भारत में प्याज की खेती तकरीबन 4.8 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है और इस का उत्पादन तकरीबन 74.50 लाख मीट्रिक टन है. इस की खेती मुख्य रूप से तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, ओडिशा, हरियाणा, गुजरात और मध्य प्रदेश में बड़े पैमाने पर की जाती है.

प्याज महत्त्वपूर्ण नकदी फसल है. इस में फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम, वसा, मैगनीशियम वगैरह पौष्टिक तत्त्व पाए जाते हैं. इसे अचार, चटनी व मसाले के रूप में भी काम में लिया जा सकता है. इस में अनेक औषधीय गुण भी पाए जाते हैं.

जलवायु : यह ठंडे मौसम की फसल है लेकिन इसे कई तरह के वातावरण में उगाया जा सकता है परंतु यह फसल ज्यादा गरमी, ठंड और बारिश सहन नहीं कर पाती है. शुरू में बढ़वार के दौरान कम तापमान में असमय फुलन और अचानक तापमान में बढ़ोतरी होने पर छोटे आकार की गांठें बन जाती हैं.

जमीन : प्याज की खेती बलुई दोमट से ले कर चिकनी दोमट मिट्टी में की जा सकती है लेकिन अच्छी पैदावार के लिए दोमट मिट्टी सही है. प्याज की खेती करने के लिए सही मात्रा में कार्बनिक पदार्थ जैसे अच्छी सड़ी गोबर की खाद, कंपोस्ट, वर्मी कंपोस्ट वगैरह का इस्तेमाल करना चाहिए.

मिट्टी अधिक क्षारीय या अम्लीय नहीं होनी चाहिए. ऐसा होने पर प्याज की गांठों की क्वालिटी और उत्पादन घटता है. जिस मिट्टी में कार्बनिक खाद की ज्यादा मात्रा, 5.8 से 6.5 पीएच मान होने के साथसाथ पानी निकास की व्यवस्था अच्छी हो, इस फसल की खेती के लिए काफी आदर्श मानी जाती है.

किस्में : प्याज की ज्यादा उपज हासिल करने के लिए उन्नतशील किस्मों का चयन करना चाहिए.

लाल रंग वाली किस्में : पूसा ह्वाइट, पूसा रैड, अर्का निकेतन, एग्रीफाउंड डार्क रैड, एग्रीफाउंड लाइट रैड, पंजाब रैड राउंड, एन 241, एन 53, अर्का कल्याण, बसवंत 780, इंडम डीआर 1, संकर 3, उदयपुर 101, उदयपुर 103, एनएचडीएफ रैड.

सफेद रंग वाली किस्में : पूसा ह्वाइट राउंड, उदयपुर 102, एग्रीफाउंड ह्वाइट, पंजाब 48, जेवी 12.

पीले रंग वाली किस्में : अर्लीग्रानो, फूले सुवर्णा, अर्का पीतांबर.

गुच्छेदार किस्में : सीओ 1, सीओ 2, सीओ 3, एग्रीफाउंड रैड, एमडीयू-1.

इस के अलावा भी बहुत सी निजी बीज कंपनियां अच्छी संकर और उन्नत किस्मों के बीज मुहैया करा रही हैं. इन का इस्तेमाल ड्रिप सिंचाई तकनीक अपनाने से प्याज के उत्पादन में ज्यादा बढ़ोतरी मिलती है.

खेत की तैयारी : मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की एक गहरी जुताई करें. इस के बाद देशी हल से 2-3 जुताइयां कर के खेत तैयार करें ताकि खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाए.

जुताई से पहले खेत में 8-10 टन प्रति एकड़ अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट अच्छी तरह मिला दीजिए.

गोबर की खाद को जैविक फफूंदनाशी से उपचारित करना फायदेमंद है. इस के बाद खेत में पाटा लगा कर समतल करना चाहिए और क्यारियां बनानी चाहिए.

प्याज की खेती के लिए मेंड़ नाली तकनीक, सतही क्यारी तकनीक और ऊंची उठी क्यारी तकनीक खास हैं. ऊंची उठी क्यारियों की चौड़ाई 90 सैंटीमीटर से 100 सैंटीमीटर और ऊंचाई 20-25 सैंटीमीटर रखें. 2 क्यारियों के बीच तकरीबन 45 सैंटीमीटर चौड़ाई की नाली छोड़नी चाहिए.

बीज दर और बीजोपचार : प्याज की खेती के लिए बीज की मात्रा 8-10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या छोटी गांठों की मात्रा 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सही है. प्याज में भी बीजोपचार जरूरी है. इस के लिए थाइरम या केप्टान की 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें.

