भारत में बैगन को गरीबों की सब्जी कहा जाता है. बैगन हर तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है, क्योंकि इस का पौधा काफी सहनशील होता है.
देश के सभी हिस्सों में बैगन की खेती की जाती है. एक अनुमान के मुताबिक, चीन के बाद हमारे देश में सब से ज्यादा बैगन उगाया जाता है, जो दुनिया की कुल पैदावार का तकरीबन 30 फीसदी है.
बैगन की खेती अगर उन्नत वैज्ञानिक तरीके से की जाए, तो यह किसान को काफी मालामाल कर देती है. आइए जानें कि कैसे बैगन की खेती से ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है :
खेत की तैयारी
बैगन की खेती आमतौर पर सभी तरह की मिट्टियों में होती है, लेकिन दोमट मटियार और चिकनी दोमट मिट्टी में इस की पैदावार ज्यादा होती है. जिस मिट्टी में पानी का निकास अच्छा होता हो, बैगन की खेती के लिए ज्यादा ठीक रहती है.
खेत की तैयारी के लिए 4 से 6 जुताई अच्छी रहती हैं. मिट्टी के महीन व भुरभुरी होने तक खेत को जोतते रहना चाहिए.
पौध ऐसे करें तैयार
बैगन को सीधे खेत में नहीं बोया जाता. पहले इस की पौध नर्सरी में तैयार की जाती है. नर्सरी के लिए अच्छी मिट्टी का चुनाव करना चाहिए, जिस में कुदरती खाद ज्यादा से ज्यादा हो. बीज को बोर्डो मिश्रण से उपचारित करने से पौध सड़न का डर कम हो जाता है. इसे बीमारियों से बचाने के लिए कैप्टान का इस्तेमाल करना चाहिए. 1 किलोग्राम बीज को उपचारित करने के लिए 4 ग्राम कैप्टान का इस्तेमाल किया जाता है.
एक हेक्टेयर खेत के लिए 500 ग्राम बीज काफी होता है. नर्सरी में क्यारी 10 सैंटीमीटर की ऊंचाई पर बना कर पौध तैयार की जानी चाहिए. पौध तैयार करने से पहले क्यारियों को अच्छी तरह साफ कर लेना चाहिए. पौध साल में 3 बार यानी जूनजुलाई, अक्तूबरनवंबर और फरवरीमार्च में तैयार की जा सकती है.
बोआई का तरीका
जब पौध 4-6 पत्ती वाली हो जाए, तब इसे खेत में रोपना चाहिए. रोपाई के 2-3 दिनों पहले सिंचाई करनी चाहिए, जिस से पौध अच्छी तरह जम जाए. इसी तरह रोपाई के भी 2-3 दिनों बाद सिंचाई करने से पौधों को जमने में मदद मिलती है.
पौध से पौध की दूरी 60 सैंटीमीटर व लाइन से लाइन की दूरी भी 60 सैंटीमीटर रखना बेहतर होता है, क्योंकि बैगन का पौधा 2-3 मीटर तक बढ़ता है.
सिंचाई : गरमियों में ली जाने वाली फसल में एक हफ्ते में सिंचाई जरूर करनी चाहिए, जबकि सर्दियों की फसल में 15-20 दिनों के अंतर से सिंचाई करना बेहतर होता है. बैगन में सिंचाई सुबह के वक्त करना अच्छा होता है.
खाद और उर्वरक
बैगन की अच्छी पैदावार के लिए खाद की ज्यादा जरूरत होती है. एक हेक्टेयर खेत के लिए 150 क्विंटल गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद की जरूरत होती है. इस से फसल को सभी जरूरी पोषक तत्त्व मिल जाते हैं. जुताई से पहले खाद की ढेरियां बना कर खेत में बिखेर देना चाहिए, जिस से वह पूरे खेत में बराबरी से फैल और मिल जाए.
बैगन की फसल के लिए 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस व 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से दी जानी चाहिए. नाइट्रोजन को 3 हिस्सों में बांट कर देना चाहिए. इस की पहली खुराक रोपाई के एक हफ्ते बाद, दूसरी खुराक 4 हफ्ते बाद व तीसरी खुराक 8 हफ्ते बाद दी जानी चाहिए.
