करेला में औषधीय गुण होने के कारण लोग इसे काफी पसंद करते है. करेले का रस शुगर और हाई ब्लडप्रेशर के मरीजों के लिए काफी फायदेमंद है. इस में मौजूद कड़वाहट वाला तत्त्व खून को साफ करता है. इन सब गुणों के चलते करेले का बाजार भाव भी अन्य सब्जियों की तुलना में काफी अच्छा रहता है. आज करेले की कई किस्में चलन में हैं. नीचे कुछ खास प्रजातियों की विस्तार से जानकारी दी गई है:

करेले की उन्नतशील प्रजातियां

पूसा (2 मौसमी) : नाम से ही मालूम है कि यह किस्म 2 मौसम (खरीफ व जायद) में बोई जाती है. फसल बोने के तकरीबन 55 दिन बाद करेला तोड़ाईर् लायक हो जाता है. इस प्रजाति के करेले का साइज तकरीबन 15 सेंटीमीटर के आसपास होता है. इस किस्म से औसत उपज 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मिलती है.

पूसा विशेष : इस प्रजाति के करेले हरे, पतले, मध्यम आकार के और 20 सेंटीमीटर लंबे होते हैं. औसतन एक करेले का वजन 115 ग्राम होता है. इस की उपज 115-130 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

अर्का हरित : इस प्रजाति के करेले चमकीले हरे, चिकने, ज्यादा गूदेदार और मोटे छिलके वाले होते हैं. फलों की पहली तुड़ाई बोआई के 65 दिन बाद की जा सकती है. ऐसे करेले में बीज और कड़वापन भी कम होता है. फल की लंबाई 15 सेंटीमीटर और वजन 90 ग्राम होता है. इस की उपज 130 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

वीके 1 (प्रिया) : इस के फल 40 सेंटीमीटर तक लंबे और मोटे छिलके वाले होते हैं. बोआई के 60 दिन बाद फल तोड़ाई लायक हो जाते हैं. करेले का वजन औसतन 120 ग्राम होता है. इस की औसत उपज 140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

पंत करेला 1 : इस के फलों की पहली तोड़ाई बोआई के 55 दिनों बाद की जा सकती है. इस प्रजाति के करेले मोटे, 15 सेंटीमीटर लंबे, हरे और शुरू में पतले होते हैं. इन की औसत पैदावार कूवत लगभग 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. यह प्रजाति पहाड़ों के लिए अच्छी मानी गई है.

काशी हरित : फल चमकीले हरे, चिकने, गूदेदार होते हैं. एक फल का वजन 80-100 ग्राम होता है. पहली तोड़ाई 50 दिन बाद कर सकते हैं.

पूसा औषधि : हलके हरे, परचम लंबाई वाले और औसत, फल वजन 85 ग्राम, फसल तैयार होने का समय लगभग 48-52 दिन. यह अधिक उपज देने वाली प्रजाति है.

पूसा हाईब्रिड 1 : मध्यम लंबाई का फल, ज्यादा उपज. पहली तोड़ाई 55-60 दिनों में की जा सकती है. औसत उपज 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

पूसा हाईब्रिड 2 : फल गहरा हरा मध्यम लंबाई का, फल का औसत वजन 85-90 ग्राम, पहली तोड़ाई 52 दिनों में, औसत उपज 180 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

कल्याणपुर बारहमासी :  यह किस्म चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई है.

हिसार सलैक्शन : यह किस्म पंजाब और हरियाणा में काफी पसंद की जाती है.

जमीन की तैयारी : खेत की तैयारी के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और बाद में 2-3  जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करनी चाहिए. हर जुताई के बाद पाटा चला कर मिट्टी को भुरभुरी और खेत को समतल कर लेना चाहिए, जिस से पानी खेत में समान रूप से फैल सके.

बीज की मात्रा और बोआई :

1 हेक्टेयर खेत की बोआई के लिए अच्छी अंकुरण कूवत वाले बीज की 5 किलोग्राम मात्रा की जरूरत पड़ती है.

