कीवी फल चीन का मूल फल है, जिसे चीनी करौंदा भी कहा जाता है. कीवी फल मानव जाति की 20वीं शताब्दी की देन है. इस के फलों का उपयोग खाने में और प्रसंस्कृत पदार्थ जैसे जैम, जैली, कैंडी, जूस, स्क्वैश आदि तैयार करने में होता है. यह छोटा, मीठा और तीखा फल बहुत सारे पोषक तत्त्वों से भरा होता है जैसे विटामिन सी, विटामिन के, फास्फोरस, पोटाश एवं कैल्शियम और इस प्रकार कीवी कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है.

भारत में कीवी की सफल खेती अधिकतर जम्मूकश्मीर, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में की जाती है.

जलवायु एवं भूमि

कीवी फल शीतोष्ण जलवायु का पौधा है. इस के फलने के लिए शीतल तापमान जो लगभग 100 घंटे की आवश्यकता होती है. तेज धूप (30 डिगरी सैल्सियस) और कम आर्द्रता होने पर इस के पत्ते झुलस जाते हैं. इस का पौधा अंगूर की भांति एक लता वाला पौधा है, जो 35 डिगरी सैल्सियस से अधिक तापमान और तेज हवाएं सहन नहीं कर सकता है.

कीवी की खेती के लिए गहरी, समृद्ध, अच्छी जल निकास वाली उपजाऊ बलुई दोमट भूमि उपयुक्त होती है. अम्लीय एवं क्षारीय भूमि में इस की खेती नहीं की जा सकती है. मिट्टी का पीएच मान 6.9 से थोड़ा कम होने पर अधिकतम उपज मिलती है, लेकिन 7.3 तक अधिक पीएच मैंगनीज की कमी के कारण उपज पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है.

हिमाचल प्रदेश के कुछ स्थानों और केरल के कुछ हिस्सों में फसल बहुत अच्छी हो सकती है. कीवी की खेती के लिए गहरी, समृद्ध, अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी आदर्श होती है.

भूमि की तैयारी व पौध रोपण

कीवी के बागानों के लिए खड़ी भूमि अर्थात पौधों को छतों में तबदील किया जा सकता है और इस के बाग के नीचे छाया में उगने वाली सब्जियों की खेती की जा सकती है.

पौधों को यथासंभव अधिक धूप मिलनी चाहिए, इसलिए पंक्तियों को रोपा जाना चाहिए. रेखांकन के उपरान्त 4×4 मीटर दूरी पर 1×1×1 मीटर आकार के गड्ढे तैयार कर देनी चाहिए अर्थात दिसंबर माह तक गड्ढों की खुदाई कर लेनी चाहिए और इन गड्ढों में मिट्टी के साथ 30-40 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद, राख, फफूंदनाशक व कीटनाशक को अच्छे से मिला कर इस मिश्रण को गड्ढों में भरने का काम पूरा कर लेना चाहिए, क्योंकि जनवरी का महीना कीवी के रोपण के लिए सब से अच्छा माना जाता है.

वृक्षारोपण के लिए 2 पंक्तियों व पौधों के बीच की दूरी 4 मीटर होनी चाहिए और पौधों में परागण के लिए नर से मादा पौधों का अनुपात 1:5 रखा जाता है. यदि जमीन की अधिकता है, तो यह अनुपात 1:9 का भी रख सकते हैं.

आमतौर पर रोपण के लिए टीबार और पेरगोला प्रणाली अपनाई जाती है. टीबार प्रणाली में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 4 मीटर और पौधे से पौधे की दूरी 4 से 6 मीटर रखते हैं, जबकि पेरगोला प्रणाली में 6 मीटर की दूरी होती है.

किस्में

कीवी फल में मादा एवं नर किस्में अलगअलग होती हैं. मादा किस्मों के पौधों पर फल लगते हैं, जबकि नर किस्में परागण के लिए आवश्यक हैं. एबाट, ब्रूनो, एलीसन, हैबार्ड और मोंटी मादा किस्में हैं. नर किस्मों में एलीसन एवं तोमरी अधिक महत्त्वपूर्ण हैं.

