पर्यावरण के प्रति लोगों में पिछले कुछ सालों से जागरूकता बढ़ी है और बडे़ पैमाने पर वृक्षारोपण यानी पेड़ लगाने के कार्यक्रम किए जा रहे हैं. पर दुख की बात है कि हर साल लगाए जाने वाले पौधों में आधे से ज्यादा पौधे तो किसी न किसी वजह से बेकार हो जाते हैं और बाकी बचे पौधों में भी कुछ अल्पविकसित होते हैं और कुछ सही तरह से पनप पाते हैं.
उलट वातावरण के अलावा बारिश न होने, दीमक या दूसरे कीटों का हमला होने व रोगों का फैलाव वगैरह कुछ ऐसी समस्याएं हैं, जिन्हें टाला नहीं जा सकता है, पर अच्छी किस्म के पौधे नर्सरी यानी रोपणी में तैयार किए जा सकते हैं. अच्छी किस्म के पौधों से पौधों की उत्पादकता बढ़ती है.
इस तरह के पौधे तैयार करने के लिए पिछले कुछ सालों में कृषि वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक ईजाद की है, जिन्हें रूट ट्रेनर तकनीक या जड़ साधक कहते हैं.
भारत में वृक्षारोपण कार्यक्रम
भारत में वानिकी कार्यक्रम 100 सालों से भी कहीं ज्यादा पुराना है और अभी भी भारत का एक बड़ा इलाका वनों से वंचित है. भारत में पहले ही बीजों को सीधा बोने का चलन था. इस के बाद विभिन्न प्रकार के पात्रों यानी बरतनों में पौधे तैयार करने की तकनीक चलाई गई. ये बरतन धातु, मिट्टी, पत्तियों, बांस वगैरह सभी तरह के मुहैया स्रोतों से बनाए जाते थे. इन सभी के बाद प्लास्टिक की थैलियों यानी पौली बैग का चलन शुरू हुआ जो आज भी जारी है. ये पौली बैग आसानी से बाजार में मुहैया हो जाते हैं और काफी सस्ते भी पड़ते हैं, पर इन पौली बैग में कई तरह की कमियां भी हैं. ये हैं :
* इन में जड़ें कुंडलित यानी उलझा हुई होती हैं और पार्श्व जड़ें यानी पास की जड़ें पूरी तरह पनप नहीं पाती हैं. इस वजह से परिपक्व व विकसित जड़ तंत्र नहीं बन पाता है.
* पौधों को लाने व ले जाने के दौरान मिट्टी ढीली हो जाती है और जड़ों को बांधे रखने में नाकाम हो जाती है. इस तरह के पौधे रोपने के बाद जल्दी विकसित नहीं हो पाते और इन पर रोगों का हमला भी ज्यादा होता है.
* पौली बैग के इस्तेमाल में हर रोज जांच करनी पड़ती है और ज्यादा मजदूरों की जरूरत नहीं पड़ती है.
* पौली बैग दोबारा उपयोग में नहीं लाए जा सकते और वे फिर से वातावरणीय तंत्र में विघटित भी नहीं होते, इसलिए पर्यावरण संतुलन में भी बाधक होते हैं.
जड़ साधक यानी रूट ट्रेनर तकनीक के प्रयोग द्वारा ये सभी समस्याएं खत्म हो जाती हैं. पश्चिमी देशों में इन का कामयाबी से प्रयोग होने के बाद भारत में इस का उपयोग शुरू किया जा चुका है.
क्या है जड़ साधक तकनीक
जड़ साधक ऊंचे लैवल के बने बरतन हैं, जिन में यूवी अवरोधक भी लगा होता है. ये एक टे्र के रूप में होते हैं और पूरी दुनिया में ऊंची क्वालिटी के पादपों को तैयार करने में इस्तेमाल किए जा रहे हैं. आसान परिवहन और सुविधा के लिए 20 बरतनों के एक सैट को 5×4 की लाइनों में व्यवस्थित किया जाता है.
प्रत्येक बरतन 150 सीसी की कूवत वाले होते हैं. इन बरतनों के तल में एक छेद होता है. इन बरतनों में ऊपर से नीचे तक पूरे भाग में 5 खांचे एकदूसरे के समानांतर लगे रहते हैं. इन खांचों के चलते ही जडें़ कुंडलित नहीं हो पाती हैं और सीधे नीचे चली जाती हैं.