एक जगह पर 2-3 बीज 3-4 सेंटीमीटर की गहराई पर बोने चाहिए. बोने से पहले खराब बीज निकाल दें.

बोआई का समय : इस की बोआई गरमी के मौसम के लिए (जायद) में 15 फरवरी से 15 मार्च तक और बरसात के मौसम (खरीफ) के लिए 15 जून से 15 जुलाई तक करते हैं. पहाड़ी इलाकों में बोआई अप्रैल के महीने में की जाती है.

बोआई की दूरी : करेले की बोआई जहां तक हो सके मेंड़ों पर करनी चाहिए. कतार से कतार की दूरी 1.5 से 2.5 मीटर और पौधे से पौधे की दूरी 45 से 60 सेंटीमीटर के बीच रखनी चाहिए.

खाद और उर्वरक : आमतौर पर 20-22 टन सड़ी गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद को खेत तैयार करते समय मिट्टी में मिला देना चाहिए. इस के बाद 1 हेक्टेयर खेत के लिए 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देनी चाहिए. नाइट्रोजन  की एकतिहाई मात्रा, फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय दें. बीज बोने के 30 व 45 दिन बाद जड़ के पास नाइट्रोजन टाप ड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए.

सिंचाई : खरीफ के मौसम में खेत की खास सिंचाई करने की जरूरत नहीं होती और बारिश न होने पर सिंचाई की जरूरत 10-15 दिन बाद होती है. ज्यादा बारिश के समय पानी की निकासी ठीक होनी चाहिए. गरमियों में तापमान ज्यादा होने के कारण जल्दीजल्दी सिंचाई की जरूरत होती है.

खरपतवार : बारिश या गरमी के मौसम में सिंचाई के बाद खेत में काफी खरपतवार उग आते हैं, उन्हें खुरपी से निकाल देना चाहिए. करेले में पौधे की बढ़ोतरी और विकास के लिए 2-3 बार गुड़ाई कर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए. समय पर निराईगुड़ाई से अच्छी पैदावार मिलती है.

मचान बेहतर तरीका

करेले की बेहतर पैदावार लेने के लिए मचान खेती अच्छा तरीका है. करेले की बेलों को लकड़ी का सहारा देने से या मचान पर चढ़ा देने से फल जमीन के संपर्क से दूर रहते हैं. इस से फलों का आकार और गुणवत्ता अच्छी रहती है और पैदावार भी मिलती है.

मचान पर फल लगने से सड़ते नहीं हैं. इस के लिए पौधे जब 30 सेंटीमीटर के हो जाएं तो उन्हें नायलौन या जूट की रस्सी के सहारे मचान तक चढ़ाया जाता है.

इस के लिए लोहे या लकड़ी के खंभे गाड़ कर उन के सिरे पर तार बांध कर मचान बनाया जाता है. खंभों के आपस की दूरी 2 से 3 मीटर रख सकते हैं. सामान्यत: मचान की ऊंचाई 4.5 फुट तक रखते हैं.

फलों की तोड़ाई : जब फलों का रंग गहरे हरे से हलका हरा होना शुरू हो जाए और वे अपना सही आकार ले लें, तो यह समय फलों की तोड़ाई करने के लिए सही माना जा सकता है. फलों की तोड़ाई एक तय समय के दौरान करनी चाहिए ताकि फल कड़े न हों अन्यथा उन की बाजार में मांग कम हो जाती है.

सुखा कर भी रख सकते हैं करेला

करेले को काट कर छोटेछोटे टुकड़े कर के सुखा कर भी रखा जा सकता है और जब मन करे तब उस की सब्जी बनाई जा सकती है. करेले को सुखाने से पहले छोटेछोटे टुकड़ों में काट कर उस में हलका सोडा या नमक छिड़क दें, जिस से करेले की कड़वाहट कम हो जाएगी. उस के बाद उन्हें धूप में अच्छी तरह सुखा कर किसी भी एयरटाइट डब्बे में रख लें और जब सब्जी बनानी हो तो कुछ समय पानी में भिगो कर रख दें, जिस से वह फूल जाएंगे फिर उन को निचोड़ कर सब्जी बना सकते हैं.

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