सर्पगंधा का औषधीय रूप में कई शताब्दियों से इस्तेमाल हो रहा है. इसे वानस्पतिक भाषा में ‘राऊवाल्फिआ सर्पेंटिना’ कहते हैं. यह ‘एपोसाइनेरी’ कुल का पौधा है.

सर्पगंधा का पौधा 1 से 3 फुट लंबा होता है. इस पर सफेद व गुलाबी फूल  अप्रैल से नवंबर तक आते हैं. इस के फल जूनजुलाई तक पक जाते हैं.

औषधीय इस्तेमाल : आयुर्वेदिक दवा के रूप में सर्पगंधा की जड़ का इस्तेमाल ब्लड प्रेशर कम करने व मानसिक रोग ठीक करने के अलावा दूसरे कई रोगों के इलाज में किया जाता है.

मौजूदा दौर में भी सर्पगंधा की जड़ों से कई दवाएं हासिल की जाती हैं. इस का इस्तेमाल पागलपन के इलाज में भी किया जाता है. इस की जड़ में औषधीय महत्त्व के अन्य ऐल्केलोइड्स डिजिरपिडीन, रेसिंलेमाइन, रिसिरपिनाइन, सर्पेंटाइन व अजामेलिन भी पाए जाते हैं.

सर्पगंधा (Sarpagandha)

खेती : इस की व्यापारिक मांग को देखते हुए इस की खेती फायदेमंद साबित होती है. इस के लिए रेतीली व गहरी जमीन सही होती है. इस के बीजों को मई में बो कर जुलाई में रोपाई की जा सकती है. 2 साल की रोपाई से करीब 2000 किलोग्राम जड़ें (सूखी) और 3 साल की रोपाई से करीब 4000 किलोग्राम जड़ें प्रति हेक्टेयर की दर से हासिल की जा सकती हैं.

अहमियत : एक अंदाजे के मुताबिक देश में इस की मांग करीब 300 टन सालाना है, जो जंगलों से मिलना मुमकिन नहीं है. लिहाजा इस की औद्योगिक स्तर पर रोपाई करना जरूरी हो गया है. विदेशों में इस की मांग को देखते हुए इस की ज्यादा रोपाई कर के भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा हासिल की जा सकती है. इस के तनों व पत्तियों की भी काफी मांग है, जिन से भरपूर आमदनी हासिल की जा सकती है.

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