भारत में तकरीबन 40-50 किस्मों की अलगअलग तरह की सब्जियों की खेती काफी पहले से की जाती है, लेकिन अब भी कुछ ऐसी सब्जियां हैं, जिन से काफी किसान अनजान हैं.
ऐसी ही एक सब्जी है ब्रोकली यानी हरे रंग की गोभी. गोभी वर्ग की यह खास सब्जी कभीकभी बैगनी या सफेद रंग की भी होती है. इस के खाने लायक शीर्ष भाग के अलावा मांसल पुष्पदंड का भी सलाद और सूप के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं. देश में इस की खेती पिछले कुछ सालों से शुरू की गई है. ब्रोकली की सब्जी की मांग बड़ेबड़े होटलों और पर्यटन स्थलों पर काफी तेजी से बढ़ी है.
पोषक तत्त्व : ब्रोकली में फूलगोभी, पत्तागोभी, गांठगोभी के मुकाबले प्रोटीन, विटामिन और खनिज पदार्थ ज्यादा होते हैं. इस के अलावा थियोमिन, रोइबोफलेविन व नियासिन वगैरह तत्त्व भी इस में भरपूर मात्रा में मौजूद होते हैं. इस के अलावा इस सब्जी का और भी महत्त्व है, क्योंकि खोजों से पता चला है कि ब्रोकली में मौजूद आईसोथियोसिनेट्रस श्रेणी के रसायन फाइटोकैमिकल्स के रूप में मौजूद होते हैं, जो कैंसर रोगियों का कैंसर से बचाव करते हैं और स्वस्थ लोगों में कैंसर की आशंका काफी कम करते हैं. इस के इस्तेमाल से खून में सीरम कोलेस्ट्राल का स्तर कम होता है, जो हृदय रोगियों के लिए लाभयदायक है. ब्रोकली के सूखे अंकुर ट्यूमर के खतरे को भी कम करते हैं. ब्रोकली में तमाम पौष्टिक तत्त्व दूसरी गोभियों की तुलना में ज्यादा पाए जाते हैं.
जलवायु : ब्रोकली शीतोष्ण जलवायु की फसल है, लेकिन इसे अन्य इलाकों में भी आसानी से उगाया जा सकता है. अधिकतर भागों में इस की खेती रबी मौसम में की जाती है, जबकि ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में इस की खेती गरमी के मौसम में की जाती है. ब्रोकली की अच्छी पैदावार के लिए 20-25 डिगरी सेल्सियस और शीर्ष विकास के लिए 12-18 डिगरी सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है.
खेत की तैयारी : सब पहले खेत की गहरी जुताई के बाद ढेलों को तोड़ कर जमीन को समतल और मुलायम किया जाता है. नीम की खली 100 किलोग्राम और ट्राइकोडर्मा 1 किलोग्राम का मिश्रण (200 ग्राम प्रतिवर्ग मीटर) डाल कर अच्छी तरह मिला लें. पौध लगाने से पहले प्रतिवर्ग मीटर में नाइट्रोजन 5 ग्राम, फास्फोरस 5 ग्राम और पोटाश 5 ग्राम डाली जाती है. 100 सेंटीमीटर चौड़ी और 15 सेंटीमीटर ऊंची क्यारियां बनाई जाती हैं और कतारों के बीच 50 सेंटीमीटर का फासला रखा जाता है. सड़ी गोबर की खाद 20 किलोग्राम प्रतिवर्ग मीटर में डाल कर मिट्टी में अच्छी तरह मिलाई जाती है.
किस्में : ब्रोकली की खेत के लिए बोआई के समय और उगाए जाने वाले क्षेत्र के मुताबिक उन्नत किस्मों का चयन करते हैं. ब्रोकली की 3 किस्में होती हैं, हरी, बैगनी और सफेद. हरे रंग की गढे़ हुए शीर्ष वाली किस्मों को लोग ज्यादा पसंद करते हैं. पकने के आधार पर इन किस्मों को 3 हिस्सों में बांटा जाता है.
अगेती किस्में : ये किस्में रोपाई के बाद 40-50 दिनों में तैयार हो जाती हैं. ये मध्यम ठंड में ही पकती है. इन में मुख्य हैं: ऐश्वर्य, डीसिम्को, ग्रीनबड और स्पार्टनअली.
मध्यावधि किस्में : ये किस्में 100 दिनों में तैयार हो जाती हैं. सकाटा, अर्या, ग्रीन स्प्राउटिंग अच्छी मध्यावधि किस्में हैं.
पछेती किस्में : ये किस्में तकरीबन 120 दिनों में तैयार होती हैं. इन में मुख्य हैं, पूसा ब्रोकली व केटी सलेक्शन 1, जो 90 से 105 दिनों में तैयार हो जाती है.
संकर किस्में : निजी बीज कंपनियों ने ब्रोकली की अच्छी संकर किस्में तैयार की हैं.
अगेती संकर किस्में : प्रीमियम क्राप, लेसर, कलियर.
मध्यावधि संकर किस्में : लौर सायर, कुइजर, ऐक्स कैलिबर.
पछेती संकर किस्में : स्टिफकायक, ग्रीन सर्फ आदि.
बोआई : मैदानी भागों में ब्रोकली की बोआई मध्य सितंबर से नवंबर के पहले हफ्ते के बीच की जाती है. पहाड़ी इलाकों में बोआई का समय सितंबरअक्तूबर होता है. मध्यावधि किस्मों की बोआई सितंबरअक्तूबर में पौधशाला में करनी चाहिए. पछेती किस्मों के बीजों की बोआई का सही समय अक्तूबर के आखिर से मध्य नवंबर तक है. काफी ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में मार्चअप्रैल में बोआई करते हैं.
