पौलीहाउस एक प्रकार की संरक्षित खेती है, जिस में लगने वाली फसलों को बाहरी मौसम, कीड़े व बीमारियों से बचाने के लिए एक घर के आकार का ढांचा तैयार कर उस को प्लास्टिक शीट से ढका जाता है. यह फसलों को उचित तापमान और आवश्यक आर्द्रता को बनाए रखने में मदद करता है.
– पौलीहाउस में खेती करने से खुले खेतों के मुकाबले 4 से 5 गुना ज्यादा पैदावार प्राप्त कर सकते हैं.
– पौलीहाउस फसल को सुरक्षित रखने में मदद करता है.
– किसान पौलीहाउस में खीरा, गाजर, धनिया, टमाटर, पालक, पत्तागोभी, मिर्च, ब्रोकोली, बैगन, भिंडी, शिमला मिर्च आदि सब्जियों, फलों, फूलों और सजावटी पौधों की बेमौसम खेती कर के अच्छी कमाई कर सकते हैं.
– पौलीहाउस में ज्यादातर किसान टमाटर, खीरा और शिमला मिर्च की खेती करते हैं, क्योंकि इन की मांग बाजार में सालभर बनी रहती है.
– अधिक बारिश वाले क्षेत्रों के किसानों के लिए पौलीहाउस बहुत अच्छी तकनीकी है.
– पौलीहाउस में फसलों में रोग और कीट बहुत कम लगते हैं.
– पौलीहाउस में किसान उच्च गुणवत्ता वाली नर्सरी की पौध तैयार कर के अपने लिए एक अच्छा व्यापार शुरू कर सकते हैं.
– पौलीहाउस में उगाई गई फसलें बहुत चमकदार एवं अच्छी होती हैं, जिन की मंडियों में अच्छी कीमत मिलती है.
– पौलीहाउस को हराभरा, ओला, पाला, आंधीतूफान, तेज बारिश, अधिक तापमान, आर्द्रता, धूप, रोग व कीट आदि से फसल की सुरक्षा करता है.
मैदानी व घाटी वाले क्षेत्रों में शिमला मिर्च बरसात व सर्दियों में और पर्वतीय क्षेत्रों में गरमियों में उगाई जाती है, किंतु शिमला मिर्च की खेती पौलीहाउस में सालभर की जा सकती है.
शिमला मिर्च एक लोकप्रिय सब्जी है. इस के लिए अधिक निवेश की आवश्यकता होती है, किंतु यह अधिक मुनाफा भी देती है. शिमला मिर्च की खेती के लिए पौलीहाउस में तापमान को लगभग 25 से 30 डिगरी सैल्सियस के बीच रखना आवश्यक होता है.
पौलीहाउस में बैगन की खेती करने से पौधों में वानस्पतिक वृद्धि अधिक होती है, जबकि फलत कम होती है. अधिक उत्पादन के लिए बैगन की खेती खुले में करना ही लाभप्रद होता है. कुछ ही कारणों पर बैगन को पौलीहाउस में लगाना लाभदायक होता है. जिस क्षेत्र में वर्षा अधिक होती है, तापमान में उतारचढाव अधिक रहता हो, कीट व बीमारियों का अधिक प्रकोप हो, ऐसे क्षेत्रों में पौलीहाउस में बैगन की खेती करने से फसल की उचित देखभाल व वृद्धि होती है और फसल को कीट एवं बीमारियों से बचाने में सुविधा होती है.
सब्जियों की संरक्षित खेती में शिमला मिर्च का बहुत अधिक महत्व है. वैसे तो शिमला मिर्च खुले खेत में उगाया जा सकता है. लेकिन ऐसे में फलों की गुणवत्ता में कमी आ जाती है, जिस से किसानों को बाजार में फसल का अच्छा दाम नहीं मिलता. किसानों द्वारा अनेक रंगों की शिमला मिर्च व बैगन की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है, जिस में हरी, लाल, पीली, नारंगी, बैंगनी और सफेद रंग की शिमला मिर्च और सफेद, बैंगनी, हरे रंग की गोल व लंबी बैगन की किस्में शामिल हैं. इन सभी रंगों की संकर प्रजातियां भिन्नभिन्न हैं. इन का चुनाव किसानों को ध्यानपूर्वक करना चाहिए. किसानों को किस्मों का चयन करते समय सब्जी विशेषज्ञ से जानकारी प्राप्त करना बेहद जरूरी है. शिमला मिर्च के फल में विटामिन ए, विटामिन सी, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस और पोटैशियम, जबकि बैगन में नियासिन, थायमिन, विटामिन सी, विटामिन बी 6, विटामिन ए और विटामिन ई पाया जाता है.
