाहिए, नहीं तो अधिक पानी देने पर फल फट जाते हैं और फलों की क्वालिटी पर बुरा असर पड़ता है. बाजार में भाव भी उस का कम मिलता है.
पादप हार्मोंस का इस्तेमाल
पौधों की शुरुआती अवस्था में जब 2-4 पत्तियां निकल आएं, तब इथराल नामक हार्मोन 200 से 250 पीपीएम की मात्रा का छिड़काव करने पर मादा फूलों की तादाद में इजाफा होता है.
आमतौर से गरमी में ज्यादा तापमान होने पर यह समस्या आती है. नर फल संख्या में ज्यादा और मादा फूलों की संख्या कम आती है. इस के उपचार के लिए मुनासिब हार्मोन का इस्तेमाल करना चाहिए जिस से उपज में काफी इजाफा होगा.
कटाई और छंटाई
तरबूज और खरबूजा की फसल में कटाईछंटाई एक जरूरी प्रक्रिया है. तरबूज मुख्य शाखाओं को 3-4 गांठ के बाद काट देना चाहिए. इस में निकलने वाली दूसरी शाखाओं पर फूल आते हैं और एक शाखा पर एक जैसे फल ही लेना चाहिए.
इस तरह एक पौध पर केवल 3 से 4 फल लेना और खरबूजा की मुख्य शाखाओं पर निकलने वाली 3 से 5 गांठ तक की सभी दूसरी शाखाओं को काट देना चाहिए और एक पौध से 4 फल ही लेना चाहिए.
कटाईछंटाई से होने वाले लाभ
* पौधों की बढ़वार अच्छी होती है.
* फलों की क्वालिटी प्रभावित नहीं होती है. फलों का बाजार भाव ज्यादा मिलता है.
कीट और रोग नियंत्रण
कीट नियंत्रण : तरबूज और तरबूजा में कई तरह के कीट फसल को नुकसान पहुंचाते हैं. जैसे कद्दू का लाल कीड़ा.
इस कीट की प्रौढ़ और ग्रव दोनों ही फसल को नुकसान पहुंचाती हैं. प्रौढ़ कीट फरवरी माह के आखिर तक सूखी पत्तियों और जमीन की दरारों में निष्क्रिय अवस्था में रहती हैं.
मार्च माह के शुरू में ये सक्रिय हो कर पौधों की मुलायम पत्तियों, फूलों की कलियों और कोमल तनों को खा कर जगहजगह छेद बना देती हैं.
ग्रव कीट जमीन के अंदर जड़ और तनों में छेद बना कर उन को खाते हैं. ये जमीन के संपर्क में आने वाले फलों में घुस कर छेद बना देते हैं. इस कीट का प्रकोप मार्च से अप्रैल माह तक ज्यादा होता है.
नियंत्रण
* सुबह ओस पड़ने पर राख का बुरकाव करने से प्रौढ़ कीट पौधों पर नहीं बैठता है, जिस से नुकसान कम होता है.
* जैविक विधि से नियंत्रण के लिए अजादीरैक्टिन 300 पीपीएम 5 से 10 मिलीलिटर या अजादीरैक्टिन 5 फीसदी 0.5 मिलीलिटर की दर से 2-3 छिड़काव करने से फायदा होता है.
इस कीट का ज्यादा हमला होने पर कीटनाशी जैसे डाईक्लोरोवास 76 ईसी 1.25 मिलीलिटर या ट्राइक्लोफेरान 50 ईसी 1 मिलीलिटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एमएल 0.5 मिलीलिटर की दर से 10 दिनों के फासले पर पत्ती पर छिड़काव करें.
फलमक्खी : यह कीट कोमल फलों के छिलके के नीचे अंडे देती है. अंडे 1 से 9 दिन में फूटते हैं. अंडे से बहुत छोटा मैगेट निकलता है जो गूदे में छेद कर फल को अंदर से खाता है. दोहरे बैक्टीरियल संक्रमण के कारण फल सड़ जाता है. मिट्टी में जा कर मैगेट प्यूपा बन जाता है.
नियंत्रण
* 0.3 फीसदी डाइजेनान या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल 1.0 लिटर मात्रा को 1000 से 1200 लिटर पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.
