आकर्षक नजर आने वाले लिली के फूल लाल, पीला, गुलाबी, हलका लाल, सफेद व संतरी रंग के होते हैं. इन का इस्तेमाल खास कर गुलदस्ते बनाने के लिए किया जाता है. लिली के कटे हुए फूलों को अन्य फूलों की तुलना में ज्यादा समय तक संभाल कर रखा जा सकता है. लिली के पौधे की ऊंचाई 3 से 4 फुट तक होती है और 4-5 फूल प्रति पौधा आ जाते हैं. ठंडी जलवायु वाले इलाकों में लिली ज्यादा आसानी से उगाई जा सकती है. वैसे गरम जलवायु वाले क्षेत्रों में भी इस का उत्पादन किया जाता है.
लिली के पौधों पर ज्यादा तेज धूप का गंभीर असर होता है, अत: गरमी के मौसम में तेज धूप से बचाव के लिए पौधों के ऊपर जाली का इस्तेमाल करना चाहिए और पौधों को कम दूरी पर लगाना चाहिए. लिली की खेती के लिए सही तापमान 10 से 25 डिगरी सेंटीग्रेड सही रहता है.
लिली के फूल की बाजार में अच्छी मांग है, जिस से उस की कीमत भी अच्छी मिलती है. इस की खेती की तकनीक इस तरह है :
जमीन : लिली की खेती सभी तरह की मिट्टी में आसानी से की जा सकती है. लेकिन जिस मृदा का पीएच मान 6.0 से 7.0 हो वह लिली के लिए अच्छी मानी जाती है.
जमीन की तैयारी : जमीन की 3-4 बार जुताई करनी चाहिए और उस के बाद गोबर की अच्छी तरह सड़ी खाद प्रति एकड़ समान रूप से खेत में फैलाएं. खाद फैलाने के बाद एक बार जुताई कर के खाद को मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें फिर खेत समतल कर दें. इस के बाद 1 मीटर चौड़ी और 8-10 मीटर लंबी क्यारी बनाएं. यदि मिट्टी ज्यादा सख्त हो तो जुताई करने से पहले सिंचाई कर लें.
किस्में : लिली के 2 वर्ग हैं :
एशियाटिक लिली : इस की प्रमुख किस्में कोर्डिलिया, बीट्रीक्स, पेरिस, जेनेवा, लंदन, इलीट, लोट्स, अलास्का, फैस्टिवल, मोना, माउंटेन, वैरियंट, र्स्टलिंग स्टार, सोरबर्ट, यैलो जायंट और यैलो पीजेंट आदि मुख्य हैं.
ओरिएंटल लिली : इस की 2 प्रमुख किस्में हैं :
स्टार गैजर (सफेद) और स्टार गैजर (गुलाबी).
पौध लगाना : लिली की पौध कंद द्वारा लगाई जाती है. कंद अलगअलग व्यास के होते हैं. 10-12 सेंटीमीटर व्यास वाला कंद अच्छा माना जाता है, लेकिन रोगग्रस्त कंदों को पौध लगाने के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
कंद लगाने का समय : कंदों को मैदानी क्षेत्रों में अक्तूबरनवंबर में लगाते हैं और पहाड़ी क्षेत्रों में इन्हें अप्रैलमई में लगाते हैं.
कंद लगाने के तरीके : सर्दी के मौसम में कंदों को 7-8 सेंटीमीटर गहराई पर और गरमी के मौसम में 8-10 सेंटीमीटर गहराई पर लगाना चाहिए. एक कंद की दूसरे कंद से दूरी 15-20 सेंटीमीटर और लाइन से लाइन की दूरी 25-30 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. कंद लगाते समय मिट्टी में सही नमी रखनी चाहिए.
सिंचाई : फसल को जरूरत के मुताबिक पानी देना चाहिए. वैसे सर्दी के मौसम में 10-12 दिन और गरमी के मौसम में 5-6 दिन के बीच सिंचाई करनी चाहिए.
