जनवरीफरवरी का महीना लतावर्गीय सब्जियों की रोपाई के लिए बेहद ही खास माना जाता है. इस महीने लतावर्गीय सब्जियों की रोपाई कर गरमी के लिए अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है.
इन बेल वाली सब्जियों में लौकी, तोरई, खीरा, टिंडा, करेला, तरबूज, खरबूजा, पेठा की रोपाई जनवरी या फरवरी महीने में कर गरमी के मौसम में मार्च से ले कर जून महीने तक अच्छी उपज ली जा सकती है.
इन लतावर्गीय सब्जियों की खेती बीज को सीधे खेत में बो कर या नर्सरी में पौध तैयार कर खेत में रोप सकते हैं.
जनवरीफरवरी माह में पौधों के उचित जमाव के लिए प्लास्टिक ट्रे, प्लास्टिक लो टनल या पौलीबैग तकनीकी का प्रयोग कर लतावर्गीय सब्जियों की नर्सरी तैयार की जा सकती है.
इस विधि से प्लास्टिक शीट से लो टनल में भी पौध तैयार की जाती है. इस में बीज को बो कर पौध तैयार की जाती है. इस के बाद तैयार पौध को खेत में रोपा जाता है. इस विधि से लतावर्गीय सब्जियों की रोपाई से पौधों के मरने पर उस की जगह पर दूसरे पौध को रोप कर नुकसान से बचा जा सकता है.
इन सब्जियों के पौधों की तैयार करें नर्सरी
इस समय बोआई के लिए जिन लतावर्गीय सब्जियों का चयन करते हैं, उस में लौकी, करेला, खीरा, कद्दू, टिंडा, खरबूजा, तरबूज, तोरई जैसी किस्में प्रमुख हैं.
ऐसे तैयार करें पौध
सर्दी के मौसम में लतावर्गीय सब्जियों की खेती के लिए नर्सरी में पौध तैयार करने के लिए कई विधियों का प्रयोग किया जाता है, जिस में मुख्य रूप से प्लास्टिक ट्रे, प्लास्टिक लो टनल या पौली पैक में पौधों को तैयार करना ज्यादा मुफीद होता है.
ऐसे तैयार करें प्लास्टिक लो टनल
प्लास्टिक लो टनल में सब्जियों के पौध तैयार करने के लिए सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था कर लें. इस के लिए ड्रिप इरिगेशन ज्यादा मुफीद होता है.
प्लास्टिक लो टनल बनाने के लिए जमीन से उठी हुई क्यारियां हवा की निकासी को नजर में रखते हुए उत्तर से दक्षिण दिशा में बनाई जानी चाहिए. इस के बाद क्यारियों के मध्य में एक ड्रिप लाइन बिछा दी जाती है. इन क्यारियों के ऊपर अर्धवृत्ताकार लोहे के 2 मिलीमीटर मोटे लोहे के तारों को मोड़ कर दोनों सिरों की दूरी 50 से 60 सैंटीमीटर और ऊंचाई 50 से 60 सैंटीमीटर रख कर सेट कर लेते हैं.
यह ध्यान रखें कि मोड़े गए तारों के बीच की दूरी 1.5 से 2 मीटर हो. 20-30 माइक्रोन मोटाई और 2 मीटर चौड़ाई वाली पारदर्शी प्लास्टिक की चादर को इन तारों पर चढ़ा कर ढक दिया जाता है.
बिना मिट्टी के पौध तैयार करना
विशेषज्ञ राघवेंद्र विक्रम सिंह के अनुसार, इस विधि से लतावर्गीय सब्जियों की पौध तैयार करने के लिए मिट्टी का उपयोग नहीं किया जाता है, बल्कि इस विधि में मृदाविहीन विधि से बीज की रोपाई कर पौध तैयार की जाती है.
जो किसान इस विधि से नर्सरी में पौध तैयार करते हैं, उस से स्वस्थ पौधे तो तैयार किए ही जा सकते हैं. साथ ही, इस में कीटों व बीमारियों का प्रकोप भी कम पाया जाता है.
मृदाविहीन विधि से नर्सरी तैयार करने के लिए सब्जी के बीज की बोआई जमीन में न कर के प्लास्टिक की ट्रे में की जाती है, जिस के लिए जरूरी चीजों में कोकोपिट, प्लास्टिक ट्रे, वर्मी कंपोस्ट, सब्जी बीज और फफूंदीनाशक में 50 फीसदी में घुलनशील पाउडर बावस्टीन की जरूरत होती है.
इस विधि से बीज को प्लास्टिक ट्रे में रोपाई के पूर्व कोकोपिट ब्रिक को एक प्लास्टिक या जूट के बोरे में भर कर ऊपर से बोरे का मुंह बांध देते हैं. इस के बाद उस को 5-6 घंटे के लिए बोरे को पानी में डुबो कर भिगो देते हैं. इस के बाद बोरे को पानी से बाहर निकाल कर भीगे हुए कोकोपिट को साफ प्लास्टिक की पन्नी पर पतली परत बनाते हुए फैला देते हैं. उस के बाद कोकोपिट को खूब दबा कर पानी निकाल लेते हैं.
