आम ही एक ऐसा फल है जिसकी बागवानी दुनियां के लगभग सभी देशों में की जाती है. और भारत अकेला एक ऐसा देश है जो दुनियां का करीब 45 फीसदी आम अकेले पैदा करता है.
देश में उगाये जाने वाले फलों में आम ही एक ऐसा फल है जो अपने अलग-अलग स्वाद, सुगंध और रंगों के लिए जाना जाता है. आम में पाया जाने वाला पोषक गुण भी इसे विशेष बनाता है. इसी लिए इसे फलों के राजा का दर्जा भी प्राप्त है. आम ही एक ऐसा फल है जिसकी बागवानी दुनियां के लगभग सभी देशों में की जाती है. भारत अकेला एक ऐसा देश है जो दुनियां का करीब 45 फीसदी आम अकेले पैदा करता है. देश में आम की कुछ ऐसी ऊन्नत और ख़ास किस्में भी हैं जो अपने रंग, रूप और विशिष्ठ स्वाद के लिए पूरे दुनियां में ख़ास पहचान रखता है. इसी लिए इन किस्मों की मांग दुनियां के कई देशों में है.
अगर किसान अपनी आमदनी बढ़ाना चाहते हैं तो उनके लिए आम की बागवानी एक सफल जरिया बन सकती है. बीते सालों में देश में आम की कुछ ऐसी उन्नत किस्में विकसित किये जाने में सफलता पाई गई है जो परंपरागत किस्मों की अपेक्षा उंचाई में बहुत कम होने के साथ ही कम जगह भी घेरती है. इसके अलावा इनका विशेष रंग, रूप, स्वाद और पोषक गुण भी इन्हें ख़ास बनाता है. इसके चलते इन किस्मों का बाजार रेट भी बहुत अच्छा मिलता है. इनमें से कुछ किस्में तो ऐसी है जो किलो के रेट से न बिक कर पीस के रेट से बिकती हैं.
वैसे तो देश में करीब आम की 1000 किस्में ऐसी है जिनका व्यावसयिक तौर पर उत्पादन किया जा सकता है. लेकिन इसमें से बहुत कम ऐसी किस्में हैं जिनका उत्पादन व्यावसायिक निर्यात के नजरिये से किया जाता है. अगर देखा जाए तो देश में उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्णाटक, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, हरियाणा, पंजाब मध्य प्रदेश और केरल आम का सबसे ज्यादा उत्पादन करते है.
देश में आम की उत्पादकता बढ़ाने के लिए बीते सालों में सघन बागवानी के तहत कम उंचाई वाली बौनी और कम फैलाव वाली किस्मों की बागवानी को बढ़ावा दिया जा रहा है. आम की पारम्परिक किस्मों की रोपाई जहाँ पौध से पौध और लाइन से लाइन की दूरी जहाँ 10 मीटर से 12 मीटर तक रखी जाती रही है वहीँ नवीन किस्मों को लाइन से लाइन और पौध से पौध की दूरी 2.5 मीटर से लेकर 3 मीटर, 4 मीटर और 5 मीटर पर भी रोपाई की जाने लगी है. कम दूरी पर की जाने वाली बागवानी को ही सघन बागवानी के श्रेणी में रखा जाता है. इस विधि से कम जगह में किसान आम के अधिक पौधों की रोपाई कर सकते हैं. इससे उन्हें कम जगह में अधिक उत्पादन प्राप्त हो जाता है.
आम की शंकर, बौनी और रंगीन किस्में
आम की बौनी और कम फैलाव वाली इन किस्मों की खेती से किसानो को कई तरह के लाभ मिल जाते हैं. इन किस्मों के बीच किसान दूसरी तरह की फसलों की खेती सहफसली के रूप में कर सकते हैं. आम की बौनी किस्मों से पौध रोपण के तीसरे साल से ही व्यावसायिक उत्पादन लिया जा सकता है. इनमें कीट बीमारियों के रोकथाम के लिए आसानी से उपायों को अपना सकते हैं. पेड़ की लम्बाई अधिक न होने से सभी फलों की बैगिंग कर सकते हैं साथ ही फलों की तुड़ाई आसानी से की जा सकती है. इसके अलावा पेड़ों की प्रूनिंग भी आसानी से की जा सकती है. यह नियमित फलन वाली किस्मों में गिनी जाती है यानी इन किस्मों में दूसरी किस्मों की तरह एक साल के अंतराल पर फल आने की समस्या भी नहीं पाई जाती है.
