महात्मा ज्योतिबा फुले विश्वविद्यालय, बरेली, उत्तर प्रदेश में सहायक प्रोफैसर डाक्टर शिखा सक्सेना ने बंजर भूमि में गेंदा उगा कर एक नई मिसाल पेश की है. वैसे, बंजर जमीन में हैवी मैटल्स जैसे कैल्शियम, जस्ता, क्रोमियम आर्सेनिक, सीसा वगैरह पाए जाते हैं जो मानव शरीर में विभिन्न रोगों को पैदा करने की विशेष कूवत रखते हैं.
डाक्टर शिखा सक्सेना ने ऐसी बंजर जमीन में जिस में आर्सेनिक व सीसा जैसे हैवी मैटल्स मौजूद थे, उस में गेंदा उगा कर पीएचडी की डिगरी हासिल की है. इस का दूसरा प्रमुख फायदा यह होता है कि जमीन में सुधार होता है, क्योंकि गेंदे की फसल बंजर जमीन के आर्सेनिक व सीसा को सोख लेती है. गेंदा उगाने की वैज्ञानिक विधि सीख कर किसान अपनी बंजर जमीन में गेंदा की फसल उगा कर फायदा ले सकते हैं.
खेत की तैयारी : पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें. उस के बाद 2 जूताई हैरो या कल्टीवेटर से आरपार करें. यदि खेत में भूमिगत कीटों की समस्या हो तो 50 किलोग्राम नीम की खली खेत में जरूर डालें. आखिरी जुताई के बाद पाटा जरूर लगाएं. खेत के चारों ओर मेंड़ जरूर बनाएं ताकि बारिश का पानी जमीन द्वारा सोख लिया जाए.
खाद और उर्वरक : पौधों से अधिक पुष्प उत्पादन के लिए मिट्टी जांच के मुताबिक ही खाद व उर्वरकों का इस्तेमाल करना चाहिए. यदि किसी कारणवश मिट्टी जांच न हो सके तो उस स्थिति में गोबर की खाद व उर्वरकों का इस्तेमाल इस तरह करना चाहिए:
गोबर की खाद 10-15 टन, नाइट्रोजन 120 किलोग्राम, फास्फोरस 80 किलोग्राम, पोटाश 80 किलोग्राम.
गोबर की खाद को पहली जुताई से पहले ही खेत में बिखेर देना चाहिए. साथ ही, फास्फोरस, पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा का मिश्रण बना कर आखिरी जुताई के समय जमीन में डालनी चाहिए. नाइट्रोजन की बाकी बची मात्रा को 2 भागों में विभाजित कर के डालना चाहिए. पहली खुराक रोपाई के 20 दिन बाद और दूसरी खुराक रोपाई के 40 दिन बाद देनी चाहिए.
पौधों की अधिक बढ़ोतरी व फूलों की अच्छी उपज के लिए वानस्पतिक बढ़ोतरी के समय 15 दिनों के अंतराल पर 0.2 फीसदी यूरिया के 2 पर्णीय छिड़काव करने चाहिए.
प्रवर्धन : आमतौर पर किसान गेंदे को बीज द्वारा प्रवर्धित करते हैं क्योंकि बीज द्वारा प्रवर्धित पौधे प्रबल, सेहतमंद होते हैं और खेत में अच्छी तरह जम जाते हैं. बढ़ोतरी व पुष्पण में एकरूपता लाने के लिए कुछ किसान इसे कलमों द्वारा भी प्रवर्धित करते हैं.
बीज प्रवर्धन : गेंदे के बीज आमतौर पर 18-30 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान पर अंकुरित होते हैं. नर्सरी की क्यारियों में गोबर की खाद डाल कर भलीभांति मिला देनी चाहिए. नर्सरी की क्यारी सुविधाजनक आकार की बनानी चाहिए. एक हेक्टेयर के लिए रोपाई तैयार करने के लिए 800 ग्राम बीज पर्याप्त हैं.
नर्सरी में बोने से पहले बीज को कैप्टाफ या बाविस्टिन से 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए ताकि फसल की फफूंदीजनित रोगों से सुरक्षा हो सके. बीज बोने के बाद उन्हें गोबर की खाद की पतली परत से ढक देना चाहिए. इस के बाद हर रोज केन के द्वारा हलका पानी दिया जाना चाहिए.
