हरी खाद की ये फसलें दलहनी व अदलहनी दोनों तरह की होती हैं पर ज्यादातर दलहनी फसलों को शामिल करते हैं क्योंकि इन फसलों में नाइट्रोजन बनाए रखने की कूवत होती है. खेती में हरी खाद उस सहायक फसल को कहते हैं जिस की खेती मुख्यत: जमीन में पोषक तत्त्वों को बढ़ाने और जैविक पदार्थों की भरपाई करने के मकसद से की जाती है.

अकसर इस तरह की फसल में ही हल चला कर मिट्टी में मिला दिया जाता है जो सड़गल कर जमीन की उपजाऊ कूवत को बढ़ाती है और लाभदायक जीवों की तादाद में इजाफा कर जमीन के उपजाऊपन को बनाए रखती है.

मुख्य खरीफ और रबी में उगाई जाने वाली विभिन्न फसलों की बोआई या रोपाई के पहले विभिन्न हरी खाद की फसलों को बो कर इन को हरी अवस्था में ही मिट्टी पलटने वाले हल से चला कर मिट्टी में मिला कर हरी खाद दी जाती है.

कुछ इलाकों में अदलहनीय फसलों का इस्तेमाल स्थानीय उपलब्धता, सूखा सहन करने की कूवत, तेजी से बढ़ोतरी व प्रतिकूल हालात में भी अनुकूलन के चलते किया जाता है. इन फसलों का ब्योरा इस तरह है:

हरी खाद में इस्तेमाल होने वाली फसलों के गुण

* दलहनी फसल हो, जो कम समय में ज्यादा नाइट्रोजन जमीन को दे सके.

* फसल में पानी की मांग कम हो ताकि कम सिंचाई की सुविधा वाले इलाकों में आसानी से उगाई जा सके.

* गहरी जड़ वाली फसल हो जो गहराई से पोषक तत्त्वों को हासिल कर सके और निचली सतहों को मुलायम बना सके.

* जल्दी उगने व तेजी से बढ़ने वाली फसलें सही होती हैं.

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