यों करें पौधशाला की देखरेख : एक हेक्टेयर क्षेत्र में प्याज लगाने के लिए तकरीबन 12×1 मीटर की 32-35 क्यारियों की जरूरत होती है. हर क्यारी में बोआई से 15-20 दिन पहले 15-20 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद व 500 ग्राम नीम की खली, कार्बोफ्यूरान 3जी 8 से 10 ग्राम प्रति वर्गमीटर और थाइरम या केप्टान की 2 ग्राम मात्रा प्रति लिटर पानी में घोल कर फव्वारे से 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें.

पौध की रोपाई : प्याज की खेती के लिए तैयार खेत में पौध रोपाई से पहले ड्रिप या रेनपोर्ट मिनी स्प्रिंकलर्स से हलकी सिंचाई करें. प्याज की 12-14 सैंटीमीटर लंबी और स्वस्थ पौध रोपाई के लिए चुनें.

रोपने से पहले पौध की जड़ों को अजेटोबैक्टर के घोल से 5 मिनट तक उपचारित करें. ऐसा करने से प्याज के पौधों की बढ़वार ज्यादा होती है. प्याज की गांठों को बोने के लिए 1.5-2 सैंटीमीटर व्यास वाले आकार की छोटी गांठों का चयन करें.

ड्रिप रेनपोर्ट सिस्टम (Drip Rainport System)

ड्रिप और रेनपोर्ट सिंचाई तकनीक : प्याज की फसल में अगर समय से पानी न मिले तो इस की क्वालिटी पर भी असर पड़ता है और प्याज की गांठें अपना सही आकार नहीं ले पाती हैं.

खुली सतही तकनीक से सिंचाई करने पर पौधों को उन की उम्र और अवस्था के मुताबिक पानी देना मुश्किल है और सिंचाई का तकरीबन 65 से 70 फीसदी पानी भी बेकार चला जाता है इसलिए प्याज की खेती के लिए बेहतर सिंचाई तरीका अपनाना चाहिए.

ड्रिप सिंचाई तकनीक : प्याज में ड्रिप तकनीक द्वारा पौधों की जड़ों के पास कम दबाव से लंबे समय तक बूंदबूंद पानी पहुंचाया जाता है. यह बहुत ही आसान और फायदेमंद सिंचाई तकनीक है. इस तकनीक से ज्यादा उत्पादन लेने के लिए ऊंची उठी हुई क्यारियां बनानी चाहिए. ड्रिप सिंचाई के लिए जे टर्बो अक्यूरा, जे टर्बोलाइन, टर्बोलाइन पीसी, जे टर्बो स्लिम और चेंपीन ड्रिप टेप मौजूद हैं. जलगांव की जैन ड्रिप कंपनी का सिस्टम काफी चलता है.

रेनपोर्ट मिनी स्प्रिंकलर्स : प्याज की जड़ें मिट्टी की सतह से 10-15 सैंटीमीटर की गहराई में ही रहती हैं इसलिए प्याज की सिंचाई के लिए रेनपोर्ट मिनी स्प्रिंकलर्स सही है. इस को जमीन से 1 मीटर ऊपर लोहे की छड़ के सहारे या बांस के टुकड़ों के सहारे लगाते हैं. इस स्प्रिंकलर्स सिस्टम से जमीन के पूरे इलाके पर समान रूप से पानी मिलता है. ऐसे स्प्रिंकलर्स को बारबार इधरउधर लगाने की जरूरत नहीं होती है और फसल तैयार होने पर खुदाई के बाद इसे घर भी ले जाया जा सकता है.

खाद और उर्वरक : प्याज की खेती के लिए खाद और उर्वरकों की सही मात्रा का निर्धारण मिट्टी जांच के नतीजों के आधार पर करना चाहिए.

यदि मिट्टी की जांच मुमकिन नहीं हो तो स्थानीय कृषि विभाग की सिफारिश की गई खाद और उर्वरकों की मात्रा का इस्तेमाल करें. यदि मिट्टी में गंधक की कमी हो तो 40 किलोग्राम जिप्सम प्रति एकड़ की दर से इस्तेमाल करें.

फर्टिगेशन : पानी में घुलनशील उर्वरकों को सूक्ष्म सिंचाई तकनीक से पानी के साथ पौधों के जड़ क्षेत्र में पहुंचाने की विधि को फर्टिगेशन कहा जाता है.

इस तकनीक से समय व उर्वरक की बचत होती है और पौधों को उन की अवस्था के मुताबिक पोषण दिया जा सकता है. फर्टिगेशन के लिए वेंचुरी, फर्टिलाइजर टैंक या पंप इंजैक्टर का इस्तेमाल किया जाता है.