साल में 3 बाद गेंदे की फसल उगाई जा सकती है. ग्रीष्मकालीन फसल के लिए जनवरी के मध्य से फरवरी के मध्य तक नर्सरी में बोआई की जा सकती है. शरदकालीन फसल के लिए सितंबर के मध्य से अक्तूबर के मध्य तक बोआई की जा सकती है, जबकि बारिश की फसल के लिए मध्य जून से मध्य जुलाई तक बोआई की जा सकती है.
नर्सरी में बीज बोने के 25-30 दिन बाद पौध रोपाई के लिए तैयार हो जाती है.
कलमों द्वारा प्रवर्धन : पैतृक समरूप पौधों के उत्पादन के लिए गेंदे की कलमों द्वारा भी प्रवर्धित किया जा सकता है. कलमें 6-10 सैंटीमीटर लंबाई की होनी चाहिए.
पौध रोपण : रोपाई के समय पौध सेहतमंद हो, 6-10 सैंटीमीटर लंबी और 3-4 लाइनों वाली होनी चाहिए. गेंदे की प्रजाति के मुताबिक लाइन व पौध की दूरी 30 से 45 सैंटीमीटर रखनी चाहिए. यह दूरी व्यावसायिक खेती के लिए बेहतर पाई गई है.
उन्नत किस्में ही उगाएं : गेंदे की अनेक किस्में उपलब्ध हैं, जो पौधों की ऊंचाई, विकास की आदत, पुष्प की आकृति और आकार में भिन्न होती हैं. ज्यादातर किसान गेंदे की लोकल किस्मों की खेती करते हैं, जिस की वजह से उन्हें निम्न गुणवत्ता वाली कम उपज हासिल होती है, इसलिए उन्हें उन्नत किस्में ही उगानी चाहिए.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली और दूसरे संस्थानों द्वारा गेंदे की व्यावसायिक खेती के लिए निम्नलिखित अच्छी उपज देने वाली किस्में विकसित की गई हैं:
शीर्ष कर्तन: गेंदे के पौधों में शीर्ष कर्तन कक्षवर्ती शाखाओं को प्रोत्साहित करने के लिए किया जाता है, ताकि फूलों की तादाद व उत्पादन को बढ़ाया जा सके. पर ज्यादातर किसान इस काम को नहीं करते हैं. ज्यादा उत्पादन हासिल करने के लिए गेंदे की दोनों प्रजातियों का शीर्ष कर्तन अवश्य करना चाहिए.
अफ्रीकन गेंदे की शिखाग्र वर्चस्व के कारण पौधे बहुत कम शाखाओं के साथ लंबे व दुबले हो जाते हैं. ऐसे पौधे ढह जाने के लिए संवेदनशील होते हैं और पुष्प उत्पादन कम हो जाता है, इसलिए शीर्ष कर्तन जरूर करना चाहिए ताकि उच्च उपज मिल सके.
शीर्ष कर्तन पुष्पण को थोड़ा बिलवित करता है, पर पुष्प उत्पादन में सुधार होता है. रोपाई के 40 दिन बाद शीर्ष कर्तन करना एक समान पुष्पण व उपज के लिए सर्वोत्तम पाया गया है. फ्रैंच गेंदे में शीर्ष कर्तन की जरूरत नहीं होती है.
सिंचाई व जल निकास
अच्छी बढ़वार और पुष्पण के सभी चरणों के दौरान जमीन में सही नमी रखना बहुत जरूरी है क्योंकि नमी की कमी में पौधे सूख जाते हैं और फलियां भी ठीक से पनप नहीं पाती हैं.
गेंदे की प्रजातियां मिट्टी व मौसम पर निर्भर करती हैं. गरमी में गरम हवाएं पौधे के सूखने की अहम वजह मानी जाती हैं इसलिए पौधों को वायुमंडलीय परिस्थितियों के मुताबिक सिंचित किया जाना चाहिए.
सर्दियों में फसल को 6-10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जरूरत होती है, जबकि बारिश में फसल में सिंचाई बारिश के ऊपर निर्भर करती है. यदि काफी लंबे समय तक बरसात न हो तो जरूरत के मुताबिक खेत में सिंचाई करनी चाहिए.
यदि किसी कारणवश गेंदे की फसल में फालतू पानी जमा हो जाए तो उसे तुरंत निकालने की व्यवस्था करनी चाहिए अन्यथा फसल के मरने की आशंका रहती है.
