पान की खेती हमारे देश में तकरीबन 40,000 हेक्टेयर में होती है. कुछ इलाकों में पान की खेती उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितनी दूसरी नकदी फसलें. हमारे देश में हर साल तकरीबन 800 करोड़ रुपए की कीमत के पान की बिक्री होती है.
ओडिशा, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में लाखों लोग इसी पान के धंधे में लगे हैं.
विश्व के प्रमुख देशों जैसे बहरीन, कुवैत, सऊदी अरब, अमन, नेपाल, बंगलादेश और कुछ यूरोपीय देशों में पान भेजा भी जाता है.
पान की कारोबारी खेती सुदूर उत्तर पश्चिमी भागों को छोड़ कर पूरे बंगलादेश, श्रीलंका, मलयेशिया, थाईलैंड, सिंगापुर, मालदीव, फिलीपींस, पपुआ न्यू गिनी और दक्षिण अफ्रीका में की जाती है.
उत्तर प्रदेश के कई जिलों में जहां जलवायु अनुकूल नहीं होती, गरम यानी शुष्क हवाओं और जाड़ों में तेज ठंडक और पाले के चलते इस की खेती भीट (बरेजा) में करते हैं.
उत्तर प्रदेश में इसे बनारस, गोरखपुर, लखनऊ, ललितपुर, महोबा वगैरह जिलों में उगाया जाता है. बनारस का ‘मगही’ पान काफी मशहूर है.
ऐसे करें जमीन की तैयारी
पान की बेल हर तरह की जमीन पर उगाई जाती है, पर अच्छी पैदावार के लिए लाल मिट्टी या दोमट मिट्टी अच्छी रहती है. जमीन का ढालू होना जरूरी है ताकि बारिश का पानी रुक न सके.
पान बरेजा यानी बाड़ लगाने के लिए सब से पहले पतली रस्सी ले कर चिह्नित करते हैं. पारियों की तादाद तय हो जाने पर लाइनों में 1 मीटर पर बांस बांधते हैं.
पान बरेजा में 5 पारी के अंतर पर 2 पारियों में फंसता हुआ झीका बनाना चाहिए. इसे सागौन की बल्लियों से बनाते हैं. चारों तरफ से दीवाररूपी एग्रो शैडनैट जाली लगानी चाहिए और छत को भी जाली से ढकना चाहिए.
पान की खेती के लिए जमीन की तैयारी के तहत खेत में पहली जुताई मईजून में किसी भी मिट्टी पलटने वाले हल से करें ताकि कड़ी धूप में मिट्टी में मौजूद हानिकारक कीड़ेमकोड़े व खरपतवार खत्म हो जाएं.
बरेजा बनाने से 25 दिन पहले फावड़े से गुड़ाई कर के व देशी हल से आखिरी जुताई कर के मिट्टी भुरभुरी कर दी जाती है. इस के बाद 0.25 फीसदी बोर्डेक्स मिश्रण लाइनों में डालते हैं और इस के साथ ही गोबर की सड़ी खाद व ट्राइकोडर्मा विरडी पाउडर भी डाला जाता है. ऐसा करने से पान में रोगों का प्रकोप कम हो जाता है और उस की पैदावार भी अच्छी होती है.
रोपाई व उर्वरक की जानकारी : पान बेल की रोपाई का काम सुबह 10 बजे तक और शाम को 3 बजे के बाद करना चाहिए. एक गांठ और एक पत्ती वाली बेल एक जगह पर दो 10-15 सैंटीमीटर की दूरी पर व 50-55 सैंटीमीटर रखते हैं. प्रत्येक लाइन पर रोपी गई पान बेलों पर पतली घास की मल्चिंग करते हैं ताकि मिट्टी में नमी बनी रहे.
बरसात में सिंचाई की खास जरूरत नहीं रहती है. वैसे, मौसम के मुताबिक 3-4 बार दिन में ढाई घंटे के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए. सिंचाई हजारा या स्प्रिंकलर से फव्वारे के रूप में करने से ज्यादा फायदा होता है.
पान की खेती में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की जरूरत पड़ती है. उर्वरकों की पूर्ति के लिए नीम, सरसों, अंडी और तिल की खली का इस्तेमाल करते हैं. इस के अलावा मटका खाद (संजीवनी खाद) का इस्तेमाल भी पान उपज में काफी मददगार हो सकता है.
पान की बेलों को सहारा देने के लिए सनौआ यानी पतली पट्टी का इस्तेमाल करते हैं. इसी के सहारे जब पौधे 15 सैंटीमीटर के हो जाते हैं तो क्रौस की मदद से बंधाई का काम करते हैं. पान की नियमित बंधाई से पान का उत्पादन बढ़ता है.
पान की कटाई व रखरखाव
पान की बोआई के तकरीबन 2 महीने बाद पान के पत्ते मिलने लगते हैं. बोआई के समय कटिंग के साथ जो पत्ते लगे रहते हैं, उन्हें सब से पहले तोड़ा जाता है. इन्हें पेड़ी का पान कहते हैं.
इस के बाद जरूरत के मुताबिक नीचे से पान की तुड़ाई की जाती है. तुड़ाई के बाद पान के पत्तों की सफाई व धुलाई की जाती है.
ढोली या सैकड़ा बना कर इसे बांस की टोकरियों में कपड़ा बिछा कर रखते हैं और ऊपर से घास व कपड़े से ढक देते हैं.
