कहावत है ‘एक अनार सौ बीमार’. इस कहावत का सीधा सा मतलब तो यही है कि किसी एक चीज के दावेदार कई लोग हैं. लेकिन अनार को बीमारी से जोड़ने का कोई न कोई मकसद तो जरूर रहा होगा.
अनार में ताकत का भरपूर खजाना है. अनार की कोई चीज ऐसी नहीं है, जो बेकार जाती है. इस के दाने, छिलके और जड़ वगैरह सभी चीजें काम में आती हैं. अनार सेहत और ज्यादा आमदनी देने वाला फल है.
भारत में इस की खेती बहुत कम रकबे में होती है. देश के ज्यादातर हिस्सों में यह किचन गार्डन में ही उगाया जाता है. इस के फूल सुंदर, लाल रंग के होते हैं, इसलिए इसे सजावटी पौधे के रूप में भी उगाया जाता है.
अनार पौष्टिक और औषधीय गुणों से भरपूर जायकेदार फल है. इस का रस खट्टामीठा, ठंडक देने वाला होता है. गरमियों में अनार का शरबत बहुत ही जायकेदार और ताजगीभरा होता है.
इस के अलावा अनार से जैली भी बनाई जाती है और इस के रस को भी महफूज रखा जा सकता है. इस के छिलकों का इस्तेमाल कपड़ों की रंगाई में भी किया जाता है. जंगली अनार के बीजों को सुखा कर मसाले के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इन सूखे बीजों को अनारदाना कहते हैं.
माकूल आबोहवा
अनार का बाग सभी जगहों पर आसानी से तैयार किया जा सकता है. बढि़या क्वालिटी वाले फलों के लिए ठंडे और गरम दोनों मौसमों की जरूरत होती है. जाड़े के मौसम में सामान्य ठंडक व गरमियों के दिनों में गरम व सूखी आबोहवा इस की बागबानी के लिए बढि़या मानी गई है. इसी वजह से राजस्थान, गुजरात व महाराष्ट्र के अनार बढि़या क्वालिटी वाले होते हैं.
फलों के विकास के लिए 38 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान अच्छा होता है. मीठे और जायकेदार फल के लिए गरम आबोहवा अच्छी होती है. फलों के पकने के समय बरसात या आबोहवा में नमी होने से फलों की क्वालिटी में कमी आती है. नम आबोहवा वाले इलाकों में पौधों की बढ़वार ज्यादा और फल कुछ कम मीठे होते हैं.
अनार की अच्छी बढ़वार व ज्यादा पैदावार के लिए जल निकास वाली बलुई दोमट व गहरी दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है. हलकी मिट्टी में फलों का रंग, क्वालिटी और मिठास अच्छी होती है.
अनार के पेड़ जमीन के नमकीनपन के प्रति सहनशील होते हैं. खार वाली मिट्टी में भी इस की बागबानी की जा सकती है. अच्छी देखरेख के साथ इस की बागबानी पहाडि़यों की तलहटी में भी की जा सकती है. लेकिन मिट्टी में एक मीटर की गहराई तक कोई सख्त परत न हो, नहीं तो जड़ों पर बुरा असर पड़ता है.
गूटी से पौध तैयार करना
अनार की पौध कलम व गूटी से तैयार की जाती है. कलम व गूटी से तैयार पौध बीज द्वारा तैयार पौधों के मुकाबले जल्दी फल देने लगती है. किसानों को चाहिए कि जिस टहनी से कलम तैयार करें, उस की उम्र 6 महीने से ज्यादा हो, लेकिन 18 महीने से कम हो. अगर टहनियों की कमी है तो पौधों के तनों से निकलने वाली जड़ों यानी छोटे फुटाव को भी कलम बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
दक्षिण भारत में तकरीबन 20-25 सैंटीमीटर लंबी कलम मानसून के मौसम में और उत्तरी भारत में मानसून या फरवरीमार्च महीने में नर्सरी में लगा दी जाती है. कलम में लगी पत्तियों को काट कर अलग कर लें. कलम के अच्छे जमाव के लिए इंडोल ब्यूटारिक अम्ल के 5,000 पीपीएम के घोल में डुबो कर लगाएं. इस से जड़ें आसानी से निकलती हैं. तकरीबन 2 हफ्तों के बाद कलमों से जडें़ निकलनी शुरू हो जाती हैं और 9 महीने में कलमें रोपाई के लायक हो जाती हैं. लेकिन 1-2 साल पुरानी कलमें रोपाई के लिए ज्यादा अच्छी मानी जाती हैं.
