आमतौर पर खेती का उत्पादन मौसम व खेती के तरीकों पर टिका होता है. वर्षा, तापमान, सूर्य का प्रकाश व हवा आदि हमारी पहुंच से बाहर हैं, लेकिन खेती के तरीके हमारी पहुंच में हैं. समय पर सही ध्यान दे कर फसलों की मौजूदा उत्पादकता में बढ़ोतरी की जा सकती है. ज्यादा उत्पादन के निम्न मूलमंत्र हैं, जिन पर गौर फरमा कर उत्पादन बढ़ाया जा सकता है:
समय
फसल उत्पादन में समय एक महत्त्वपूर्ण पहलू है. फसल की बोआई से ले कर कटाई तक फसल संबंधी सभी क्रियाएं सही समय पर करनी चाहिए. कभीकभी जानकारी न होने से मजबूरी या लापरवाहीवश बोआई, खरपतवारों की रोकथाम, कीड़ों की रोकथाम और सिंचाई जैसे जरूरी कामों को किसान समय पर नहीं कर पाते हैं, जिस वजह से उत्पादन में भारी कमी आती है.
कृषि विज्ञान केंद्रों और कृषि विभाग द्वारा चलाए जा रहे कई प्रशिक्षणों द्वारा किसान भाई खेती की नवीनतम तकनीक का ज्ञान हासिल कर सकते हैं. किसानों को कभीकभी कृषि की कई जरूरी चीजें जैसे उन्नत बीज, उर्वरक, फफूंदनाशक, कीटनाशक, खरपतवारनाशक वगैरह समय पर नहीं मिल पाते हैं, जिस से वे सही समय पर खेती के सभी काम नहीं कर पाते हैं. ऐसे हालात में फसल के उत्पादन में कमी आती है. इसलिए ऐसी हालत से बचने के लिए जरूरी सामान का प्रबंध सही समय पर करें.
उम्दा बीज
बीजों की गुणवत्ता का उत्पादन पर 20 से 30 फीसदी असर पड़ता है. इसलिए किसान भाइयों को स्थानीय और परंपरागत बीजों के बजाय अच्छे प्रमाणिक बीजों का इस्तेमाल करना चाहिए, क्योंकि ऐसे बीज ज्यादा उत्पादन और गुणवत्ता वाले होते हैं. इसलिए जहां तक हो सके विभिन्न फसलों के अच्छे और प्रमाणिक बीजों का ही इस्तेमाल करें. विभिन्न फसलों की संकर किस्मों के बीजों को दोबारा बोआई के काम में न लें, क्योंकि उन की उत्पादन कूवत कम हो जाती है. इसलिए हर साल प्रमाणिक बीज ही खरीद कर बोएं.
बीजों को बोने से पहले घरेलू तकनीक से उन की अंकुरण कूवत परख लें और पूरी तरह से आश्वस्त होने के बाद ही बीज बोएं ताकि अंकुरण संबंधी किसी भी समस्या का हल बोआई से पहले ही हो जाए.
यदि किसान अपना पैदा किया बीज इस्तेमाल में लेते हैं तो बीज की बोआई से पहले ग्रेडिंग जरूर करें. बोआई से पहले बीज का उपचार भी फायदेमंद रहता है.
पोषक तत्त्व प्रबंधन
उर्वरक और खाद खेती के महत्त्वपूर्ण, हिस्से हैं. ये पौधों की बढ़त के साथसाथ पौधों द्वारा पानी सोखने की कूवत में भी वृद्धि करते हैं. विभिन्न फसलों में ज्यादातर किसान बिना मिट्टी की जांच के अपनी इच्छा से अंधाधुंध उर्वरकों का इस्तेमाल करते हैं, जिस से धीरेधीरे मिट्टी की उर्वरता में कमी आ जाती है. लिहाजा किसानों को कम से कम 2 से 3 साल में खेतों की मिट्टी की जांच जरूर करानी चाहिए, जिस से खेतों में मौजूद पोषक तत्त्वों के सही स्तर का पता चल सके.
मिट्टी की जांच के मुताबिक ही फसलों में उर्वरकों का इस्तेमाल करें. इस से उस की लवणीयता और क्षारीयता का भी पता चलता है और ऐसी मिट्टी को सही तरीके से सुधारने में मदद मिलती है.
