अरबी और बंडा की सब्जी खाने में लजीज तो होती ही है, पोषक तत्त्वों से भी भरपूर होती है. इन की फसल अच्छी लेनी हो तो, इस के लिए किसानों को इस में लगने वाले कीटों और रोगों की जानकारी होनी चाहिए, ताकि उन का समय रहते इलाज हो सके. अरवी में लगने वाले खास कीट और रोग :
सूंड़ी कीट
इस के प्रोन पतले और भूरे रंग के तकरीबन 16 मिलीमीटर से 18 मिलीमीटर लंबे होते हैं. इस का ऊपरी पंख कत्थई रंग का होता है, जिस पर सफेद लहरदार धारियां पाई जाती हैं. पिछले पंख सफेद रंग के होते हैं.
पूरी तरह विकसित सूंड़ी का शरीर कोमल व पीलापन लिए हुए हरा व भूरा होता है. इस के शरीर पर कहींकहीं रोएं होते हैं.
पीठ पर दोनों ओर 1-1 पीली धारी होती है और एक पीली धारी शरीर के निचले भाग में दोनों तरफ होती है. दाएं, बाएं और धारी के ऊपर एक काला नवचंद्रक होता है. सूंड़ी के सिर व टांगों का रंग काला होता है. जुलाई और अगस्त माह में इस कीट का प्रकोप अधिक होता है. इस की सूंड़ी पत्तियों को खा कर हानि पहुंचाती हैं.
प्रबंधन : कीटग्रस्त खेत के चारों तरफ नालियां खोद कर विषयुक्त पानी भर देना चाहिए.
यदि खेत में कीट नहीं आया है तो नीम तेल 1,500 पीपीएम की 50 मिलीलिटर दवा और एक पाउच शैंपू प्रति 15 लिटर पानी में घोल बना कर 15-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करते रहें.
यदि खेत में कीट आ गया है, तो प्रोफेनोफास 25 ईसी की 25 मिलीलिटर दवा और एक पाउच शैंपू प्रति 15 लिटर पानी में घोल बना कर तुरंत छिड़काव करें.
झुलसा रोग
बारिश शुरू होते ही पत्तियों पर भूरे धब्बे पड़ जाते हैं. पत्तियां और डंठल गलने लगते हैं.
प्रबंधन : इस रोग के प्रबंधन के लिए 2.0 ग्राम कार्बंडाजिम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से बीज शोधन कर के ही बोएं.
यदि रोग फसल पर आ गया है तो मैंकोजेब एम-45 की 45 ग्राम दवा और एक पाउच शैंपू प्रति 15 लिटर पानी में घोल बना कर तुरंत छिड़काव करें.
फाइटोप्थोरा झुलसा रोग
यह प्रमुख रोग है. इस में पत्तियों पर भूरे रंग के जलीय धब्बे बनते हैं, जो पत्तियों को ?ालसा देते हैं. कभीकभी पत्तियां किनारे की तरफ से भी ?ालसने लगती हैं. इस रोग से कंद भी प्रभावित होते हैं. वातावरण में नमी होने पर यह रोग उग्र रूप धारण कर लेता है.
प्रबंधन : इस रोग के लक्षण दिखते ही या आसमान में बदली होने पर तुरंत रिडोमिल एमजेड 78 की 30 ग्राम दवा और एक पाउच शैंपू प्रति 15 लिटर पानी में घोल बना कर तुरंत छिड़काव करें.