खरीफ में उगाई जाने वाली फसल सोयाबीन में भी अनेक खरपतवार उग आते हैं जो फसल की बढ़वार और उत्पादन पर बुरा असर डालते हैं. इस के अलावा कीटों व रोगों को भी आश्रय देते हैं.

चौड़ी पत्ती के खरपतवार : इस तरह के खरपतवारों की पत्तियां चौड़ी होती हैं और 2 बीजपत्रीय होती हैं. सोयाबीन में प्रमुख रूप से महकौआ (एजीरेटम कौनीजाइडस), जंगली चौलाई (एमेरेन्थस बिरिडिंस), जंगली जूट (कारकोरस एकुटैंगुलस), सफेद मुर्ग (सिलोसिया अजरेंसिया), हजारदाना (फाइलैंथस निरूरी), कालादाना (आइपोमिया) वगैरह चौड़ी पत्तियों वाले खरपतवार पाए जाते  हैं.

घास कुल के खरपतवार  : इस कुल के खरपतवारों की पत्तियां संकरी व लंबी होती हैं. पत्तियों में सामानांतर शिराएं पाई जाती हैं. पौधे अकसर एक बीजपत्रक होते हैं.

सोयाबीन में संकरी पत्ती वाला खरपतवार जैसे सांवां (इकाईनोक्लोवा कोलोनम) और कौदों (इल्यूसिन इंडिका) की समस्या ज्यादा पाई जाती है.

मोथा कुल की खरपतवार : इस कुल के खरपतवारों की पत्तियां लंबी, तना ठोस और 3-6 किलारी होता है. इस कुल में कथई मोथा (साइप्रस रोटेंडस) और पीला मोथा (साइप्रस इरिया) की समस्या ज्यादा पाई जाती है.

खरपतवारों से नुकसान : सोयाबीन खरीफ मौसम में उगाई जाती है. इस मौसम में मिट्टी का ज्यादा तापमान (35-40 डिगरी सैंटीग्रेड) समुचित नमी और बीजों का अंकुरण तेजी से होता है. नतीजतन, इस मौसम में खरपतवारों की समस्या ज्यादा जटिल होती है.

प्रयोगों से यह साबित हो गया है कि अगर सोयाबीन की फसल में खरपतवारों का सही समय पर नियंत्रण न किया जाए तो विभिन्न प्रकार के खरपतवार पौधों से प्रकाश, स्थान, पोषक तत्त्वों, नमी वगैरह के लिए होड़ करते हैं. इस की वजह से सोयाबीन के पौधों का विकास व बढ़वार दोनों पर उलटा असर पड़ता है. इस वजह से निम्न गुणवत्ता वाली कम उपज मिलती है.

दूसरी ओर सोयाबीन की फसल से 30-60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40-100 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर ले लेते हैं. इस के अलावा खरपतवार फसल को नुकसान पहुंचाने वाले अनेक प्रकार के कीटों व रोगों को आश्रय देते हैं. साथ ही, फसल खराब होने का अंदेशा भी बना रहता है.

कब हो खरपतवार नियंत्रण

अकसर ऐसा देखने में आया है कि किसान कीट नियंत्रण व रोग नियंत्रण की ओर तो ध्यान देते हैं, पर खरपतवार नियंत्रण पर कोई विशेष ध्यान नहीं देते हैं. लेकिन खरपतवार सोयाबीन बोने के साथ ही साथ उगते हैं.

किसान खरपतवारों को तब तक बढ़ने देते हैं, जब तक कि उन्हें हाथ से पकड़ कर उखाड़ने योग्य न हो जाएं और उस समय तक खरपतवार फसल को काफी नुकसान पहुंचा चुके होते हैं.

सोयाबीन के पौधे खरपतवारों की अपेक्षा धीमी गति से बढ़ते हैं और वे खरपतवारों से मुकाबला करने में नाकाम होते हैं इसलिए सोयाबीन की फसल को खरपतवारों से मुक्त रखना जरूरी है.

यहां पर ध्यान रखने वाली बात यह है कि फसल को शुरू से ही खरपतवारों से मुक्त रखा जाए.

यों करें खरपतवार नियंत्रण

सोयाबीन उत्पादक अपनी फसल के साथ उगे खरपतवारों की रोकथाम के लिए इन विधियों का इस्तेमाल कर सकते हैं:

निवारक विधि  : इस विधि में वे सभी क्रियाएं शामिल होती हैं, जिन के द्वारा सोयाबीन के खेत में खरपतवारों को फैलने से रोका जाता है. जैसे गरमी में गहरी जुताई करना, सोयाबीन के साथ खरपतवारों के बीजों को न बोना वगैरह.

यांत्रिक विधि : खरपतवारों के नियंत्रण करने की सरल, सस्ती व प्रभावी विधि है. आमतौर पर सोयाबीन की फसल की बोआई के 20-45 दिनों के बीच का समय होड़ की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण होता है इसलिए पहले निराईगुड़ाई बोआई के 20-25 दिन बाद और दूसरी निराईगुड़ाई 40-45 दिन बाद जरूर करनी चाहिए.

जिन इलाकों में जमीन हलकी से मध्यम किस्म की हो, वहां सोयाबीन की पक्तियों के बीच हाथ चलित हो बोआई के 20-25 दिन बाद चलाना चाहिए और 40-45 दिन बाद हाथ से निराईगुड़ाई करनी चाहिए.

कैमिकल विधि : आजकल बाजार में अनेकों खरपतवारनाशी हैं. प्रगतिशील किसान इन का इस्तेमाल कर के फायदा ले रहे हैं. ज्यादातर किसानों को इन की जानकारी नहीं है. वे इन का सही इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं.

अगर वे भी इन का सही समय, सही मात्रा में इस्तेमाल करें तो वे भी उच्च गुणवत्ता वाली ज्यादा उपज ले सकते हैं.

कैमिकल विधि का इस्तेमाल शुरुआती अवस्था में ही किया जाता है. खरपतवारनाशकों द्वारा नियंत्रण करने में प्रति हेक्टेयर तकरीबन 1000-1200 रुपए का खर्चा आता है और समय भी बहुत कम लगता है. साथ ही, ज्यादा क्षेत्र में खरपतवार पर नियंत्रण संभव होता है.

खरपतवारनाशक उपयोग

* हमेशा अधिकृत विक्रेता या वितरक से ही खरपतवारनाशक खरीदना चाहिए.

* खरीदे गए खरपतवारनाशकों की पक्की रसीद जरूर लें.

* खरीदे जा रहे खरपतवारनाशकों की उत्पादन की तिथि व उपयोग की अंतिम तिथि जरूर देख लें.

* खरपतवारनाशकों को दुकान से खेतों में ले जाते समय कीटनाशकों से अलग रखें.

* खाने की चीजों के साथ खरपतवारनाशकों को कभी न ले जाएं.

* बस में खरपतवारनाशकों को ज्यादा मात्रा में न ले जाएं.

* खरपतवारनाशकों का भंडारण सूखी व हवादार जगह पर या कमरे में करें.

* खरपतवारनाशकों को बच्चों, पालतू पशुओं व दूसरे पशुओं से दूर अलग जगह ताला लगा कर रखें.

* खरपतवारनाशकों को न तो खुली जगह पर रखें और न ही खरपतवारनाशकों को भंडारित बीजों के साथ रखें.

* जिस जगह खरपतवारनाशक रखें, वहां धूम्रपान न करें.

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