Cowpea| हरीमुलायम लोबिया खरीफ के मौसम की जल्दी तैयार होने वाली फलीदार पौष्टिक व मिठास वाली चारा फसल है. चारे के अलावा इस की फलियों को सब्जी के रूप में भी पसंद किया जाता है. हरी खाद के रूप में भी इस फसल का इस्तेमाल किया जाता है. कुछ किसान इसे ज्वारबाजरा या मक्का के साथ भी बोते हैं, जिसे चारे के रूप में पशु बड़े ही चाव से खाते हैं.

खेत की तैयारी : अच्छी फसल के लिए खेत की 2-3 जुताई काफी हैं व खेती के लिए दोमट मिट्टी अच्छी रहती है. रेतीली दोमट मिट्टी में भी फसल उगाई जा सकती है.

समय: लोबिया की बोआई का गरमियों में सब से अच्छा समय मध्य मार्च से ले कर मई का पहला हफ्ता माना जाता है, जिस से इस का हरा चारा, जब हरे चारे की कमी होती है, मिल जाता है. खरीफ के मौसम में इस की बिजाई मध्य जून से जुलाई अंत तक कर सकते हैं.

कुछ उन्नत किस्में : बुंदेल लोबिया 1, यूपीसी 5286, यूपीसी 5287 वगैरह हैं.

बीज की मात्रा : अच्छी पैदावार के लिए 16-20 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ के हिसाब से लें. लाइन से लाइन का फासला 30 सेंटीमीटर रखें व सीड ड्रिल मशीन द्वारा बोआई करें.

सीड ड्रिल से बोआई : सीड ड्रिल मशीन से बोआई करने पर 15 से 20 फीसदी बीज की बचत होती है और पैदावार में भी बढ़ोतरी होती है.

सीड ड्रिल मशीन में जमीन में लाइन में चीरा लगाने वाले फाल लगे होते हैं. इन में उर्वरक व बीज सही गहराई व सही दूरी पर गिरते हैं. इस मशीन से गेहूं, चना, मटर, अरहर, मक्का, धान, मूंग, मूंगफली व सूरजमुखी वगैरह की बोआई सही दूरी व सही गहराई पर भी जा सकती है. बिजाई के समय भूमि में सही नमी होनी चाहिए. बीज बोने से पहले उपचारित कर लें.

उर्वरक प्रबंधन : दलहनी फसल होने के कारण लोबिया में नाइट्रोजन की ज्यादा जरूरत नहीं होती है. फिर भी शुरू की अच्छी बढ़वार के लिए 10 किलोग्राम शुद्ध नाइट्रोजन (22 किलोग्राम यूरिया 46 फीसदी) प्रति एकड़ के हिसाब से बिजाई के समय डालें. बिजाई से पहले सिंचित इलाकों में 25 किलोग्राम फास्फोरस (157 किलोग्राम सिंगल सुपरफास्फेट) व बारानी क्षेत्रों में 12 किलोग्राम फास्फेट (75 किलोग्राम सिंगल सुपरफास्फेट) डालें.

खरपतवार प्रबंधन : गरमी में बोई गई फसल में 1 निराईगुड़ाई पहली सिंचाई देने के बाद बत्तर आने पर करें. मानसून की बारिश पर बोई गई फसल में 1 गुड़ाई बिजाई के तकरीबन 25 दिनों बाद करें.

सिंचाई और जल निकास : मार्चअप्रैल में बोई गई फसल में पहली सिंचाई बिजाई के 20-25 दिनों बाद और मई में बोई गई फसल में पहली सिंचाई बिजाई के 15-20 दिनों बाद करें. आगे की सिंचाइयां 15-20 दिनों के अंतराल पर करें.

इस तरह कुल मिला कर 3-4 सिंचाइयों की जरूरत होती है. बरसात के मौसम में बोई गई फसल में आमतौर पर सिंचाई की जरूरत नहीं होती है. जलनिकास का सही इंतजाम करना जरूरी है. बरसात के समय खेत में पानी नहीं रूकना चाहिए.

कीड़ों से बचाव : सूखे मौसम में लोबिया पर हरा तेला हमला करता है. इस की रोकथाम के लिए 200 मिलीलीटर मैलाथियान (50 ईसी) को 200 लीटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें. लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि छिड़काव के 10-15 दिनों बाद तक इस फसल का हरा चारा पशुओं को न खिलाएं.

कटाई व चारे की पैदावार : लोबिया की हरे चारे के लिए कटाई 50 फीसदी फूल आने से ले कर 50 फीसदी फलियां बनने तक पूरी कर लेनी चाहिए, वरना इस के बाद इस का तना सख्त व मोटा हो जाता है और चारे की पौष्टिकता व स्वाद दोनों ही प्रभावित होते हैं.

अच्छी किस्म का करें चुनाव

सीएस 88 :  कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार लोबिया की यह एक उन्नत किस्म है, जो चारे खेती के लिए बेहतर है. यह सीधी

बढ़ने वाली किस्म है, जिस के पत्ते गहरे हरे रंग के और चौड़े होते हैं. इस के बीजों का रंग हलका गुलाबी भूरा या हलका भूरा होता है. यह किस्म विभिन्न रोगों व कीटों से मुक्त है. यह किस्म पीले मोजेक विषाणु रोग के लिए रोगरोधी है. इस किस्म की बिजाई सिंचित और कम सिंचाई वाले क्षेत्रों में गरमी और खरीफ के मौसम में की जा सकती है. इस का हरा चारा तकरीबन 55-60 दिनों में कटाई लायक हो जाता है. इस के हरे चारे की पैदावार 140-150 क्विंटल प्रति एकड़ है. यदि फसल बीज के लिए लेनी हो, तो लोबिया की बिजाई का सही समय मध्य जुलाई से अगस्त का पहला हफ्ता है.

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