भारत के ज्यादातर हिस्सों में बीज द्वारा पौधे तैयार किए जाते हैं, लेकिन इन पौधों से बढि़या क्वालिटी वाले फल हासिल नहीं होते हैं और कम पैदावार मिलती है. इस के लिए अगस्तसितंबर महीने में पके हुए फलों से बीज निकाल कर क्यारियों में बोए जाते हैं. जब पौधे 8-10 महीने के हो जाएं, तो वे रोपने लायक हो जाते हैं.
अनार की पौध गूटी से भी तैयार करते हैं. इस में गूटी बांधने की जगह पर लैनोलिन पेस्ट के साथ आईबीए के 10,000 पीपीएम वाले घोल से पौध तैयार करते हैं. गूटी बांधने का काम बरसात के मौसम में किया जाता है.
पौध लगाने का समय
तैयार की गई पौध को लगाने का सही समय बरसात का मौसम है. लेकिन सिंचाई की सहूलियत होने पर फरवरी महीने में भी पौधे लगाए जा सकते हैं.
पौधे लगाने से एक महीने पहले 3-4 मीटर की दूरी पर गड्ढे खोदें, जिन की लंबाई, चौड़ाई व गहराई 60 सैंटीमीटर हो. इन गड्ढों को 15-20 दिन धूप में खुला छोड़ने के बाद मिट्टी में 15-20 किलोग्राम गोबर की खाद और 100 ग्राम क्विनालफास मिला कर गड्ढे को भर देना चाहिए. बारिश शुरू होने पर जुलाई महीने में खोदे गए गड्ढों में पौधे लगा कर सिंचाई कर देनी चाहिए. रोपाई के 10-15 दिन बाद हर 3 दिन के अंतर पर सिंचाई करें.
रोपाई की वैज्ञानिक तकनीकों को अपना कर ज्यादा पैदावार हासिल कर सकते हैं. इस में पौधे की शुरू में 5×2 मीटर की दूरी को निकाल कर 4 मीटर कर ली जाती है. जैसेजैसे पौधों की तादाद बढ़ाई जाती है, वैसेवैसे पैदावार भी बढ़ती जाती है, जबकि फल की क्वालिटी पर कोई बुरा असर नहीं पड़ता.
सिंचाई व निराईगुड़ाई
पौध लगाने के बाद सिंचाई करनी चाहिए. अनार सूखे के प्रति सहनशील होते हैं, फिर भी पौधों को हर रोज पानी देने की जरूरत होती है, जब तक वे अच्छी तरह जड़ न पकड़ लें. फूल लगने पर सिंचाई नहीं करनी चाहिए. फल के लगने से ले कर पकने तक नियमित सिंचाई की जरूरत होती है, इसलिए बरसात के मौसम को छोड़ बाकी समय 10-12 दिन के अंतर से सिंचाई करनी चाहिए, नहीं तो फल ?ाड़ने, फल छोटे रहने और फल फटने की समस्या पैदा हो जाती है.
अनार के बाग को खरपतवार से मुक्त रखने के लिए समयसमय पर निराईगुड़ाई करना जरूरी है. निराईगुड़ाई उथली करनी चाहिए, जिस से पौधों की जड़ों को नुकसान न हो.
खाद की मात्रा मिट्टी, आबोहवा, किस्म व पौधे की उम्र पर निर्भर करती है. एक साल के पौधे में तकरीबन 10 किलोग्राम गोबर की खाद, 100 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फास्फोरस और 250 ग्राम पोटाश दें. पौधे के फैलाव के नीचे एकडेढ़ मीटर के दायरे में 15 सैंटीमीटर की गहराई पर खाद को अच्छी तरह से मिट्टी में मिलाना चाहिए.
सधाई व काटछांट
अनार के पौधे झाड़ी की तरह बढ़ते हैं. पुराने समय में एक तने वाला पौधा होता था, लेकिन आजकल बहुतनीय तकनीक का चलन ज्यादा है, क्योंकि किसी वजह से एक तना खत्म हो जाए तो दूसरे तने से फल मिलते रहते हैं.
अनार में तना छेदक कीट का हमला होता है. एक तना होने की दशा में कीड़े के हमले से कभीकभी पूरा पेड़ ही खत्म हो जाता है. इसलिए एक पौधे में 4-5 तने रखते हुए सधाई करना फायदेमंद होता है. इन तनों पर चारों तरफ फैली हुई 3-4 टहनी प्रति तना छोड़ कर बाकी को हटा देना चाहिए. पहली टहनी जमीन से 60 सैंटीमीटर की ऊंचाई पर होनी चाहिए.
