दलहनी फसलों की खेती में बहुत ही खास जगह है क्योंकि इन से न केवल दालों का उत्पादन होता है, बल्कि यह जमीन की उर्वराशक्ति में भी काफी हद तक बढ़ोतरी करती हैं.

रबी की दलहनी फसलों में मटर का अपना स्थान है. दालें शाकाहारी भोजन में प्रोटीन का प्रमुख स्रोत तो हैं ही, बल्कि टिकाऊ खेती में दलहनी फसलों का अपना विशेष योगदान है.

दलहनी फसलों में अपेक्षाकृत कम उत्पादनों के कारणों में उन्नत किस्मों के प्रमाणित बीजों की सही मात्रा में अनुपलब्धता, रोगों व कीटों का हमला, अजैविक कारकों के प्रति संवेदनशीलता, बारानी इलाकों में कम लागत के साथ खेती और उस के प्रति उदासीनता, इन के विपणन और प्रसंस्करण की अनदेखी वगैरह खास हैं.

वर्तमान समय में दलहन उत्पादन की ऐसी उन्नत तकनीकें मौजूद हैं जो उन के उत्पाद को दोगुना तक बढ़ाने की कूवत रखती हैं.

जमीन

मटर के सफल उत्पादन के लिए सही जल निकास वाली दोमट, रेतीली दोमट और हलकी दोमट, जिस का पीएच मान 6-7 के बीच हो, साथ ही, मिट्टी में जैविक पदार्थ प्रचुर मात्रा में हो, अच्छी मानी गई है.

ज्यादा पानी जमा रहने वाली जमीन इस के सफल उत्पादन में बाधक मानी गई है. ज्यादा अम्लीय या क्षारीय मिट्टी भी इस के सफल उत्पादन में बाधक मानी गई है.

खेत की तैयारी

पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें और 2 जुताइयां देशी हल या कल्टीवेटर से करें और एक जुताई रोटावेटर से करें. अंत में पाटा चला कर अच्छी तरह समतल कर खेत को तैयार कर लेते हैं.

अगर धान की खेती पहले भी की गई है तो मटर उगाने से प्रति हेक्टेयर 50 किलोग्राम यूरिया जुताई किए खेत में डाल कर पलेवा करें. इस के बाद खेत की तैयारी करने से अंकुरण अच्छा होगा.

भूमि शोधन

भूमि शोधन की ओर ज्यादातर किसान ध्यान ही नहीं देते हैं, जिस के चलते उन्हें निम्न क्वालिटी वाली कम उपज हासिल होती है इसलिए भूमि शोधन करना बहुत ही जरूरी काम है.

भूमि शोधन के लिए फास्फेटिका कल्चर 25 किलोग्राम, राइजोबियम कल्चर 25 किलोग्राम और ट्राइकोडर्मा पाउडर 20 किलोग्राम को 1 एकड़ खेत के लिए 100-120 किलोग्राम गोबर की गलीसड़ी खाद में अच्छी तरह से मिला लें और 4-5 दिनों के लिए जूट के बोरों से ढकने के बाद खेत की तैयारी के समय छिटक कर तुरंत मिट्टी में मिला देना चाहिए.

भूमि शोधन के लाभ

* जमीन में सूक्ष्म जीवों की तादाद में बढ़ोतरी होती है जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन को पौधों की जड़ों में और जमीन में संचित करने में मदद करते हैं.

* मिट्टी में मौजूद न उपलब्ध होने वाले पोषक तत्त्वों को उपलब्ध कराने में अहम भूमिका निभाता है.

* मिट्टी की संरचना में सुधार होता है.

* पौधों में कीट रोगरोधक कूवत में बढ़ोतरी होती है.

