1.  फसल का चयन: खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए फसल का चयन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है. किसान अपने संसाधनों जैसे मौसम, मिट्टी, पानी, मजदूर एवं बाजार को ध्यान में रख कर फसल का चयन करना चाहिए. फसल अधिक उत्पादन एवं लाभ देने वाली होनी चाहिए, जैसे गेहूं की तुलना में मसाला एवं औषधीय फसलों की उत्पादन लागत कम और दाम बढ़िया मिलने से मसाला एवं औषधीय फसलों का उत्पादन लाभकारी है.
2.  किस्म का चयन: फसल चयन के बाद उस की किस्म का चयन महत्वपूर्ण है, इसलिए अपने क्षेत्र के लिए अधिसूचित किस्म का प्रयोग बोनी के लिए करना चाहिए. हर किस्म प्रत्येक क्षेत्र के लिए अनुकूल नहीं होती है. ऐसी स्थिति में उत्पादन प्रभावित होना स्वाभाविक है.
3.  प्रमाणित बीज का उपयोग: बीज बढ़िया होगा, तो उत्पादन भी बढ़िया होगा. इसलिए चयनित किस्म का प्रमाणित बीज या स्वयं द्वारा उत्पादित बीज का प्रयोग बोने के लिए करना चाहिए. मिलावट वाले बीज के उपयोग से फसल एकसार नहीं होने से बाजार मूल्य कम मिलता है.
4.  बीजोपचार: रोगमुक्त पौधे प्राप्त करने के लिए बीज को उपचारित करना आवश्यक है. बीज को जरूरत के मुताबिक फफूंदनाशी, कीटनाशी एवं जीवाणु खाद से उपचारित किया जाता है. बीजोपचार तीनों से करने के लिए पहले फफूंदनाशी का उपयोग करें, फिर कीटनाशी करें एवं अंत में जीवाणु खाद से बीजोपचार करें.
5. बीज की सही मात्रा: प्रत्येक फसल के लिए वैज्ञानिकों द्वारा सामान्य एवं उलट हालात के लिए बीज दर का निर्धारण किया गया है. उचित बीज दर का उपयोग किए जाने से प्रति हेक्टेयर उचित पौध संख्या प्राप्त होती है, जिस से अधिकतम उत्पादन प्राप्त होता है. अधिक बीज के उपयोग से पौधे घने हो जाते हैं और उन में खाद, पानी, धूप के लिए प्रतिस्पर्धा होती है, जिस से प्रति पौधा उत्पादन कम होता है और किसान का लाभ कम हो जाता है.
6. सही विधि से बोनी: ज्यादातर किसान रबी में छिटकवां विधि से बोनी करते हैं, जिस से बीज की अधिक मात्रा लगती है. साथ ही, प्रत्येक पौधा समान दूरी पर नहीं होता है. नतीजतन, प्रत्येक पौधे की उपज एकसमान न होने से उत्पादन प्रभावित होता है.
परीक्षणों द्वारा यह जानकारी हुई है कि कतार में सही दूरी पर फसल लगाने से छिटकवां विधि की तुलना में अधिक उत्पादन प्राप्त होता है, इसलिए फसल के अनुसार सही दूरी पर कतार में बोनी करें.
7.  बोनी की दिशा: खरीफ फसलों में बोनी पूर्व से पश्चिम और रबी फसलों में बोनी उत्तर से दक्षिण करने से अधिक उत्पादन प्राप्त होता है.
8. समय पर खरपतवार प्रबंधन: किसी भी फसल में खरपतवार अधिक होने से उत्पादन बहुत प्रभावित होता है. सही समय पर नियंत्रण न होने से पूरी फसल खराब हो सकती है. साथ ही, उत्पाद के साथ खरपतवार के बीज मिले होने से दाम भी कम मिलता है. ज्यादातर फसलों में 20 से 40 दिन की फसल अवस्था खरपतवारों से सर्वाधिक प्रभावित होती है. इसलिए 20 से 40 दिन की अवस्था पर फसल को खरपतवारमुक्त रखना चाहिए.
9. खाद एवं उर्वरक प्रबंधन: जैविक खाद का प्रयोग अवश्य करना चाहिए. साथ ही, अनुशंसित मात्रा में ही उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए. गंधक एवं जिंक का प्रयोग जरूर करना चाहिए. तेल वाली फसलों में गंधक से तेल की मात्रा बढ़ती है. इसी प्रकार से फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बोनी के समय ही प्रयोग करनी चाहिए.
दलहनी फसलों में नाइट्रोजन की मात्रा केवल बोनी के समय प्रयोग करनी चाहिए, अन्य सभी फसलों में नाइट्रोजन की मात्रा 2 या 3 भागों में बांट कर प्रयोग करनी चाहिए. सही अवस्था पर दिया गया नाइट्रोजन उर्वरक फसल की उत्पादन क्षमता बढ़ाता है, वहीं गलत समय पर नाइट्रोजन का उपयोग उत्पादन कम करता है और पौधों में रोगों व कीटों के प्रभाव को बढ़ाता है.
10. फसल संरक्षण: फसल में रोग व कीटांे का हमला होना स्वाभाविक है. इस के लिए समयसमय पर फसल निरीक्षण करते रहें और माली नुकसान का अधिक प्रकोप होने पर ही रसायनांे का प्रयोग करें. प्राकृतिक कीट एवं रोग नियंत्रण के उपाय अपनाने से लागत कम होती है. सही रसायनों का उपयोग कृषि वैज्ञानिकों की सलाह से करें.
drip irrigation11. सिंचाई प्रबंधन: प्रत्येक फसल में पानी की जरूरतें भिन्न होती हैं. साथ ही, मिट्टी की बनावट का इस पर बहुत प्रभाव होता है. पानी की उपलब्धता के आधार पर ही फसल का चयन करना चाहिए, अन्यथा इस की कमी से उत्पादन प्रभावित हो सकता है. प्रत्येक फसल में वैज्ञानिकों द्वारा कुछ अवस्थाएं चिन्हित की गई हैं, जिन पर पानी न मिलने से फसल का उत्पादन अप्रत्याशित रूप से प्रभावित होता है. अतः पानी की उपलब्धता के आधार पर इन क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई करने से उत्पादन कम प्रभावित होता है.
12. सिंचाई की विधि: सतह पर सिंचाई करने की अपेक्षा ड्रिप से सिंचाई करने पर पानी की अत्यधिक बचत होती है. स्प्रिंकलर द्वारा सिंचाई कर के भी पानी को बचाया जा सकता है. सतही सिंचाई करने पर क्यारी छोटी बनाएं और उन्हें अत्यधिक न भरें.
13. समय पर कटाई एवं गहाई: फसल की समय पर कटाई अत्यंत आवश्यक है. अधिक सूखने पर कटाई करने से फसलें झड़ सकती हैं, जिस से उत्पादन प्रभावित होने के साथ ही अगली फसल में ये खरपतवार का काम करते हैं. सब्जी एवं फल वाली फसलों में भी तुड़ाई अत्यंत महत्वपूर्ण है. कटाई सुबह के समय किए जाने से नुकसान कम होता है. कटी फसल को खलिहान में सुखा कर थ्रैशिंग करनी चाहिए.

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