पूसा अरुणिमा
यह किस्म आम्रपाली व सेंसेशन किस्मों के क्रास से तैयार की गयी है। इसमें हर साल फल आता है और वृक्ष मध्यम ओजस्वी होते हैं. पूसा अरुणिमा के पौधों को सघन बागवानी के तहत 3×3 मीटर दूरी पर लगाना चाहिए. इसके फल बड़े आकार (250 ग्राम) तक के लालिमा लिए अत्यन्त आकर्षक होते हैं. यह देर से पकने वाली प्रजाति है. इसके फल अगस्त के पहले सप्ताह में तैयार हो जाते हैं. फलों में टी.एस. एस, यानी कार्बोहाइड्रेट, कार्बनिक अम्ल, प्रोटीन, वसा और खनिज की मात्रा का निर्धारण करने वाला मापक जो मध्यम मिठास लिए (19.5 प्रतिशत कुल घुलनशील ठोस पदार्थ) होती है. पकने के बाद फलों को सामान्य कमरे के तापमान पर 10-12 दिनों तक आसानी से रखा जा सकता है. यह किस्म भाकृअनुप–भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली में विकसित की गयी हैं. यह रोपण के चार वर्ष बाद इसके पेड़ से व्यावसायिक फलोत्पादन किया जाना उचित होता ह. इसका फल देर से पकता है. इसमें छिलका लाल और आकर्षक होता है. यह विटामिन सी बीटा-कैरोटीन से भरपूर होता है. यह किस्म साल 2002 में रिलीज़ हुई थी.
पूसा सूर्या
कलर्ड और नियमित फलन वाली किस्मों मेंपूसा सूर्या का अहम स्थान. इसके इसके पौधे दूसरी रंगीन किस्मों की तरह बौने होते हैं. इसलिए यह 3 मीटर x 3 मीटर से लेकर 6 मीटर x 6 मीटर रोपण के लिए उपयुक्त होता है. इसमें आम्रपाली और उत्तरी भारत के अन्य वाणिज्यिक खेती की तुलना में आम की गुम्मा बिमारी की संभावना कम होती है. इसके फल जुलाई के तीसरे सप्ताह से पकने शुरू हो जाते हैं. इस किस्म के फल आकार में बड़े से मध्यम 270 ग्राम तक और देखने में आकर्षक खुबानी के पीले छिलके के रंग की तरह होते हैं. इसमें कुल टीएसएस यानी और मध्यम कुल घुलनशील ठोस पदार्थ (18.5%) होता है. इसमें विटामिन सी (42.6 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम गुदे में और बीटा कैरोटीन सामग्री में भरपूर होता है. पकने के बाद कमरे के तापमान पर इसे 8 से 10 दिन तक संरक्षित किया जा सकता है. फल जुलाई के मध्य से पकने शुरू हो जाते हैं. इस प्रकार की किस्मों की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बहुत मांग है. इसे साल 2002 में रिलीज़ रिलीज किया गया था.
पूसा प्रतिभा
हाइब्रिड किस्मों में पूसा प्रतिभा अपने तरह की एक अनोखी किस्म है जो आम्रपाली और सेंसेशन के क्रास से विकसित की गई है. यह किस्म नियमित रूप से आकर्षक फलों के आकार, चमकदार लाल छिलके और नारंगी गूदे में होती है फलत देती है. इसके सुनहरे पीले रंग और लाल छिलके का रंग खरीदारों को बहुत आकर्षित करते हैं है. इसमें आयताकार, समान आकार के फल होते हैं. यह घरेलू के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में सबसे ज्यादा पसंद की जानी वाली किस्म है. पूसा श्रेष्ठ के फल जुलाई के पहले सप्ताह में पकने आरंभ हो जाते हैं और पके फलों को 6-7 दिनों तक आसानी से रखा जा सकता है.
अगर लाभ की बात करें तो उत्तर भारत में उगाए जाने वाले आम के व्यावसायिक किस्मों यानी दशहरी से इस किस्म द्वारा दोगुना लाभ कमाया जा सकता है. यह 3 मीटर x 3 मीटर से लेकर 6 मीटर x 6 मीटर रोपण के लिए उपयुक्त होता है.. इसलिए, यह प्रति यूनिट क्षेत्र में उच्च उत्पादकता देने वाली प्रजाति मानी जाती है. अगर उत्पादन देखा जाए तो इसके प्रति पौधे के आधार पर, यह दशहरी की तुलना में लगभग 3 गुना अधिक उत्पादन देने वाला होता है, यह 2012 में रिलीज़ हुई थी .
पूसा श्रेष्ठ
यह किस्म भी आम्रपाली और सेंसेशन के क्रास से विकसित की गई है. जिसमें नियमित फलन के साथ इसके फल आकर्षक लम्बे आकार के, लाल छिलका और नारंगी गूदा लिए होते हैं. इसके लम्बे आकार के कारण, यह पैकेजिंग के लिए काफी उपयुक्त है. यह घरेलू के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय बाजारों के लिए सभी आवश्यकताओं को पूरा करता है. इसमें पकने के बाद कमरे के तापमान पर 7 से 8 दिनों का शैल्फ-जीवन होता है, जो उत्तर भारत में उगाए जाने वाले वाणिज्यिक आम की किस्मों अर्थात् दशहरी से लगभग दोगुना समय है.