जब इस कोकोपिट से पूरा पानी छन जाता है, तो उस में जितनी मात्रा कोकोपिट की होती है, उतनी ही मात्रा में वर्मी कंपोस्ट मिला लेते हैं. जब कोकोपिट और वर्मी कंपोस्ट का मिश्रण तैयार हो जाए, तो उस में प्रति किलोग्राम मिश्रण की दर से 2 ग्राम बावस्टीन को मिला लेते हैं.
जब यह मिश्रण पूरी तरह से तैयार हो जाए, तो प्लास्टिक ट्रे में इस मिश्रण को दबा कर भर लेते हैं. ट्रे में मिश्रण को भरने के बाद उस में बीज की बोआई कर ऊपर से कोकोपिट मिश्रण की एक हलकी परत से ढक दिया जाता है.
ट्रे में तैयार किए जाने वाले इस नर्सरी में पौधों को हलकी सिंचाई की जरूरत होती है. इस की सिंचाई हजारे से किया जाना ज्यादा उचित होता है.
पौलीबैग में नर्सरी तैयार करना
लता वाली सब्जियों की पौध तैयार करने के लिए पौलीथिन की छोटी थैलियों का भी उपयोग किया जा सकता है. इन थैलियों में पौध को उगाने के लिए मिट्टी, खाद व रेत का मिश्रण बराबर के अनुपात में मिला कर भरा जाता है.
मिश्रण भरने से पहले प्रत्येक थैली की तली में 2 से 3 छेद पानी के निकास के लिए बना लेते हैं. बीज को मिश्रण में रोपने के पहले केप्टान दवा की 2 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से मिला कर उपचारित कर लेते हैं.
बीजों के अच्छे जमाव के लिए उन्हें 6 से 12 घंटे तक पानी में डुबो कर निकाल लेते हैं और फिर किसी सूती कपड़े या बोरे के टुकड़े में लपेट कर किसी गरम जगह पर रख देते हैं. जब बीजों का अंकुरण हो जाए, तो इसे तैयार पौलीबैग में बो देते हैं. इस से जमाव अच्छा होता है. अच्छे जमाव के लिए प्रत्येक थैली में 2 से 3 बीजों की बोआई करना उचित होता है बाद में एक पौधा छोड़ कर अन्य को निकाल देते हैं. बीज रोपाई के बाद इन पैकेटों को लो टनल या पौलीहाउस में रख दिया जाता है.
दोनों विधियों से पौधों की रोपाई करने के लिए अधिक ठंड से बचाने के लिए प्लास्टिक लो टनल के भीतर रख देते हैं. अगर पौधों में पोषक तत्वों की कमी हो, तो पानी में घुलनशील एनपीके मिश्रण का छिड़काव कर देना चाहिए.
नर्सरी में लतावर्गीय पौधों को तैयार करने के दौरान देखभाल से जुड़ी जरूरी बातें
बस्ती जिले के पचारी कला गांव के प्रगतिशील किसान विजेंद्र बहादुर पाल के अनुसार, लतावर्गीय सब्जियों की नर्सरी तैयार करने के दौरान हमें कुछ विशेष बातों का खयाल रखना पड़ता है, जिस में पहला यह कि नर्सरी में पर्याप्त नमी बनाए रखें. बीज को नर्सरी में बोने के बाद 11वें एवं 21वें दिन 2 मिलीलिटर मैंकोजेब प्रति लिटर पानी के साथ घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए, जिस से कि नर्सरी में आर्द्रगलन, पौधगलन व अन्य फफूंदजनित बीमारियों से बचाव होता है.
यह भी ध्यान दें, जब नर्सरी में पौध 4 से 5 पत्ती वाले यानी 30 से 35 दिन के हो जाएं, तो ऊंची उठी हुई क्यारियों में अथवा गड्ढा बना कर निश्चित दूरी पर पौधों की रोपाई कर लेनी चाहिए.
नर्सरी से सब्जी फसलों की रोपाई से लाभ
सर्द मौसम में सब्जी की रोपाई बीज द्वारा सीधे खेत में किए जाने की अपेक्षा नर्सरी में पौध तैयार कर रोपना ज्यादा मुफीद होता है. इस से न केवल पौधों के लिए उपयुक्त आवश्यक वातावरण प्रदान कर समय से पौधे तैयार किए जा सकते हैं, बल्कि बीज की मात्रा भी कम लगती है और स्वस्थ पौधे भी तैयार होते हैं.
इस विधि से खेती करने से उत्पादन लागत भी लगती है. चूंकि पौधे नर्सरी में लो टनल में या पौलीहाउस में पौध तैयार करने से वर्षा, ओला, कम या अधिक तापमान, कीड़े व रोगों का प्रभाव पौधों पर कम पड़ता है. नर्सरी में तैयार किए गए पौधों का विकास तेजी से होता है, इसलिए उपज जल्दी मिलनी शुरू हो जाती है.
