Pulses : दलहनी फसलों में अरहर पूर्वी उत्तर भारत की मुख्य फसल है. इसे तुअर के नाम से भी जाना जाता है. इस में कार्बोहाइड्रेट और कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. यह काफी आसानी से पच जाती है, इसी वजह से रोगियों के लिए मुफीद मानी जाती है.
अरहर की जड़ें जमीन में काफी गहराई तक जा कर पोषक तत्त्वों को ग्रहण करती हैं, इसलिए इस की खेती के लिए हलकी दोमट मिट्टी और अच्छी जल निकासी वाली जमीन काफी मुफीद होती है. उथले और जलभराव वाले खेतों में इस की खेती नहीं होती है. 5 से 8 पीएच मान की मिट्टी इस के लिए बहुत ही फायदेमंद मानी जाती है.
बिहार के नालंदा जिले के कथौली गांव के किसान बृजनंदन प्रसाद बताते हैं कि बारिश के मौसम की शुरुआत में ही खरीफ की फसलों के साथ इस की खेती की जाती है. इस के साथ मूंगफली, बाजरा, तिल, बगरी धान, ज्वार वगैरह की खेती मिला कर की जाती है. बारिश के आखिर तक इस की फसल पक जाती है और उसे काट लिया जाता है. बृजनंदन ढाई एकड़ खेत में अरहर की खेती करते हैं और उस से सालाना कमाई ढाई लाख रुपए तक हो जाती है.
अरहर की बोआई मई महीने से चालू हो कर अगस्त महीने तक चलती है. देर से बोई गई फसलों पर रोग और कीटों का ज्यादा हमला होता है. इसलिए इसे समय पर ही बोना चाहिए. अगर जुलाई में बोआई की जाती है, तो 60 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए. अगस्त के दूसरे हफ्ते तक बोआई करने पर पौधों के बीच 50 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए. अगर मिश्रित फसलों के बीच बोआई की गई हो तो पौधों के बीच की दूरी 75 सेंटीमीटर होनी चाहिए.
अगर अरहर की अकेली खेती की जाती है, तो प्रति हेक्टेयर 15 से 20 किलोग्राम और मिश्रित खेती में 6 से 7 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की जरूरत होती है. प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम थाइरम से उपचारित करना चाहिए.
अरहर की फसल को 1 या 2 सिंचाई की ही जरूरत पड़ती है. अगर बारिश नहीं होती है, तो फसल की शुरुआती अवस्था में ही पहली सिंचाई कर देनी चाहिए. जब फसल में फूल और फल लगने लगें तो दूसरी सिंचाई करनी चाहिए.
अरहर की फसल जब 3 से 4 हफ्ते की हो जाए तो उस की निराईगुड़ाई कर लेनी चाहिए. अगर इसे मिश्रित फसल के रूप में लगाया गया हो तो मिश्रित फसलों को काटने के बाद अरहर की कतारों के बीच हल चला देने से अरहर की फसल बेहतर होती है.
अरहर की फसल पर सब से ज्यादा हमला दीमक और लाल लट नाम के कीटों का होता है. दीमक से फसल को बचाने के लिए बोआई से पहले खेत में प्रति हेक्टेयर 25 किलोग्राम राख में 4 फीसदी एंडोसल्फान या 1.5 फीसदी क्यूनालफास को मिला कर छिड़काव करना चाहिए. लाल लट से फसल को बचाने के लिए 20-25 किलोग्राम राख में 4 फीसदी एंडोसल्फान या 1.5 फीसदी क्यूनालफास या 2 फीसदी मिथाइल पैराथियान मिला कर छिड़काव करना चाहिए.
कीटों के अलावा अरहर की फसल को उकठा और फली छेदक रोग भी काफी नुकसान पहुंचाते हैं. उकठा रोग से अरहर को बचाने के लिए रोगरोधी बीजों की ही बोआई करनी चाहिए. फली छेदक रोग से बचाव के लिए मोनोक्रोटोेफास 36 डब्ल्यूएसपीसी या मैलाथियान 50 ईसी का छिड़काव राख में मिला कर करने की जरूरत होती है.