पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना मुख्य फसल के रूप में उगाया जाता है. नकदी फसल होने और तमाम चीनी मिलें होने की वजह से किसानों के बीच गन्ना बहुत ही लोकप्रिय फसल है. इस की खेती ज्यादातर एकल फसल के रूप में की जाती है. किसान गन्ने की फसल को नौलख व पेड़ी के रूप में 2-3 साल तक लेते रहते हैं. गन्ने के उत्पादन व उत्पादकता के लिहाज से उत्तर प्रदेश का जिला बिजनौर प्रदेश व देश में अग्रणी स्थान पर है. साल 2016-17 के अांकड़ों के मुताबिक गन्ने की औसत उत्पादकता 784.97 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और इस का कुल रकबा 2,10,269 हेक्टेयर है, जिस में सहफसली खेती का रकबा करीब 16 हजार हेक्टेयर है.

गन्ना और राजमा सहफसली प्रौद्योगिकी

खेत का चुनाव व तैयारी : गन्ना और राजमा की खेती के लिए समतल जीवांशयुक्त बलुई दोमट मिट्टी का चुनाव करना चाहिए. गोबर की खाद को खेत में डाल कर 4-5 बार जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए.

बीज का चुनाव व बोआई : पंत अनुपमा, अर्का कोमल, करिश्मा, सेमिक्स और कंटेंडर आदि राजमा की उन्नत प्रजातियां हैं. राजमा के बीजों को कार्बेंडाजिम की 2 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें और गन्ने के बीजोपचार के लिए कार्बेंडाजिम की 200 ग्राम मात्रा को 100 लीटर पानी में घोल कर टुकड़ों को उस में 25-30 मिनट तक डुबोएं. गन्ना और राजमा की सहफसली खेती में राजमा के 80 किलोग्राम और गन्ने के 60 क्विंटल बीज प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करने चाहिए. बोआई 25 अक्तूबर से 15 नवंबर के मध्य कर लेनी चाहिए. गन्ने की 2 लाइनों के बीच राजमा की 2 लाइनों की मेंड़ों पर बोआई करें.

निराईगुड़ाई व सिंचाई : दोनों फसलों की बोआई सर्दी के मौसम में होने की वजह से खरपतवारों की समस्या कम रहती है. फिर भी खरपतवार निकालने के लिए फसल में 2-3 बार निराईगुड़ाई करें. पूरे फसलोत्पादन के दौरान जमीन को नम बनाए रखें, ताकि फसल को पाले से सुरक्षित रखा जा सके.

खाद व उर्वरक : खेत में 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद मिलानी चाहिए. इस के अलावा 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 80 किलोग्राम पोटाश और 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट उर्वरकों का प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए.

फसल सुरक्षा : बोआई से पहले बीजोपचार जरूर करें. आमतौर पर फलियां बनते समय फली भेदक, पर्ण सुंरगक व कुछ चूषक कीटों का हमला हो जाता है. कभीकभी मोजैक रोग का संक्रमण भी हो जाता है.

कीटों व रोगों की रोकथाम

* नीम का तेल 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. इस के इस्तेमाल से फसल की सुरक्षा भी हो जाती है और इनसानों की सेहत पर भी बुरा असर नहीं पड़ता है.

* नीम का तेल न होने पर 2 लीटर क्यूनालफास 25 ईसी या 1.25 लीटर मोनोक्रोटोफास 36 एसएल या 2 किलोग्राम कार्बोरिल 50 डब्लूपी को 600-700 लीटर पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से

12-14 दिनों के अंतर पर छिड़काव करें.

उन्नत तकनीक से खेती करने पर राजमा फलियों की औसत उपज 50-60 क्विंटल प्रति एकड़ तक हासिल हो जाती है और करीब 40 हजार रुपए प्रति एकड़ अतिरिक्त आमदनी हो जाती है. इस के साथ ही गन्ने की उत्पादकता में भी इजाफा होता है. इस की खास वजह खेत में डाले गए खाद व उर्वरकों का अधिकतम इस्तेमाल है. खरपतवार प्रबंधन का लाभ भी दोनों फसलों द्वारा हासिल किया जाता है और सहफसल में अपनाए गए कीट व रोग प्रबंधन का लाभ मुख्य फसल को भी मिल जाता है.

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