नर्सरी तैयार करना : 98 छेदों वाली प्रोट्रे यानी प्लास्टिक की ट्रे का इस्तेमाल पौध तैयार करने के लिए किया जा सकता है. इस प्रोटे्र का आकार आमतौर पर 54 सेंटीमीटर लंबा और 27 सेंटीमीटर चौड़ा होता है. सड़ी गोबर की खाद और जैविक मिश्रण का रोगमुक्त पौध उगाने के लिए इस्तेमाल किया जाना जरूरी है.
नर्सरी में परंपरागत मिश्रण, मिट्टी, गोबर की खाद, कोकोपीट, वर्मीकुलाइट, बालू या परलाइट मिश्रण का इस्तेमाल किया जा सकता है. यह रोगमुक्त होने के साथसाथ एकदम भुरभुरा होता है, जिस से जड़ों का अच्छी तरह विकास होता है. प्रोट्रे के हर छेद में 1 बीज डाल कर वर्मीकुलाट से बीज को ढक देना चाहिए. इस के बाद हजारे की मदद से हलकी सिंचाई कर के प्रोट्रे को एकदूसरे के ऊपर जमा कर पौलीथिन शीट से ढक देना चाहिए. इस से बीज आसानी से अंकुरित हो जाता है. अंकुरण सामान्यत: 6 से 8 दिनों में हो जाता है. अंकुरण के बाद पौलीथिन शीट हटाने के बाद प्रोट्रे को एकएक कर के जमीन पर रख देना चाहिए. पौधे 4 से 6 हफ्ते के भीतर रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं.
रोपाई : उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में पौधों की रोपाई अक्तूबर के पहले हफ्ते से नवंबर के पहले हफ्ते और पहाड़ी इलाकों में मई में की जाती है. नर्सरी में जब पौधे 10-12 सेंटीमीटर या 4-5 हफ्ते के हो जाते , तब खेत में इन की रोपाई कर देनी चाहिए. रोपाई से पहले 1 लीटर पानी में 1 ग्राम फफूंदीनाशक दवा यानी कार्बेंडाजिम डाल कर इस मिश्रण से जड़ों का उपचार करना चाहिए.
पौधों को पौलीथिन शीट के छेदों के बीच में लगाया जाता है, जिस से पौधे कहीं भी पौलीथिन शीट को न छुएं. रोपाई के फौरन बाद हजारे से हलकी सिंचाई की जाती है. पौधों की रोजाना इसी तरह हलकी सिंचाई करनी चाहिए. इस की रोपाई लाइनों में की जाती है. इस की किस्मों के अनुसार लाइनों की दूरी 45-60 सेंटीमीटर तक रखते हैं. ध्यान रहे कि पौधे 3-4 सेंटीमीटर से ज्यादा गहरे नहीं लगाने चाहिए.
पोषक तत्त्वों का मिश्रण : खाद और उर्वरक का इस्तेमाल मिट्टी की जांच के आधार पर करें. आमतौर पर 150-200 क्विंटल गोबर की खाद, 120-125 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 से 80 किलोग्राम सुपरफास्फेट और 25 से 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर में डालनी चाहिए. गोबर की खाद, सुपरफास्फेट और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बोआई के समय और शेष आधी मात्रा को खड़ी फसल पर छिड़काव यानी टापड्रेसिंग विधि से दें.
टापड्रेसिंग के बाद सिंचाई जरूर करें. इस के अलावा इस फसल में कुछ सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की भी जरूरत होती है, जैसे बोरान मोलिब्डेनम. इन सूक्ष्म तत्त्वों की कमी दूर करने के लिए रोपाई से पहले खेत की तैयारी करते समय 10-15 किलोग्राम बोरेक्स और 500 ग्राम अमोनियम मोलिब्डेट प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करते हैं.
मल्चिंग : तैयार क्यारियों को 100 गेज यानी 25 माइक्रोन की काली पौलीथिन शीट से ढक देना चाहिए और दोनों तरफ किनारों को मिट्टी से दबा देना चाहिए.
सिंचाई : पहली हलकी सिंचाई रोपाई के एकदम बाद और दूसरी रोपाई के 6 से 7 दिनों बाद करें. इस के बाद फिर हलकी सिंचाई करें. इस तरह 5-6 बार सिंचाई की जरूरत पड़ती है. पानी खेत में ज्यादा समय तक नहीं रुकना चाहिए. खास बात यह है कि फसल की शुरुआत में और बीज निकलते समय पानी की कमी नहीं होनी चाहिए.
खरपतवारों की रोकथाम : खरपतवारों की रोकथाम के लिए बेसालिन 2.0 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से रोपाई से पहले खेत में छिड़काव कर के मिट्टी में मिला दें. इस के अलावा 15 दिनों के अंतर पर 2-3 बार निराईगुड़ाई करें.
तोड़ाई : अगेती किस्मों की फसल दिसंबर में तोड़ाई लायक हो जाती है. मध्यावधि प्रजातियां जनवरीफरवरी में और पछेती प्रजातियां फरवरी के बाद तोड़ाई लायक होती हैं.
उपज : यदि ब्रोकली की खेती बताई गई विधि से करते हैं, तो 100-150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज हासिल की जा सकती है. इस का इस्तेमाल बड़ेबड़े होटलों में सब्जी और सलाद के रूप में किया जाता है.