बहार और तुड़ाई
अनार के पेड़ों में साल में 3 बार फूल आते हैं. कारोबारी नजरिए से केवल एक बार फल लेना ठीक होता है. जूनजुलाई महीने में आने वाले फल को लेना चाहिए, क्योंकि यह बारिश के पानी पर आधारित होती है, इसलिए ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती. इसे मृग बहार कहते हैं. इस बहार को लेने के लिए पेड़ों की दिसंबर से ले कर अप्रैल महीने तक सिंचाई नहीं करनी चाहिए. इस से मार्च महीने तक पत्तियां झड़ जाती हैं और पौधा मई महीने तक सुषुप्तावस्था में पड़ा रहता है. इस के बाद बगीचे की जुताई कर खाद दी जाती है.
इस के बाद भी अगर बारिश नहीं होती है, तो तब 1-2 हलकी सिंचाई करनी चाहिए. ऐसा करने से पौधों में जूनजुलाई महीने में फूल आते हैं. जिस महीने बहार लेनी है, उस के लिए 2-3 महीने पहले सिंचाई बंद कर देते हैं.
पौधे लगाने के 3 साल बाद पेड़ फल देता है. फूल आने के 5-6 महीने बाद फल तोड़ने लायक हो जाते हैं. जब फल पकने लगते हैं, तब उन का छिलका भूरे रंग या हलके पीले रंग और कभीकभी गुलाबी लाल रंग का हो जाता है. उस समय फल को तोड़ना चाहिए.
10 साल की उम्र के पेड़ से तकरीबन 10-20 किलोग्राम फल मिलते हैं. 25-30 साल तक पेड़ों से फल मिलते हैं. तुड़ाई के बाद खराब फलों को हटा कर अच्छे फलों को बांस की टोकरी या लकड़ी के बौक्स में रखते हैं. इन डब्बों में 10-20 फल पुआल या सूखी घास बिछा कर रखते हैं.
अनार की स्टोरेज कूवत अच्छी होती है. फलों को 0 से 4 सैंटीग्रेड तापमान और 80-85 फीसदी नमी पर 2 महीने तक महफूज रखा जा सकता है.
फलों का फटना
अनार के फलों का फटना एक आम बात है. इस से फलों पर फंगस और बैक्टीरिया का हमला बढ़ता है. यह शिकायत मिट्टी में नमी, हवा के तापमान, नमी में बदलाव और सूखे के बाद अचानक भारी सिंचाई के चलते होती है. जब फल छोटे होते हैं तो बोरोन या कैल्शियम वगैरह की कमी के चलते, अनियमित सिंचाई या अनियमित बारिश और तापमान के उतारचढ़ाव होने पर फल फटते हैं. इस को रोकने के लिए 0.2 फीसदी बोरैक्स का छिड़काव करना चाहिए.
जिबे्रलिक एसिड के 250 पीपीएम के घोल का छिड़काव जून महीने में करने से फल नहीं फटते. फटने से प्रतिरोधी किस्मों जैसे बेदाना, जालोर बेदाना किस्म का चुनाव करें. बाग के चारों ओर हवा रोकने के लिए लकड़ी वाले पेड़ लगाएं.
कीट व रोगों की रोकथाम
मक्खी या फल छेदक: अनार का यह कीट फूल आने पर नुकसान करना शुरू करता है. मादा तितली छोटे फलों पर अंडे देती है. इस के बाद इल्ली अंडों से निकल कर फलों में घुस जाती है और बीजों को खाती है. फिर छोटा सा छेद कर यह कीट बाहर निकल जाता है. इस से फलों में बैक्टीरिया व फफूंदी का हमला हो जाता है. फल सड़ने लगते हैं और गिर जाते हैं या पकने से पहले सूखने लगते हैं.
इस की रोकथाम के लिए बीमार फलों को खत्म कर दें और फूल बनते समय कार्बोरिल या फास्फामिडार दवा का छिड़काव करें. विकसित या बड़े फलों को पन्नी या कपड़े की थैली से ढकने से कीटों से बचाया जा सकता है.
छाल खाने वाला कीट: यह कीट पेड़ की छाल में छेद कर अंदर टहनियों में घुस जाता है और टहनी में सुरंग बना लेता है, जिस से पेड़ कमजोर हो जाता है और उस पर फल नहीं लगते. इस की रोकथाम के लिए सूखी व छेद वाली टहनियों को काट कर जला दें और किसी कारगर कीटनाशी दवा का इस्तेमाल करें.