सिंचाई के लिए अच्छी गुणवत्ता वाला पानी इस्तेमाल करना चाहिए.
खाद और उर्वरक : अच्छे फूलों की पैदावार के लिए कंद लगाने के 20-22 दिन बाद 40 किलोग्राम सीएएन खाद प्रति एकड़ की दर से इस्तेमाल करनी चाहिए. पौधे की अच्छी बढ़त के लिए कंद लगाने के 40-45 दिन बाद 40 किलोग्राम नाइट्रोजन उर्वरक प्रति एकड़ की दर से डालना चाहिए. खाद और उर्वरक डालने के बाद सिंचाई जरूर करें.
निराईगुड़ाई व खरपतवार की रोकथाम : लिली की फसल में खरपतवार भी काफी उगते हैं. इन को जड़ से उखाड़ने के लिए निराईगुड़ाई करनी चाहिए. निराईगुड़ाई से जमीन में वायु संचार बढ़ जाता है, जिस से पौधों की बढ़त अच्छी होती है.
पौधों को सहारा देना : जब पौधों की लंबाई ज्यादा हो जाए और वे झुकने लगें तो उन के पास सहारे के लिए एक बांस या लकड़ी लगा दें व पौधों को इन से बांध दें ताकि पौधे सीधे खड़े रह सकें.
छाया के लिए जाल : ज्यादा तेज धूप से लिली के पौधों पर गहरा असर पड़ता है. अत: इन्हें तेज धूप से बचाने के लिए 50 फीसदी छाया के लिए जाल लगाना चाहिए ताकि पौधों को प्रकाश और सही छाया मिल सके और पौधों की बढ़त भी अच्छी हो सके.
फूलों की डंडियों की कटाई : फूलों की डंडियां तब काटें जब कली खिलनी शुरू हो जाए. फूलों की डंडियों को जमीन की सतह से तकरीबन 6 इंच ऊपर से काटना चाहिए. साथ ही डंडी के निचले हिस्से की कुछ पत्तियां भी काट दें. उस के बाद पैकिंग कर बाजार में भेजना चाहिए.
कंद निकालना : फूल की डंडियों को काटने के बाद जब पौधा पीला पड़ कर सूख जाए तब इन के कंदों की खुदाई कर निकालना चाहिए. कंदों की खुदाई के दौरान सावधानी बरतें. कंदों को कोई नुकसान न पहुंचे. कंदों को निकालने के बाद छाया में रखना चाहिए.
कंदों का भंडारण : लिली के कंदों को 26 फीसदी केप्टान रसायन से उपचारित करने के बाद शीत भंडारगृह में रखें. शीत भंडारगृह में 2.0 डिगरी सेंटीग्रेड से 3.0 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान और 70-75 फीसदी नमी रहनी चाहिए. कंदों के नीचे बालू डालना चाहिए. समयसमय पर कंदों को पलटते रहें अन्यथा नीचे के कंद खराब हो सकते हैं. इस दौरान देख लें कि कंद में कोई बीमारी तो नहीं लगी है. यदि कंद बीमारी से ग्रस्त हों तो उन्हें अलग कर भंडारगृह से बाहर फेंक दें. भंडारणगृह में कंद सूखने नहीं चाहिए.
आमदनी : 1 एकड़ खेत में लिली की खेती करने पर 2 से ढाई लाख रुपए तक की आमदनी हो सकती है.
विस्तृत जानकारी और वित्तीय सुविधा के लिए निम्न पते पर संपर्क करें:
* नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र.
* राज्य सरकार के उद्यान विभाग.
* पुष्प विज्ञान संभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली-12
* राष्ट्रीय बागबानी बोर्ड, प्लाट नंबर 85 इंस्टिट्यूशनल क्षेत्र, गुरुग्राम (हरियाणा) यहां से वित्तीय सुविधा अनुदान सहित मिलती है.