अगर इसे 6 मीटर x 6 मीटर में रोपा जाए तो लगभग 278 पौधों को प्रति हेक्टेयर के दर से रोपा जा सकता है. प्रति पौधे के आधार पर अगर देखा जाये तो यह दशहरी की तुलना में अधिक पैदावार देने वाला होता है. इसमें लाल रंग के छिलके के साथ टी एस एस लेवल यानी मध्यम चीनी एसिड मिश्रण और फलों के आकार में सभी एकरूपता जैसे सभी वांछनीय गुण हैं. यह 2012 में रिलीज़ हुई थी .
पूसा पीतांबर
यह एक अद्वितीय संकर (आम्रपाली X लाल सुंदरी) है, जो असरदार आकर्षक फलदार आकृति में नियमितता रखती है. अपने आयताकार आकार के कारण, यह समान पैकेजिंग के लिए काफी उपयुक्त है. पकने पर पीले फलों का रंग खरीदारों को बहुत लुभाता है. यह घरेलू के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय बाजारों के लिए सभी आवश्यकताओं को पूरा करता है. इसमें पकने के बाद कमरे के तापमान पर 5 से 6 दिनों की शैल्फ-जीवन है . पौधे अर्ध-जोरदार हैं और इस संकर के लगभग 278 पौधों को दशहरी (10 मीटर x 10 मीटर) के 100 पौधों के मुकाबले एक हेक्टेयर (6 मीटर x 6 मीटर) में समायोजित किया जा सकता है. इसलिए, यह प्रति यूनिट क्षेत्र में उच्च उत्पादकता देता है . प्रति पौधों के आधार पर, यह दशहरी की तुलना में लगभग 2.0 गुना अधिक है, जिसमें ऑन और ऑफ वर्ष शामिल है. इसमें अच्छी चीनी: एसिड मिश्रण होती है और फलों के आकार में सभी एकरूपता से इस हाइब्रिड को बहुत महत्वपूर्ण बनाता है. यह 2012 में रिलीज़ हुई थी .
पूसा लालिमा
आम की पूसा लालिमा किस्म देखने में बहुत ही खुबसुरत होती है और फलों के पकने के बाद यह खूबसूरती कई गुना बढ़ जाती है. इस किस्म के छिलके इतने पतले होते है की बहुत लोग इसको बिना छिले ही खा जाते हैं. पूसा लालिमा किस्म को दशहरी व सेंसेशन किस्मों के क्रास यानी संकरण से विकसित किया गया है. अगर के उंचाई की बात की जाए तो इसके वृक्ष मध्यम आकार के होते हैं इसी लिए सघन बागवानी के लिहाज से इसे मुफीद माना जाता है. पूसा लालिमा नियमित फलन और शीघ्र पकने वाली प्रजातियों में गिनी जाती है. इसके फल लाल रंग के व मध्यम आकार के बहुत ही मनमोहक और आकर्षक होते हैं, जिनमें गूदा 70.1 प्रतिशत होता है. इस किस्म के आम के फल जून के पहले पखवाड़े में पकने प्रारंभ हो जाते हैं.
इसमें पकने के बाद कमरे के तापमान पर 5 से 6 दिनों की शेल्फ लाइफ होती है. इसे 3 मीटर x 3 मीटर से लेकर 6 मीटर x 6 मीटर की दूरी पर रोपा जा सकता है. अगर उत्पादकता की बात करें तो यह प्रति पौधों के आधार पर, यह दशहरी की तुलना में लगभग 4.0 गुना अधिक उत्पादन देता है. यह किस्म भी 2012 में रिलीज़ हुई थी.
अम्बिका और अरूणिका
केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान द्वारा विकसित आम की संकर किस्में अम्बिका और अरूणिका अपने सुंदर फलों के कारण सबका मन मोह लेती है. हर साल फल आने की ख़ासियत इन्हें एक साल छोड़कर फलने वाली आम की किस्मों से अधिक महत्वपूर्ण बनाती हैं. अम्बिका को साल 2000 और अरूणिका को 2005 रिलीज किया गया था. देखने में तो ये किस्में खूबसूरत तो होती हैं ही खाने में लजीज होने के साथ पौष्टिकता से भरपूर भी होती हैं.
अरूणिका की मिठास और विटामिन ए के अतिरिक्त कैंसर रोधी तत्व जैसे मंगीफेरिन और ल्यूपेओल से भरपूर हैं, अरूणिका के फल टिकाऊ हैं और ऊपर से खराब हो जाने के बाद भी उनके अन्दर के स्वाद पर कोई खराब असर नहीं पड़ता है. अरुणिका और अम्बिका किस्मों को भारत के विभिन्न जलवायू में लगाने के बाद यह पाया गया कि इनको अधिकतर स्थानों पर सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है. हर साल फल देने के कारण पौधों का आकार छोटा है और अरूणिका का आकार तो आम्रपाली जैसी बौनी किस्म से 40 प्रतिशत कम है. इसके फल मध्यम आकार (190-210 ग्राम) के तथा आकर्षक लाल रंग के होते हैं तथा फल मीठे (24.6 प्रतिशत कुल घुलनशील ठोस पदार्थ) व गृदा नारंगी पीले रंग का होता है.
