धान, गेहूं जैसी परंपरागत फसलों में बढ़ती लागत और कम आमदनी के चलते किसान इन सभी परंपरागत फसलों को कम और ऐसे फसलों को ज्यादा तवज्जुह दे रहे हैं, जिन्हें एक बार लगाने पर कई बार आमदनी हो पाए. सहजन (सोजाना, साईजन, मोरिंगा और इंगलिश में ड्रमस्टिक्स) ऐसी ही फसलों में से एक है.
सहजन के बाग एक बार लगाने पर 5-8 साल तक फसल मिलती है. सहजन की पत्तियां और फलियों के साथ बीज की भी बहुत मांग होने के कारण यह बहुत महंगा बिकता है.
सहजन की खेती अभी तक कुछ राज्य जैसे आंध्र प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में ज्यादा होती थी, लेकिन देश में आयुर्वेदिक दवाओं का इस्तेमाल बढ़ने के साथ ही सरकार कई योजनाओं के जरीए इन्हें उत्तर प्रदेश, झारखंड जैसे राज्यों में भी बढ़ावा दे कर इस की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है.
मोरिंगा के पौधों का रोपण
गांवदेहात में सहजन बिना किसी देखभाल के किसान अपने घरों के आसपास कुछ पेड़ लगा कर रखते हैं. इस के फल का उपयोग वे साल में 1 या 2 बार सब्जी के रूप में करते हैं.
भारत में सहजन के पारंपरिक प्रभेद के अतिरिक्त उन्नत प्रभेद पीकेएम-1, पीकेएम-2, कोयंबटूर-1 और कोयंबटूर-2 की खेती की जाती है.
मोरिंगा एक औषधीय पौधा है, जिस की उत्पत्ति भारत, पाकिस्तान, बांगलादेश और अफगानिस्तान के क्षेत्रों में हुई है. यह उष्ण कटिबंध में भी उगने वाला पौधा है. मोरिंगा से संबंधित औषधि बनाने के लिए पत्ते, छाल, फूल, फल, बीज और जड़ का उपयोग किया जाता है.
मोरिंगा का उपयोग अस्थमा, मधुमेह, मोटापा, रजोनिवृत्ति के लक्षण और कई अन्य स्थितियों के लिए किया जाता है, लेकिन इन उपयोगों का समर्थन करने के लिए कोई अच्छा वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है, जिस से यह तसदीक हो पाए कि इस में पाया जाने वाला पदार्थ उपरोक्त रोगों के लिए सर्वोत्तम औषधीय है इसलिए इस में शोध की अपार संभावनाएं हैं. मोरिंगा के बीजों का उपयोग खाद्य पदार्थों, इत्र और बालों की देखभाल करने वाले उत्पादों और एक मशीन स्नेहक के रूप में किया जाता है.
फलियां व पत्तियों से पाउडर
मोरिंगा दुनिया के कुछ हिस्सों में एक महत्त्वपूर्ण खाद्य स्रोत है, क्योंकि यह सस्ता और आसानी से उगाया जा सकता है और सूखा होने पर भी इन की पत्तियों में बहुत सारे विटामिन और खनिज होते हैं. मोरिंगा का उपयोग भारत और अफ्रीका में कुपोषण से लड़ने के कार्यक्रमों को खिलाने में किया जाता है.
अपरिपक्व हरी फली (ड्रमस्टिक्स) को हरी फलियों के समान तैयार किया जाता है, जबकि बीजों को अधिक परिपक्व फली से निकाला जाता है और मटर की तरह पकाया जाता है या नट्स की तरह भूना जाता है. इस की पत्तियों को पकाया जाता है और पालक की तरह उपयोग किया जाता है और उन्हें (पत्तियों) भी सुखा कर पाउडर के रूप में उपयोग किया जाता है.
तेल निकालने के बाद बचे हुए केक (खली) का उपयोग उर्वरक के रूप में किया जाता है और अच्छी तरह से पानी को शुद्ध करने और समुद्री जल से नमक निकालने के लिए भी उपयोग में लाया जाता है.
काम करने की विधि
मोरिंगा में प्रोटीन, विटामिन और खनिज होते हैं और इस में भरपूर एंटीऔक्सिडैंट होते हैं, जो कोशिकाओं को रिएक्टिव औक्सीजन स्पीशीज जैसे बायोकैमिकल से होने वाले नुकसान से बचाने में मदद करता है.
उपयोग और प्रभावशीलता
दमा : प्रारंभिक शोध से पता चलता है कि 3 सप्ताह के लिए रोजाना 3 ग्राम मोरिंगा लेने से अस्थमा के लक्षणों की गंभीरता कम हो जाती है और हलके अथवा मध्यम अस्थमा वाले वयस्कों में फेफड़ों की कार्यक्षमता में सुधार होता है.
मधुमेह : कुछ शुरुआती शोधों से यह पता चलता है कि भोजन के साथ टार्टिंग मोरिंगा ड्रमस्टिक की पत्तियां भी मधुमेह वाले लोगों में भोजन के बाद रक्त शर्करा के स्तर को कम कर सकती हैं.
एचआईवी/एड्स : प्रारंभिक शोध से पता चलता है कि 6 महीने तक प्रत्येक भोजन के साथ मोरिंगा लीफ पाउडर लेने से बौडी मास इंडैक्स (बीएमआई) में वृद्धि हो सकती है, लेकिन प्रतिरक्षा क्षमता में सुधार नहीं होता है.
कुपोषण में उपयोगिता : शुरुआती शोध से पता चलता है कि 2 महीने के लिए भोजन में मोरिंगा पाउडर मिलाने से कुपोषित बच्चों के वजन में सुधार होता है.
रजोनिवृत्ति के लक्षण : प्रारंभिक शोध से पता चलता है कि 3 महीने के लिए भोजन में ताजा मोरिंगा के पत्तों के इस्तेमाल से रजोनिवृत्ति के लक्षणों में सुधार होता है. साथ ही नींद की कमी को यह कम करता है.
विटामिन ए व अन्य विटामिन : सूखे मोरिंगा ओलीफेरा ट्री के पत्तों में विटामिन ए (अल्फा और बीटाकैरोटीन), बी, बी 1, बी 2, बी 3, बी 5, बी 6, बी 12, सी, डी, ई, के, फोलिक एसिड, बायोटिन और अधिक होते हैं.
ध्यान रखें कि प्राकृतिक उत्पाद हमेशा सुरक्षित नहीं होते हैं और एक निश्चित मात्रा की खुराक महत्त्वपूर्ण हो सकती है. उत्पाद लेबल पर प्रासंगिक निर्देशों का पालन करना चाहिए और उपयोग करने से पहले अपने फार्मासिस्ट या चिकित्सक या अन्य स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर से परामर्श कर के ही इस की खुराक लेनी चाहिए.