बैगन की किस्में
साइज के लिहाज से बैगन की किस्मों को 2 हिस्सों में बांटा गया है. जिस किस्म की मांग या खपत इलाके में हो, उसी के हिसाब से किस्मों को बोना चाहिए.
लंबे फल वाली किस्में : पूसा पर्पल क्लस्टर, पूसा कांति, पूसा अनुपम, पूसा पर्पल लौंग बांग, पीएच 4, अर्काशील, एचएलवी 25, पूसा संकर 9 और आजाद बी 3.
गोल फल वाली किस्में : पूसा पर्पल राउंड, टाइप 3, पंजाब बहार, पंत ऋतुराज, अर्का नवनीत, बीआर 112, सिलैक्शन.
रोग व उन की रोकथाम
डंपिंग औफ : यह बैगन की आम नुकसानदेह बीमारी है, जो पीथियम एफेनीडर्मेटम नाम की फफूंद से होती है. यह बीमारी ज्यादातर नर्सरी के पौधों में होती है. इस में पौधे गलने या सूख कर मुरझाने लगते हैं. इस की रोकथाम के लिए कैप्टान, एग्रोसान या सेरेसान रसायन का इस्तेमाल करना चाहिए.
फोमोटिसम बैक्सम झुलसा : यह बैगन की एक खतरनाक बीमारी है, जो फोमोटिसम बैक्सम नाम की फफूंद से होती है. इस में पत्तियों पर भूरे रंग के छोटेछोटे गोल धब्बे बनने लगते हैं, जिस से पत्तियां पीली हो कर सूखने लगती हैं.
इस बीमारी की रोकथाम के लिए बेहतर यही होता है कि बीज को उपचारित कर के बोया जाए. बैक्सटीन नाम की एक ग्राम दवा से एक किलोग्राम बीज उपचारित किए जा सकते हैं. खेत में रोग दिखाई देते ही रोगग्रस्त पौधों व हिस्सों को इकट्ठा कर के जला देना चाहिए.
छोटी पत्ती रोग : इस रोग को लिटिल लीफ भी कहते हैं, जो लीफ हौपर नाम के एक कीड़े से फैलता है. इस में पौधा छोटा रह जाता है और पत्तियां सिकुड़ जाती हैं. इस का प्रमुख लक्षण बैगन के पौधे का झाड़ी जैसा हो जाना है. इस की उचित रोकथाम करने के लिए नीम के काढ़े के साथ माइक्रोझाइम नाम की दवा का समय पर छिड़काव करना चाहिए.
फल छेदक : हलके गुलाबी रंग की यह सूंड़ी बैगन के लिए बेहद खतरनाक साबित होती है. यह पौधे के तने और पत्तियों को खाने लगती है. फल आने पर यह उस में घुस जाती है, जिस से फल बढ़ नहीं पाता. इस से बचाव के लिए सेवन या थायोडान का 0.2 फीसदी का घोल बना कर छिड़कना चाहिए.
एपीलेकना बीटल : बैगन में लगने वाला यह लाल रंग का कीड़ा है, जो पत्ती, तना और फल खाता है.
इस के हमले से पत्तियां छन्नी जैसी हो जाती हैं. बचाव के लिए सेविन डस्ट का 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए.
लस्सी कीट : यह कीट बैगन के पौधे के रस को चूसता है, जिस से पौधे की बढ़वार कम हो जाती है और फल सही आकार में नहीं बन पाता. इस से बचाव के लिए मैटासिस्टाक्स घोल 0.15 फीसदी तैयार कर प्रति हेक्टेयर में छिड़कना चाहिए.
निराईगुड़ाई : बैगन की ज्यादा पैदावार के लिए समयसमय पर निराईगुड़ाई करना जरूरी है. खरपतवारों को हटाने के लिए पहली निराई 15 दिन में और दूसरी एक महीने बाद करनी चाहिए.
तोड़ाई व उपज : बैगन के पके फल समय पर तोड़ लेने चाहिए. आमतौर पर एक हेक्टेयर में बैगन की 250-300 क्विंटल पैदावार होती है. उन्नत किस्मों की वैज्ञानिक तरीके से खेती की जाए, तो 600 क्विंटल तक उपज मिलती है.