अब किसान कम क्षेत्र में ऐसे खेती के काम करने लगे हैं, जिस से उन्हें कम लागत में ज्यादा मुनाफा हो. किसान अब बाजार की हर गतिविधि पर भी नजर रखने लगे हैं कि उन्हें किस गतिविधि से ज्यादा आमदनी मिल सकती है.
पिछले कुछ सालों में लोगों में सेहत के प्रति जागरूकता बढ़ी है और वे परंपरागत खाद्य पदार्थों के बजाय ऐसी चीजों का इस्तेमाल करने लगे हैं जो पौष्टिक और गुणकारी हों.
लसोड़ा या लहसुआ के औषधीय गुणों को देखते हुए इस की मांग बाजार में बढ़ने लगी है. इस नजरिए से किसानों में लसोड़े के बाग लगाने में दिलचस्पी बढ़ी है, क्योंकि उन्हें कम लागत में ज्यादा आमदनी मिल रही है. साथ ही, लसोड़े को बेचने में कोई समस्या भी नहीं होती.
लसोड़े के फल 30-35 रुपए प्रति किलोग्राम तक में आसानी से बिक जाते हैं. लसोड़े के एक हेक्टेयर क्षेत्र में लगाए बाग से किसान हर साल तकरीबन साढ़े 4 लाख रुपए आसानी से हासिल कर लेते हैं.
लसोड़े के फल में जो चिकना गूदा होता है, उस में कई गुणकारी तत्त्व होते हैं जो कब्ज, अतिसार, हैजा, कफ वगैरह रोगों की रोकथाम में उपयोगी साबित हुए हैं, वहीं इस का अचार ज्यादा गुणकारी माना गया है. इसी वजह से इस की मांग दिनोंदिन बढ़ती जा रही है.
राजस्थान में लसोड़े के बाग ऐसे मरुस्थलीय इलाकों में लगाए जा रहे हैं, जहां पानी की उपलब्धता बहुत कम होती है क्योंकि लसोड़े को साल में महज 4 बार पानी देने से ही फल आने शुरू हो जाते हैं. कुछ किसान इसी के बाग लगाने के बजाय खेतों की मेंड़ों पर पौधे लगाते हैं.
लसोड़े के बाग लगाने से पहले गरमियों में तकरीबन डेढ़ से 2 फुट चौड़े गड्ढे खोद कर उस में मिट्टी व गोबर की खाद बराबर मात्रा में मिला कर भर देते हैं. जुलाई या अगस्त माह में बारिश होती है तो इन गड्ढों में पानी भर जाता है.
पानी के सूख जाने के बाद उस की फिर से खुदाई कर 6-6 मीटर की दूरी पर इस के पौधे लगाए जाते हैं यानी एक हेक्टेयर क्षेत्र में तकरीबन 177 पौधों की जरूरत होती है. पौधे लगाने के तकरीबन 15-20 दिन बाद सिंचाई करना शुरू कर दिया जाता है ताकि पौधे की बढ़वार बनी रह सके.
सालभर बाद ही लसोड़े में फल आना शुरू हो जाते हैं. एक परिपक्व पेड़ से साल में केवल एक बार में ही तकरीबन 60 से 70 किलोग्राम कच्चे फल हासिल किए जा सकते हैं. लसोड़े के पौधों के बीच की खाली जगह पर दूसरी फसलें जैसे मेथी, पालक, लहसुन, प्याज वगैरह की फसलें भी ली जा सकती हैं.
राजस्थान के झुंझुनूं जिले की चिड़ावा तहसील में रामकृष्ण जयदयाल डालमिया सेवा संस्थान ने क्षेत्र की भौगोलिक व पर्यावरणीय परिस्थिति को देखते हुए लसोड़े के बाग लगाए हैं जिन से किसानों की आमदनी बढ़ कर तकरीबन डेढ़ से दोगुनी हो गई है. संस्थान ने क्षेत्र के तकरीबन 40 गांवों में 3,000 पौधे अनुदानित कीमत पर मुहैया कराए हैं जो आज फल उत्पादन कर किसानों की आमदनी में भागीदार बने हुए हैं.