रबी के सीजन में ली जाने वाली फसलों के नजरिए से नवंबर का महीना सब से अहम होता है. यह महीना गेहूं, जौ, तिलहन, दलहन, सब्जी के साथ ही बागबानी और फूलों की खेती के लिए सब से खास माना गया है. ऐसे में इस महीने में किसानों को खेतीकिसानी को ले कर खासा सतर्क रहने की जरूरत होती है, क्योंकि थोड़ी सी लापरवाही नुकसानदायक हो सकती है. लिहाजा, नवंबर महीने में किसान खेतीकिसानी से जुड़े कामों को समय से निबटाएं.
जिन किसानों ने काला नमक धान की किरण केएन-2, केएन-3 और किरन, बौना काला नमक 101 या 102 के अलावा पारंपरिक देशी प्रजाति लगा रखी है, वे इस महीने के पहले हफ्ते तक फसल की अंतिम सिंचाई कर दें, क्योंकि इस समय बारिश न होने से खेतों में नमी नहीं होती है.
इस के अलावा नवंबर महीने में धान की ज्यादातर प्रजातियों की कटाई और मड़ाई किसान पूरी कर चुके होते हैं. ऐसे में जरूरी हो जाता है कि मड़ाई के बाद तैयार फसल का उचित तरीके से भंडारण किया जाए. इस के लिए किसान नई बोरियों का इस्तेमाल करें.
किसान यह तय करें कि अगर धान की कटाई हो चुकी है और गेहूं की फसल लेने के लिए खेत में जरूरी नमी नहीं है, तो नवंबर महीने के पहले हफ्ते में हलकी सिंचाई कर दें, जिस से गेहूं की बोआई के समय खेत में पूरी नमी मुहैया हो.
यह भी तय करें कि खेत में जरूरी नमी के रहते खेत की अच्छी तरह से जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरा बना कर खेत में पाटा लगा दिया जाए. इस से खेत की नमी बनी रहने में मदद मिलती है.
गेहूं की बोआई का सब से अच्छा समय 15 से 30 नवंबर तक का होता है. कोशिश करें कि इस बीच गेहूं की बोआई हर हालत में पूरी कर ली जाए. गेहूं बीज की खरीदारी लाइसैंसशुदा दुकानों से ही करें और प्रमाणित बीज ही खरीदें. खेतों में बीज डालने के पहले बीज शोधन करना न भूलें.
हाल ही में गेहूं की कई किस्में विकसित की गई हैं, जैसे एचडी 3298, डीडब्लू 187, डीडब्लू 3030, डब्लूएच 1270, सीजी 1029, एचआई 1634, डीडीडब्लू 48, एचआई 1633, एनआईडीडब्लू 1149 आदि. किसान इन की बोआई कर सकते हैं. ये सभी प्रजातियां क्षेत्र विशेष को ध्यान में रख कर विकसित की गई हैं. ऐसे में अपने क्षेत्र के मुताबिक प्रजातियों को चुनें.
इस के अलावा गेहूं की उन्नत प्रजातियों में के 9107, एचपी 1731, के 9006, एनडब्लू 1012, यूपी 2382, एचपी 1761, एचयूडब्लू 468, एचडी 2733, एचडी 2834, पीबीडब्लू 343, पीबीडब्लू 443, यूपी 2338, के 0307, पीबीडब्लू 502, सीबीडब्लू 38, राज 4120, डीबीडब्लू 39, एनडब्लू 5054 वगैरह की बोआई कर सकते हैं.
अगर खेत की मिट्टी ऊसर है, तो केआरएल 19, लोक 1, एनडब्लू 1067, एनडब्लू 1076, केआरएल 210 और 213, केआरएल 14, राज 3077, के 8434 की बोआई करें.
गेहूं में कम लागत से ज्यादा से ज्यादा उत्पादन के लिए सीड ड्रिल से बोआई करना सही होता है. इस से बीज और उर्वरक की मात्रा भी कम लगती है. सीड ड्रिल से बोआई करने पर प्रति हेक्टेयर 100 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है.
