गन्ने की खेती की वैज्ञानिक तकनीक, आधुनिक मशीनरी, अच्छी वैरायटी और कीट व बीमारियों का माकूल इंतजाम कर पैदावार को बढ़ा सकते हैं, साथ में फसल की क्वालिटी में इजाफा कर मुनाफे में मिठास घोल सकते हैं.

यहां हम गन्ने की वैज्ञानिक खेती के बारे में बात कर रहे हैं:

दोमट मिट्टी वाले खेत की अच्छी तरह जुताई और पलेवा कर के तैयार कर लें. अगर खेत में हरी खाद दे रहे हैं तो खाद को मिट्टी में अच्छी तरह मिलने के लिए तकरीबन 1 से डेढ़ महीने का समय देना चाहिए.

वैसे, 3 आंख वाले पैडे यानी बीज कूंड़ों में इस तरह डाले जाते हैं कि आंखों की आपस में सही दूरी रहे. अच्छे जमाव के लिए 2 आंख वाले पैडे 1 फुट की दूरी रखते हुए बोआई करें.

बोआई के बाद नाली में पैडों के ऊपर गामा बीएचसी 20 ईसी या क्लोरोपाइरीफास 5 लिटर को 1,875 लिटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर छिड़कना चाहिए.

नालियों को फावड़े या देशी हल से पाट कर खेत में पाटा लगा देना चाहिए. इस से दीमक वगैरह कीटों की रोकथाम होती है.

गुड़ाई : समतल विधि से गन्ना बोआई के एक हफ्ते में अगर बरसात हो जाए या फिर हलकी सिंचाई की गई है तो गुड़ाई करनी चाहिए. गुड़ाई की गहराई 4-5 सैंटीमीटर से ज्यादा न हो.

गन्ने में पौधों की जड़ों को नमी, हवा और धूप पहुंचाने व खरपतवारों की रोकथाम के लिए हर सिंचाई के बाद गुड़ाई की जानी चाहिए. गुड़ाई करने से उर्वरक भी मिट्टी में अच्छी तरह मिल जाते हैं.

निराईगुड़ाई के लिए अगर मजदूरों की कमी है तो कल्टीवेटर से गुड़ाई करनी चाहिए.

सूखी पत्ती बिछाना : जमाव पूरा हो जाने के बाद मैदानी इलाकों में गन्ने की 2 लाइनों के बीच 8-10 सैंटीमीटर सूखी पत्तियों की परत और तराई वाले इलाकों में 10-15 सैंटीमीटर मोटी परत बिछानी चाहिए.

ध्यान रहे कि कीट वाले खेत से सूखी पत्ती नहीं लेनी चाहिए. सावधानी के तौर पर 25 किलोग्राम मैलाथियान (5 फीसदी) धूल या लिंडेन धूल का सूखी पत्तियों पर बुरकाव करना चाहिए.

कैमिकलों द्वारा खरपतवार रोकने के लिए सिमैजीन (50 डब्ल्यू) या 2, 4-डी का पौध जमाव से पहले और जमाव के बाद इस्तेमाल करें.

एक बीजपत्रीय खरपतवारों की रोकथाम के लिए आइसोप्रोट्यूरान का छिड़काव करना चाहिए.

शरदकालीन गन्ने में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए 2, 4-डी का जमाव के बाद छिड़काव असरदार माना गया है.

गन्ना सुरक्षा

गन्ना मीठे रस से भरा होता है. इस की मिठास जितनी हमें लुभाती है उतनी ही यह कीटों को भाती है. गन्ने की मिठास रहे बरकरार, इस के लिए करें ये उपाय :

दीमक : दीमक का हमला गन्ने की फसल पर सालभर रहता है. इस का हमला गन्ने की आंखों पर होता है, वहां पर मिट्टी दिखाई देती है. इस से फसल की पैदावार में 20-25 फीसदी तक कमी आ जाती है.

इस की रोकथाम के लिए फैनवेल रेट 0.4 फीसदी धूल का 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से छिड़काव करना चाहिए.

अंकुर बेधक : इस कीट का हमला मार्च से जून महीने में होता है. इस के हमले से गन्ना सूख जाता है और वह मिट्टी से आसानी से निकल जाता है. सिरके जैसी गंध आना भी इस कीट के हमले की पहचान है.

इस की रोकथाम के लिए सिंचाई का सही इंतजाम करना चाहिए.

चोटी बेधक : इस कीट के कारण गन्ने के गोफ सूखना, पत्तियों पर गोल छेद, बीच की शिरा पर लाल धारी, झाड़ीनुमा सिरा होना जैसे लक्षण पाए जाते हैं. मार्च से अक्तूबर महीने में इस कीट का हमला फसल पर ज्यादा होता है.

इस कीट के अंडों को खत्म करें और इस से प्रभावित पौधों को उखाड़ दें. मार्च से जुलाई तक 15 दिन के अंतर पर ट्राइको कार्ड लगाएं. जून के आखिर से जुलाई के शुरू तक कार्बोफ्यूरान को पौधों की जड़ों के पास दें.

तना बेधक : मटमैली गिडार का हमला अगस्त से फरवरी महीने के बीच होता है. इस की रोकथाम के लिए जुलाई से अक्तूबर महीने तक 15 दिन के अंतर पर ट्राइको कार्ड लगाएं. मोनोक्रोटोफास दवा का घोल बना कर 2 बार अगस्त और सितंबर माह में छिड़काव करें.