तैयार पौधों की खेत में रोपाई
नर्सरी में लतावर्गीय सब्जियों की पौध तैयार कर खेती करने वाले प्रगतिशील किसान राममूर्ति मिश्र का कहना है कि जब नर्सरी में लतावर्गीय सब्जियों के पौधों की खेत में रोपाई के लिए सर्वप्रथम नाली या थाले बना लेना उचित होता है. नाली को पूरब से पश्चिम दिशा की ओर बनाया जाता है. यह नालियां 45 सैंटीमीटर चौड़ी और 30 से 40 सैंटीमीटर गहरी बनाई जाती हैं.
नाली बनाते समय यह ध्यान रखें कि खीरा, टिंडा के लिए एक नाली से दूसरी नाली के बीच की दूरी 2 मीटर और कद्दू, पेठा, तरबूज, लौकी, तोरई के लिए 4 मीटर तक रखी जाए. इसी प्रकार नाली के उत्तरी किनारों पर थाले बनाए जाने चाहिए, जिस में चप्पन कद्दू, टिंडा व खीरा के लिए 0.50 मीटर रखें.
इसी प्रकार कद्दू, करेला, लौकी, तरबूज के लिए एक मीटर की दूरी रखी जाती है. इन पौधों की रोपाई करने से कम लागत में अधिक पैदावार ली जा सकती है.
किसान राममूर्ति मिश्र के अनुसार, नर्सरी में लतावर्गीय सब्जियों की तैयार पौध की रोपाई फरवरी माह में शुरू करें, क्योंकि तब तक पाला पड़ने की संभावना कम हो जाती है. ऐसे में पौधों को नुकसान से बचाया जा सकता है.
नर्सरी से पौधों को खेत में पौलीबैग या प्लास्टिक ट्रे से पौधा मिट्टी सहित निकाल कर तैयार क्यारियों में शाम के समय रोपें. जैसे ही पौधों की रोपाई खेत में की जाए, उस के तुरंत बाद पौधों की हलकी सिंचाई करना न भूलें. पौधों के खेत में रोपाई के 10 से 15 दिन बाद फसल की निराई कर के खरपतवार साफ कर देना चाहिए. साथ ही, पहली गुड़ाई के बाद जड़ों के आसपास हलकी मिट्टी चढ़ानी चाहिए. खेत में रोपे गए इन लतावर्गीय सब्जियों में जब फूल और फल आ रहा हो, उस समय सिंचाई अवश्य करें.
खाद और उर्वरक
कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती में विशेषज्ञ फसल सुरक्षा डा. प्रेमशंकर के अनुसार, नर्सरी से तैयार कर लता वाली सब्जियों को खाद व उर्वरक देने में काफी सतर्कता बरती जाए. ऐसे किसानों को रोपाई के पूर्व ही फसल में उर्वरक देने की पूरी तैयारी कर लेनी चाहिए.
खेत में जब पौध रोपाई के लिए अंतिम जुताई हो जाए, तो उस समय 200 से 500 क्विंटल सड़ी खाद के साथ 2 लिटर ट्राईकोडर्मा मिला देना चाहिए. इस से फसल को मिट्टी से फैलने वाले फफूंद से बचाया जा सकता है.
फसल से अधिक उत्पादन के लिए प्रति हेक्टेयर 240 किलोग्राम यूरिया, 500 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट एवं 125 किलोग्राम म्यूरेट औफ पोटाश की आवश्यकता पड़ती है. इस में सिंगल सुपर फास्फेट एवं पोटाश की पूरी मात्रा और यूरिया की आधी मात्रा नाली बनाते समय कतार में डालते हैं, जबकि यूरिया की चौथाई मात्रा रोपाई के 20 से 25 दिन बाद दे कर मिट्टी चढ़ा देते हैं. चौथाई मात्रा 40 दिन बाद टापड्रेसिंग दी जाती है.
पौधों को गड्ढे में रोपते समय प्रत्येक गड्ढे में 30 से 40 ग्राम यूरिया, 80 से 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 40 से 50 ग्राम म्यूरेट औफ पोटाश की मात्रा मिला कर रोपाई की जानी चाहिए.
पौधों की कटाई, छंटाई व सहारा देना
बड़े स्तर पर सब्जियों की खेती करने वाले बस्ती जिले के दुबौलिया गांव के प्रगतिशील किसान अहमद अली का कहना है कि लतावार्गीय सब्जियों की फसल से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए पौध की कटाईछंटाई फायदेमंद होती है. इसलिए पौधों को 3 से 7 गांठ के बाद सभी द्वितीय शाखाओं को काट देना चाहिए. पौधों को सहारा देने के लिए मचान बना कर मचान के खंभों के ऊपरी सिरे पर तार बांध कर पौधों को मचान पर चढ़ा लेते हैं.
इस प्रकार लतावर्गीय सब्जियों की खेती कर के अच्छी उपज एवं आमदनी भी अधिक प्राप्त की जा सकती है.
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