आमतौर पर घर में छोटे से स्थान में भी शौक़ीन आम की बौनी किस्में लगाने के लिए इच्छुक हैं उनके लिए यह सबसे अच्छी किस्म है. अरूणिका के पौधे आम्रपाली से भी छोटे आकार के होते हैं इसी वजह से इस किस्म में लोगों की रूचि बढ़ गयी.इसका नियमित फलन भी इसे ख़ास बनाता है. अरुणिका को आम्रपाली के साथ वनराज के संयोग से इजाद किया गया. इसमें मां की भूमिका आम्रपाली नें और पिता की भूमिका गुजरात की प्रसिद्ध किस्म वनराज नें निभाई है.
जबकि अम्बिका के खासियत की अगर बात करें तो इसके फल मध्यम आकार (190-210 ग्राम) के तथा आकर्षक लाल रंग के होते हैं तथा फल मीठे (24.6 प्रतिशत कुल घुलनशील ठोस पदार्थ) व गूदा नारंगी पीले रंग का होता है. इसको आम्रपाली और जर्नादन पसंद के संकरण से इजाद किया गया. जर्नादन पसन्द दक्षिण भारतीय किस्म है.
आम्रपाली को मातृ किस्म के रूप में प्रयोग करने के कारण अम्बिका और अरूणिका दानों में ही नियमित फलन के जीन्स आ गए. इन किस्मों को खूबसूरती पिता से और स्वाद व अन्य गुण माता से मिले. आम्रपाली में विटामिन ए अधिक मात्रा में है इसलिए अरूणिका में आम्रपाली से भी ज्यादा विटामिन ए मौजूद है. अम्बिका और अरूणिका दोनों ही किस्मों ने पूरे देश भर में विभिन्न प्रदर्शनियों में सबका मन मोह लिया.
आम्रपाली
सघन बागवानी के लिए सबसे ज्यादा मुफीद आम्रपाली किस्म दशहरी और नीलम किस्मों के क्रास यानी संकरण से विकसित की गई है. इसके बाग़ से हर साल फलत मिलती है. इसके पेड़ लम्बाई और फैलाव में बहुत बड़े नहीं होते हैं. इसका फल देरी से पकता है इस लिए किसान इसका रोपण सबसे ज्यादा करते हैं. कम जगह घेरने के कारण इसे शहरों में किचन गार्डन में भी रोपित करते हैं. इसके फल जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के अंतिम सप्ताह में पकते हैं. इस किस्म के फल गूदेदार और रेशारहित होते हैं. अगर इसके पौधों को 2.5 x 2.5 मीटर की दूरी पर लगाकर एक हैक्टर क्षेत्रफल में 1600 पौधे उगाए जा सकते हैं.
मल्लिका
यह किस्म नीलम और दशहरी किस्मों के संकरण यानी क्रास से तैयार की गयी है. मल्लिका भी नियमित फल देने वाली उन्नत किस्मों में गिनी जाती है. इसकी रोपाई सघन बागवानी के नियमों को ध्यान में रख की जा जा सकती है.
इसके फलों का आकार और वजन दोनों अपेक्षाकृत दूसरी किस्मो की अपेक्षा बड़ा होता है. जिसमें कुछ फलों का वजन 700 ग्राम से अधिक हो जाता है. पहले फल तोड़ने पर पकने के बाद भी फलों में खटास रहती है लेकिन जब उन्हें सही अवस्था में तोड़ा जाए तो मिठास और खटास का अद्भुत संतुलन मिलता है. पेड़ पर इसके फल मध्य जुलाई में पकने शुरू होते हैं.विशेष स्वाद के अतिरिक्त फल का गूदा दृढ़ होता है इसलिए स्वाद और बेहतरीन हो जाता है. फल नारंगी पीले रंग का होता है, जिसमें आकर्षक गहरे नारंगी रंग का गूदा और एक बहुत पतली गुठली होती है. फल में भरपूर गूदा होने के कारण ग्राहक को पैसे की अच्छी कीमत मिल जाती है. यह किस्म दक्षिण भारत में अधिक प्रचलित है. विगत वर्षों में इसके फलों का निर्यात अमेरिका तथा खाड़ी देशों को किया गया है.
अर्का अरुण
आम की यह नियमित फल देने वाली बौनी किस्म है. इसको बैंगनपल्ली व अल्फांसो किस्मों के संकरण यानी क्रास से तैयार किया गया है. अर्का अरुण के फल मीठे (20 प्रतिशत कुल घुलनशील ठोस पदार्थ) व लालिमा लिए होते हैं. फलों का गूदा पीले रंग का व रेशा रहित होता है. इसके फल का औसतन वजन 500 ग्राम होता है. इसमें टीएसएस लगभग 20° ब्रिक्स होता है. इसमें नियमित फलन होता है, इसकी प्रकृति बौनी है, यह बैकयार्ड रोपण के लिए तथा 5 x 5 मीटर रोपण के लिए उपयुक्त है, यह एक मध्य-मौसमी किस्म है.
