गेहूं दुनियाभर में सब से ज्यादा उगाई जाने वाली फसल है. भारत में अनाज की फसलों में गेहूं का खास स्थान है. रकबे और पैदावार की दृष्टि से गेहूं चावल के बाद दूसरे स्थान पर है. गेहूं देश की कुल जनसंख्या के तकरीबन 40 फीसदी लोगों का खास भोजन है, जबकि उत्तर भारत में तकरीबन 83 फीसदी जनसंख्या अपनी भोजन संबंधी जरूरतों के लिए गेहूं पर निर्भर है. इस का इस्तेमाल रोटी, दलिया, हलवा, मिठाई, पावरोटी, बिस्कुट, मैदा जैसे अनेक पदार्थों को बनाने में होता है.
गेहूं की पैदावार की दृष्टि से उत्तर प्रदेश का पहला स्थान है. उत्तर भारत में गेहूं की खेती रबी मौसम में की जाती है. इन इलाकों की जलवायु भी अलग है, जो अधिक पैदावार बढ़ाने में बाधक है, लेकिन फिर भी यहां पर उत्पादन बढ़ाने की काफी संभावनाएं हैं, जिस में अच्छी विधियां अपनाना बहुत जरूरी है. ये विधियां परंपरागत तरीकों से ज्यादा प्रभावी और लाभप्रद हैं.
मिट्टी व जलवायु : गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए सही जल निकास वाली चिकनी दोमट व बलुई दोमट जमीन अच्छी रहती है. मौजूदा दौर में उत्तर प्रदेश में सभी तरह की सामान्य मिट्टी में इस की खेती की जा सकती है. इस के अलावा ऐसी जमीन जिस का पीएच मान 6 से 8.5 के बीच होता है, उस में गेहूं की पैदावार की जा सकती है. बढ़वार की शुरुआती अवस्थाओं में गेहूं की उपज को पकने के दौरान ठंडी और सूखी जलवायु की जरूरत पड़ती है.
खेत की तैयारी : सब से पहले 2 जुताई मिट्टी पलटने वाले हैरो से करते हैं. फिर 2-3 जुताई कल्टीवेटर या देशी हल से करते हैं. आखिर में पाटा चला कर खेत तैयार करते हैं. जमीन के लिए फास्फेटिका कल्चर 2.5 किलोग्राम और एजोटोबैक्टर 2.5 किलोग्राम इन दोनों जैविक कल्चरों को 1 एकड़ खेत के लिए 100 से 120 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद में मिला कर 4 से 5 दिनों के लिए जूट के बोरे से ढकने के बाद खेत की तैयारी में आखिरी जुताई के समय छिटक कर मिट्टी में मिला देते हैं.
बीज की मात्रा : सामान्य स्थिति में गेहूं की बोआई के लिए प्रति हेक्टेयर 100 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है. मोटे दाने की दशा में यह मात्रा 120 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो जाती है. यदि छिटकवां विधि या देर से बोआई की जाए तो प्रति हेक्टेयर 125 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. बीजशोधन के लिए 2.5 ग्राम थीरम, 2.5 ग्राम कार्बेंडाजिम या 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा स्पोर में से किसी एक दवा को प्रति किलोग्राम बीज की दर से ले कर किसी साफ घड़े में बीज और दवा डाल कर पालीथीन से मुंह बांध कर अच्छी तरह बीज पर दवा लगाते हैं.
बोआई का समय : बोआई समय से करनी चाहिए. लाइन से लाइन की दूरी 23 सेंटीमीटर और बीज की गहराई 5 सेंटीमीटर होनी चाहिए. देर से बोआई के लिए लाइन से लाइन की दूरी 18 सेंटीमीटर और बीज की गहराई 4 सेंटीमीटर होनी चाहिए. बोआई का समय 15 अक्तूबर से 25 नवंबर तक अच्छा रहता है. देर से बोआई का समय 25 नवंबर से 25 दिसंबर तक है.
बोआई का तरीका : गेहूं की बोआई 6 तरह से की जा सकती है. छिटकवां विधि, हल के पीछे कूड़ में, सीडड्रिल मशीन से, डिबलर से, जीरो टिल सीडड्रिल मशीन और उभरी हुई क्यारी तरीके से की जाती है. बोआई में यह ध्यान रखें कि प्रति वर्गमीटर 400 से 500 बाली वाले पौधे जरूर हों वरना उपज पर कुप्रभाव पड़ेगा. बोआई के समय जमीन में सही नमी होना जरूरी है.
खाद और उर्वरक : खाद और उर्वरकों का इस्तेमाल मिट्टी की जांच के मुताबिक ही करना चाहिए. अच्छी उपज लेने के लिए कंपोस्ट खाद 100 से 112 क्विंटल प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करें. आमतौर से 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश, लेकिन देरी से बोआई के लिए 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस और 30 किलोग्राम पोटाश व अन्य तत्त्वों की पूर्ति के लिए 30 किलोग्राम गंधक व पोषक 20 से 25 किलोग्राम सूक्ष्म पोषक तत्त्व मिश्रण का इस्तेमाल करते हैं दोमट या मटियार मिट्टी में नाइट्रोजन की आधी मात्रा पहली सिंचाई के 24 घंटे पहले या ओट आने पर देनी चाहिए. बलुई दोमट या बलुई जमीन में नाइट्रोजन की 1/3 मात्रा और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बोआई के समय कूड़ों में बीज के 2 से 3 सेंटीमीटर नीचे दी जाती है और बची नाइट्रोजन की आधी मात्रा पहली सिंचाई के बाद और आधी मात्रा दूसरी सिंचाई के बाद देनी चाहिए.
जल प्रबंधन : गेहूं की फसल में दी गई तालिका के मुताबिक समयसमय पर सिंचाई करना सही रहता है.
खरपतवारों की रोकथाम : फसल में यदि खरपतवार उगे हों तो एक गुड़ाई 30 से 35 दिनों पर करें. रासायनिक तरीके से खरपतवारों की रोकथाम तालिका में दी गई है.