किसान गेहूं की बोआई के समय प्रति हेक्टेयर की दर से 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फेट व 40 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल करें. अगर खेत में हरी खाद का इस्तेमाल किया गया है, तो केवल 40 किलोग्राम नाइट्रोजन बहुत है.
अगर आप ने मिट्टी की जांच कराई है और अगर उस में जस्ते की कमी पाई गई है, तो तो प्रति हेक्टेयर 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट को गेहूं की बोआई के पहले अंतिम जुताई के समय खेत में मिला दें.
जिन किसानों ने अगेती फसल के रूप में गेहूं की बोआई कर दी है, वे यह तय करें कि बोआई के 20-25 दिन बाद फसल की सिंचाई कर दें, साथ ही सिंचाई के 3-4 दिन बाद 40-60 किलोग्राम नाइट्रोजन की टौप ड्रैसिंग कर दें.
जौ की बोआई के लिए सब से सही समय 15 से 30 नवंबर तक का होता है. जौ के लिए प्रमाणित व उपचारित बीज का ही इस्तेमाल करें. इस के लिए प्रति हेक्टेयर खेत के लिए 15 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. जौ की बोआई के समय प्रति हेक्टेयर 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फास्फेट व 20 किलोग्राम पोटाश की जरूरत पड़ती है.
जौ की उन्नत किस्मों में ज्योति (के. 572/10), आजाद (के.125), के.141, हरीतिमा (के. 560), प्रीती (के. 409), जागृति (के. 287), एनडीबी 1445 (नरेंद्र जौ-7), लखन (के. 226), मंजुला (के. 329), आरएस 6, नरेंद्र जौ 192 (एनडीबी 209), नरेंद्र जौ 2 (एनडीबी 940), नरेंद्र जौ 3 (एनडीबी 1020), आरडी 2552, के. 603, एनडीबी 1173, के.1149 गीतांजली, नरेंद्र जौ 5 (एनडीबी 943) व उपासना शामिल हैं.
माल्ट के लिए नई प्रजाति डीडब्लू, आरबी 91 के अलावा प्रचलित प्रजातियों में प्रगति (के. 508), ऋतंभरा (के. 551), डीडब्लूआर 28, डीएल 88, रेखा (बीसीयू 73) का बोआई के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
जिन किसानों को सरसों व लाही की बोआई किए 15-20 दिन बीत गए हों, वे फसल के घने होने की दशा में अतिरिक्त पौधों को खेत से निकाल कर विरलीकरण कर लें, क्योंकि फसल के घने होने की दशा में फसल का उत्पादन 20-30 फीसदी कम हो सकता है.
पौधों का विरलीकरण करते समय यह ध्यान दें कि पौध से पौध की दूरी 10-15 सैंटीमीटर हो, तो ज्यादा अच्छा होता है. फसल बोआई के 30 दिन बाद हलकी सिंचाई करना न भूलें. इस के बाद लाही के लिए 75 किलोग्राम नाइट्रोजन की टौप ड्रैसिंग करें.
सरसों को आरा मक्खी व माहू कीट से बचाने के लिए इमिडा क्लोरोप्रिड 17.8 फीसदी 300 मिलीलिटर मात्रा को 600 लिटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें.
सरसों के पौधों को सफेद गेरुई व ?ालसा बीमारियों से बचाने के लिए प्रोपिकोनाजोल 25 फीसदी ईसी की 500 मिलीलिटर मात्रा को 600-800 लिटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.
इस महीने के दौरान तोरिया की फलियों में दाना भरता है. ऐसे में खेत में भरपूर नमी होनी चाहिए. नमी कम लगे तो तुरंत खेत की सिंचाई करें, ताकि फसल बढि़या हो.
नवंबर महीने में अरहर की फलियां पकने लगती हैं. अगर 75 फीसदी फलियां पक गई हों, तो कटाई का काम करें. अरहर की देरी से पकने वाली किस्मों पर अगर फलीछेदक कीट का हमला दिखाई दे, तो स्पाइनोसेड 5 फीसदी एससी की 750 मिलीलिटर मात्रा को 500 लिटर पानी में घोल कर छिड़कें. इस से फलीछेदक की रोकथाम हो सकेगी.