अर्का पुनीत
यह किस्म अल्फांसो व बैंगनपल्ली किस्मों के संकरण यानी क्रास से तैयार की गयी है. अर्का पुनीत नियमित फलन देने वाली प्रजाति है. इसके फल गोलाकार होते हैं और पकने के समय पर लाल मुख भाग के साथ यह पीला रंग का हो जाता है। इसका गूदा ठोस, नारंगी रंग का होता है तथा रेशा एवं छिलका ऊतक-रहित है. इसमें लगभग 21°ब्रिक्स का टीएसएस होता है. इसमें गूदा-प्राप्ति 65-70% होती है. इसकी टिकाऊ गुणवत्ता अच्छी है.
अर्का अनमोल
अर्का अनमोल किस्म को अल्फ़ान्सो और जनार्दन पसंद के क्रास से से विकसित किया गया है. यह भी नियमित फलन वाली किस्म है और सघन रोपण के लिए उपयुक्त होती है. यह एक पछेती मौसम वाली किस्म है, इसकी फसल-तुड़ाई जून माह के दूसरे सप्ताह के दौरान शुरू की जाती है. इसके फल लम्बे बनावट के मध्यम आकार के होते हैं. इसके फल का वजन लगभग 300-330 ग्राम होता है. इसका डंठल लम्बाई लिएहोता है. पकने की स्थिति में इसके फल का रंग हल्का हरा हो जाता है और पूर्ण रूप से पकने पर इसका रंग सुनहला पीला हो जाता है. इसका छिलका पतला और मुलायम होता है. इसका गूदा नारंगी रंग का ठोस और रेशा एवं स्पंजी टिशु रहित होता है. इसमें बेहतर शक्कर-अम्लीयता का मिश्रण होता है. इसमें लगभग 19 प्रतिशत ब्रिक्स का टीएसएस होता है. इसमें लगभग 70-75% गूदा होताहै और इसका टिकाऊपन गुणवत्ता बहुत अच्छा है.
अर्का नीलकिरण
आम की इस किस्म को अल्फोंसो व नीलम किस्म से क्रास कर विकसित किया गया है. इसके फल देर में पकते हैं. इस लिए बाज़ार रेट अच्छा मिलता है. इसके फलों की तुड़ाई जून माह के अंतिम सप्ताह से शुरू की जाती है. इसके फलों की आकार अंडाकार होता है और फल मध्यम आकार के होते है. फल का औसत वजन लगभग 270-280 ग्राम होता है. इसका डंठल लंबवत होता है. पकने की अवस्था पर इसके फल का रंग सुनहला पीला-भूरा हो जाता है. इसका छिलका मुलायम, मध्यम पतला तथा गूदा गहरे पीले रंगा का और ठोस होता है. यह रेशा एवं स्पंजी टिशु से मुक्त है.
अर्का सुप्रभात
इस किस्म को अभी हाल ही में रिलीज किया गया है जो अर्का आम्रपाली (दशहरी x नीलम) और अर्का अनमोल (अल्फांसो x जनार्दन पसंद) के डबल क्रॉस हाइब्रिड तरीके से विकसित किया गया है. बागवान ग्राफ्ट लगाने के चौथे साल से आप एक पेड़ से लगभग 40 किलोग्राम आम की फसल ले सकते हैं. इस किस्म के एक आम का वजन लगभग 250 ग्राम होता है और आम का आकार अल्फांसो जैसा होता है. इस किस्म का गूदा नारंगी और सख्त होता है, स्पंजी नहीं जैसा कि कुछ आमों में देखा जाता है. इसे सामान्य तापमान पर 10 दिनों तक भंडारित किया जा सकता है. यह किस्म प्रसंस्करण के साथ-साथ फल के रूप में उपयोग के लिए उपयुक्त.
इसे अगर सघन बागवानी के तहत 5×5 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है तो प्रति एकड़ 160 ग्राफ्ट लगाए जा सकते हैं. अर्का सुप्रभात आम में 70% तक गूदा होता है. जबकि 100 ग्राम गूदे में 8.35 मिलीग्राम कैरोटीनॉयड और 9.91 मिलीग्राम फ्लेवोनोइड होता है.
सिन्धु
इस किस्म को रत्ना व अल्फांसो किस्मों के संकरण यानी क्रास से तैयार किया गया है. यह नियमित फलन देने वाली प्रजाति है. सिन्धु के फलों में गुठली बहुत पतली व छोटी होती है. इसके फल आकर्षक, मध्यम आकार के व रेशारहित होते हैं.