खरपतवार पर नियंत्रण : प्याज के पौधों को काफी नजदीक रोपा जाता है. हाथ से निराईगुड़ाई करना बहुत ही कठिन होता है और ज्यादा मजदूरों की जरूरत होती है इसलिए ज्यादा उत्पादन के लिए खेत खरपतवारमुक्त होना चाहिए.

पत्तियों का मुड़ना और खुदाई : प्याज की फसल पकने पर पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं और अपनेआप झुक कर गिरने लगती हैं इसलिए तकरीबन 10 फीसदी प्याज की पत्तियां मुड़ने पर सिंचाई बंद कर देनी चाहिए व 50 से 70 फीसदी प्याज की पत्तियां गिरने के तकरीबन 10 दिनों के बाद प्याज की खुदाई करनी चाहिए. प्याज की सही समय पर खुदाई करने व सूखने से क्वालिटी, आकर्षकता व भंडारण कूवत बनी रहती है.

प्याज को सुखाना व पत्तियां काटना : खुदाई करने के बाद प्याज की पत्तियों व जड़ सहित एकदूसरे की पत्तियों से ढक कर खेत में ही कतार में सुखाना चाहिए. इस से धूप के चलते प्याज की गांठें खराब नहीं होतीं और प्याज का ऊपरी छिलका एकदम पतला व चमकदार हो जाता है.

प्याज सुखाने के बाद 2-3 सैंटीमीटर गांठ के ऊपर छोड़ कर पत्तियों को काट देना चाहिए जिस से प्याज के सड़ने की संभावना बहुत ही कम हो जाती है.

पैदावार : परंपरागत तकनीक से प्याज की उपज 160-180 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है, जबकि उन्नत किस्म, संतुलित पोषक तत्त्व प्रबंधन और ड्रिप या रेनपोर्ट मिनी स्प्रिंकलर सिंचाई तकनीक की मदद से उपज 300 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक ली जा सकती है.

क्या करें

* खेत में पानी का सही निकास हो.

* ड्रिप सिंचाई तकनीक या रेनपोर्ट मिनी स्प्रिंकलर सिंचाई तकनीक को अपनाएं.

* सिफारिश के मुताबिक ही खाद और उर्वरक का इस्तेमाल करें.

* अच्छी पैदावार वाली, बीमारी व कीट वगैरह न लगने वाली प्रजाति का चयन करें.

* पौधा लगाते समय ड्रिप सिंचाई का इस्तेमाल करें.

* खरपतवारों को न पनपने दें वरना फसल में हलकापन आ जाएगा.

* ड्रिप सिंचाई के साथ पानी में  घुलनशील खाद को कृषि विशेषज्ञ द्वारा बताए अनुसार पौधों को दें.

* कीट और बीमारी की रोकथाम करें.

* कैमिकल दवाओं का छिड़काव शाम या सुबह के समय सावधानी से करें. अगर हवा तेज चल रही हो तो छिड़काव न करें.

क्या न करें

* अधिक पानी किसी भी समय न दें.

* फर्टिगेशन के लिए ठोस कैमिकल खादों को पानी में घुलनशील खादों के साथ नहीं मिलाएं.

* हर खाद का अलगअलग घोल बनाएं और फिर फर्टिगेशन तकनीक से डालने के लिए मिलाएं.

* फर्टिगेशन यूनिट का इस्तेमाल देशी जैविक खाद और अघुलनशील कैमिकल उर्वरक के इस्तेमाल में न करें.

* ठोस कैमिकल खाद को थैले में से निकाल कर फर्टिलाइजर की टंकी में न डालें. घोल हमेशा प्लास्टिक की बालटी में ही बनाएं.

* घुलनशीलता बढ़ाने के लिए उर्वरक के घोल को गरम न करें.

ड्रिप और रेनपोर्ट मिनी स्प्रिंकलर्स से सिंचाई के फायदे

*    पानी की अच्छीखासी बचत होती है.

*    प्याज की पैदावार में बढ़ोतरी और बेहतर फसल मिलती है.

*    पानी और उर्वरकों का सही इस्तेमाल होता है.

*    बिजली की आंखमिचौली की स्थिति में कम समय में ज्यादा क्षेत्र में सिंचाई मुमकिन.

*    फसल लेने के बाद मिनी स्प्रिंकलर्स और ड्रिप लेटरल को घर पर भी ले जाया जा सकता है.

*    खेत में सिंचाई नालियों की जरूरत नहीं होने से पूरे क्षेत्र में प्याज की फसल लगाई जा सकती है. इस से प्रति एकड़ ज्यादा पौधे लगते हैं और नालियों के बनाने में होने वाले खर्च की बचत होती है. पैदावार भी अच्छी मिलती है.

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