किस्मों की उन्नत प्रजातियां

रचना : यह किस्म 130-135 दिनों में पक कर तैयार हो जाती  है. इस के पौधे लंबे होते हैं. यह किस्म सफेद बुकनी नामक रोग की अवरोधी है. यह किस्म पूरे उत्तर प्रदेश में उगाने के लिए सही है. यह किस्म प्रति हेक्टेयर 25 क्विंटल तक उपज दे देती है.

सपना  : यह किस्म 120-125 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. इस किस्म के पौधे बोने होते हैं. यह किस्म सफेद बुकनी नामक रोग की अवरोधी है. यह किस्म पूरे उत्तर प्रदेश में उगाने के लिए सही है. प्रति हेक्टेयर 30-32 क्विंटल तक उपज दे देती है.

पंत मटर 5 : यह किस्म 130-135 दिनों में तैयार हो जाती है. इस किस्म के पौधे लंबे होते हैं जो हरे रंग के होते हैं. यह सफेद बुकनी नामक रोग की अवरोधी किस्म है. यह किस्म मैदानी इलाकों में उगाने के लिए सही है. प्रति हेक्टेयर 20-25 क्विंटल उपज दे देती है.

मालवीय मटर 15 : यह किस्म भी 120-125 दिनों में तैयार हो जाती है. इस किस्म के पौधे मध्यम बौने होते हैं. यह किस्म सफेद बुकनी और रतुआ रोग की अवरोधी है. यह पूरे उत्तर प्रदेश में उगाने के लिए सही किस्म है. प्रति हेक्टेयर 22-32 क्विंटल तक उपज दे देती है.

डीडीआर 23 (पूसा प्रभात) : यह किस्म 100-105 दिनों में तैयार हो जाती है. यह सफेद बुकनी रोग की अवरोधी किस्म है. यह पूर्वी उत्तर प्रदेश में उगाने के लिए सही किस्म है. प्रति हेक्टेयर 15-18 क्विंटल उपज दे देती है.

आईपीएफ 99-13 (जय) : यह किस्म 125-130 दिनों में तैयार हो जाती है. यह एक बौनी किस्म है जो सफेद बुकनी और रतुआ रोग की अवरोधी है. यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उगाने के लिए सही है. प्रति हेक्टेयर 32-35 क्विंटल उपज दे देती है.

इंदिरा मटर 1 (आईईपी 2009-1) : यह हरी मटर की किस्म है जो 105-110 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. यह सफेद बुकनी नामक रोग की मध्यम अवरोधी किस्म है. यह किस्म छत्तीसगढ़ और बिहार राज्यों में उगाने के लिए उपयुक्त है.

आरएफपी 4 (केशवानंद मटर 1) : यह किस्म मध्यम आकार की है. राजस्थान में उगाने के लिए यह सही किस्म है. यह सफेद बुकनी रोग की मध्यम अवरोधी किस्म है.

उत्तेरा : यह किस्म 128-130 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. यह किस्म उत्तर प्रदेश के उत्तरपश्चिमी जोन और पंजाब में उगाने के लिए सही है. प्रति हेक्टेयर 20-22 क्विंटल उपज दे देती है.

अंबिका : यह किस्म 100-120 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. यह किस्म मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में उगाने के लिए सही है. प्रति हेक्टेयर 18 क्विंटल उपज दे देती है.

बीज की मात्रा

मटर की फसल के लिए बीज की मात्रा लंबी किस्मों में 80-100 किलोग्राम और बौनी किस्मों के लिए 125 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर सही है.

ऐसे करें बीज शोधन

मटर की फसल को बीजजनित रोगों से बचाने के लिए बीज शोधन एक बहुत अहम और जरूरी काम है. बीजों को बोने से पहले थायरम 2 ग्राम या मैंकोजेब 3 ग्राम या 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए.

इस के अलावा प्रति 10 किलोग्राम बीज में 1-1 पैकेट यानी 200 ग्राम मटर का राइजोबियम कल्चर और पीएसबी कल्चर का इस्तेमाल करना चाहिए. जैव एजेंटों से बीज शोधन करने के बाद बीजों को सूरज की गरमी और धूप से बचाना चाहिए, फिर बोआई कर देनी चाहिए.