रत्ना
इस किस्म को नीलम व अल्फांसो के संकरण से तैयार किया गया है. यह नियमित फलन देने वाली प्रजाति है. इसके फल आकर्षक. स्पंजी व रेशारहित होते हैं. उपरोक्त आम की नवीन संकर किस्में नियमित फलन देने वाली तथा मध्यम सघन बागवानी के लिये उपयुक्त पाई गयी हैं. संकर आम के पौधे तीन वर्ष बाद फल देना शुरू कर देते हैं और तीसरे वर्ष में 5-6 फल मिल जाते हैं. इन प्रजातियों से 6-7 वर्ष बाद व्यावसायिक उत्पादन मिलना शुरू हो जाता है. दस वर्ष बाद 300 से 400 फल प्रतिवृक्ष मिलने शुरू हो जाते हैं.
सेंसेशन
‘सेंसेशन’ आम देर से पकने वाली आम की किस्म है. जिसकी खोज दक्षिण फ्लोरिडा में हुई थी लेकिन अब इसे दुनियां के कई देशों में व्यावसायिक पैमाने पर उगाया जाने लगा है. आम की यह प्रजाति बौनी और रंगीन किस्मों में सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली किस्मों में से एक है. जिसके फलों आकार अंडाकार होता है
इस आम के विशिष्ट विशेषता यह है की इसके छिलके का रंग हल्जोके गुलाबी और लाल रंग का होता है जो पकने पर गहरे बेर जैसा लाल दिखता है. इसके गूगूदे का रंग हल्का पीला होता है. जिसमें बहुत महीन रेशे होते हैं और स्वाद हल्की सुगंध के साथ हल्का मीठा होता है. यह जुलाई के अंत से सितंबर तक पकती है, इसी लिए इसे यह देर से पकने वाली किस्मों में शामिल किया गया.
टॉमी एटकिन्स
आम की यह कम मीठी होने के चलते डायबिटीज के की समस्आया से जूझ रहे लोगों में काफी लोक प्रिय है. टॉमी एटकिन्स एक अमरीकी प्रजाति है जिसे फ्लोरिडा में खोजा गया था. जिसे भारत में आसानी से उगाया जा रहा है. इसके फलों के रंग और वजन की बात करें तो यह सुर्ख लाल रंग का देखने में सेब की तरह होता है जो वजन में भी दूसरी रंगीन किस्मों की अपेक्षा अधिक होता है. इसके फल 100 रुपया प्रति पीस के हिसाब से बिकते हैं. इसके वृक्ष बौनी किस्मों में आते हैं इस लिए इसे सघन बागवानी के तहत रोपा जा सकता है. आम की इस किस्म को तुड़ाई के बाद लगभग दस दिनों तक सामान्य तापमान परभंडारित किया जा सकता है.
टॉमी एटकिंस आम विटामिन सी और विटामिन ए का एक बड़ा स्रोत होने के साथ-साथ फाइबर का भी अच्छा स्रोत हैं. इनमें फोलेट, विटामिन बी6 और पोटेशियम, कैल्शियम और आयरन जैसे खनिज भी होते हैं. अधिकांश आमों की तरह, टॉमी एटकिंस आम में एंजाइम होते हैं जो पाचन के लिए फायदेमंद होते हैं.
आम की अन्य व्यावसायिक किस्में
गवरजीत
अलग तरह के मिठास और सुगंध के लिए पूरी दुनियां में विख्यात उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों में उगाया जाने वाला गवरजीत आम जो भी एक बार खाता है वह इसका मुरीद ही हो जाता है. आम की यह प्रजाति सबसे पहले बाज़ार में पक कर आ जाती है. यानी यह आम की अर्ली प्रजाति का है. इसकी आवक दशहरी के पहले शुरू होती है. जब तक डाल की दशहरी आती है तब तक यह खत्म हो जाता हैयह आम देखने में देशी आम के साइज की होती है लेकिन इसका रेट दशहरी से 3 गुना ज्यादा होता है. पूर्वांचल के बस्ती जिले से प्रसारित हुआ यह आम आज पूरे पूर्मेंवांचल में अपनी महक बिखेर रहा है.
गवरजीत आम की एक खासियत यह भी है की इसे कार्बाइड से नहीं पकाया जाता है. ठेले पर आम पत्तों के साथ नजर आता है जिससे उसकी अलग पहचान होती है. अपने स्वाद और क्वालिटी के चलते गवरजीत आम की दूसरी किस्मों से महंगा भी होता है.
पूर्वांचल के गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती और संतकबीरनगर जिलों के लाखों लोगों को आम के सीजन में इसका इंतजार रहता है.
जरदालू
आम की यह बिहार की एक प्रसिद्ध किस्म है ऐसा माना जाता है कि इसकी उत्पति बिहार के भागलपुर जिले में हुई है. भागलपुर एवं इसके आस-पास के क्षेत्रों में इसकी बागवानी बड़े पैमाने पर की जाती है. फल की उच्च गुणवत्ता के कारण यह किस्म भी पड़ोसी राज्यों में भी लोकप्रिय एवं विख्यात है.