इस बात का भी खासा ध्यान रखते हैं कि पान में सही नमी बनी रहे. इस के लिए ऊपर से भी पानी छिड़क कर नमी बनाए रखते हैं. फिर उन्हीं टोकरियों को मंडी में ले जा कर पान की बिक्री की जाती है.
पान की किस्में
भारत में पान की 100 से भी ज्यादा किस्में हैं. राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के पान विशेषज्ञों ने भारत के विभिन्न भागों से संग्रह कर पान के 85 नमूनों की जांच कर के केवल 5 प्रमुख किस्मों बंगला, देशावरी, कपूरी, मीठा और सांची की पहचान की है. इस का विवरण इस तरह है:
बंगला : इस किस्म का पान हृदयाकार और गोल होता है. इस के आगे का भाग छोटा और नुकीला होता है. आधार पर कटाव पूरी तरह विकसित होता है और इस में फैली हुई 5-7 शिराएं होती हैं.
इस किस्म के पान का रंग हरा, स्वाद में तीखापन और लवण की गंध आती है. ज्यादा पैदावार देने के लिए बंगला पान मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, बिहार, बंगाल और ओडिशा में उगाया जाता है.
देशावरी : इस किस्म के पान की खेती आमतौर पर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में की जाती है. इस का पत्ता कुछ अंडाकार, लंबा अग्रभाग, एक तरफ मुड़ा हुआ और आधार का कटाव बहुत कम विकसित होता है. इस में 5-6 शिराएं होती हैं. लेकिन बंगला के समान फैली हुई नहीं होतीं. पान का रंग हरा होता है और स्वाद में तीखापन और मिठास होती है. पके पत्ते बड़े नाजुक होते हैं और मुंह में रखते ही घुल जाते हैं.
कपूरी : यह पान भी अंडाकार होता है. इस की मध्य शिरा के समानांतर 5-5 शिराएं होती हैं. आधार का कटाव नहीं होता है. इस का रंग हरापीला होता है. इस के स्वाद में तीखापन बहुत कम होता है और कपूर की गंध आती है. कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल, महाराष्ट्र वगैरह में कपूरी पान उगाया जाता है.
मीठा : यह पान खासतौर से पश्चिम बंगाल के मिदिनापुर और हापुड़ जिलों में उगाया जाता है. इस की आकृति गोल, आगे का हिस्सा छोटा, किनारे में लहर होती है. ये सुडौल नहीं होते हैं. इन का रंग गहरा हरा होता है.
जैसा कि नाम से पता चलता है कि इस का स्वाद मीठा होता है और सौंफ की गंध आती है.
सांची : यह पान देश के दक्षिणी और उत्तरी भागों में उगाया जाता है. इस के पत्ते संकरे और अंडाकार होते हैं. पूरी तरह विकसित इन पत्तों में 6-8 शिराएं होती हैं. पत्ते के डंठल छोटे और तने के साथ चिपके हुए होते हैं. इस के स्वाद में तीखापन होता है.
इस पान की गंध पत्तियों में मौजूद तेल के कारण होती है जो वाष्पशील होते हैं. इसे पत्तियों का वाष्पशील तेल भी कहते हैं. इन पत्तियों को पानी के साथ एक भभके में उबाल कर और बनी हुई वाष्प को ठंडा कर के हासिल करते हैं.
पान का तेल गहरे भूरे रंग का एक तरल पदार्थ होता है. इस का स्वाद तीखा, चरपरी से ले कर मृदु व मिठास लिए होता है. कुछ पत्तियों के तेल की सुगंध लौंग जैसी, कुछ की सौंफ जैसी और कुछ की मिलीजुली होती है.
पानी से भारी तेलों में फिनोल ज्यादा होता है. पानी से हलके तेलों में फिनोल की मात्रा कम रहती है और टरबाइन अवयव ज्यादा होते हैं. पान में वाष्पशील तेलों के अलावा अमीनो एसिड, कार्बोहाइड्रेट और कुछ विटामिन प्रचुर मात्रा में होते हैं.
फायदेमंद होता है पान
पान के पत्तों में कई ऐसे तत्त्व होते हैं जो बैक्टीरिया के असर को कम करते हैं. जिन लोगों के मुंह से बदबू आती है उन के लिए पान का सेवन काफी लाभदायक है. इस में इस्तेमाल होने वाली चीजें जैसे लौंग, कत्था, इलायची और सौंफ भी मुंह को तरोताजा रखने में मददगार होते हैं. इस से मुंह का जायका ठीक बना रहता है. पान बलगम को भी हटाता है.
मसूड़े में गांठ या फिर सूजन हो जाने पर पान का इस्तेमाल काफी फायदेमंद होता है. पान में पाए जाने वाले तत्त्व सूजन को कम करते हैं. सोने से पहले पान को नमक व अजवायन के साथ मुंह में रखने से नींद अच्छी आती है.
अगर आप को सर्दीजुकाम रहता हो तो ऐसे में पान खाना काफी फायदेमंद होता है. इसे शहद के साथ मिला कर खाने से सर्दीजुकाम में फायदा होता है. साथ ही, पान में मौजूद एनलजेसिक गुण सिरदर्द में भी आराम पहुंचाता है. चोट लगने पर पान का सेवन घाव को भरने में मदद करता है. यही नहीं, पान सूखी खांसी में भी काफी फायदेमंद है.
ज्यादा पान खाने के चलते कुछ लोगों के दांत खराब हो जाते हैं. ऐसे लोगों के मुंह से बदबू भी आने लगती है. पान खा कर इधरउधर थूकना भी एक बुरी बात है. हमें इस से बचना चाहिए.