उर्वरकों को फसल की सही अवस्थाओं में सही तरीके से देना चाहिए, जिस से मिट्टी की कूवत बढ़ती है. उर्वरकों को बीज के साथ कभी न मिलाएं और हमेशा बीज से 2 इंच नीचे दबाएं.
लगातार उर्वरकों के ज्यादा इस्तेमाल से फसलों की पैदावार में कमी आने लगी है, क्योंकि उर्वरकों के इस्तेमाल से मिट्टी के भौतिक गुणों पर उलटा असर पड़ने लगा है. लिहाजा ज्यादा उत्पादन और टिकाऊ खेती के लिए उर्वरकों के साथसाथ कार्बनिक खादों पर समुचित ध्यान देना जरूरी है.
इस के लिए कम से कम 3 सालों में 1 बार गोबर की सड़ी या कंपोस्ट खाद का जरूर इस्तेमाल करें या फिर सनई, ग्वार या ढैंचा को वर्षाऋतु में उगा कर फूल आने पर खेत में दबा कर हरी खाद के रूप में काम में लें.
खाद और उर्वरक के अलावा विभिन्न फसलों में निर्धारित जीवाणु खादों जैसे राइजोबियम जीवाणु, एजेटोबैक्टर या एजोस्पाइरिलम, फोस्फोबैक्टेरियम जीवाणु, नील हरित शैवाल, एजोला, फर्न, माइकोराइजा आदि का भी इस्तेमाल करना चाहिए, क्योंकि इन के इस्तेमाल से विभिन्न पोषक तत्त्वों की मौजूदगी बढ़ती है. जीवाणु खाद न केवल किफायती है, बल्कि यह पर्यावरण को भी सुरक्षित रखती है. जीवाणु खाद वायु से नाइट्रोजन ले कर पौधों को मुहैया कराती है.
खरपतवार प्रबंधन
फसल में मौजूद खरपतवार पौधों से हवा, पानी, सूर्य की रोशनी और पोषक तत्त्वों के लिए मुकाबला कर के उन की बढ़वार पर असर डाल कर उत्पादकता कम कर देते हैं और कभीकभी फसल को भी नष्ट कर देते हैं. इसलिए ज्यादा उत्पादन के लिए फसलों को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए. खरपतवार नियंत्रण के लिए कुदाली, कुल्फा और खरपतवारनाशी रसायनों का प्रयोग कर सकते हैं. इस के अलावा गरमी में गहरी जुताई कर के भी खरपतवार की रोकथाम कर सकते हैं.
सिंचाई प्रबंधन
सिंचाई प्रबंधन सब से महत्त्वपूर्ण होता है. प्रकृति के सीमित साधनों का रखरखाव कर किफायत से पानी इस्तेमाल करना चाहिए. इस के लिए खेतों को पूरी तरह समतल कर के चारों तरफ मजबूत मेंड़बंदी करनी चाहिए ताकि खेत का पानी खेत में ही रुक सके.
पानी का सही इस्तेमाल करने के लिए फसलों की क्रांतिक अवस्थाओं में सिंचाई करनी चाहिए. फसल में जरूरत से ज्यादा पानी न दें और सिंचाई के नए तरीकों जैसे फव्वारा, ड्रिप और पाइपों का इस्तेमाल करें.
फसल संरक्षण
बीजजनित कीटों और रोगों की कारगर रोकथाम के लिए बीज उपचार एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है.
सभी फसलों के बीजों को बोआई से पहले खास रसायनों से उपचारित करने के बाद बोआई करें. बीजों को पहले फफूंदनाशी, फिर कीटनाशी और आखिर में जीवाणु कल्चर से उपचारित कर बोआई करें.
इस क्रम में किसी प्रकार का बदलाव न करें. कीटों और रोगों की रोकथाम के लिए 3 साल में एक बार गरमी में गहरी जुताई कर के खेत तपने के लिए कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें.
किसी भी तरह का कीटनाशक अपनी इच्छा या विक्रेता के कहने पर इस्तेमाल में नहीं लेना चाहिए. विभिन्न फसलों में संबंधित जानकारों की सलाह से ही रसायनों का इस्तेमाल करें.