इसके वृक्ष बड़े एवं वृक्षों के छत्रक का फैलाव सामान्य थोड़ा अधिक होता है. यह एक अगेती किस्म है. वृक्षों में मंजर जनवरी के अंतिम सप्ताह में निकलना शुरू होता है एवं 20-25 फरवरी तक निकलते रहते हैं. जून के प्रथम सप्ताह में फल पकने लगते हैं। इसके फल काफी बड़े एवं स्वादिष्ट होते है. फल मध्यम आकार से थोड़े बड़े, लम्बाकार (साधारणतया 10.6 सें.मी. लम्बे एवं 6.6 सें.मी. चौड़े या मोटे) होते हैं. ओसतन एक फल 205-210 ग्राम वजन का होता है. फल का ऊपरी भाग चौड़ा तथा नीचला भाग पतला एवं गोलाकार होता है. फल की सतह चिकना तथा बराबर होता है. छिलका थोड़ा मोटा होता है. फलों का रंग पकने पर पीला-नांरगी होता है तथा गूदे में मनमोहक सुगंध होती है. फल में गूदा की मात्रा लगभग 67 प्रतिशत होती है. गूदा मुलायम, रेशारहित, लालीमा लिए पीला होता है. कुल घुलनशील तत्वों की मात्रा 21 प्रतिशत तथा अम्ल की मात्रा 0.23 प्रतिशत होती है. गुठली पतली होती है. गूदा हल्के लाल रंग का और मीठा होता है। गूदा में रेशा नहीं होता है.
फलन काफी अधिक होती है। एक वृक्ष से औसतन 1500-2000 फल मिलते हैं जो वजन में 2.5 से 3.0 क्विंटल तक हो सकते हैं. एक हेक्टेयर के बगीचे से 20-25 टन की उपज मिलती है. फलों की भण्डारण क्षमता अन्य किस्मों की तुलना में थोड़ी बेहतर होती है. पके फल कमरे के तापक्रम पर 3-4 दिनों तक भंडारित किए जा सकते हैं. इस किस्म में भी द्विवर्षीय फलन की समस्या है.
अल्फांसो
यह महाराष्ट्र राज्य की प्रमुख व्यावसायिक किस्म और देश की सबसे पसंदीदा किस्मों में से एक है. इस किस्म को अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. बादामी, गुंडू, खादर, अप्पस, हप्पस और कागदी हप्पस। इस किस्म का फल मध्यम आकार का, अंडाकार तिरछा और नारंगी पीले रंग का होता है. फल की गुणवत्ता उत्तम है तथा रख-रखाव भी अच्छा होता है। इसे डिब्बाबंदी के उद्देश्य से अच्छा पाया गया है. इसे मुख्य रूप से दूसरे देशों में ताजे फल के रूप में निर्यात किया जाता है। यह मध्य ऋतु की किस्म है.इसके फलों का औसत वजन लगभग 250 तक होता है.
बंगनापल्ली
यह दक्षिण भारत की जल्दी पकने वाली एक मुख्य किस्म है. यह आंध्र प्रदेश की मुख्य व्यवसायिक प्रजातियों में से एक है. इसके फल मध्यम से बड़े आकार के होते हैं जिनका औसत वजन 350 से लेकर 400 ग्रा. के बीच होता है. फलों का गूदा सख्त, रेशा विहीन, पीले रंग का एवं बहुत मीठा होता है. फलों की भंडारण क्षमता अच्छी होती है.
बाम्बे ग्रीन
यह उत्तर भारत की जल्दी पकने वाली एक मुख्य व्यावसायिक किस्म है. इसके फल मध्यम आकार के होते हैं जिनका औसत भार लगभग 250 ग्रा. होता है. फलों का स्वाद रुचिकर, गूदा मुलायम एवं मीठा होता है.
चौसा
यह देर से पकने वाली किस्म जो जुलाई के अंत में तैयार होती है. यह मुख्यतः उत्तर भारतीय राज्यों में लोकप्रिय है. इसके फलों का वजन 300-350 ग्रा के बीच होता है. गूदा आकर्षक पीले रंग का, मुलायम एवं मीठा होता है.
दशहरी
यह उत्तर भारत एवं विशेषकर उत्तर प्रदेश राज्य की मुख्य व्यवसायिक प्रजाति है. इसके फल जून में पकते हैं. फलों का आकार मध्यम एवं वजन 250-350 ग्रा. के बीच होता है. फलों का गूदा सख्त, रेशाविहीन मीठा एवं उत्कृष्ट स्वाद का होता है. बीज छोटा एवं पतला होता है. इसकी भण्डारण क्षमता अच्छी होती है. अनियमित फलन इसकी व्यवसायिक खेती में मुख्य समस्या है.