फल धब्बा रोग : इस रोग में फलों पर हरेपीले धब्बे पैदा हो जाते हैं, जो अंदर टिश्यू तक पहुंच कर फल को खराब करते हैं. इस की रोकथाम के लिए डायथेन या कैप्टान दवा का छिड़काव 15-20 दिन के अंदर करना चाहिए.
फल सड़न: यह अंबे बहार पर फूल आने के समय की बीमारी है. बरसात के मौसम में ज्यादा नमी होने पर फल व कलियों पर काले धब्बे बन जाते हैं और धीरेधीरे फल सड़ने लगते हैं. इस की रोकथाम के लिए बीमार टहनियों व फलों को काट कर जला दें.
जिनेब दवा की 2 ग्राम मात्रा प्रति लिटर पानी के हिसाब से 15 दिन के अंतर पर छिड़कें या बावस्टीन आधा फीसदी का छिड़काव फल की बढ़वार शुरू होने से पकने तक 15 दिन के अंतर पर छिड़कें.
अनार की कुछ बढि़या किस्में
गणेश : इस किस्म के फल बड़े, गूदा गुलाबी रसदार मीठा और खाने में जायकेदार होता है. बीज छोटे व मुलायम होते हैं. इस किस्म की खेती महाराष्ट्र में की जाती है.
मृदुला : अनार की यह एक संकर किस्म है, जो महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ, महाराष्ट्र द्वारा तैयार की गई है. इस के बीज मुलायम व मीठे होते हैं. फल का रंग गहरा लाल व साइज बड़ा होता है.
ज्योति : इस किस्म में खूबसूरत पीलापन लिए लाल रंग का छिलका, मध्यम आकार, गूदा लाल व बीज मुलायम होता है.
रूबी: यह भी अनार की एक संकर किस्म है, जो बैंगलुरू में तैयार की गई है. यह प्रोसैसिंग के लिए अच्छी मानी गई है. इस के बीज मुलायम, मिठास वाले और टेनिन की कम मात्रा होती है.
ढोलका : यह किस्म अहमदाबाद के आसपास के इलाकों में ज्यादा उगाई जाती है. इस के फल बड़े, छिलके का रंग कुछ हरापन लिए हुए भूरा होता है. गूदा रसदार, मीठा, खटास कम वाला गुलाबीभूरा होता है. बीज छोटे और खाने में मुलायम होते हैं.
मस्कट लाल : यह किस्म कारोबारी तौर पर अहमदनगर, कोल्हार इलाके में उगाई जाती है. इस के फल बड़े, बीज मुलायम और रस लाल व हलका गुलाबी मीठा होता है.
कंधारी : इस किस्म का अनार बड़ा, छिलका लाल, बीज सख्त गुलाबी और रस खटास लिए होता है. महाराष्ट्र व गुजरात इलाके के लिए यह अच्छी किस्म है, जो अफगानिस्तान से लाई गई है.
जी-137 : यह गणेश किस्म के क्लोन द्वारा तैयार की गई है, जो कई मामलों में बेहतर है. इस में रस की मात्रा 86.6 फीसदी तक पाई जाती है.
बेदाना : यह राजस्थान की सूखी आबोहवा के लिए अच्छी किस्म है. फल मध्यम, बीज नरम, मीठा रस व छिलका सख्त होता है.
जालौर बेदाना : यह मुलायम बीजों वाली किस्म सूखे इलाकों के लिए अच्छी है. इस का छिलका लाल से गहरा लाल होता है. फल गोल, रस मीठा लाल होता है. इस से 25 किलोग्राम फल प्रति पेड़ मिलता है.
अलांदी वेदकी : फल का साइज मीडियम, छिलका गुलाबी पीला होता है. बीज सख्त व रस मीठा लाल या गहरा गुलाबी खटास लिए होता है. यह किस्म पूना के आसपास उगाई जाती है.
स्पेनिश रूबी : फल छोटे से मध्यम आकार के, छिलका पतला, गूदा लाल रंग का, मीठा व जायकेदार होता है. बीज का आकार छोटा व खाने में मुलायम होता है.
पेपर शैल : इस के फल मध्यम आकार के, छिलका मोटा, गूदा रसदार मीठा, खुशबूदार व रंग गुलाबी होता है. बीज मध्यम से बड़े साइज के और खाने में मुलायम होते हैं.