अगर बागबानों ने कीवी अच्छी तरह से नहीं पकाई हो तो मंडियों में इस फल को बेचना मुश्किल हो जाता है. कीवी गुणकारी फल है. अगर बगीचे में कीवी लगाई है, तो इसे बंदर, पक्षी आदि जंगली जानवर खाना पसंद नहीं करते. इस वजह से बागबान इस की पैदावार बेफिक्र हो कर करते हैं और इस फल को मंडियों तक पहुंचाने में कोई जल्दबाजी नहीं करते.
हिमाचल प्रदेश अपनी पहचान सेब उत्पादक राज्य के रूप में बनाए हुए है. अकेले सेब से हर साल बागबान तकरीबन साढे़ 5 हजार करोड़ रुपए का कारोबार करते हैं. सेब के गिरते दाम के कारण अब बागबान अन्य फलों नाशपाती, आडू, प्लम, बादाम आदि के साथसाथ कीवी की पैदावार करने लगे हैं.
कीवी की बेल लगाने के लिए खास ध्यान यह रखना पड़ता है कि 3 मादा के साथ एक नर बेल लगानी पड़ती है, तभी जा कर बागबानोंं को अच्छी पैदावार मिल पाती है. बागबानी विशेषज्ञ इसी अनुपात में कीवी की बेल लगाने की सलाह देते हैं.
प्रदेश में कीवी का उत्पादन बागबानों में लोकप्रिय होता जा रहा है और इस से मोटी कमाई कर रहा है. शिमला जिले के परांचा गांव के प्रगतिशील बागबान केदार सिंह केदारटा और आत्माराम केदारटा सहित अन्य बागबान कहते हैं कि कीवी का उत्पादन करने में ज्यादा सिरदर्दी नहीं होती. कीवी पर सेब की तरह मेहनत नहीं करनी पड़ती और न ही 16-17 बार कीटनाशक दवाओं का स्प्रे करना पड़ता है.
कीवी का बगीचा एक बार तैयार हो जाए, तब बागबानों की चांदी होती है. बागबान आत्माराम केदारटा बताते हैं कि वे 5 हजार फुट की ऊंचाई वाले इलाके में कीवी की पैदावार कर रहे हैं. कीवी को जंगली जानवर और पक्षी भी नुकसान पहुंचाते हैं. उन का कहना है कि वे एक पौधे से तकरीबन 7 क्विंटल तक कीवी की पैदावार कर रहे हैं और वह पूरी तरह से तैयार फल मंडियों में बेचते हैं.
ये बागबान शिमला, सोलन, परमाणु, चंडीग, दिल्ली की मंडियों में कीवी बेचते हैं. चंडीगढ़ व दिल्ली की मंडियों में कीवी की मांग ज्यादा रहती है. यहां पर पकी हुई कीवी के मुंहमांगे दाम मिलते हैं, बशर्ते फल का आकार और क्वालिटी अच्छी हो. प्रदेश में कुछ सालों से बागबानों ने सेब व अन्य फलों के साथसाथ कीवी की पैदावार को भी प्रमुख व्यवसाय के रूप में अपना रखा है.
कीवी की पैदावार बागबान इसलिए भी कर रहे हैं, क्योंकि इस में उत्पादन लागत सेब की अपेक्षा काफी कम रहती है और कीटनाशकों पर खर्च होने वाली रकम को भी बचाया जा सकता है.
कीवी को मंडियों में सेब की अपेक्षा अधिक दाम मिलते हैं और इस की पैकिंग में भी अपेक्षाकृत कम खर्चा आता है. इस के अलावा कीवी के खराब होने का डर भी नहीं होता और इसे ज्यादा दिनों तक भंडारित किया जा सकता है. मंडियों में जब कीवी को अच्छे दाम मिलने शुरू होते हैं, तो बागबान अपनी तैयार फसल बेचने पहुंच जाते हैं.