* मैलाथियान 50 ईसी की 50 मिलीलिटर मात्रा को 50 लिटर पानी में मिला कर इस में 0.5 किलोग्राम गुड़ मिला दें. इस घोल का पौधे पर छिड़काव करने से कीट खिंचे चले आते हैं और घोल को चूस कर मर जाते हैं.
* क्यूल्योर और मैलाथियान 50 ईसी 1:1 के अनुपात में 10 मिलीलिटर का घोल बना कर किसी बरतन में 25 हेक्टेयर की दर से जहर खाद्य के रूप में इस्तेमाल करते हैं.
* क्यूल्योर, एल्कोहल, कीटनाशक मैलाथियान 50 ईसी का मिश्रण 6:4:1 के अनुपात में बनाते हैं. लकड़ी के गुटके 2×2×1 सैंटीमीटर को इस मिश्रण में 24 घंटे डुबोने के बाद खेत में 25 हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करते हैं.
* सड़ा हुआ केला एक किलोग्राम, कार्बोफ्यूरान 5 ग्राम, खमीर 5 ग्राम, साइट्रिक एसिड 5 ग्राम को किसी पात्र में रख कर इस्तेमाल करते हैं.
चूर्णिल आसिता
इस रोग का हमला खासतौर से सूखे मौसम में ज्यादा होता है. शुरुआती लक्षणों में तने, पत्तियों और दूसरे हिस्सों पर सफेद आटे जैसी परत दिखाई देती है. ज्यादा प्रकोप की दशा में पत्तियां पीली हो कर गिर जाती हैं और फलों का आकार छोटा रह जाता है.
नियंत्रण
* रोग लगे पौधों को खेत से निकाल कर जला दें.
* इस पर नियंत्रण के लिए केराथेन या सल्फर नामक दवा 1 से 2 ग्राम दवा प्रति लिटर पानी का छिड़काव करना चाहिए.
मृदुरोमिल आसिता
उत्तरी भारत में इस रोग का प्रकोप ज्यादा होता है. आमतौर पर यह रोग बारिश के बाद तापमान बढ़ने पर तेजी से फैलता है.
शुरुआती लक्षणों में पत्तियों की सतह पर पीले कोणीय धब्बे दिखाई देते हैं. ज्यादा नमी होने पर पत्तियों की निचली सतह पर इस कवक की ज्यादा बढ़वार दिखाई देती है.
नियंत्रण
* रोगी पत्तियों को निकाल कर जला दें.
* मैंकोजेब 2.5 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करें.
फलों की तुड़ाई
तरबूज और खरबूजा के पकने के बाद तुड़ाई की जाती है. फलों की सही समय पर तुड़ाई करना बहुत जरूरी होता है, क्योंकि उसी समय फल का रंग मनमोहक व खुशबूदार बना रहता है.
तरबूज के पक जाने पर को हाथ की उंगली से थपथपाने पर धपधप की आवाज निकलती है. फल का जो भाग जमीन के संपर्क में रहता है, उतना भाग पीला पड़ जाता है.
वैसे, इस के पकने की खास पहचान यह है कि जिस गांठ से फल निकलता है, उस पर लगा ट्रेडिल डंठल यदि सूख जाए तो समझना चाहिए कि फल पूरी तरह से पक गया है.
विपणन
तरबूज और खरबूजा का फल ताजा अवस्था में बाजार में पहुंचाने पर ही फसल की वाजिब कीमत मिलती है. इन फलों को बाजार तक पहुंचाने के लिए तरबूज को बोरे में और खरबूजा को टोकरी में भर कर लंबी दूरी तक भेजा जा सकता है.
लेकिन ध्यान रखना चाहिए कि बहुत दूर के बाजार में बेचने वाले फलों को पूरी तरह पकने से पहले तोड़ लेना चाहिए, जिस से फलों को 2-3 दिन तक महफूज रखा जा सके.
उपज
फलों की उपज उस की किस्मों पर निर्भर है. तरबूज की सामान्य प्रजातियों की 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और संकर प्रजातियों से 300 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर औसतन उपज मिल जाती है, वहीं खरबूजा की सामान्य प्रजातियों से 180 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और संकर किस्मों से 250 से 300 क्विंटल औसतन उपज मिल जाती है.