बोआई का उचित समय

मटर की बोआई का उचित समय 15 अक्तूबर से 30 अक्तूबर तक है. देरी से बोआई का समय 1 नवंबर से 15 नवंबर तक है.

बोआई की दूरी : लंबी किस्मों की बोआई के लिए लाइन से लाइन की दूरी और बीज से बीज की दूरी 30 सैंटीमीटर × 12-15 सैंटीमीटर और बौनी किस्मों में 20 सैंटीमीटर × 10-12 सैंटीमीटर रखनी चाहिए. बीज की गहराई 4-6 सैंटीमीटर रखते हैं.

बोआई की विधि : मटर की बोआई हल के पीछे कूंड़ों में 4-6 सैंटीमीटर की गहराई पर करनी चाहिए. वैसे, पंतनगर सीड कम फर्टीड्रिल द्वारा मटर की बोआई करना ज्यादा फायदेमंद रहता है. बोआई के समय जमीन में सही नमी का होना बहुत ही जरूरी है.

खाद और उर्वरक

खाद और उर्वरकों की सही मात्रा के लिए मिट्टी की जांच होना बेहद जरूरी है. मिट्टी की जांच द्वारा ही संस्तुत के अनुसार खाद और उर्वरकों का इस्तेमाल करना अच्छा माना गया है.

जहां मिट्टी जांच संभव न हो, वहां पर नाइट्रोजन 20 किलोग्राम, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश, 20 किलोग्राम गंधक और 60 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. बौनी किस्मों के लिए 20 किलोग्राम नाइट्रोजन बोआई के समय अलग से दें.

गोबर की खाद को खेत की तैयारी के समय ही मिट्टी में मिला देना चाहिए जबकि रासायनिक उर्वरकों की पूरी मात्रा कूंड़ों में बीज के 2.0 सैंटीमीटर नीचे देनी चाहिए.

सिंचाई

बोआई के बाद खेत को छोटीछोटी क्यारियों और पट्टियों में बांट कर सिंचाई करनी चाहिए. अगर जाड़े में बारिश न हो तो एक सिंचाई और दाना आते समय दूसरी सिंचाई करनी चाहिए. हलकी मिट्टी में 6 सैंटीमीटर गहरी और भारी मिट्टी में 8 सैंटीमीटर गहरी जुताई करनी चाहिए.

खरपतवार पर नियंत्रण

मटर की फसल में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार जैसे मकोय, जंगली चौलाई, हिरनखुरी,  बथुआ, कृष्णनील बिच्छूघास वगैरह पाए जाते हैं. इन्हें 1-2 बार की निराई से नियंत्रित किया जा सकता है.

रसायनों द्वारा नियंत्रण के लिए 3-4 लिटर लासो या पेंडीमिथेलीन 3.3 लिटर 600-800 लिटर पानी में घोल कर बोआई के तुरंत बाद समान रूप से छिड़काव करना चाहिए. खरपतवारनाशी रसायनों का छिड़काव स्प्रे मशीन द्वारा फ्लेट केन नोजल से ही करना चाहिए.

कटाई, गहाई व भंडारण

जब मटर के दानों में 18-20 फीसदी नमी रह जाए तभी फसल काट लेनी चाहिए. खलियान से ला कर मटर को 1 हफ्ते तक धूप में सुखाना चाहिए. इस के बाद बैलों या ट्रैक्टर द्वारा गहाई करनी चाहिए. औसाई कर के दाना व भूसा अलग कर देना चाहिए.

उत्पादित मटर को अच्छी तरह सुखा कर धातु से बनी बखर या कोठियों में एल्यूमीनियम फास्फाइड की 3 ग्राम की 2 गोलियां प्रति क्विंटल की दर से वायु अवरोधी बना कर भंडारण करना चाहिए.

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