बीजोपचार : बीज को हमेशा बोआई से पूर्व उपचारित कर के ही बोना चाहिए, जिस से पौधे अच्छी वृद्धि करें, रोगमुक्त और सेहतमंद रहें. इस के लिए बीजामृत लाभदायक होता है. बीजामृत घर पर आसानी से बनाया जा सकता है. बीजों को बोआई से पूर्व 12 से 24 घंटे पानी में भिगो देना चाहिए, जिस से बीज के अंकुरण में वृद्धि होती है.
पौधशाला/नर्सरी : शिमला मिर्च व बैगन की पौध नर्सरी में भी तैयार की जाती है. पौध तैयार करने के लिए पौधशाला वाले क्षेत्र को समतल बनाना चाहिए. इस के लिए खेत की 2 से 3 जुताई करने के बाद खेत में छोटीछोटी क्यारियां बनानी चाहिए. क्यारियां 10 से 15 सैंटीमीटर ऊंची होनी चाहिए और 2 क्यारियों के बीच में एक जल निकास हेतु नाली होनी चाहिए.
मिट्टी की जांच : नर्सरी तैयार होने के बाद जिस पौलीहाउस में पौध रोपण होना है, उस पौलीहाउस में मिट्टी की जांच करवाना आवश्यक है, जिस से हमें ज्ञात रहे कि हमारी मिट्टी में कौनकौन से पोषक तत्व हैं और किनकिन पोषक तत्वों की मिट्टी को आवश्यकता है, जिस से खेत में आवश्यकतानुसार उर्वरकों का संतुलित मात्रा में प्रयोग किया जा सके. इस से अधिक उत्पादन होता है.
प्रो-ट्रे पौधशाला : शिमला मिर्च व बैगन की पौध पौलीहाउस में ही तैयार करनी चाहिए. पौलीहाउस में पौध तैयार करने से समय कम लगता है और पौधे भी स्वस्थ रहते हैं. पौधों में मृदाजनित कीटों और बैक्टीरिया के द्वारा पहुंचाए जाने वाले नुकसान से बचने के लिए प्रो-ट्रे पौधशाला विधि की मदद ली जा सकती है और इस से मृदारहित नर्सरी भी तैयार की जा सकती है. इस विधि में अनुपजाऊ मिट्टी के स्थान पर नारियल का बुरादा, राख, सड़ा गोबर, बालू, परलाइड, पिटमौस का प्रयोग किया जा सकता है.
पौलीहाउस में खेत की तैयारी : जब तक पौध तैयार होती है, तब तक जिस पौलीहाउस में पौध रोपण होना है, उस पौलीहाउस में यदि फसल खड़ी है, तो फसल की कटाई समय पर कर के खेत की तैयारी कर लेनी चाहिए. पौध 25 से 30 दिन में रोपण के लिए तैयार हो जाती है. यदि किसी कारणवश किसान नर्सरी तैयार नहीं कर पाए हैं, तो इस के लिए पौधों को किसी सरकारी रजिस्टर्ड नर्सरी से खरीद लेना चाहिए. पौधे ऐसे खरीदें, जो बिलकुल स्वस्थ हो. इन पौधों की रोपाई को समतल और मेड दोनों तरीके से लगा सकते हैं.
उर्वरक : वर्मी कंपोस्ट और जैविक खाद का प्रयोग फसल की बेहतर वृद्धि के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है. पौलीहाउस में पौध रोपाई से 4 दिन पूर्व नीम की खली, ट्राईकोड्रमा, सूडोमोनास व 150 से 200 किलोग्राम अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद मिट्टी में मिला कर क्यारी तैयार कर लें.
पौध रोपण : रोपण करने के लिए खेत में छोटेछोटे थाले बना कर पौध लगानी चाहिए. थाले बनाने से पौधों को पानी व खाद देने में आसानी होती है और पौध लगाने के तुरंत बाद पौधों की सिंचाई कर देनी चाहिए, जिस से पौधे स्वस्थ रहें. पौधों को निश्चित अंतराल में सिंचाई की आवश्यकता होती है, जिस के लिए बूंदबूंद सिंचाई विधि का प्रयोग भी कर सकते हैं. समय पर खेत से अनावश्यक पौधों को निकालते रहना चाहिए, जिस से पौधे अच्छी वृद्धि कर सकें.