फजली
यह प्रजाति बिहार एवं पश्चिम बंगाल में बहुत लोकप्रिय है. यह एक देर से पकने वाली प्रजाति है. फल बड़े आकार के होते हैं. फलों का गूदा मुलायम से लेकर दृढ होता है. गूदा रेशा विहीन एवं उत्कृष्ट स्वाद वाला होता है इसकी भंडारण क्षमता अच्छी होती है.
गुलाब खास
यह बिहार की प्रजाति है. यह मध्य में तैयार होने वाली और अधिक फल देने वाली किस्म है. फलों का आकार छोटा से लेकर मध्यम होता है जिनमें उत्कृष्ट सुगंध होती है. फल आकर्षक एवं गुलाबी धब्बों से युक्त होते है.
हिमसागर
यह नियमित फलन देने वाली किस्म पश्चिम बंगाल राज्य में बहुत लोकप्रिय है. फलों का आकार मध्यम एवं गुणवत्ता बहुत अच्छी होती है. गूदा ठोस, पीले रंग का, रेशा विहीन एवं सुभावने स्वाद वाला होता है. इसकी भण्डारण क्षमता अच्छी होती है.
केसर
यह गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र की परंपरागत किस्म है. इसके फल मध्यम आकार के, गूदा रेशा विहीन एवं मीठा होता है. इसके फलों में मिठास और अम्ल अनुपात उच्च कोटि का होता है. पकने पर फलों का रंग आकर्षक पीला एवं लालिमा युक्त होता है. यह प्रोसेसिंग हेतु उपयुक्त किस्म है.
किशन भोग
यह पश्चिम बंगाल की माय मौसम में पकने वाली एक मुख्य प्रजाति है. फलों का आकार मध्यम से लेकर बड़ा एवं गुणवत्ता अच्छी होती है. गूदा दृढ़, रेशा युक्त एवं स्वाद युक्त होता है. फलों में हल्की तारपीन जैसी सुगंध पाई जाती है.
लंगड़ा
यह उत्तर भारत की एक प्रमुख व्यवसायिक किस्म है. यह मध्यम देर से पकने वाली प्रजात्ति है. इसके फलों का औसत भार 250-300 ग्रा. होता है. गूदा ठोस, पीले रंग का एवं बहुत कम रेशे वाला होता है. इसके फलों में तारपीन के तेल जैसी हल्की सुगंध इसका एक विशिष्ट लक्षण है. अनियमित फलन इसकी व्यवसायिक खेती में मुख्य समस्या है.
मजकुराद
यह गोवा राज्य की लोकप्रिय प्रजाति है. इसके फल मध्यम ऋतु में पकते हैं. फलों का आकार मध्यम एवं छिलके का रंग आकर्षक पीला होता है. गूदा ठोस, पीले रंग का एवं रेशा विहीन होता है. इसकी भंडारण क्षमता अच्छी होती है.
नीलम
यह दक्षिण भारत की नियमित फल देने वाली, अधिक उत्पादक एवं देर से पकने वाली प्रजाति है. फलों का आकार मध्यम एवं स्वाद अच्छा होता है. गूदा मुलायम्, पीले रंग का एवं रेशा विहीन होता है.
पायरी
यह किस्म महाराष्ट्र एंव गोवा के तटीय क्षेत्रों में ज्यादा पाई जाती है. यह जल्दी पकने वाली, नियमित एंव अधिक फल देने वाली किस्म है. फलों का आकार मध्यम एवं अच्छा होता है. इसमें शर्करा अम्ल का अनुपात अच्छा होता है. गूदा मुलायम एवं रेशा विहीन होता है परंतु भण्डारण क्षमता अच्छी नहीं होती है.
तोतापुरी
यह दक्षिण भारत में प्रसंस्करण के लिए व्यापक रूप से उगाई जाने वाली प्रजाति है. यह नियमित फल देने वाली और अधिक उत्पादक किस्म है. फलों का आकार मध्यम से बड़ा होता है एवं शिरानाल (साइनस) स्पष्ट रूप से उभरा हुआ होता है. फलों की गुणवत्ता मध्यम एवं स्वाद थोड़ा अलग हटकर होता है. गूदा आकर्षक पीले रंग का एवं रेशा विहीन होता है. इस फल के गूदे से गर्मियों में मैंगो शेक बनाया जाता है.
किसान ऊपर बताई गई सभी किस्मों को नकदी फसल के रूप में अपने बागों में रोप सकते हैं. आम के पौधों के रोपण के लिए किसानो को अप्रैल से मई महीने में गड्ढे तैयार कर लेने चाहिए और पौधों की रोपाई तैयार गड्ढों में मानसून की एक दो बारिश के बाद ही करनी चाहिए. किसान अगर उपरोक्त उन्नत किस्मो को बागवानी के लिए चुनते हैं तो यह ज्यादा मुनाफा देने वाली होती है.