पौध संरक्षण उपाय
खरपतवार नियंत्रण : गेंदे की फसल में विभिन्न प्रकार के खरपतवार उग आते हैं, जो फसल के साथ नमी व पोषक तत्त्वों के लिए होड़ करते हैं. इस के चलते फसल की बढ़वार, विकास व उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है इसलिए उन की रोकथाम के लिए जरूरत के मुताबिक निराईगुड़ाई करनी चाहिए. पूरी फसल के दौरान 5-6 र निराईगुड़ाई की जरूरत होती है.
कीट नियंत्रण
लाल मकड़ी घुन : यह कीट पुराने पौधों पर हमला करता है. इस के चलते रोगग्रस्त पौधे धूलमय यानी झिल्लीदार दिखाई देते हैं. इस कीट की रोकथाम के लिए डायकोफोल के 0.1 फीसदी घोल का छिड़काव करना चाहिए.
पत्ता कुदकड : यह कीट पत्तियों और तनों का रस चूसता है, जिस के चलते संक्रमित भाग कुपोषित या लटकते हुए दिखाई देते हैं. इस कीट की रोकथाम के लिए मेटासिस्टाक्स के 0.2 फीसदी घोल का छिड़काव करना चाहिए.
बालों वाली सूंड़ी : गेंदे की शुरुआती अवस्था में यह सूंड़ी पत्तों को खाती है और बाद में पुष्प वृंतों के अर-पुष्पकों को खा कर नुकसान पहुंचाती है. इस कीट की रोकथाम के लिए नुवान के 0.2 फीसदी घोल का पर्णीय छिड़काव करना चाहिए.
रोग नियंत्रण
पौध विगलन : यह एक फफूंदीजनित रोग है. इस के चलते पत्तियों के रोग छिद्रों पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं, जिस से अंकुर मुरझा जाते हैं, उदय के बाद अंकुरों के कौलर पर भूरे रंग के विगलित धब्बे एक विकराल रूप ले लेते हैं जो नर्सरी के पतन का कारण बनते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए बाविस्टिन के 0.2 फीसदी घोल का छिड़काव करना चाहिए.
पुष्पकलिका विगलन : यह भी एक फफूंदीजनित रोग है. इस रोग की शुरुआती अवस्था में पुष्प क्रम या युवा कलिकाओं पर प्रकट होता है. गंभीर संक्रमण की अवस्था में कलियां सूखी व सड़ी हुई दिखाई देती हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए डाइथेन एम 45 के 0.3 फीसदी घोल का छिड़काव करना चाहिए.
जड़ तालन : यह रोग कई प्रकार की फफूंदियों (राइजोक्टोनिया सोलानी, स्क्लेरोसियम रोल्फ साई, पिथियम ओल्टिमम, फाइटोप्थोरा क्रिप्टोजिया) द्वारा फैलता है. जड़ में रोग का पहला लक्षण दिखाई देते ही जड़ सड़ जाती है, पत्तियां झड़ जाती हैं और बाद में पौधा मर जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए कार्बंडाजिम और मेटालाक्सिल से मिट्टी को उपचारित करना चाहिए.
फूलों की तुड़ाई : गेंदे के फूलों की तुड़ाई सही समय पर करना बेहद जरूरी है. फूलों की तोड़ाई उस समय करनी चाहिए जब वे पूरी तरह से खिल जाएं.
तुड़ाई के बाद प्रौद्योगिकी
* पूरी तरह विकसित फूलों की सुबहशाम को ही तुड़ाई करें.
* तुड़ाई के बाद फूलों को कुछ समय के लिए पानी में डालें.
* तुड़ाई के बाद फूलों को जरूरत के मुताबिक छोटीबड़ी टोकरियों में रखें या पानी सूखने के बाद फूलों को 200 ग्राम कूवत वाली पौलीथिन की थैलियों में पैक करें.
* 1-2 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान व 80-90 फीसदी नमी होने पर ही भंडारित करें.
उपज
गेंदे की उपज कई बातों पर निर्भर करती है जिन में जमीन की उर्वराशक्ति, उगाई जाने वाली किस्म और फसल की सही देखभाल प्रमुख हैं. यदि बताई गई विधि से गेंदे की खेती की जाए तो प्रति हेक्टेयर 8-10 क्विंटल ताजा फूल मिल जाते हैं.
गेंदे की उन्नत किस्में
पूसा नारंगी गेंदा, पूसा बसंती गेंदा, पूसा बहार, पूसा अर्पिता, पूसा दीप, विधान मैरी गोल्ड 1, विधान मैरी गोल्ड 2, अर्का बगारा 2, अर्का अग्नि आदि है.