रामदाना को अनेक इलाकाई नामों से जाना जाता है जैसे अनारदाना, चौलाई, राजगिरा, चुआ वगैरह. छत्तीसगढ़ के पहाड़ी और मैदानी इलाकों में ठंड के मौसम में रामदाना की खेती की जाती है. कम पानी व कम खाद के हालात में भी उत्पादन पर कोई खास असर नहीं पड़ता. इस के दानों में 12-19 फीसदी प्रोटीन, 63 फीसदी कार्बोहाइडे्रट व 5.5 फीसदी लायसिन होता है.

लोहा, बीटा केरोटिन व फोलिक एसिड का यह बहुत अच्छा स्रोत है जिस की क्वालिटी मछली में उपलब्ध प्रोटीन के बराबर है. इस के दानों में पाया जाने वाला तेल दिल की बीमारी, रक्तचाप वगैरह बीमारियों में काफी फायदेमंद देखा गया है. इस की पत्तियों में विटामिन ‘ए’, कैल्शियम व लौह तत्त्व प्रचुर मात्रा में पाया जाता है.

रामदाना के दानों में गेहूं, चावल, रागी व ज्वार की तुलना में वसा, कैल्शियम व लोहा के साथ ट्रिप्टोफेन, मिथियोनिन और लायसिन की मात्रा अपेक्षाकृत ज्यादा होती है, इसलिए इस का दाना बच्चों की बढ़वार, बुजुर्गों, पेट से हुई औरतों व दूध पिलाने वाली मांओं के लिए जरूरी पोषक भोज्य पदार्थ है.

मक्का, गेहूं व दूसरे अनाजों के साथ मिला कर रामदाना खाया जाता है. इस के दानों से लड्डू, केक, बरफी, गजक, पंजीरी, पेस्ट्री वगैरह भी बनाई जाती है. इस की हरी पत्तियों की सब्जी व पकौड़े स्वादिष्ठ बनते हैं.

जलवायु : यह नम व उष्ण जलवायु का पौधा है. छत्तीसगढ़ के मैदानी व पहाड़ी इलाकों में इसे ठंड में लगाते हैं. इसे सूखे के हालात में भी लगाया जा सकता है पर बहुत अधिक पानी व हवा में इस की फसल गिर जाती है. पहाड़ी इलाकों में 1500-3000 मीटर तक की ऊंचाई पर इस की खेती की जाती है.

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