ये जड़ें पैदे में स्थित छेद से बाहर निकलने पर हवा और रोशनी के संपर्क में आती हैं और विकसित हो जाती हैं. इस तरह पूरी तरह विकसित होने पर ये पौधे को नई जड़ें भेजने के लिए संदेश भेजती हैं और यह प्रक्रिया चलती रहती है.
इस तरह से पार्श्व जड़ों यानी पास की जड़ों का एक जाल विकसित हो जाता है. ये पादप जब मिट्टी में रोपे जाते हैं, तब यह जड़ तंत्र जमीन से ज्यादा मात्रा में पोषक तत्त्व हासिल करता है और पौधे की बढ़वार तेजी से होती है. जड़ साधकों के प्रयोग से कई प्रकार के फायदे हैं. ये इस तरह हैं :
* यह एक ट्रे के रूप में होते हैं और कम जगह घेरते हैं, इसलिए छोटी जगह में भी कई हजार पौधे रोपणी यानी नर्सरी में तैयार हो सकते हैं.
* इन में कम मात्रा में पोषक पदार्थ की जरूरत होती है और बारबार इन्हें देखने की जरूरत नहीं होती है. इस से खर्च में भी कमी आती है.
* इस में हवा के आनेजाने की पर्याप्त जगह होती है और हवा द्वारा जडें़ विकसित हो जाने के चलते पूरा विकसित जड़ तंत्र बनता है.
* इस में पार्श्व जड़ों यानी पास की जड़ों से भरापूरा जड़ तंत्र होने से पादप में पोषण के लिए उपयुक्त जडें़ विकसित हो जाती हैं, जो पौध रोपने के बाद तेजी से बढ़वार में मददगार साबित होती है.
* इस में पादपों के लाने व ले जाने के दौरान नुकसान नहीं होता है और इन में कवक या दूसरे रोग भी नहीं लगते, जिस से उच्च क्वालिटी के पौध नर्सरी में तैयार होते हैं.
* जड़ साधक यानी सीड ट्रे में जड़ों का सर्पिलीकरण या कुंडलन नहीं होता है और इस से जड़ या स्तंभ अनुपात में इजाफा होता है.
* ऐसे जड़ साधक में पादप रोपने के बाद जल्दी विकसित होते हैं और इन में जिंदा रहने की दर भी ज्यादा होती है.
* जड़ साधकों में रोपित पौधों की बढ़वार समान रूप से होती है और उच्च क्षमता के पौधे विकसित होते हैं, जो पौधों की उत्पादकता में बढ़वार करते हैं.
* ये जड़ साधक यानी सीड ट्रे आसानी से कई सालों तक इस्तेमाल में लाए जा सकते हैं.
* बडे़ लैवल पर ये सीड ट्रे वृक्षारोपण कार्यक्रमों के लिए बहुत ही उपयोगी हैं.
दुनिया के कई नर्सरी माहिरों ने पौली बैग में पौध तैयार करने को अनुपयुक्त करार दिया है और उन्हें टाइम बम कहा है. जड़ साधकों में तैयार पौधों को वैज्ञानिक फोर्स मल्टीप्लाय यानी तेजी से गुणन करने वाला बताते हैं.
ये न केवल जल्दी विकसित होते हैं, बल्कि अच्छी क्वालिटी के भी होते हैं, जिन से पेड़ों के उत्पाद यानी खाद्य, लकड़ी, ईंधन वगैरह में भी बढ़वार होती है. ये जड़ साधक कई सालों तक उपयोग में लाए जा सकते हैं, इसलिए पर्यावरण संतुलन में भी सहायक होते हैं.
यों भी कह सकते हैं कि पौलीथिन में तैयार पौधों की लागत कम आती है, पर अगर हम जड़ साधकों का प्रयोग करें तो पहले साल में कीमत ज्यादा पड़ती है, पर ये बारबार प्रयोग किए जा सकते हैं और इन में पादप पोषक की मात्रा कम लगती है व मजूदरों की भी कम जरूरत होती है.
इस तरह से अगर हम कई सालों के खर्च की तुलना करें तो जड़ साधक सस्ते पड़ते हैं और इन से अच्छी क्वालिटी के पौध तैयार होते हैं. जड़ साधकों का प्रयोग नर्सरी में पौध तैयार करने की दिशा में एक क्रांतिकारी बदलाव है.