जिन किसानों ने चने की बोआई अक्तूबर के दूसरे या तीसरे हफ्ते तक कर दी थी, वे फसल की निराईगुड़ाई तय करें. इस के अलावा सिंचित क्षेत्रों में नवंबर के दूसरे हफ्ते तक चने की बोआई की जा सकती है.
किसानों ने अगर मटर की समय से बोआई कर दी है, तो फसल की निराई कर लें. बोआई के 40-45 दिन बाद पहली सिंचाई करें.
जो किसान मसूर की खेती करना चाहते हैं, वे 15 नवंबर तक ऐसा जरूर कर लें. मसूर की उन्नत प्रजातियों में शेखर 2, शेखर 3, पंत मसूर 4, पंत मसूर 5 या नरेंद्र मसूर 1 पीएल 2, वीएल मसूर 129, वीएल 133, वीएल 154, वीएल 125, पंत मसूर (पीएल 063), केएलबी 303, पूसा वैभव (एल 4147), आवीएल 31 और आपीएल 316 प्रमुख हैं. मसूर के एक हेक्टेयर खेत में 40 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. किसान प्रमाणित और शोधित बीज का ही इस्तेमाल करें.
कुसुम की खेती करने वाले किसान इस की बोआई मध्य नवंबर तक जरूर कर लें. कुसुम की सब से अच्छी प्रजाति के. 65 है, जो 180 से 190 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. इस में तेल की मात्रा 30 से 35 फीसदी पाई जाती है और औसत उपज 14 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. वहीं दूसरी प्रजाति मालवीय कुसुम 305 है, जो 160 दिन में पकती है. इस में तेल की मात्रा 36 प्रतिशत है. कुसुम के एक हेक्टेयर खेत के लिए 18-20 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है.
शीतकालीन मक्का की बोआई के लिए मध्य नवंबर का समय सब से मुफीद होता है. ऐसे में हर हाल में बोआई कर के बोआई के समय ही प्रति हेक्टेयर 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फेट, 40 किलोग्राम पोटाश और 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट भूमि में जरूर मिलाएं.
जो किसान अक्तूबर के महीने में आलू की बोआई नहीं कर पाए हैं, वे हर हाल में इस महीने के दूसरे हफ्ते तक बोआई खत्म कर लें. आलू की उन्नत प्रजातियों में कुफरी बहार, कुफरी बादशाह, कुफरी अशोका, कुफरी सतलज, कुफरी आनंद, लाल छिलके वाली कुफरी सिंदूरी और कुफरी लालिमा मुख्य हैं. प्रसंस्करण के लिए आलू की कुफरी चिप्सोना 1 और चिप्सोना 2 उपयुक्त प्रजातियां मानी गई हैं.
किचन गार्डन में फ्रैंचबीन, पालक, मेथी, धनिया, मूली की बोआई नवंबर महीने में की जा सकती है.
जो किसान वसंतग्रीष्म ऋतु में टमाटर की फसल लेना चाहते हैं, वे पौधशाला में नर्सरी तैयार करने के लिए बीज की बोआई कर दें. टमाटर की उन्नत प्रजातियों में पूसा रूबी, पंजाब छुहारा, पंत बहार उन्नत और पूसा हाईब्रिड 2, अविनाश 2, नवीन, रूपाली व रश्मि संकर किस्में अच्छी मानी गई हैं.
लहसुन की खेती करने वाले किसान अगर अभी तक लहसुन की बोआई न कर पाए हों, तो नवंबर महीने तक बोआई पूरी कर लें. उन्नत किस्मों में एग्रीफाउंड पार्वती (जी 313), टी 56-4. गोदावरी (सैलेक्शन 2), एग्रीफाउंड ह्वाइट (जी 41), यमुना सफेद (जी 1), भीमा पर्पल, भीमा ओंकार, यमुना सफेद (जी 282) प्रजाति उपयुक्त हैं. जिन किसानों ने अक्तूबर महीने में ही लहसुन की बोआई कर दी है, वे फसल की निराईगुड़ाई और सिंचाई कर लें.
