कुट्टू यानी टाऊ पौलीगोनेसी कुल का पौधा है. इस के तने का इस्तेमाल सब्जी बनाने के काम में आता है. साथ ही, फूल व हरी पत्तियों का इस्तेमाल ग्लूकोसाइड के निष्कर्षण द्वारा दवा बनाने, फूल और उच्च गुणवत्ता वाले मधु पैदा करने में किया जाता है.
इस के बीजों का इस्तेमाल नूडल्स, सूप, चाय, ग्लूटेन फ्री बीयर वगैरह बनाने में किया जाता है. इस के पोषक तत्त्वों की मात्रा मक्का, धान, गेहूं वगैरह से भी ज्यादा होती है. इस के 100 ग्राम भाग में 12 ग्राम प्रोटीन, 7.4 ग्राम वसा, 72.9 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 114 मिलीग्राम कैल्शियम, 13.2 मिलीग्राम लौह व 282 मिलीग्राम फास्फोरस होता है.
एक हरी खाद रूप में भी यह काम में आता है. इस का इस्तेमाल उस जमीन में करते हैं जो रबी मौसम में देरी से सूखती है. वह खेत जहां लंबे समय बाद खेती करनी है और जल्दी फसल चक्र अपनाने के लिए करना होता है.
सरगुजा संभाग के मेनपाट इलाके में तिब्बतीय शरणार्थियों की यह मुख्य फसल है. टाऊ को गेहूं के साथ मिला कर बिसकुट, नानखताई, सेवइयां व चावल के साथ मिला कर पापड़, फूलबड़ी वगैरह बनाई जाती हैं. रूस में इस की खेती बड़े पैमाने पर होती है. इस की जंगली प्रजाति यूनान में पाई जाती है.
जमीन की तैयारी : लवणीय मिट्टी इस की खेती के लिए सही नहीं होती है. जमीन का पीएच मान 6.5-7.5 अच्छा माना गया है. खेत की जुताई कल्टीवेटर से करने के बाद पाटा लगा कर तैयार किया जाता है.
बीज दर : टाऊ के लिए बीज की मात्रा किस्म के आधार पर तय होती है. 75-80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर स्कूलेंटम के लिए और 40-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर टाटारीकम जाति के लिए सही है. लाइन से लाइन की दूरी 30 सैंटीमीटर व पौधे से पौधे की दूरी 10 सैंटीमीटर रखी जाती है. बीजों को छिड़क कर बोते हैं और बाद में हल द्वारा पाटा चला कर बीजों को ढक देते हैं.
बोआई का समय : रबी फसल की बोआई 15 सितंबर से 15 अक्तूबर में की जाती है.
खाद व उर्वरक : 40:20:20 एनपीके किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से दिया जाता है. सल्फर, पोटाश की पूरी मात्रा व नाइट्रोजन की आधी मात्रा बोआई के समय व शेष नाइट्रोजन की मात्रा बाल निकलने के पहले देना सही होगा.
सिंचाई : जहां पानी हो, वहां पर हलकी जमीन में 5-6 सिंचाइयां जरूरी होती हैं.
खरपतवार नियंत्रण : संकरी पत्ती के लिए पेंडीमिथेलीन (3.3 लिटर) 800-1000 लिटर पानी में घोल बना कर 30-35 दिन के भीतर छिड़काव कर नियंत्रण किया जा सकता है.
कीट व रोग : इस फसल में कीटों व रोगों का प्रकोप नहीं देखा गया है.
कटाई और खरपतवार : टाऊ की फसल एकसाथ नहीं पकती है इसलिए 70-80 फीसदी पकने पर इसे काट लेना चाहिए और बंडल बना कर सुखा कर गहाई करनी चाहिए. इस फसल में बीज झड़ने की समस्या ज्यादा होती है. इस की औसत पैदावार 11-13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
कुट्टू से बनाएं कई चीजें
भारत में कुट्टू का आटा बड़ी आसानी से मिल जाता है. इस आटे से तमाम तरह की चीजें बनाई जा सकती हैं जो खाने में बहुत ही स्वादिष्ठ होती हैं.
कुट्टू से पकौड़ी, पूरी, सब्जी के अलावा चीले, हलवा, परांठे वगैरह भी बनाए जा सकते हैं. उबले हुए आलू या फिर उबली अरबी के साथ मिला कर भी इस आटे को गूंध सकते हैं. आटा गूंधते समय पानी को जरूरत के मुताबिक ही इस्तेमाल करें. अगर आटा ज्यादा चिपचिपा हो रहा है तो थोड़ा और आटा मिला कर इसे फिर से अच्छे से गूंधें.
अगर कुट्टू के आटे में पानी ज्यादा हो गया है यानी ढीला पड़ रहा है तो इसे 15 मिनट के लिए फ्रिज में रख दें. फिर इस्तेमाल करें. फिर खाएं कुट्टू के आटे से बनी स्वादिष्ठ चीजें. वाकई मजा आ जाएगा आप को. एक बार खा कर तो देखें कुट्टू से बनी चीजों को.