खरपतवार नियंत्रण : पौधों में खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक विधि का इस्तेमाल कर निराईगुड़ाई करनी चाहिए. इन में 3 से 4 निराईगुड़ाई की आवश्यकता होती है. पहली रोपाई के 20 दिन और बाकी की 15 दिन के अंतराल में की जाती है. शिमला मिर्च को 40 से 45 सैंटीमीटर व बैंगन को 55 से 60 सैंटीमीटर की दूरी पर लगाना चाहिए.
रोपाई का समय : मैदानी भागों में शिमला मिर्च व बैगन की खेती के लिए जूनजुलाई, अगस्तसितंबर और नवंबरदिसंबर, जबकि पर्वतीय क्षेत्रों में मार्च से मई तक का समय पौध तैयार करने से ले कर पौध रोपाई के लिए उचित समय है. बीज के अंकुरण के लिए 16 से 29 और पौधे की अच्छी बढत के लिए 21 से 27 डिगरी सैल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है.
प्रजातियां : व्यवसायिक स्तर पर लगाई जाने वाली शिमला मिर्च में कैलिर्फोनिया वंडर, यलो वंडर, इंद्रा, महाभारत, आशा, नामधारी-280, चौकलेट वंडर और बैंगन में स्वर्ण शक्ति, पूसा हाईब्रिड 5, पूसा हाईब्रिड 6, पूसा परपल लौंग, पूसा परपल राउंड, अर्का नवनीत, पंत ऋतुराज, पंत सम्राट प्रमुख प्रजातियां हैं.
मिट्टी और मिट्टी पीएच मान : शिमला मिर्च व बैगन की खेती किसी भी उपजाऊ भूमि में की जा सकती है, किंतु भूमि उचित जल निकास वाली अवश्य हो. मिट्टी का पीएच माकन शिमला मिर्च की खेती के लिए 6.0 से 6.5 और बैंगन की फसल के लिए 5 से 7 के मध्य होना चाहिए. पौधों को अच्छे से विकास करने के लिए गरम जलवायु की आवश्यकता होती है. सर्दियों के मौसम में गिरने वाला पाला इन के पौधों को नुकसान पहुंचाता है.
पौधों की देखरेख : रोपाई के 20 दिन बाद पौधों को ऊपर से काट देना चाहिए, जिस से पौधों में अनेक शाखाएं निकलती हैं. अच्छी पैदावार के लिए 2 या 3 शाखाएं ही रखते हैं. शिमला मिर्च व बैगन के उच्च गुणवत्ता वाले फलों का उत्पादन लेने के लिए छोटे, विकृत निम्न गुणवत्ता वाले फलों को निकलना आवश्यक है.
प्रमुख रोग व कीट : पौलीहाउस में रोग व कीटों का प्रकोप कम होता है. शिमला मिर्च की फसल के प्रमुख रोग फल सड़न, चूर्णिल आसिता, मोजेक वायरस और प्रमुख कीटों में माहू, थ्रिप्स, माइट, सफेद मक्खी आदि हैं.
बैगन के प्रमुख रोग फल सड़न, झुलसा रोग, छोटी पत्ती रोग और प्रमुख कीटों में फल बेधक, तना बेधक, माहू, थ्रिप्स, सफेद मक्खी का प्रकोप होता है. यदि इन कीटों व रोगों की रोकथाम समय पर नहीं की जाती है, तो पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. इस के लिए जैविक एवं प्राकृतिक विधि से कीटों व रोगों की रोकथाम करनी चाहिए.
फलों की तुड़ाई का समय : शिमला मिर्च के फलों की तुड़ाई मुख्य रूप से रोपण के 65 से 90 दिनों और बैंगन के फलों की तुड़ाई रोपणके तकरीबन 50 से 70 दिन के बाद शुरू होती है. फलों की तुड़ाई उन की किस्म के आधार पर अलगअलग समय पर की जाती है. फलों की तुड़ाई सुबह या शाम के समय ही करनी चाहिए. इस के लिए चाकू की सहायता से डंठल सहित फलों को पेड़ से हटा दिया जाता है.
फलोंका वर्गीकरण : फलों की तुड़ाई के बाद फलों को उन के आकार और वजन के अनुसार वर्गीकृत करते हैं.
उपज : एक उचित ढंग से प्रबंधित फसल से प्रति पौधा लगभग 5 से 7 किलोग्राम उपज प्राप्त होती है. फल जब 225 से 250 ग्राम के हो जाएं, तो किसानों को उस अवस्था में उसे तोड़ लेना चाहिए.