इस अगेती तौर पर रोपे गए लहसुन के खेतों का बारीकी से मुआयना करें. अगर खेतों में सूखापन दिखाई दे, तो फौरन सिंचाई करें. सिंचाई के अलावा निराईगुड़ाई भी करें, ताकि खरपतवारों से नजात मिल सके.
प्याज की खेती करने वाले किसान नर्सरी में बीज की बोआई जरूर कर लें. एक हेक्टेयर में प्याज की रोपाई के लिए 8-10 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है.
आम के साथ ही दूसरे फलों के बाग की जुताई का नवंबर महीना सब से सही समय होता है. ऐसे में खरपतवार नष्ट कर दें.
आम के मिलीबग कीट के नियंत्रण के लिए फिप्रोनिल की 1 लिटर मात्रा को 600 लिटर पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. इस के अलावा आम के पेड़ों में थालों की सफाई कर दें और सूखी व बीमार टहनियों को काट दें.
अमरूद में छाल खाने वाले कीड़ों की रोकथाम के लिए फिप्रोनिल की 1 लिटर मात्रा को 600 लिटर पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.
आंवला, नीबू, पपीता में सिंचाई करें. आंवले की तुड़ाई और मार्केटिंग का इंतजाम करें. केले में प्रति पौधा 55 ग्राम यूरिया का इस्तेमाल करें और 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें.
देशी गुलाब की कलम काट कर अगले साल के स्टाक के लिए क्यारियों में लगा दें. ग्लेडियोलस में मौसम के अनुसार हफ्ते में एक या 2 बार सिंचाई करें. रजनीगंधा के स्पाइक की कटाईछंटाई, पैकिंग, मार्केटिंग और पोषक तत्त्वों के मिश्रण का अंतिम चरणीय छिड़काव करें.
पिछले महीने लगाई गई सब्जियों के खेतों की जांच करें. उन में खरपतवार पनपते नजर आएं, तो निराईगुड़ाई के जरीए उन का खात्मा करें. जरूरत के मुताबिक सिंचाई भी करें.
सब्जियों के पौधों व फलों पर अगर कीड़ों या बीमारियों के लक्षण नजर आएं, तो कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिकों से सलाह लें.
नवंबर महीने में ठंड की हलकी शुरुआत हो चुकी होती है. ऐसे में अपने मवेशियों के ठंड से बचाव का खास खयाल रखें. गायभैंसों के बच्चों को सर्दी से बचाने का पूरा बंदोबस्त करें.
अपने मुरगेमुरगियों को भी सर्दी से महफूज रखने का इंतजाम करें. जरूरत पड़ने पर डाक्टर को बुलाना न भूलें.
हरे चारे के लिए बरसीम की खेती करने वाले किसान वरदान, मेस्कावी, बुंदेलखंड बरसीम 2 (जेएचबी 146), बुंदेलखंड बरसीम 3 (जेएचटीबी 146) की बोआई 15 नवंबर तक जरूर कर दें. इस के लिए प्रति हेक्टेयर 25-30 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. बोआई के लिए खेत में 5 सैंटीमीटर गहरा पानी भर कर उस के ऊपर बीज छिड़क देते हैं. बोआई के 24 घंटे बाद क्यारी से पानी निकाल देना चाहिए.
जो किसान पशुओं के चारे के लिए जई की बोआई करना चाहते हैं, वे केंट, ओएस 6, बुंदेल जई 99-2 (जेएचओ 99-2), यूपीओ 212, बुंदेल जई 822 (जेएचओ 822), बुंदेल जई 851 (जेएचओ 851) का इस्तेमाल कर सकते हैं. इस के लिए एक हेक्टेयर खेत में 75 से 80 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. जई की बोआई का उचित समय नवंबर महीने के पहले पखवारे से ले कर आखिरी पखवारे तक का होता है.
नोट : लेख में कीटनाशकों के नाम कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती के वैज्ञानिक फसल सुरक्षा डा. प्रेम शंकर द्वारा सुझाए गए हैं. बागबानी व सब्जियों की खेती समेत दूसरी जानकारी कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती के विशेषज्ञ राघवेंद्र विक्रम सिंह द्वारा सुझाए गए हैं.