रसायनों को खरीदते समय दवा का असर खत्म होने की तारीख जरूर देखें और बिल जरूर लें. मित्र कीटों का रखरखाव करें. प्रकाशपाश व फेरामोनट्रेप को काम में लें. इस से रसायनों का इस्तेमाल कम होगा और बिना रसायनों के कीड़ों की रोकथाम होगी, जिस से लागत में कमी आएगी.
फसल बीमा
किसानों की फसल कुदरती आपदाओं जैसे सूखा, बाढ़ आदि से बरबाद हो जाती है, जिस से किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. कुदरती कारणों से होने वाले नुकसान की भरपाई का सीधा तरीका है फसल बीमा.
फसल बीमा होने से किसान फसल की नई किस्मों और नई तकनीकों को इस्तेमाल में ले सकते हैं, क्योंकि यह जोखिम बीमा द्वारा रक्षित होता है. भारत सरकार ने देशभर में विभिन्न योजनाओं की शुरुआत की है.
इन में व्यापक फसल बीमा योजना, प्रायोगिक फसल बीमा, कृषि आय बीमा योजना, राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना आदि शामिल हैं.
जमीन और फसल की उत्पादकता बढ़ाने और उत्पादन लागत कम करने के लिए निम्न बातों पर गौर करना चाहिए:
* ज्यादा उत्पादन पाने के लिए समय पर बोआई करें.
* प्रमाणित उन्नत बीज ही बोएं, इस से उपज में बढ़ोतरी होती है.
* कम खर्च में निरोग व स्वस्थ फसल पाने के लिए बीजोपचार जरूर करें.
* बारिश का पानी ज्यादा से ज्यादा जमीन के अंदर संरक्षित करने के लिए जुताई व बोआई ढलान के विपरीत करें.
* पौधों की सही संख्या व सही दूरी से अच्छी बढ़वार व उपज पाने के लिए अच्छी बीज दर रखें.
* कतार में बोआई करें और लाइनों की दूरी बराबर रखें.
* फसलें बदलबदल कर बोएं जिस से कीट व रोग में कमी आएगी.
* दलहनी और तिलहनी फसलों में जिप्सम का इस्तेमाल करें.
* मिट्टी की जांच की सिफारिश के अनुसार उर्वरक का इस्तेमाल करें जिस से उर्वरक पर खर्च में कमी आएगी.
* जमीन की उर्वराशक्ति बढ़ाने के लिए गोबर की खाद, कंपोस्ट, वर्मी कंपोस्ट आदि का इस्तेमाल करें.
* रासायनिक उर्वरकों से होने वाले नुकसानों से बचने के लिए जैविक खेती अपनाएं.
* कम पानी की स्थिति में फसल की समयसमय पर सिंचाई करें.
* सिंचित क्षेत्र बढ़ाने के लिए फव्वारा, ड्रिप व पाइपलाइन का इस्तेमाल करें, जिस से पानी की बचत हो.
* मित्र कीटों का रखरखाव करें. प्रकाशपाश व फेरामोनट्रेप काम में लें. इस से रसायनों का इस्तेमाल कम होगा और बिना रसायनों के कीड़ों की रोकथाम होगी, जिस से लागत में कमी आएगी.
* खरपतवार, रोग व कीट के असर में कमी लाने के लिए गरमी में गहरी जुताई जरूर करें.
* धोखाधड़ी से बचने के लिए खाद, बीज व दवा खरीदते समय बिल जरूर लें. इस से अनाज की गुणवत्ता भी पक्की होगी.
* उपज सुखा कर और अच्छी तरह साफ कर के बाजार में ले जानी चाहिए, जिस से उपज का ज्यादा मूल्य मिल सके.
* फसल बीमा जरूर करवाएं. इस से फसल जोखिम कम होता है.
* समय, मेहनत और पैसा बचाने के लिए उन्नत कृषि यंत्रों का इस्तेमाल करें.
* कृषि विज्ञान केंद्रों और कृषि विभाग द्वारा संचालित विभिन्न कृषि प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भागीदारी बढ़ाएं, नवीनतम जानकारी लें और समस्या का समाधान पाएं व उन्नत तकनीक का इस्तेमाल कर के उत्पादन बढ़ाएं.