गुरदासपुर बेधक : इस पतंगे के अगले पंख पीले, किनारों पर धब्बे होते हैं. इस की गिडार एक पोरी में 40-50 के झुंड में पाई जाती हैं. गन्ने पर इस का हमला जुलाई से अक्तूबर महीने में होता है. इस की रोकथाम के लिए बीमार पौधों को काट कर खत्म कर दें और ट्राइको कार्ड लगाएं.

काला चिकटा : इस के जवान कीट लालसफेद पंख वाले होते हैं. यह कीट अप्रैल से जून महीने में गन्ने की फसल पर दिखाई देता है. इस की रोकथाम के लिए थायोडान दवा का घोल बना कर फसल पर छिड़काव करें.

पायरिला : इस कीट का जवान भूरे रंग का 2 पंख वाला होता है और मादा चोंच वाली 10-12 मिलीमीटर लंबी होती है. अप्रैल से नवंबर महीने तक यह गन्ने की फसल में दिखाई देती है.

इस की रोकथाम  के लिए अंडों के झुंड को निकाल कर खत्म कर दें. क्लोरोपाइरीफास दवा का तकरीबन 650 लिटर पानी में घोल बना कर खेत में छिड़काव करें.

शल्क कीट : इस कीट के ऊपर मछली की तरह शल्क होते हैं और मादा गोल, गुलाबी और भूरे पैर वाली होती है. जुलाई से फरवरी महीनों के बीच यह खेत में रहता है. इस कीट की रोकथाम के सूखी पत्तियों को जला दें और पेड़ी फसल न रखें.

थ्रिप्स : इस कीट के हमले से पौधे की ऊपर की पत्तियां सूख जाती हैं. इस का हमला अप्रैल से जून महीने के बीच होता है. इस की रोकथाम के लिए मैलाथियान (50 फीसदी) घोल 1 लिटर को 600 लिटर पानी में मिला कर 1 हेक्टेयर में छिड़काव करें.

सैनिक कीट : इस कीट की सूंड़ी व पतंगे पीले भूरे रंग के होते हैं और ये रात में पत्तियों को खा कर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं. जूनजुलाई महीने में इस का ज्यादा असर रहता है. इस की रोकथाम के लिए थायोडान दवा का घोल बना कर छिड़काव करें.

टिड्डा : इस कीट का हमला खेत में जुलाई से सितंबर महीने में होता है. यह पौधे की पत्तियों को खाता है. इस की रोकथाम के लिए मैलाथियान दवा के घोल का खेत में छिड़काव करें.

काना बीमारी : यह बीमारी जुलाई महीने से शुरू हो कर फसल के आखिर तक रहती है. इस बीमारी से गन्ने की तीसरीचौथी पत्ती किनारे से सूख कर खराब हो जाती है. गन्ने की गांठों का बैठना, आसानी से टूटना, चीरने पर लाल दिखाई देना और सिरके जैसी महक आना वगैरह इस बीमारी के लक्षण हैं.

कंडुवा बीमारी : इस के असर से पत्ते दूरदूर, नुकीले और काले हो जाते हैं. इस का असर अप्रैल से जून और अक्तूबरनवंबर माह में ज्यादा होता है.

उकठा बीमारी : पत्तियां सूखना, गूदा मटमैला भूरा होना, पोरी कत्थई और पिचकी हुई या खोखली होना इस बीमारी का लक्षण है. यह बीमारी नवंबर माह से फसल के कटने तक खेत में मौजूद रहती है.

सड़न : यह बीमारी जुलाईअगस्त माह में गन्ने के खेत में लगती है. इस के असर से गूदा पीला भूरा, सड़ा हुआ, अंगोला सूखा और गन्ना आसानी से टूट जाता है.

लालधारी : जून माह से बारिश खत्म होने तक इस बीमारी का हमला होता है. इस के असर से डंठल के पास नसों में लाल धारियां लंबाई में फैली होती हैं.

पर्णदाह : इस बीमारी से गन्नों पर नीचे से ऊपर की ओर धारियां लंबाई में फैली हुई दिखाई देती हैं. किल्ले और आंखें सूख जाती हैं. यह बीमारी अक्तूबर से अगस्त महीने में फसल पर हमला करती है.

माइक्रोप्लाजा : इस बीमारी से गन्ने की ऊपर की पत्तियां दूधिया, आधी पारदर्शी, कागज सी हलकी, पीली और झाड़ीनुमा हो जाती हैं. यह बीमारी जुलाई से अक्तूबर महीने में खेत में रहती है.

पेड़ी का बौनापन : यह बीमारी पूरे साल गन्ने के खेत में पाई जाती है. इस के असर से अंगोले की 5 पोरी का गूदा हलका गुलाबी और निचली गांठें चीरने पर नारंगी रंग की हो जाती हैं.

रोकथाम : इन बीमारियों की रोकथाम के लिए हमेशा अच्छी किस्म का सेहतमंद बीज ही इस्तेमाल करें. बीमारी होने पर पौधे को उखाड़ कर खत्म कर दें. पेड़ी न रखें और 2-3 साल उस खेत में गन्ना न बाएं.

बीज को उपचारित कर के ही बोएं और फसल चक्र अपनाएं.

उकठा बीमारी की रोकथाम के लिए कार्बंडाजिम 0.2 फीसदी का बोआई के समय नालियों में छिड़काव करें.

गूदा सड़न, पत्ती के लालधारी और पर्णदाह बीमारी में लाइटौक्स या पेरोनौक्स के 0.2 फीसदी घोल का छिड़काव करें.

पेड़ी का बौनापन बीमारी को रोकने के लिए नमगरम हवा या गरम पानी से बीज उपचार करें.

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