एबाट एवं एलीसन शीघ्र पकने वाली किस्में हैं. इन के फल मीठे होने के कारण देश के बाजारों के लिए अधिक उपयुक्त हैं. ब्रूनो किस्म के फल लंबे एवं अम्लीय होते हैं. हैबार्ड देर से पकने वाली किस्म है. इस के अतिरिक्त आर्कटिक कीवी, सुनहरी कीवी, अनंजया कीवी, सिल्वर वाइन कीवी, जामुन कीवी, डंबर्टन कीवी, मिशिगन कीवी, आर्कटिक सौंदर्य कीवी, हौट पैपर सिल्वर वाइन कीवी, पावेल नर सिल्वर वाइन कीवी, माओ हुआ कीवी, विंसैंट कीवी और बैगनीलाल कीवी.

पौध प्रसारण

कीवी फल के पौधों का प्रसारण बीज, कटिंग, ग्राफ्टिंग एवं लेयरिंग द्वारा किया जाता है.

बीज द्वारा : कीवी के बीजों की जनवरी के अंतिम सप्ताह में तैयार क्यारियों में लाइन विधि से बोआई की जाती है.

कटिंग द्वारा : कीवी के पौधों से एक साल पुरानी शाखाओं से कलम काट कर इस को 2500 पीपीएम, आईबीए नामक हार्मोन से उपचारित कर ताप नियंत्रित क्यारी (हौटबैड) में जनवरी माह में लगाया जाता है. अप्रैल माह में जड़ वाली कटिंगों को निकाल कर नर्सरी में स्थानांतरित कर दिया जाता है. इस प्रकार तैयार पौधों का रोपण अगले वर्ष में किया जाता है.

ग्राफ्टिंग द्वारा : एक वर्ष पुराने बीजू पौधों पर फरवरीमार्च में टंग एवं क्लफ्ट ग्राफ्टिंग विधि से किया जाता है. कीवी के बीजों द्वारा तैयार किए गए पौधों में एक वर्ष बाद ग्राफ्टिंग कर पौधे तैयार किए जाते हैं.

लेयरिंग द्वारा : एक साल पुरानी शाखाओं पर जुलाई माह में रिंग बना कर ऊपरी छाल एक इंच लंबाई में निकाल कर उस पर 2500 पीपीएम, आईबीए पेस्ट लेप करने के बाद इन शाखाओं को मिट्टी से ढक दिया जाता है. सितंबर माह तक इन ढके हुए स्थान पर जड़ें निकल आती हैं. इन पौधों का उपयोग शीतकाल में रोपण के लिए किया जाता है.

खाद एवं उर्वरक

कीवी पौधों में 4-5 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद, 50 ग्राम नाइट्रोजन, 75 ग्राम फास्फोरस, 50 ग्राम पोटाश प्रति पेड़ के हिसाब से प्रयोग करना चाहिए. जैविक खादों का प्रयोग जनवरी माह में थालों में करना चाहिए.

खाद को तने के चारों तरफ 20-25 सैंटीमीटर की दूरी पर फैला कर 20-25 सैंटीमीटर गहरी गुड़ाई कर के मिला देना चाहिए. दोतिहाई भाग नाइट्रोजन, संपूर्ण फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा फूल खिलने के पूर्व अर्थात फरवरी माह और शेष एकतिहाई नाइट्रोजन की मात्रा अप्रैल माह में देनी चाहिए. उर्वरकों को पेड़ के थालों में डाल कर हलकी गुड़ाई कर मिला देना चाहिए.

कटाईछंटाई

Kiwi

कीवी फल की लताओं को चढ़ने के लिए सहारे की आवश्यकता होती है, जिस के लिए मजबूत ढांचा लोहे की खंभों एवं तारों से तैयार किया जाता है. ढांचा बनाने के तरीकों में पेरगोला, निफिन और टैलीफोन पद्धतियां अधिक प्रचलित हैं. प्रथम वर्ष मुख्य तने से 1.5 मीटर अर्थात जब तक बेल खंभे के शीर्ष तक न पहुंच जाए, तब तक किसी भी शाखा को नहीं निकलने देना चाहिए.

पहले वर्ष में कीवी को कैसे काटें, इस पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय मुख्य ध्यान सीधे विकास और एक मजबूत ढांचे पर होना चाहिए. दूसरे वर्ष 2 शाखाओं को विपरीत दिशा में तार के सहारे बढ़ने देना चाहिए.

बेलों को खंभे के चारों ओर नहीं लपेटना चाहिए. कीवी में कटाईछंटाई के लिए सर्दी का मौसम सब से अच्छा होता है.

सिंचाई

कीवी फल पौधों को सुचारु रूप से लगाए जाने के लिए प्रारंभ में सिंचाई की आवश्यकता होती है. फूल निकलते एवं फल बनते समय बाग में पर्याप्त नमी होनी चाहिए. जब फल विकास की प्रारंभिक अवस्था में हो, उस समय पौधों को सिंचाई की आवश्यकता होती है. यदि वर्षा न हो, तो सितंबरअक्तूबर माह में सिंचाई करनी चाहिए. पौधों और फलों के स्वस्थ विकास के लिए 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करना फायदेमंद होता है.

कीट व बीमारियां

कीवी फल में कीटों व बीमारियों का प्रकोप नहीं के बराबर होता है. अत: इन की रोकथाम के लिए कोई खर्चा नहीं करना पड़ता है. यह कीवी की खेती का अतिरिक्त लाभ है.

उपज

कीवी के पौधों में फलत चौथेपांचवें वर्ष में प्रारंभ हो जाता है. फल अक्तूबर से दिसंबर माह तक पक कर तैयार हो जाते हैं, क्योंकि फलों की परिपक्वता स्थानस्थान पर भिन्न होती है.

प्रारंभिक वर्षों में केवल 5-6 किलोग्राम प्रति पौध उपज प्राप्त होती है, लेकिन व्यावसायिक उत्पादन 6-7 साल बाद शुरू होता है.

सातवें वर्ष के बाद सें प्रति पौध 65-100 किलोग्राम तक उत्पादन होता है. तापमान में अंतर के कारण फल अधिक ऊंचाई की तुलना में कम ऊंचाई पर तेजी से पकते हैं. बड़े फलों को पहले तोड़ा जाता है और छोटे फलों को लंबे समय तक बढ़ने दिया जाता है.

कठोर फलों को मोटे कपड़े में लपेट कर बाजार ले जाया जाता है, जहां कुछ दिनों यानी 1-2 सप्ताह के बाद वे नरम हो कर खाने योग्य हो जाते हैं.

विपणन प्रबंधन

कीवी फल शीघ्र न खराब होने के कारण इस का विपणन प्रबंध बहुत आसान है. फल पकने के पूर्व परिपक्व अवस्था में तोड़ा जाता है, जबकि वह ठोस होता है. खाने के लिए मुलायम होने में सामान्य तापमान पर लगभग 2 सप्ताह लगते हैं. इतने समय में विपणन के लिए भेजना आसान है.

शीतभंडार में इसे कई महीनों तक रखा जा सकता है. यही कारण है कि कीवी फल की कीमत बाजार में हमेशा अधिक रहती है.

आर्थिक स्थिति

कीवी में सामान्य रूप से पांचवें वर्ष फल आना प्रारंभ होता है. शुरू में उत्पादन लगभग 5-6 किलोग्राम प्रति पेड़ होता है. यदि उत्पाद थोक में 200 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिकता है, तो उद्यानपति को 100-120 रुपए प्राप्त होगा.

पांचवें वर्ष के बाद उत्पादन क्रमश: बढ़ता जाएगा, जबकि खर्च कम होगा. कीवी उद्यान में प्रति हेक्टेयर 400 पौधों का रोपण किया जाएगा, जिस में उत्पादन केवल 360 पौधों (मादा प्रजाति) से ही प्राप्त होगा. शेष 40 पौधे नर प्रजाति के परागण के लिए रोपित किए जाएंगे.

अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें...